देश

आरएसएस को अखंड भारत बना है, भारत को हिन्दू राष्ट्र ‘माँ भारती” बनाना है, इसलिए PM से निवेदन है, UCC को तुरंत लागू कर दें : रिपोर्ट

2014 मई के महिने से मोदी भारत के प्रधानमंत्री हैं, 9 साल का वक़्त उनकी सरकार को अब तक हो चुका है, इस साल कई राज्यों में चुनाव होने हैं, कर्णाटक में हाल ही में बीजेपी चुनाव हार के बैठी है ऐसे में बीजेपी के सामने आने वाले वक़्त में होने वाले चुनावों में जीत हासिल करना बड़ी चुनौती है, वैसे चुनाव हारने के बाद भी बीजेपी अपनी सरकार बना लेती है इसके अनेक उदाहरण देश में मौजद हैं, 2024 में लोकसभा चुनाव होने हैं, दशहरा पर आरएसएस की इस्थापना के 100 साल पूरे होने जा रहे हैं, उससे पहले बीजेपी हर हाल में केंद्र की सत्ता में बने रहना चाहती है, आरएसएस इसके लिए पूरा ज़ोर लगा रही है, 9 सालों में प्रधानमंत्री मोदी ने कोई एक भी काम ऐसा जिसके दम पर वो जनता में जा कर वोट मांग सकें, इस सूरत में सिर्फ एक मुद्दा बचता है जोकि आरएसएस/बीजेपी का ट्रम्प कार्ड है और वो है ”साम्प्रदायिकता”, धार्मिक नफ़रत, धार्मिक धुर्वीकरण, अपने इसी मुड़े को धार देने के लिए यूनिफार्म सिविल कोड को फिलहाल ”पोटली” से निकाला गया है,

प्रधानमंत्री को बताना चाहिए कि देश में 80 करोड़ लोग पांच किलो राशन पर क्यों जी रहे हैं, आधे देश की आबादी के पास कोई नौकरी/ नहीं है, महिला सुरक्षा का क्या हुआ, कितने गॉंव आदर्श ग्राम बन गए हैं, जो 200 नए स्मार्ट सिटी बासाये जाने थे उनमे से कितने स्मार्ट सिटी बसाये जा चुके हैं,,,जनता से जुड़े मुद्दों पर बात न हो इसके लिए सामान नागरिक संहिता बहुत ज़रूरी है, आरएसएस को अखंड भारत बना है, भारत को हिन्दू राष्ट्र ‘माँ भारती” बनाना है, इस लिए प्रधानमंत्री से निवेदन है कि सामान नागरिक संहिता को तुरंत लागू कर दें

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में समान नागरिक संहिता यानी यूसीसी का मुद्दा उठाकर एक बड़ी बहस छेड़ दी

 

इसके बाद से ही कुछ राजनीतिक दल यूसीसी के समर्थन में आ गए हैं, तो कुछ इसका विरोध कर रहे हैं.

वहीं कुछ पार्टियों ने ये भी कहा है कि यूसीसी का ड्राफ़्ट सामने आने के बाद वो अपना रुख तय करेंगी.

समान नागरिक संहिता यानी शादी, तलाक़, विरासत, गोद लेने समेत कई चीज़ों पर देश के सभी नागरिकों के लिए एक ही क़ानून.

पीएम मोदी का बयान ऐसे समय आया, जब विपक्षी दल एकजुट होकर 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के ख़िलाफ़ उतरने की कवायद में जुटे हैं.

जानकार मानते हैं कि बीजेपी की ओर से विपक्षी एकजुटता में सेंधमारी के लिए यूसीसी को अगले चुनाव के एजेंडे के तौर पर स्थापित किया जा रहा है.

राजनीतिक हलकों में चर्चा इस बात की है कि क्या यूसीसी के मुद्दे पर अलग-अलग राय रखने वाली विपक्षी पार्टियां क़रीब 10 महीने बाद होने वाले आम चुनावों में एक मंच पर आ सकेंगी?

यूसीसी पर बंटी विपक्षी पार्टियां

आम आदमी पार्टी ने कहा है कि उनका समर्थन इस बात से तय होगा कि इसका प्रारूप क्या है. आप नेता संदीप पाठक ने कहा है कि उनकी पार्टी इसके समर्थन में है लेकिन मसौदे का इंतज़ार है.

