देश

इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की गौरक्षकों की भीड़ ने हत्या कर दी थी, पिछले तीन साल से इंसाफ़ के लिए संघर्ष कर रही हैं उनकी पत्नी : रिपोर्ट

दिल्ली से सटे ग्रेटर नोएडा के एक साधारण से घर में रहने वाली रजनी सिंह पिछले कुछ महीनों से बीमार हैं. एक ऑपरेशन के बाद चलने-फिरने में उन्हें काफ़ी परेशानी हो रही थी. इसके बावजूद 15 अगस्त को वो अपने घर से क़रीब सौ किलोमीटर दूर पुलिस के एक सम्मान समारोह में पहुंचीं.

दीवार पर लगे अपने पति इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की तस्वीर की ओर देखते हुए वो कहती हैं, “ये मेरा सम्मान थोड़े ही है, उनका है. इसके लिए जहां जाना पड़े, जैसे जाना पड़े मैं जाऊंगी.”

तीन दिसंबर 2018 को रजनी के पति इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की बुलंदशहर में कथित तौर पर गौरक्षकों की भीड़ ने हत्या कर दी थी. एक झटके में रजनी और उनके दोनों बच्चों की ज़िंदगी बदल गई.

उनका बड़ा बेटा एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी कर रहा है. दूसरा बेटा क़ानून की पढ़ाई कर रहा है. अपनी ख़राब तबीयत के बावजूद लगभग हर तारीख़ पर कोर्ट पहुंचने वाली रजनी कहती हैं, “बच्चों को मैं किसी केस में नहीं घसीटती, उनकी पर्सनल लाइफ़ है, उनके करियर पर असर पड़ता है.”

हालांकि वो ये भी मानती हैं कि उनकी तमाम कोशिशों के बावजूद उनके बच्चों को बहुत बुरे दौर से ग़ुज़रना पड़ा है. उनका बड़ा बेटा यूपीएससी की तैयारी करना चाहता था, परिवार की ज़िम्मेदारियों के कारण, उनका सपना अधूरा रह गया.

सरकार ने नौकरी देने की पेशकश की जिसे परिवार ने ठुकरा दिया. रजनी कहती हैं, “हमारे परिवार ने सरकार से कहा था कि बेटे को उसकी क्वॉलिफ़िकेशन के हिसाब से पुलिस विभाग की जगह ओएसडी की नौकरी दें,. लेकिन उन्होंने ये मांग नहीं मानी, तो हमने नौकरी लेने से इनकार कर दिया. अगर वो अपने लायक नौकरी नहीं करेगा तो सफल नहीं हो पाएगा.”

‘मुझे दर्द महसूस नहीं होता’

बातचीत के दौरान रजनी का छोटा बेटा भी घर पर मौजूद था. हालांकि रजनी नहीं चाहतीं कि उनके बेटों का नाम इस केस से जुड़े इसलिए हमने उनसे बातचीत करना मुनासिब नहीं समझा. हालांकि अपनी मां की ग़ैर मौजूदगी में उन्होंने एक बात कही जो शायद इस कहानी का सार है, “जो भी किया है, मां ने किया है, वो इतनी हिम्मत के साथ नहीं लड़तीं, तो इस केस में इतना कुछ नहीं हो पाता.”

पिछले तीन साल के संघर्ष के बारे में बात करते हुए रजनी कहती हैं, “अगर मैं शोक में डूबी रहूंगी, तो न ख़ुद आगे बढ़ पाऊंगी, न बच्चों को आगे बढ़ा पाऊंगी.”

“मेरा ऑपरेशन हुआ, इतना दर्द हुआ, लेकिन मुझे अब दर्द ही महसूस नहीं होता. डॉक्टर कहते हैं कि किस मिट्टी की बनी हो, आपके आखों में आंसू भी नहीं आते. इतना दर्द देख चुकी हूं कि अब क्या ही आंसू आएंगे.”

बेल ख़ारिज कराने जाना पड़ा सुप्रीम कोर्ट

घटना के मुख्य अभियुक्त योगेश राज को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सितंबर 2019 में ज़मानत दे दी थी. रजनी इसके ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट पहुंचीं. इसी साल मार्च में उच्चतम न्यायालय ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फ़ैसले को पलटते हुए योगेश की ज़मानत अर्ज़ी ख़ारिज कर दी.

इस मामले में पुलिस ने कुल 44 लोगों के ख़िलाफ़ चार्जशीट दायर की है और पांच लोगों पर हत्या की धाराएं लगाई गई हैं. इनमें से चार लोग अभी जेल में हैं, पांच लोगों की मौत हो गई है और बाक़ी बेल पर हैं.

इसी साल मार्च में एक स्थानीय अदालत ने 36 अभियुक्तों के ख़िलाफ़ देशद्रोह का मुक़दमा चलाने की इजाज़त दे दी है.

रजनी का कहना है कि उन्हें जेल में बंद अभियुक्तों के धमकी भरे फ़ोन आए. वो कहती हैं, “मुझे फ़ोन कर कहा जाता था कि तुम्हें देख लेंगे. मैं भी यहीं हूं जिसे देखना है, देख ले.”

