इतिहास

#इन्क़लाब_ज़िन्दाबाद का नारा इजाद करने वाले स्वतंत्रता सेनानी फ़ज़ल-उल-हसन उर्फ़ मौलाना हसरत मोहानी!

Ataulla Pathan
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13 मे पुण्यतिथी
इन्क़लाब ज़िन्दाबाद का नारा इजाद करने वाले स्वतंत्रता सेनानी फज़ल -उल-हसन उर्फ मौलाना हसरत मोहानी
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इन्क़लाब ज़िन्दाबाद का नारा इजाद करने वाले और मुकम्मल आज़ादी की मांग करने वाले मर्दे मुजाहिद, इंक़लाबी शायर फज़ल-उल-हसन उर्फ मौलाना हसरत मोहानी की पैदाइश 1 जनवरी सन् 1878 में क़स्बा मोहान ;(उन्नाव) के एक अच्छे ख़ानदान में हुई थी। आपकी इब्तदाई तालीम मोहान में हुई। उसके बाद फ़तेहपुर जाकर इण्टर पास किया। आगे की आला तालीम के लिए अलीगढ़ गये। अलीगढ़ एंग्लो ओरियन्टल काॅलेज में आपने टाॅप किया। दौराने आला तालीम ही आप में हिन्दुस्तान की जंगे-आज़ादी के लिए बेचैनी दिखने लगी थी, जो आपके अख़बारों में लिखे मज़मून और गज़लों में साफ दिखती थी। सन् 1903 मे बी.ए. करने के बाद उर्दू रिसाला उर्दू-ए-मुअल्ला निकालकर अंग्रेज़ हुकूमत के खिलाफ ऐसा माहौल बनाया कि अंग्रेज़ अफ़सरों के दबाव में आकर काॅलेज इंतज़ामिया ने आपकी मैग़ज़ीन पर पांबंदी लगा दी। इसके बाद तो आप पूरी तरह जंगे आज़ादी की लड़ाई में कूद गये। सन् 1904 में कांग्रेस के सलाना इजलास में डेलीगेट की हैसियत से शामिल हुए। कांग्रेस के बड़े नेताओं को अपनी तक़रीर से इतना असर अंदाज़ किया कि आपका नाम उभरते हुए रहनुमाओं में शुमार होने लगा। आप मैदानी सियासत में कांग्रेस के साथ रहते हुए भी अपने नज़रियात या मज़हबी मामलात पर कभी समझौता नहीं किया। इसकी मिसाल बाद में देखने को मिली। जब नेहरू रिपोर्ट में मुसलमानों के हकूक़ के साथ नांइसाफी दिखायी दी तो आपने पण्डित नेहरू और सरदार पटेल ही नहीं महात्मा गांधी को भी खरी-खोटी सुनायी और कांग्रेस से अलग हा गये। लेकिन आंदोलनो से नज़दीकी बनाये रखी। आपने उन दिनों नौजवानों में इतनी मक़बूलियत क़ायम कर ली थी कि आपके हर मुहिम में नौजवानों की ख़ासी तादात शामिल हुआ करती थी।