कांग्रेस पार्टी भी फ़िलहाल ड्राफ़्ट आने का इंतज़ार कर रही है.

इनके अलावा तृणमूल कांग्रेस, शिव सेना, जनता दल यूनाइटेड, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने भी यूसीसी पर अपनी-अपनी राय रखी है.

पूर्व में बीजेपी की सहयोगी रही जेडीयू नेता केसी त्यागी ने यूसीसी को नाज़ुक मुद्दा बताते हुए इस पर आम राय बनाने की कोशिश की मांग की है.

वहीं अब जेडीयू की सहयोगी आरजेडी के सांसद मनोज झा ने समान नागरिक संहिता को लेकर कहा कि इसे हिंदू मुस्लिम का मुद्दा मत बनाइए. यह आदिवासी रीति-रिवाजों का भी मामला है.

शिव सेना (उद्धव ठाकरे गुट) ने भी कहा है कि यूसीसी पर ड्राफ़्ट आने के बाद पार्टी अपना रुख़ तय करेगी. वहीं, तृणणूल कांग्रेस ने विपक्षी एकजुटता पर उठते सवालों को ख़ारिज कर दिया है.

इनके अलावा डीएमके ने यूसीसी का विरोध किया है और एनसीपी ने फ़िलहाल तटस्थ रवैया अख़्तियार किया है यानी न वो इसके समर्थन में है और न ही विरोध में.

ये सभी दल 23 जून को अगले लोकसभा चुनावों से पहले विपक्षी एकजुटता दिखाने के मक़सद से पटना में बुलाई गई 15 दलों की बैठक में एक साथ थे.

कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच पहले से ही दिल्ली में केंद्र के लाए अध्यादेश के मुद्दे पर भी पेच फंसा हुआ है.

ऐसे में यूसीसी का मुद्दा विपक्षी एकता की पेचीदगियों को और बढ़ाएगा?

आम आदमी पार्टी ने समर्थन क्यों किया?
राज्यसभा सांसद संदीप पाठक ने मीडिया से बातचीत के दौरान ये स्पष्ट कर दिया कि आम आदमी पार्टी सैद्धांतिक तौर पर यूसीसी के समर्थन में है.

उन्होंने इसके पीछे तर्क दिया कि संविधान का अनुच्छेद 44 भी कहता है कि देश में यूसीसी होना चाहिए.

आम आदमी पार्टी नेता संदीप पाठक ने कहा, “चूंकि ये मुद्दा सभी धर्म और संप्रदाय से जुड़ा हुआ है, इसलिए हम चाहते हैं कि इस पर विस्तृत चर्चा हो, सभी धर्म से, सभी संप्रदाय से, सभी राजनीतिक दलों से. कुछ मुद्दे ऐसे होते हैं, जिन पर आने वाले समय में आप वापस नहीं जा सकते, कुछ मुद्दे देश के लिए बहुत मूलभूत होते हैं. ऐसे मूलभूत मुद्दों पर तानाशाही वाले तरीक़े से आगे बढ़ना ठीक नहीं है.”

उन्होंने कहा कि इस पर सबसे बातचीत करके सहमति बनाने की ज़रूरत है. उन्होंने कहा कि इसे लागू करने का तरीका सिर्फ़ सभी लोगों की सहमति है.

कांग्रेस ने क्या कहा?

मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के संसदीय दल के रणनीति समूह ने शनिवार को एक अहम बैठक की. सोनिया गांधी कांग्रेस संसदीय दल की नेता हैं.

इस बैठक में पार्टी प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे, जयराम रमेश सहित कई नेता शामिल हुए.

बैठक के बाद पार्टी के कम्यूमिकेशन महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि कोई मसौदा आएगा और चर्चा होगी तो हम हिस्सा लेंगे और जो भी प्रस्तावित ड्राफ़्ट होगा, उसकी समीक्षा करेंगे. फ़िलहाल हमारे पास विधि आयोग का एक सार्वजनिक नोटिस है. कुछ भी नया नहीं हुआ है.

विधि आयोग ने 14 जून को समान नागरिक संहिता पर जनता और धार्मिक संगठनों की राय मांगी थी.