रजनी ने इसकी शिकायत की जिसके बाद उनके परिवार को सुरक्षा दी गई है. वो कहती हैं, “डिपार्टमेंट से हमें सहयोग मिलता रहा है, उन्होंने एक कॉन्टेबल दिया है, जो हमेशा हमारी सुरक्षा में तैनात रहता है.”

इसके अलावा डिपार्टमेंट ने आर्थिक मदद भी की है.

अभियुक्तों के वायरल वीडियो

रजनी कहती हैं कि कई अभियुक्त इस मामले का इस्तेमाल अपनी राजनीति चमकाने के लिए कर रहे हैं.

वारदात के बाद पुलिस जब अभियुक्तों की तलाश कर रही थी, तभी दो अभियुक्त योगेश और शिखर के ही वीडियो वायरल हुए जिसमें वो घटना को लेकर अपनी बात सामने रख रहे थे.

योगेश राज बजरंग दल के सदस्य थे और शिखर बीजेपी के युवा मोर्चा से जुड़े थे. यही नहीं शिखर अग्रवाल को जब अगस्त 2019 में ज़मानत दी तो माला पहनाकर उनके स्वागत का वीडियो भी वायरल हुआ.

#WATCH Bulandshahr: Six accused persons in the #BulandshahrViolence case in which Inspector Subodh Kumar was killed last year, were welcomed with garlands after they were released on bail, yesterday. pic.twitter.com/PtuR2eHBsh

— ANI UP/Uttarakhand (@ANINewsUP) August 25, 2019

स्याना में एक दुकान चलाने वाले शिखर अग्रवाल अब बीजेपी छोड़ निषाद पार्टी से जुड़ चुके हैं. स्याना हिंसा पर उन्होंने एक किताब लिख डाली है जिसमें वो ख़ुद को निर्दोष बताते हैं.

वो कहते हैं कि उन पर लगे सभी आरोप ग़लत हैं. बीबीसी से बात करते हुए वो कहते हैं, “मैं उस समय बीजेपी के युवा मोर्चा का अध्यक्ष था, मुझे फ़ोन से सूचना मिली कि गौकशी की घटना हुई है और सभी हिंदू संगठनों का पहुंचना ज़रूरी है. मैं धर्म के नाते वहां गया था, मैंने वहां गाय के शव देखे, वहां कई लोग उपस्थित थे, हमने वहां मौजूद लोगों को समझाने की कोशिश की कि थाने में जाकर शिकायत दर्ज कराई जाए.”

शिखर का दावा है कि पुलिस अधिकारी रिपोर्ट लिखने के लिए तैयार नहीं थे, इसलिए वो थाने पहुंचे और शिकायत दर्ज कराने के बाद वो वहां से चले गए, हत्या के बारे में उन्हें पता नहीं है.

पुलिस पर ठीक से काम नहीं करने का आरोप

दोनों ही पक्ष पुलिस पर ठीक से काम नहीं करने की बात करते हैं. अग्रवाल का कहना है कि पहले पुलिस ने शिकायत दर्ज करने में आनाकानी की जिसके कारण भीड़ उग्र हुई. उनका आरोप है कि पुलिस ने बेकसूर लोगों पर मुक़दमा दर्ज किया है.

वहीं, रजनी ने इसी साल मई में बुलंदशहर के तत्कालीन एसपी संतोष कुमार सिंह से मिल कर आरोप लगाया था कि शिखर अग्रवाल इंवेस्टिगेटिव अफ़सर के साथ मिलकर अपना नाम केस से हटाने की कोशिश में है. एसपी ने उन्हें आश्वासन दिया था कि मामले की निष्पक्ष जांच की जाएगी.

हमने बुलंदशहर के एसएसपी श्लोक कुमार से इस केस में पुलिस की भूमिका के बारे में और बातचीत की. हालांकि उन्होंने कहा कि जवाब देने के लिए उन्हें और वक्त चाहिए क्योंकि उन्होंने हाल में ही पदभार संभाला है और इस केस की सारी जानकारियों से अवगत नहीं हैं.

उनकी तरफ़ से कोई नई जानकारी दिए जाने पर इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.

सुबोध सिंह को हालात बिगड़ने का अंदेशा था – पत्नी

रजनी का मानना है कि वारदात को रोका जा सकता है. वो कहती हैं, “तीन दिन पहले से मेरे पति यहां के एसएसपी से बात कर रहे थे कि मेरे पास फ़ोर्स नहीं है, कोई घटना घटी तो मैं क्या करूंगा. मैंने ख़ुद ये सुना है इसलिए आपको बता रही हूं. उसके पास फ़ोर्स होती तो इतना नहीं होता.”

हालांकि रजनी सिस्टम से ज़्यादा समाज को दोषी मानती हैं. वो कहती हैं, “फे़लियर है इंसानियत का है. आपकी सोच ख़राब है तो उसे कोई दुरुस्त नहीं कर सकता, न सरकार, न पुलिस और न ही कोई और.”

