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इज़राइली सेना ने ग़ज़ा पट्टी पर हवाई हमलों को तेज़ किया, ज़मीनी आप्रेशन्ज़ का दायरा बढ़ाया : रिपोर्ट

पार्सटुडे – इज़राइली सेना ने ग़ज़ा पट्टी पर अपने हवाई हमलों को तेज करते हुए, इस क्षेत्र में, विशेष रूप से तथाकथित “मोराग” मोर्चे में अपने हमलों और जमीनी आप्रेशन्ज़ का दायरा बढ़ा दिया है।

पार्सटुडे के अनुसार, समाचार एवं विश्लेषणात्मक वेबसाइट अल-अरबी अल-जदीद ने रविवार को ग़ज़ा पट्टी में इज़राइली शासन की नवीनतम सैन्य गतिविधियों के बारे में रिपोर्ट दी।

पिछले मार्च के महीने में ग़ज़ा पट्टी के खिलाफ युद्ध की बहाली के बाद से, इज़राइली क़ब्ज़ाधारी सेना, सैन्य अभियानों के माध्यम से एक नया क्षेत्र बनाने की कोशिश कर रही है और प्रधानमंत्री बेन्यामीन नेतन्याहू ने ग़ज़ा पट्टी और मिस्र के बीच की सीमा पर “सलाहुद्दीन” मोर्चे के बाद, दक्षिणी ग़ज़ा पट्टी में ख़ान यूनिस शहर को रफ़ा शहर से अलग करने के लिए “फिलाडेल्फिया-2” मोर्चे, या तथाकथित “मोराग” मोर्चे पर नियंत्रण की घोषणा की है।

अल-अरबी अल-जदीद वेबसाइट ने कहा: ऐसा लगता है कि क़ब्ज़ाधारी इस क्षेत्र को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहे हैं जो 12 किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में फैला हुआ है, ताकि मिस्र के साथ ग़ज़ापट्टी की सीमा पर स्थित ऱफ़ा शहर को जो बाहरी दुनिया के लिए एकमात्र प्रवेश द्वार है, ग़ज़ा पट्टी के अन्य हिस्सों, विशेष रूप से इसके उत्तर और केंद्र से अलग किया जा सके।

यदि क़ब्ज़ाधारियों ने मोराग मोर्चे पर नियंत्रण हासिल कर लिया, नेत्ज़ारिम मोर्चे में जो हुआ, उसके समान, जिसने ग़ज़ा पट्टी को दो भागों में विभाजित कर दिया, “बफर जोन” के रूप में उनके कब्जे वाला कुल क्षेत्रफल ग़ज़ा पट्टी के कुल क्षेत्रफल का 74 वर्ग किलोमीटर तक पहुंच जाएगा जो कि 360 वर्ग किलोमीटर है।

क्षेत्रीय नज़रिए से, फिलीस्तीनी प्रतिरोध और इज़राइली सेना के बीच अब तक कोई गंभीर सैन्य संघर्ष या टकराव नहीं हुआ है। ऐसा प्रतीत होता है कि सैन्य रणनीति में परिवर्तन हुए हैं और हमास आंदोलन की सैन्य शाखा, इज़्ज़ुद्दीन अल-क़स्साम ब्रिगेड ने ग़ज़ापट्टी के अंदर, विशेष रूप से पूर्वी क्षेत्रों में, इज़राइली कब्ज़ाकारी सेना की क्रमबद्ध और धीमी प्रगति के मद्देनजर अब तक संघर्ष से परहेज किया है। इससे यह संकेत मिलता है कि प्रतिरोध के कारण वार्ता को समझौते तक पहुंचने के लिए समय मिल रहा है।

अरब सैन्य मामलों के विश्लेषक रामी अबू ज़ुबैदा ने इस संबंध में कहा, डेढ़ साल के युद्ध के बाद मोराग पर नियंत्रण करने का क़ब्ज़ाधारियों का निर्णय उस रणनीति के अनुरूप है जिसका उद्देश्य ग़ज़ा पट्टी में सुरक्षा और राजनीतिक स्थिति की समीक्षा करना है।

इज़राइली शासन का एक लक्ष्य प्रतिरोध पर दबाव डालकर उसकी क्षमताओं को कम करना तथा उसे क़ैदियों के आदान प्रदान के समझौते में अधिक रियायतें देने के लिए मजबूर करना है।

दूसरी ओर, एक अन्य अरब राजनीतिक विश्लेषक अय्याद अल-क़ुरा ने भी अल-अरबी अल-जदीद को बताया: क़ब्ज़ाधारी मोराग मोर्चे को एक मजबूत क्षेत्र लीवर के रूप में देखते हैं और यह चीफ ऑफ स्टाफ इयाल ज़मीर, रक्षा मंत्री येसराइल काट्ज़ और यहां तक ​​कि स्वयं नेतन्याहू द्वारा दिए गए कई बयानों से स्पष्ट है।

आज जो कुछ हो रहा है, वह नेत्ज़ारिम मोर्चे में घटित हुई घटना के समान है, जहां समझौते के चरण के दौरान क़ब्ज़ाधारियों को इस मोर्चे से पूरी तरह से हटने पर मजबूर किया गया था और मोराग पर नियंत्रण का लक्ष्य मैदाने जंग में फिलिस्तीनी प्रतिरोध पर दबाव डालना है।