साहित्य

इन वजहों से मर्दों को हार्ट अटैक ज़्यादा आता है…तो हमें औरतों मर्दों की तुलना नही करनी चाहिए!

कश्मीरा एण्ड शहरयार
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ताबिश भाई का तर्क है कि औरतों ने मर्दों की ज़िंदगी नर्क कर रखी है, अपने शोषण की ज़िम्मेदार भी औरतें हैं। उनके हिसाब से औरतें अगर खाना बनाती है तो मर्द उससे ज़्यादा मेहनत का काम करते हैं जैसे सड़क बनाना, दिन रात ट्रक चलाना वगैरह वगैरह।
वो तर्क देते है कि इन वजहों से मर्दों को हार्ट अटैक भी ज़्यादा आता है,
इन बातों का मेरे पास कुछ लाइनों में जवाब नही है इसलिए थोड़ा विस्तृत रूप से लिख रहा हूँ, शायद आपको सहमत कर सकूँ।
पहले तो हमें औरतों मर्दों की तुलना नही करनी चाहिए क्योंकि तुलना एक जैसी परिस्थितियों के बीच होती है। दो असमान्य परिस्थितियों के बीच कैसे तुलना कर सकते है,
मैं फेमिनिस्ट नही हूँ ये लाइन कहना हालांकि कोई बड़ी बेहतरीन बात नही है, अमूमन लोगों को फेमिनिस्ट होना ही चाहिए, मैंने फेमिनिज़्म की चारों वेव्ज़ को पढ़ा ज़रूर है, पर उसे फॉलो नही कर पाता।
चीज़ों को समझने के लिए हमें और पीछे जाना होता है, इंसान शुरू में शिकार करता था, उसके पास कोई फिक्स घर नही था,
मैं नवपाषाण काल से पहले के हिस्से को समानता का सबसे अच्छा काल मानता हूँ।
उस वक़्त दोनो यानी मर्द औरत साथ शिकार करते थे।। दोनो बराबर थे, दोनो को परफेक्ट साथी कह सकते हैं।
कोई आठ दस हज़ार साल पहले जब इंसानों ने अनाज उगाया तो एक ठिकाना बना, औरत को खेती की ज़िम्मेदारी दी गई क्योंकि जब वो प्रेग्नेंट हुई तो इसबार उसे खाने के लिए अनाज के रूप में भंडारण मिल गया।
अब औरत घर मे रहकर एक निजी प्रोपेर्टी बन गई, दिनभर खेती और घर सम्हालना, उसके लिए कानून बन गया, और ये सब बहुत धीरे धीरे हुआ, जाने अनजाने उसकी सत्ता सिमटती गई जबकि ध्यान दीजिए दोष उसका नही था।
मर्दों के पास ताकत के लिए अब कई चीज़े थी उन्होंने ताकत का दुरुपयोग किया, समय के साथ औरते दबती चली गई, उनपर नियम थोपने शुरू किए गए, ये वो दौर था जहाँ औरतों का पिछड़ना शुरू हो चुका था,
मर्द मुखिया बने, फिर राजा बने, पुरोहित बने, इस तरह औरते और सिमटती गई।।
नियम, बंधन, सख्ती, ये इंसान में डर पैदा कर देते है, डर से स्वभाव में आक्रमकता, उन्मुक्तता खत्म होती जाती है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलती है।
जब लड़की पैदा होती है तो उसे एहसास करवा दिया जाता है कि तुम लड़की हो, एक डर जो पीढ़ी दर पीढ़ी आ रहा था उसमें आजकल की कंडीशनिंग और डर पैदा कर देती है। डर के बीच कोई भी काम परफेक्ट नही होता।
इसलिए जब कोई लड़की स्कूटी चलाती है तो पैर सड़क पर लगाये रहती है और हम मज़ाक उड़ाते है,
ऐसा इसलिए होता है कि भले उसने हिम्मत करके स्कूटी सीख ली पर एक डर है कि कहीं अगर सड़क पर गिर गई तो लोग हसेंगे, लोग क्या कहेंगे, घर वाले क्या कहेंगे।
बाइक से लड़का गिरता है तो वो सड़क पर पड़ा रहता है पर लड़कीं गिरती है तो चोट से ज़्यादा इसबात का डर रहता है कि कपड़े तो नही फट गए, जिस्म तो नही दिख रहा, सब हँस तो नही रहे और वो चोट में भी खड़ी हो जाती है।
अब ताबिश भाई चाहते है कि लड़कियां भी मर्दों की तरह ट्रक चलाए, सड़क बनाये, असल में ये सब भी करेंगी बस आप पाँच हज़ार साल क्या वो आज़ादी दे सकते हो??
किसी को सदियों से कमज़ोर बनाकर मुकाबला नही होता,
दूसरा जहाँ पर लोग कमज़ोर होते है वो आर्थिक मज़बूती चाहते है, जैसे आपके पास कोई ज़मीन नही है तो आप पैसे बचाना चाहते है पर आपके पास ज़मीन बहुत है तो आप परवाह नही करते कि पार्टनर जॉब मैं है या नही, इसी तरह लड़कियां भी आर्थिक रूप से कमज़ोर है औऱ वो ऐसी मज़बूती चाहती है जिसे आप बिना समझे लालच कह देते है।
लिखने को बहुत कुछ है पर लास्ट में हार्ट अटैक वाली बात को थोड़ा समझा देता हूँ, मर्दों के हार्ट अटैक अगर तनाव से आता है तो उससे ज़्यादा शराब सिगरेट तम्बाकू, खैनी वगैरह भी वजहें होती है। दूसरा दिमाग को शांत न करना, चीखना चिल्लाना और बातों को शेयर न करना। दिक्कत के बाद भी मर्दानगी के चक्कर में खुद को मज़बूत दिखाते रहने से होता है।
(फ़ायक़ इन मूड)

Tabish Siddique
आपका तहे ♥️दिल से शुक्रिया कि आप ने हमको अपने लेख में जगह दिया मगर मुझे औरतों से कोई दिक्कत नहीं है ना कभी थी मैं भी एक औरत से पैदा हुआ हूं अगर आपको बुरा लगा उसके लिए मैं माफी मांगता हूं मगर मुझे खुशी हुई कि आपने मुझे अपने लेख में जगह दिय🙏 सबसे बड़ी बात आपने मुझे भाई बनाया हमें बेहद खुशी हुई