पार्टी के रुख़ पर चर्चा करते हुए पार्टी नेता और राज्यसभा सांसद प्रमोद तिवारी ने बीबीसी से कहा कि ये महंगाई, भ्रष्टाचार और बेरोज़गारी के मुद्दे से ध्यान भटकाने के लिए बीजेपी का तरीक़ा भर है. उन्होंने बीजेपी पर ध्रुवीकरण की राजनीति करने का आरोप लगाया.

हालांकि, उन्होंने कांग्रेस पार्टी का यूसीसी पर रुख़ स्पष्ट करते हुए कहा कि अगर यूसीसी के प्रस्ताव में 140 करोड़ भारतवासियों, चाहें वो हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई धर्म के हों, की धार्मिक स्वतंत्रता, रस्म-रिवाज़ चाहे वो आदिवासियों के हों, अगर उनमें दखलअंदाज़ी की गई तो कांग्रेस पार्टी निश्चित तौर पर यूसीसी का विरोध करेगी.

लेकिन क्या यूसीसी विपक्षी एकता में एक बड़ी पेचीदगी साबित हो सकता है, इस सवाल पर वो एनडीए के सहयोगी कोनराड संगमा के रुख का ज़िक्र करते हैं.

मेघालय में नेशनल पीपल्स पार्टी और बीजेपी मिलकर सरकार चला रहे हैं और कोनराड संगमा मुख्यमंत्री हैं.

कोनराड संगमा ने कहा है कि यूसीसी से क़रीब 200 से अधिक आदिवासी समुदायों के अधिकार और आज़ादी कम होने का ख़तरा है. भारत की क़रीब 12 फ़ीसदी आदिवासी आबादी पूर्वोत्तर के राज्यों में बसती है.

प्रमोद तिवारी संगमा के बयान का हवाला देते हुए कहते हैं, “वो (कोनराड संगमा) कह रहे हैं कि यूसीसी आएगा तो हम इसका विरोध करेंगे. ऐसे ही विपक्षी पार्टियों में भी सबके अपने विचार होंगे. जब ये (प्रस्ताव) संसद में आएगा तब मिल-जुल कर तय करेंगे कि क्या करना है.”

आम आदमी पार्टी पर कांग्रेस में दो राय?

दिल्ली में राज्य सरकार के अधिकारों पर कथित तौर पर अंकुश लगाने वाले केंद्र के अध्यादेश के ख़िलाफ़ आम आदमी पार्टी का विधेयक भी कांग्रेस के साथ उसकी तकरार की सबसे बड़ी वजह है.

दरअसल, इसी साल सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार के पक्ष में एक फ़ैसला सुनाया था कि अधिकारियों की पोस्टिंग का अधिकार दिल्ली सरकार के पास होना चाहिए.

हालांकि, केंद्र सरकार ने एक अध्यादेश लाकर ये अधिकार वापस उपराज्यपाल को दे दिया.

इसके बाद अरविंद केजरीवाल संसद में आगामी मॉनसून सत्र में विधेयक लाकर इस अध्यादेश को रोकना चाहते हैं. इसके लिए वो लगातार विपक्षी नेताओं से भी मिले.

बिहार सीएम नीतीश कुमार की अगुआई में पटना में हुई बैठक के दौरान भी अध्यादेश का मुद्दा हावी दिखा.

आम आदमी पार्टी का कहना है कि कांग्रेस को छोड़कर तमाम विपक्षी दलों ने इस मुद्दे पर उन्हें समर्थन दिया.

हालांकि, कांग्रेस का कहना है कि जब ये विधेयक संसद में आएगा, तब वो इस पर चर्चा करेगी.

पूर्व कांग्रेस सांसद और दिल्ली की सीएम रहीं शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित भी इसी रुख़ को दोहराते हैं.

वह कहते हैं कि दिल्ली एक केंद्र शासित प्रदेश है. अगर हम राज्यों जैसी ताक़त यहाँ भी मांगे तो फिर वो केंद्र शासित प्रदेश ही कैसा रहेगा? केंद्र का अध्यादेश केंद्र शासित प्रदेश के संघीय ढांचे के कोई बहुत ज़्यादा विपरीत नहीं जाता है.