ज़िन्दगी भर आपकी क़लम का इंकलाब न कभी रूका और न आप कभी किसी के आगे झुके नतीजे मे आपको जेल का सफ़र कई किश्तों में करना पड़ा। पहली गिरफ़्तारी सन् 1908 में अपनी मैगज़ीन में मिस्र में बर्तानवी पाॅलिसी पर मज़मून शाया किया इसी जुर्म में गिरफ़्तार करके जेल भेज दिये गये। जब जेल से छूटकर आये तो आपके वालिद का साया आपके सर से उठ चुका था। सन् 1913 मेअंग्रेज़ हुकूमत के ख़िलाफ़ लिखने पर आपकी मैग़जीन पर पाबंदी के साथ साथ 3,000 रुपयों का जुर्माना भी लगाकर प्रेस बन्द करा दिया। आप से अंग्रेज़ अफ़सर इतना नाराज़ थे कि आपके खि़लाफ कार्यवाही करने और गिरफ्तार करने का कोई मौक़ा छोड़ते नहीं थे। जब क़ाबुल में इण्डिपेंडेन्ट रिपब्लिक ऑफ इण्डिया पार्टी कायम हुई और मौलाना बरकतुल्लाह भोपाली इसके वज़ीरे आज़म बने तो उन्होंने आपको एक ख़त लिखा जिसमें हिन्दुस्तान की आज़ादी के लिए मदद के बारे में लिखा था। बस इसी बुनियाद को बग़ावत की साजिश मानकर आपको जेल में चक्की पीसने का काम दिया गया। जिसकी अगर कमी हो जाती तो अज़ीयते दी जाती थी। इन सबके बाद भी आपका इरादा फ़ौलाद की तरह मज़बूत था, सन् 1916 मे अंग्रेज़ हुकूमत ने कुछ शर्तो के साथ रिहा करने का पैग़ाम भेजा जिसे आपने यह कहकर ठुकरा दिया कि जब तक मुकम्मल आज़ादी नहीं होती हम तुम्हारी किसी बात को मानने के लिए तैयार नहीं हैं।

जेल में चक्की पीसने के ज़िक्र के सच होने का अंदाज़ा इस शेर से लगाया जा सकता है कि उन हालात में भी जंगे आज़ादी के लिए उनकी तड़प कैसी थी-
*एक तरफ़ा तमाशा है, हसरत की तबियत भी*, *है मशके सुखन जारी चक्की की मुसीबत भी।*

उन्होने अपना अधिकांश समय विभिन्न जेलों में बिताया।

राष्ट्रीय आंदोलन उन्होंने अपनी पत्नी निशातुनिसा बेगम के साथ पहला स्वदेशी स्टोर शुरू किया।

राष्ट्रीय आंदोलन के कारण का समर्थन करने के लिए उन्होंने खिलाफत आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसके दौरान उन्होंने हैदराबाद का दौरा किया और खिलाफत और गैर सहकारिता आंदोलन का प्रचार करने के लिए कई बार मौलाना हसरत मोहानी ने 1921 में आयोजित कांग्रेस सत्र में संपूर्ण स्वतंत्रता के लिए प्रस्ताव पारित किया।

अहमदाबाद ने अहिंसा के पूर्ण आवेदन की आलोचना करते हुए कहा कि यह उन सभी स्थितियों के लिए उपयुक्त नहीं था, जिसके लिए उन्हें महात्मा गांधी से भी प्रशंसा मिली थी, बाद में मौलाना हसरत मोहानी को समाजवादी विचारधारा की ओर आकर्षित किया गया था। हसरत मोहानी ने हर स्तर पर भारत के विभाजन का विरोध किया, स्वतंत्रता के बाद भी उनकी समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष विचारधारा के प्रति प्रतिबद्धता जारी रही, मौलाना मोहानी जो 1947 के बाद भी कई बार संसद सदस्य के रूप में निर्वाचित हुए, जिन्होंने अपने तरीके से लोगों की सेवा की।

13 मई 1951 मौलाना हसरत मोहानी ने लखनऊ में अंतिम सांस ली।

आप निडर और बेबाक होते हुए भी क़ौमी एकजहती के बड़े क़ायल थे। आप हिन्दु-मुसलमान सभी में एकसा मक़बूल थे। आपने कई किताबे लिखी जिनमें मशहूर कुल्लियते हसरत मोहानी, नवक़ाते सुखन और मुसीबते जिन्दान हुई। आपकी शख्सियत और कद का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है। जो गांधीजी ने आपके बारे में कहे कि- *मुस्लिम समाज में तीन रत्न हैं। इनमें से मेरी नज़र में हसरत मोहानी सबसे महान हैं।

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संदर्भ 1)THE IMMORTALS
— syed naseer ahamed
2)लहू बोलता भी है
लेखक सैय्यद शाहनवाज अहमद कादरी,कृष्ण कल्की

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संकलन तथा अनुवादक लेखक *अताउल्ला खा रफिक खा पठाण सर टूनकी तालुका संग्रामपूर जिल्हा बुलढाणा महाराष्ट्र*
9423338726