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आम का पेड़ : राजपूतों ने मुग़लों से अपनी बेटियों का विवाह किया, राजपूत केवल इसी के कारण अपना अस्तित्व बचाए हुए थे!

Sukhpal Gurjar
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*एक बच्चे को आम का पेड़ बहुत पसंद था।*
*जब भी फुर्सत मिलती वो आम के पेड के पास पहुंच जाता।*
*पेड के उपर चढ़ता,आम खाता,खेलता और थक जाने पर उसी की छाया मे सो जाता।*
*उस बच्चे और आम के पेड के बीच एक अनोखा रिश्ता बन गया।*
*बच्चा जैसे-जैसे बडा होता गया वैसे-वैसे उसने पेड के पास आना कम कर दिया।*
*कुछ समय बाद तो बिल्कुल ही बंद हो गया।*
*आम का पेड उस बालक को याद करके अकेला रोता।*
*एक दिन अचानक पेड ने उस बच्चे को अपनी तरफ आते देखा और पास आने पर कहा,*
*”तू कहां चला गया था? मै रोज तुम्हे याद किया करता था। चलो आज फिर से दोनो खेलते है।”*
*बच्चे ने आम के पेड से कहा,*
*”अब मेरी खेलने की उम्र नही है*
*मुझे पढना है,लेकिन मेरे पास फीस भरने के पैसे नही है।”*
*पेड ने कहा,*
*”तू मेरे आम लेकर बाजार मे बेच दे,*
*इससे जो पैसे मिले अपनी फीस भर देना।”*
*उस बच्चे ने आम के पेड से सारे आम तोड़ लिए और उन सब आमो को लेकर वहा से चला गया।*
*उसके बाद फिर कभी दिखाई नही दिया।*
*आम का पेड उसकी राह देखता रहता।*
*एक दिन वो फिर आया और कहने लगा,*
*”अब मुझे नौकरी मिल गई है,*
*मेरी शादी हो चुकी है,*
*मुझे मेरा अपना घर बनाना है,इसके लिए मेरे पास अब पैसे नही है।”*
*आम के पेड ने कहा,*
*”तू मेरी सभी डाली को काट कर ले जा,उससे अपना घर बना ले।”*
*उस जवान ने पेड की सभी डाली काट ली और ले के चला गया।*
*आम के पेड के पास अब कुछ नहीं था वो अब बिल्कुल बंजर हो गया था।*
*कोई उसे देखता भी नहीं था।*
*पेड ने भी अब वो बालक/जवान उसके पास फिर आयेगा यह उम्मीद छोड दी थी।*
*फिर एक दिन अचानक वहाँ एक बुढा आदमी आया। उसने आम के पेड से कहा,*
*”शायद आपने मुझे नही पहचाना,*
*मैं वही बालक हूं जो बार-बार आपके पास आता और आप हमेशा अपने टुकड़े काटकर भी मेरी मदद करते थे।”*
*आम के पेड ने दु:ख के साथ कहा,*
*”पर बेटा मेरे पास अब ऐसा कुछ भी नही जो मै तुम्हे दे सकु।”*
*वृद्ध ने आंखो मे आंसु लिए कहा,*
*”आज मै आपसे कुछ लेने नही आया हूं बल्कि आज तो मुझे आपके साथ जी भरके खेलना है,*
*आपकी गोद मे सर रखकर सो जाना है।”*
*इतना कहकर वो आम के पेड से लिपट गया और आम के पेड की सुखी हुई डाली फिर से अंकुरित हो उठी।*
*वो आम का पेड़ कोई और नही हमारे माता-पिता हैं दोस्तों ।*
*जब छोटे थे उनके साथ खेलना अच्छा लगता था।*
*जैसे-जैसे बडे होते चले गये उनसे दुर होते गये।*
*पास भी तब आये जब कोई जरूरत पडी,*
*कोई समस्या खडी हुई।*
*आज कई माँ बाप उस बंजर पेड की तरह अपने बच्चों की राह देख रहे है।*
*जाकर उनसे लिपटे,*
*उनके गले लग जाये*
*फिर देखना वृद्धावस्था में उनका जीवन फिर से अंकुरित हो उठेगा।*
आप से प्रार्थना करता हूँ यदि ये कहानी अच्छी लगी हो तो कृपया ज्यादा से ज्यादा लोगों को भेजे ताकि किसी की औलाद सही रास्ते पर आकर अपने माता पिता को गले लगा सके..!!