“मैं सिस्टम और सरकार से बस इतना चाहती हूं कि वो वही करे जो सही है, मुझे किसी से भावनात्मक सपोर्ट नहीं चाहिए, मैं किसी से निवेदन नहीं कर रही. आप सिर्फ़ अपना फ़र्ज ईमानदारी से निभाते रहें, हम अपनी लड़ाई ख़ुद जीत जाएंगे.”

‘लड़ाई अभी लंबी है’

घटना के तीन क़रीब साल बीत जाने के बावजूद फ़ैसला आने में अभी काफ़ी वक्त लग सकता है. रजनी के मुताबिक़, कोर्ट में गवाहों के बयान रिकॉर्ड किए जा रहे हैं, लेकिन कुल गवाहों की बड़ी संख्या के कारण अभी कार्रवाई पूरी होने में काफ़ी समय लग सकता है.

वो कहते हैं, “कोविड के कारण पहले ही काफ़ी देर हो चुकी है, लेकिन हम लगातार लड़ रहे हैं और जब तक ज़रूरत पड़ेगी लड़ते रहेंगे.”

उस दिन क्या हुआ था

कथित तौर पर गाय का कंकाल मिलने के बाद कई गांव वाले बहुत ग़ुस्से में थे और उन्होंने फ़ैसला किया कि वो इसे लेकर थाने जाएंगे और पुलिस से फ़ौरन कार्रवाई की मांग करेंगे.

पुलिस मुख्यालय से फ़ौरन ही अतिरिक्त पुलिस बल भेजने का आदेश दिया गया. पुलिस इंस्पेक्टर सुबोध सिंह घटना स्थल से तीन किलोमीटर दूर थे. जैसे ही उन्हें ख़बर मिली वो अपनी गाड़ी में बैठे और ड्राइवर राम आसरे को आदेश दिया कि ‘गाड़ी जितनी तेज़ भगा सकते हो भगाओ.’

11 बजे तक वह घटनास्थल पर पहुंच गए और ग़ुस्से से भरी भारी भीड़ के बीच चले गए. जैसे-जैसे भीड़ का आकार बढ़ा और वह आक्रामक हुई और अधिकारी भी मौक़े पर पहुंच गए.

दोनों पक्षों का संयम टूट रहा था और इसी नाज़ुक समय में पुलिस ने बल प्रयोग करने का फ़ैसला ले लिया.

घटना के बाद बीबीसी संवाददाता नितिन श्रीवास्तव को प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया था कि ‘दोपहर होते-होते सुबोध सिंह समेत अधिकतर अधिकारी आड़ लेने के लिए सुरक्षित जगह तलाश रहे थे. अब तक इलाक़े में चल रही कथित गोहत्या को बंद करने की मांग कर रही हिंसक भीड़ के आगे पुलिसकर्मियों की संख्या बहुत कम रह गई थी.’

कुछ वरिष्ठ अधिकारियों ने ख़ुद को पुलिस स्टेशन के छोटे से गंदे से कमरे में बंद कर लिया था. उधर सुबोध कुमार सिंह हमलावरों की ओर से फेंकी गई ईंट लगने से ज़ख़्मी हो चुके थे.

एक अन्य सरकारी कर्मचारी के साथ खड़े पुलिस अधिकारियों के ड्राइवर राम आसरे ने घटना के बाद बीबीसी से बातचीत करते हुए कहा था, “हम बचने के लिए सरकारी गाड़ी की ओर दौड़े. साहब को ईंट से चोट लगी थी और वह दीवार के पास बेहोश पड़े थे. मैंने उन्हें गाड़ी की पिछली सीट पर बिठाया और जीप को खेतों की ओर घुमाया.”

उनका दावा है कि भीड़ ने उनका पीछा किया और पुलिस स्टेशन से लगभग 50 मीटर दूर खेतों में फिर से हमला कर दिया.

राम आसरे ने पुलिस को बताया, “खेत को हाल ही में जोता गया था ऐसे में गाड़ी के अगले पहिये फंस गए और हमारे पास गाड़ी से निकलकर भागने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा था.”

बाद में वायरल हुए एक वीडियो में नज़र आया कि पुलिस अफ़सर अपनी सरकारी गाड़ी से बाहर की ओर लटके हुए हैं और उनके शरीर में कोई हरकत नज़र नहीं आ रही.

वीडियो में नाराज़ लोगों को यह जांचते हुए देखा जा सकता है कि वह “ज़िंदा हैं या मर चुके हैं.” पीछे से गोलियां चलने की आवाज़ भी सुनाई दे रही है.

पुलिस के मुताबिक़, जब सुबोध सिंह को नज़दीकी अस्पताल ले जाया गया तो डॉक्टरों ने बताया कि वह अस्पताल लाए जाने से पहले से ही दम तोड़ चुके थे. पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट बताती है कि सुबोध कुमार सिंह की बायीं भौंह के ठीक ऊपर गोली के ज़ख़्म थे.

============

शुभम किशोर
बीबीसी संवाददाता