यूसीसी के मुद्दे पर आम आदमी पार्टी की अलग लाइन को संदीप दीक्षित पार्टी के पास किसी विचारधारा के न होने से जोड़ते हैं.

वो कहते हैं, “यूसीसी जैसे बड़े मुद्दे पर आपने (आप) किसी से बात तक नहीं की और अभी आपसे पूछ भी कौन रहा है आपके रुख़ के बारे में. विधि आयोग ने लोगों से, सामाजिक संस्थाओं से राय मांगी है, राजनीति पार्टियों से नहीं.”

संदीप दीक्षित कहते हैं, “आम आदमी पार्टी की समस्या ये है कि बाक़ी पार्टियों, या कम से कम कांग्रेस पार्टी की तरह इनका अपना कोई रुख़ नहीं है. इनका ये तरीक़ा है कि जिस समय पर जो रुख़ जमे वही तय कर लो. कल को इन्हें लगेगा कि यूसीसी पर समर्थन से मुसलमानों का वोट नहीं मिल रहा, तो ये विरोध करने लगेंगे.”

‘फोटो कॉपी नहीं हैं विपक्षी पार्टियां’

इस बीच, तृणमूल कांग्रेस ने इस पर विपक्षी दलों की एकजुटता पर उठाए जा रहे सवालों का जवाब दिया है.

पार्टी के राज्यसभा सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने कहा है कि ज़रूरी नहीं सभी विपक्षी दल एक दूसरे की ‘फोटो कॉपी’ हों.

ब्रायन ने एक ट्वीट में कहा कि ज़रूरी नहीं कि लोकतंत्र और नौकरियां पैदा करने के लिए लड़ रही विपक्षी पार्टियां एक दूसरे की ‘फोटो कॉपी’ हों.

उन्होंने कहा, “पटना की बैठक के बाद होने वाली दूसरी बैठक में उन मुद्दों पर चर्चा होगी, जिसमें सभी पार्टियां सौ फ़ीसदी सहमत हैं. कुछ मुद्दों पर सभी विपक्षी दल एकमत नहीं हो सकते. व्यापक मसलों पर दलों का रुख स्पष्ट हैं.”

शिव सेना का क्या होगा रुख़?

बीजेपी की अगुआई वाले गठबंधन एनडीए से अलग होकर कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ महाराष्ट्र में सरकार बना चुकी शिव सेना हमेशा से यूसीसी की वकालत करती आई है.

अब दो धड़ों में बंट चुकी शिव सेना के एकनाथ शिंदे गुट के सांसद राहुल शेवले ने यूसीसी को बाला साहेब ठाकरे का सपना बताया है. उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी समान नागरिक संहिता का पूरा समर्थन करेगी.

लेकिन बीजेपी से अलग हो चुकी शिव सेना (उद्धव ठाकरे गुट) यूसीसी पर क्या रुख़ अपनाएगी.

राम मंदिर और जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाए जाने पर बीजेपी का समर्थन कर चुके उद्धव ठाकरे की पार्टी ने फ़िलहाल कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया है.

लेकिन माना जा रहा है कि उद्धव ठाकरे का गुट यूसीसी पर सहमत होगा.

पार्टी की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी बीबीसी से कहती हैं, “अगर ये (यूसीसी) न्याय, धर्म की परवाह किए बग़ैर बराबरी की बात करेगा तो हम इसका समर्थन करेंगे. लेकिन अगर ये बीजेपी की विचारधारा का राजनीतिक रूप होगा, समाज के बीच नफ़रत और विभाजन बढ़ाने वाला होगा, तो हमें इस पर सोचना पड़ेगा. लेकिन जब तक कोई ड्राफ़्ट नहीं आता, हम इस पर चर्चा नहीं करने जा रहे हैं.”

विपक्षी एकता पर यूसीसी क्या असर करेगा, इस पर प्रियंका चतुर्वेदी कहती हैं, “विपक्षी एकता क्या होगा, कैसा होगा, इसका स्वरूप क्या रहेगा, इस पर हमारी चर्चा चल रही है. ये लोकतंत्र, संविधान, संघवाद को लेकर होगा. मुझे लगता है कि सबसे पहले सत्ता पक्ष से, प्रधानमंत्री से पूछना चाहिए कि यूसीसी का ड्राफ़्ट कहां है?”

