धर्म

इबादत के साथ साथ मुकम्मल एक्सरसाइज़ भी है नमाज़-पढ़िये कहते हैं डॉक्टर्स नमाज़ के बारे में ?

इस्लाम: नमाज़ मुसलमान की मेराज़ है ,अल्लाह से बात करने और संपर्क साधने का एक आसान तरीका है,जिसके द्वारा बन्दा अल्लाह से बात करता है,हर बालिग मुसलमान मर्द औरत पर दिन में पाँच बार याज़ पढना ज़रूरी है यानी फ़र्ज़ का दर्जा रखती है,इस्लाम के पाँच बुनियादी स्तम्भों में से नमाज़ एक मजबूत स्तम्भ है।

नमाज़ के फ़ज़ाइल के साथ साथ नमाज के साइंटिफिक पहलू भी कम महत्वपूर्ण नहीं हैं। मिशन हॉस्पिटल के डायरेक्टर पेन मैनेजमेंट एंड स्पोर्ट्स इंज्यूरी एवं हुदैबिया कमेटी के नेशनल कन्वेनर डॉ. एसई हुदा अपने शोध में नमाज को अल्लाह की इबादत के साथ-साथ मुकम्मल वर्जिश भी बताया है।

आठ अवस्थाओं से गुजरता है जिस्म
डॉक्टर हुदा का कहना है कि नमाज के दौरान जिस्म आठ अवस्थाओं से गुजरता है। कुदरती तौर से जिस्म से नमाज के दौरान जिस तरह की वर्जिश होती है उसका सीधा ताल्लुक मेडिकल साइंस में फिजियोथेरेपी से है। इसमें इलाज के तरीके भी नमाज के तरीकों से ताल्लुक रखते हैं। सही तरीके से अदा की गई नमाज की हर अवस्था का जिस्म पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। हुदा के मुताबिक नमाज की एक रकत के दौरान होने वाले कई फायदे हैं।

1- नियत : इसमें दोनों पैर बराबर बट जाने से जिस्म को वजन से राहत मिलती है। पीछे की तरफ मुड़ने से आकार में सुधार होता है और दिमाग पर कंट्रोल बढ़ता है।

2- क़याम : इस स्टेप में नमाजी की एकाग्रता बढ़ती है। आगे चलकर पैरों और पीठ में आराम महसूस होता है। सादगी, सफाई, रहमदिली पैदा होती है। इसमें जो आयतें पड़ी जाती हैं और जो अरबी जबान से निकलती हैं वो 99 तरह की खूबियों के साथ समूचे बदन,दिमाग पर हावी होती हैं। आवाज़ में ए,ई और यू कंपन थायरॉइड, स्पाइनल कॉर्ड, फेफड़ों और एड्रिनल ग्लैंड को साफ करते हुए उसमे सुधार पैदा करते हैं।

3- रुकू :- इस अवस्था मे पीठ के निचले हिस्से टांगों, जांघों, टखनों की मांसपेशियों को फ़ैलाती है। धड़ के ऊपरी हिस्से में खून तेज़ी से चलता है। पेट,पेड़ू और गुर्दों की मासपेशियां ठीक होती हैं।

4- क़याम : इस स्टेप में जो ताज़ा खून ऊपरी धड़ में पहली वाली हालात में बहाव में है वो बहकर नार्मल हालात में लौट आता है। जिस्म को फिर से ठहराव मिलता है और तनाव से छुटकारा मिलता है।

5- सजदा : इस अवस्था मे घुटने समकोण बनाते हुए पीठ के पट्ठों को मजबूत करते हैं। बीच में होने वाले ढीलेपन को रोकते हैं। खून का अधिक बहाव खासतौर से जिस्म के ऊपरी हिस्सों जैसे सिर, आंखें, कान, नाक, फेफड़े में होता है और खून के जरिये दिमागी विकार दूर होते हैं। गर्भवती महिलाओं में बच्चे की हालत में सुधार करता है। उच्च रक्तचाप में कमी और त्वचा का लचीलापन बढ़ता है।

6- क़ुवूद : पुरुषों के लिए है कि वो दाहिने पैर की एड़ी मोड़ें, जिसमें पैर का और जिस्म के हिस्से का वज़न इस पर टिके। इससे जिगर की सफाई होती है। बड़ी आंत के अंदर की हरकत को बढ़ावा देती है। महिलाएं दोनों पैर जिस्म के अंदर ही ऊपर से नीचे की तरफ रखें, शरीर और ज़्यादा ठहराव की तरफ लौटता है। पेट के अंदर जो खाना हज़म हो रहा है उन चीज़ों को जोर देकर नीचे की तरफ ढकेलता है,जिससे पाचन बेहतर होता है।

7- क़याम : इस दौरान सजदे में कुछ देर तक दोहराने से सांस,खून का दौरान और नाड़ियां सभी सिस्टम की सफाई हो जाती है। जिस्म में ऑक्सीजन बढ़ती है।

8- क़ुवूद : पुरुषों के लिए दाहिने पैर की एड़ी मुड़ी होने की वजह से पैर के और जिस्म के एक हिस्से का वज़न इस पर टिका होता है। इसकी वजह से जिगर की गंदगी दूर होती है। बड़ी आंत के अंदर हरकत तेज़ होती है। औरतें दोनों पैरों को ऊपर से नीचे की तरफ मोड़कर अपने जिस्म को नीचे रखती हैं,जिससे जिस्म में ठहराव मिलता है। पेट के अंदर का खाना दवाब से नीचे की तरफ बढ़ता है और पाचन में मदद मिलती है।