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इरान के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह ख़ामेनेई का इरानी जनता को दूसरा टेलीविज़न ख़ेताब!

अमेरिकी राष्ट्रपति ने धमकियाँ दी हैं। वह हमें धमकाता है और साथ ही—हास्यास्पद तरीक़े और बेशर्मी से—इरानी जनता से उसके आगे समर्पण की माँग करता है। ऐसे व्यवहार पर सचमुच हैरानी होती है।

18 जून 2025

“अल्लाह के नाम से, जो बड़ा कृपालु और दयावान है

मैं महान इरानी राष्ट्र को सलाम करता हूँ।

पहला विषय जिस पर मैं बात करना चाहता हूँ, वह है हाल ही में हमारे दुश्मनों द्वारा हमारे देश पर थोपी गई घटना के संदर्भ में हमारे प्यारे लोगों के आचरण की क़द्रदानी। इरानी लोगों ने खुद को संयमित, साहसी और समय के प्रति जागरूक साबित किया है। ईद-ए-ग़दीर के दिन हमारे लोगों ने दुनिया के सामने जो प्रदर्शन किया, वह असाधारण था। हाल के दिनों में उनकी सभाएँ और मार्च, जुमे की नमाज़ और उसके बाद के मार्च में उनकी मौजूदगी—यह सब इरानी जनता की परिपक्वता और हमारे प्यारे राष्ट्र में तर्कसंगतता व आध्यात्मिकता के साथ साहस और सही समय की गहरी समझ का सबूत है।

मैं अल्लाह का शुक्र अदा करता हूँ कि उसने इस मोमिन जनता को अपनी कृपा से ऐसी नैतिक और भौतिक क्षमताएँ प्रदान की हैं। मुझे उस महिला टीवी एंकर के शक्तिशाली और प्रतीकात्मक कार्य का भी ज़िक्र करना चाहिए जिसने दुश्मन के अहंकार के सामने दृढ़ता दिखाई: उसकी तकबीर (अल्लाहु अकबर) और दुनिया के सामने अवाम की ताकत का प्रदर्शन एक ऐतिहासिक और अत्यंत मूल्यवान घटना थी।

दूसरा विषय यह है कि यह घटना, ज़ायोनी रेजीम द्वारा हमारे देश पर मूर्खतापूर्ण और दुर्भावनापूर्ण हमला, तब हुआ जब सरकारी अधिकारी मध्यस्थों के ज़रिए अमेरिकी पक्ष के साथ अप्रत्यक्ष वार्ताओं में लगे हुए थे। इरान की ओर से कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाया गया जो किसी आक्रामक या कठोर सैन्य कार्रवाई का संकेत देता हो। बेशक, शुरू से ही यह उम्मीद थी कि अमेरिका इस ज़ायोनी रेजीम की दुर्भावनापूर्ण कार्रवाई में साझीदार है, लेकिन नए बयानों के साथ यह सोच दिन-ब-दिन और पुख़्ता होती जा रही है।

इरानी जनता एक थोपे गए युद्ध के ख़िलाफ़ भी और एक थोपी गई शांति के ख़िलाफ़ भी पूरी दृढ़ता से खड़ी है। इरानी जनता किसी के दबाव के आगे झुकती नहीं है। मैं बुद्धिजीवियों, लेखकों और सार्वजनिक हस्तियों से, ख़ासकर वैश्विक आडियंस रखने वालों से, उम्मीद करता हूँ कि वे इन सच्चाइयों को स्पष्ट करें और समझाएँ। उन्हें दुश्मन को प्रोपैगंडे के ज़रिए तथ्यों को तोड़ने-मरोड़ने का मौक़ा नहीं देना चाहिए।

ज़ायोनी दुश्मन ने एक गंभीर ग़लती और बड़ा अपराध किया है, और उसे सज़ा मिलनी चाहिए—और वह मिल रही है। इरानी जनता और हमारी आर्म्ड फ़ोर्सेज़ द्वारा दी गई सज़ा, वर्तमान में दी जा रही सज़ा और भविष्य के लिए तैयार की गई सज़ा कठोर है जिसने पहले ही उसे कमज़ोर कर दिया है। यहाँ तक उसके अमेरिकी सहयोगियों का हस्तक्षेप और बयान भी उसकी कमज़ोरी और अक्षमता के संकेत हैं।

अंतिम बात यह है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने धमकियाँ दी हैं। वह हमें धमकाता है और साथ ही—हास्यास्पद तरीक़े और बेशर्मी से—इरानी जनता से उसके आगे समर्पण की माँग करता है। ऐसे व्यवहार पर सचमुच हैरानी होती है।

पहली बात, धमकियाँ उन्हीं पर असर करती हैं जो उनसे डरते हैं। इरानी जनता ने दिखाया है कि वह धमकियों के सामने नहीं झुकती। जैसा कि अल्लाह कहता है:

“निराश न हो और न दुखी, अगर तुम ईमान वाले हो तो तुम्हीं ग़ालिब रहोगे।” (कुरआन 3:139)

धमकियों का इरानी जनता के व्यवहार या सोच पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

दूसरी बात, इरानी जनता से यह कहना कि आओ और आत्मसमर्पण करो—यह तर्कसंगत बात नहीं है। जो लोग इरान को जानते हैं, जो इरानी जनता और उसके इतिहास को जानते हैं, वे कभी ऐसे शब्द नहीं बोलेंगे। किसके आगे समर्पण करें? इरानी जनता समर्पण करने वाली नहीं है। हमने किसी पर हमला नहीं किया है, और किसी भी हालत में हम किसी की आक्रामकता सहन नहीं करेंगे—न ही उसके आगे झुकेंगे। यही इरानी राष्ट्र का तर्क और भावना है।

स्वाभाविक रूप से, इस क्षेत्र की राजनीति से परिचित अमेरिकी अच्छी तरह जानते हैं कि इस संघर्ष में अमेरिका का प्रवेश पूरी तरह से उनके अपने नुक़सान में होगा। उन्हें जो नुक़सान उठाना पड़ेगा, वह ईरान को संभावित रूप से पहुंचने वाले किसी भी नुकसान से कई गुना अधिक होगा। अगर अमेरिका सैन्य रूप से इस मैदान में उतरता है, तो उसे निस्संदेह अपूर्णीय नुक़सान उठाना पड़ेगा।

मैं अपने प्यारे लोगों से अनुरोध करता हूँ कि वे हमेशा इस अज़ीम आयत को याद रखें:

“विजय केवल अल्लाह की ओर से है, जो सर्वशक्तिमान और तत्वदर्शी है।” (कुरआन 3:126)

आम जीवन, अल्लाह का शुक्र है, सामान्य रूप से जारी है। दुश्मन को अपने अंदर डर या कमज़ोरी का एहसास न होने दें।

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