यूसीसी विपक्षी पार्टियों के लिए नहीं है बड़ा मुद्दा?

शिव सेना, कांग्रेस या तृणमूल कांग्रेस, अधिकतर पार्टियां इस बात पर एकमत हैं कि यूसीसी पर सभी अलग-अलग राय रख सकते हैं. विपक्षी एकजुटता का संबंध देश से जुड़े बड़े मुद्दों से है.

राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई भी कहते हैं कि हमारे देश की जो राजनीति है वो ऐसी नहीं है कि एक मुद्दे के कारण दूसरा मुद्दा पटरी से उतर जाए. तमाम चीज़ें चलती रहती हैं.

वो कहते हैं कि यूसीसी पर विपक्ष में एक से ज़्यादा मत होंगे लेकिन विपक्षी एकता बनी रहेगी.

हालांकि, यूसीसी के मुद्दे पर वो कांग्रेस के रुख़ को सधा हुआ बताते हैं. यानी ड्राफ़्ट आने पर ही अपना अगला क़दम तय करने वाला.

ऐसे में क्या आम आदमी पार्टी ने बिना ड्राफ़्ट के यूसीसी को सैद्धांतिक समर्थन देकर जल्दबाज़ी की है?

इस पर वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई कहते हैं, “ये उनका (आम आदमी पार्टी) का एक राजनीतिक पैंतरा है. इसके ज़रिए वो इशारों में ये कहना चाह रहे हैं कि अगर आप अध्यादेश के ख़िलाफ़ विधेयक पर हमारा समर्थन नहीं करेंगे तो ऐसे मुद्दों पर हम अलग चले जाएंगे.”

रशीद किदवई कहते हैं कि अभी यूनिफॉर्म सिविल कोड के राजनीतिक पहलू पर चर्चा हो रही है और अभी तक ये नहीं पता कि ये कैसा होने जा रहा है.

वो ये भी कहते हैं कि अगले साल लोकसभा चुनाव से पहले सरकार के लिए यूसीसी को अमलीजामा पहनाना मुश्किल है. ऐसे में सरकार चाहती है कि जनता के बीच ये छवि बने कि बीजेपी यूसीसी लाना चाहती है लेकिन विपक्षी पार्टियां ऐसा नहीं होने दे रही.

लेकिन यूसीसी पर अपनी-अपनी राय रखना विपक्षी पार्टियों के लिए बीजेपी के फेंके पासे में फंसने जैसा है?

एनसीपी, वाईएसआर कांग्रेस, तृणणूल कांग्रेस ऐसी पार्टियां हैं जो कांग्रेस से टूटकर बनी हैं और अब कई राज्यों में अपनी एक अलग विचारधारा की बदौलत कांग्रेस से मज़बूत स्थिति में हैं.

इसके बावजूद जब विपक्षी एकजुटता की बात आती है तो अधिकांश मामलों में ये पार्टियां साथ दिखती हैं.

रशीद किदवई विपक्षी एकजुटता को एक तरह की भ्रांति बताते हैं.

वो कहते हैं,”विपक्षी एकता असल में विपक्षी प्रतिस्पर्धा भी है. फिर कांग्रेस हो, आम आदमी पार्टी हो, टीएमसी हो या एनसीपी. उनकी एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा भी है. उस प्रतिस्पर्धा के बीच वो एक ऐसा माहौल बनाना चाहते हैं ताकि नरेंद्र मोदी या बीजेपी के ख़िलाफ़ ज़्यादा से ज़्यादा विपक्षी दल चुनकर आए. सिर्फ़ यही एक उद्देश्य है.”

“ऐसे में आर्थिक मुद्दों पर, सामाजिक मुद्दों पर सभी पार्टियों का एकराय हो जाना लगभग असंभव है. इनका सिर्फ़ एक मक़सद है कि कैसे एनडीए को लोकसभा चुनावों में 272 (बहुमत का आंकड़ा) से वंचित रखा जाए. एक मंच पर आना बड़ी बात नहीं, एक मंच पर आकर उस गठबंधन को चलाना बड़ा काम होता है. ऐसे में विपक्षी एकजुटता की बड़ी परीक्षा अगले साल लोकसभा चुनावों में होगी.”

==============

प्रियंका झा

बीबीसी संवाददाता