Pratap Singh Bhati Tantwas
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” राजपूतों ने मुगलों से अपनी बेटियों का विवाह किया। ” इस पंक्ति की रट लगाने वाले तथाकथित बौद्धिक मुझे बता सकते हैं कि ऐसे व्यक्तियों की कुल संख्या कितनी होगी, जिन्होंने अपनी बहन-बेटियों का विवाह मुगल शासकों से किया ? पांच, दस, बीस, पच्चास या अधिक ? कितने होंगे ?
मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि
दस से अधिक नाम आपको याद नहीं होंगे।
लेकिन कुछ मानसिक अपाहिज इस तत्कालीन प्रवृत्ति को इतना बढ़ा चढ़ाकर बताते हैं, जैसे राजपूत केवल इसी के कारण अपना अस्तित्व बचाए हुए थे। राजपूत जाति की अदम्य जिजीविषा, त्याग, बलिदान, मुट्ठी भर होकर हजारों से लड़ने-भिड़ने का सामर्थ्य सब व्यर्थ ???
मुगलों को बेटियां दीं राजपरिवारों ने। क्या केवल राजपरिवार लड़ते थे ? लड़ने की जिम्मेदारी छोटे से छोटे राजपूत सामंत और ठाकुर तक की होती थी। कुछ लोग केवल इसलिए लड़े, क्योंकि वो राजपूत थे और जानते थे कि लड़ना अपना धर्म है; वरना न वो राजा थे,
न ठाकुर और न ही सामंत।
आपको मुगल शासकों को अपनी बेटी देने वाले पांच-दस राजपूत राजा याद हैं, लेकिन हजारों राजपूतों ने देश, धर्म के लिए अपने गले कटवा लिए, अपना पूरा परिवार हवन कर दिया,
उनका क्या ??
यदि राजपूतों का काम मुगलों को अपनी बेटी देने भर से चल रहा था, तो क्या जरूरत थी हजारों क्षत्राणियों को आग में कूद पड़ने की ?
यदि राजपूत चाकरी कर रहे थे,
तो एक हजार बरस से कौन लड़ रहा था कि
हम हिंदू बने रहे,
हमारे मंदिर बचे रहे ?
राजस्थान के गांव-गांव में भोमिया जी हुए हैं, जिन्होंने मातृभूमि, धर्म, गाय, ब्राह्मण, स्त्री और मंदिर के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग किया है। क्या इन सारे लोगों ने अपनी बेटियां मुगलों से ब्याही थी ?
राजपूत मुगल वैवाहिक संबंधों की व्याख्या आप चाहें वैसे करें, कोई आपत्ति नहीं। ऐसे संबंध मेरे गले भी नहीं उतरते। लेकिन इससे राजपूतों की वीरता, उनकी त्याग-वृत्ति धूमिल हो जाती है क्या ?
राजपूत धर्म और संस्कृति के लिए
लड़ने वाली जाति है।
आप चाहें, गालियां दें;
लेकिन ज्यों गंगा में पत्थर फेंक देने से
उसकी पावनता भंग नहीं हो जाती,
वैसे ही राजपूतों को गालियां देने से उनकी तलवार और रक्त से लिखी
रणरंग आख्यायिका कलुषित नहीं होती।.
साभार:- #PraveenKumarMakwana

डिस्क्लेमर : लेखक के अपने निजी विचार और जानकारियां हैं, तीसरी जंग हिंदी का कोई सरोकार नहीं है