विशेष

आरएसएस एक नरभक्षी महा दानव का रूप ले चुका है, जो दुर्गासप्तशती के रक्तबीज, महिषासुर से बड़ा है-@BrUPADHY


स्वामी देव कामुक
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अब हम भी किसी से मोहब्बत ना करेगे
जिंदगी में कोई रंग सपनों का ना भरेंगे
कदम कदम पर तोड़ती है दिल ये दुनिया
दिल हम हथेली पर अब ना रखेगे
अब हम भी किसी से मोहब्बत ना करेंगे
बड़ी आरज़ू थीं हमको किसी से दिल लगाने की
किसी के पास जाने की उसे अपना बनाने की
किसी के कन्धे पर सर अब ना धरेंगे
अपने हर गम को खुद ही पीयेगे
अब हम भी किसी से मोहब्बत ना करेंगे
लेकर अपना टूटा दिल आज खुदा से भी खूब लड़ेगे
लगकर उनके गले रूठेगे मनेगे
सुना है सबके तारणहार है वो
आज उनकी कश्ती में ही चढ़ेगे
सारे गिले शिकवे अब उन्हीं से करेगे
माँगकर उनसे सातों रेँग जिंदगी में सबकी भरेंगे
अब हम मोहब्बत खुदा के सिवा किसी से ना करेगे
🙏 ❤️🙏
तुम्हारा स्वामी देव

BHAGAWANA RAM UPADHY
@BrUPADHY
आरएसएस एक नरभक्षी महा दानव का रूप ले चुका है। जो दुर्गासप्तशती के रक्तबीज, महिषासुर से बड़ा है। आरएसएस के खतमे के लिए सारे देशप्रेमी, देशभक्त नागरिको को मतभेद, मनभेद, पार्टी भेद, धर्मभेद, जातिभेद आदि भुलाकर एकजुट होना होगा। आरएसएस का दफ़न ही मानवता विजय होगी.सत्य की जय हो.

((डिस्क्लेमर : ट्वीट में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं, तीसरी जंग हिंदी का कोई सरोकार नहीं है))


Dr.vijayasingh
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जाने लोग किस तरह की मोहब्बत करते हैं
पहले टूट कर प्यार करते हैं
फिर उस प्यार के टुकड़े हजार करते हैं
सपने दिखाते हैं ये सात रंगों वाले
हकीकत में जीवन बेरंग करते हैं
जाने लोग किस तरह की मोहब्बत करते हैं..
डी.पी. लगाते हैं हीरो हीरोइनों वाली
काम सारे विलेन के करते हैं
जाने लोग किस तरह की मोहब्बत करते हैं
ना करना अजनबी मोहब्बत का एतबार कभी
पैसे के लिए ये हद से ज्यादा गिरते हैं
असल में जो होते नहीं है वो
दिखलाने की कोशिश करते हैं
मौका पाते ही ये छुरी सीधी गर्दन पे धरते हैं
जाने लोग किस तरह की मोहब्बत करते हैं
पहले टूट कर प्यार करते हैं
फिर उस प्यार के टुकड़े हजार करते हैं 😢
सादर राधे राधे डॉ.विजया सिंह

Kusum Singh
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मानव !
क्यों बढ़ रहे हो
विनाश की तरफ,
अपने ही कर कमलों,
नष्ट कर रहे,
सुंदर प्रकृति को।
दुबक गए हैं सब,
पेड़ पौधे,
परिंदों ने छोड़ दिया,
कलरव करना।
देखो न ! कितनी
सूनी है बगिया।
मधुबन में ,सिकुड़ी हैं
कुसुमों की कलियां ,
खिले भी क्यों?
माँ के कोंख में,
पल रहे शिशु का हठ,
माँ रखो न अभी
कुछ दिन अपनी कोख में।
मत भेजो काली
जहरीली हवाओ में,
क्या दे पाऊंगा ……..
एक बीमार मानव बनकर
जग को,
बोलो न माँ तुम मौन
क्यों???😢😢😢
कुसुम सिंह “सुनैना”
स्वरचित
नई दिल्ली