साहित्य

आपकी ज़िंदगी का कोच कौन है ?? अपने बच्चों को “संवेदनशील” बनाईए…!!!

Arvind Verma
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कुछ माता-पिता बड़े समझदार होते हैं !
वे अपने बच्चों को किसी की भी मंगनी, विवाह, लगन, शवयात्रा, उठावना, तेरहवीं (पगड़ी) जैसे अवसरों पर नहीं भेजते,
इसलिए की उनकी पढ़ाई में बाधा न हो!
उनके बच्चे किसी रिश्तेदार के यहां आते-जाते नहीं, न ही किसी का घर आना-जाना पसंद करते हैं।
वे हर उस काम से उन्हें से बचाते हैं . .
जहां उनका समय नष्ट होता हो !”
उनके माता-पिता उनके करियर और व्यक्तित्व निर्माण को लेकर बहुत सजग रहते हैं !
वे बच्चे सख्त पाबंदी मे जीते हैं!दिन भर पढ़ाई करते हैं,
महंगी कोचिंग जाते हैं, अनहेल्दी फूड नहीं खाते,
नींद तोड़कर सुबह जल्दी साइकिलिंग या स्विमिंग को जाते हैं, महंगी कारें, गैजेट्स और क्लोदिंग सीख जाते हैं, क्योंकि देर-सवेर उन्हें अमीरों की लाइफ स्टाइल जीना है !
फिर वे बच्चे औसत प्रतिभा के हों या होशियार, उनका अच्छा करियर बन ही जाता है, क्योंकि स्कूल से निकलते ही उन्हें बड़े शहरों के महंगे कॉलेजों में भेज दिया जाता है,जहां जैसे-तैसे उनकी पढ़ाई भी हो जाती है और प्लेसमेंट भी।
अब वह बच्चे बड़े शहरों में रहते हैं और छोटे शहरों को हिकारत से देखते हैं !
मजदूरों, रिक्शा वालों, खोमचे वालों की गंध से बचते हैं …
ये बच्चे छोटे शहरों के गली-कूचे, धूल, गंध देखकर नाक-भौं सिकोड़ते हैं।रिश्तेदारों कीआवाजाही उन्हें बेकार की दखल लगती है। फिर वे अपना शहर छोड़कर किसी मेट्रो सिटी या फिर विदेश चले जाते हैं ..
वे बहुत खुदगर्ज और संकीर्ण जीवन जीने लगते हैं।
अब माता-पिता की तीमारदारी और खोज खबर लेना भी उन्हें बोझ लगने लगता है !
पुराना मकान, पुराना सामान, पैतृक संपत्ति को बचाए रखना उन्हें मूर्खता लगने लगती है !
वे पैतृक संपत्ति को जल्दी ही उसे बेचकर
‘””राइट इन्वेस्टमेंट””‘ करना चाहते हैं !
माता-पिता से ..
“वीडियो चैट” में उनकी बातचीत का मसला अक्सर यही रहता है .
इधर दूसरी तरफ कुछ ऐसे बच्चे होते हैं जो सबके सुख-दुख में जाते हैं,
जो किराने की दुकान पर भी जाते हैं, बुआ, चाचा, दादा-दादी को अस्पताल भी ले जाते हैं,
तीज-त्यौहार, श्राद्ध, बरसी के सब कार्यक्रमों में हाथ बंटाते हैं,
क्योंकि उनके माता-पिता ने उन्हें यह मैनर्स सिखाया है !
कि सब के सुख-दुख में शामिल होना चाहिए और ..
किसी की तीमारदारी, सेवा और रोजमर्रा के कामों से जी नहीं चुराना चाहिए .
इन बच्चों के माता-पिता…. उन बच्चों के माता-पिता की तरह समझदार नहीं होते..
क्योंकि वे इन बच्चों का
“कीमती समय” अनावश्यक कामों में नष्ट करवा देते हैं !


फिर ये बच्चे छोटे शहर में ही रहे जाते हैं और दोस्ती यारी रिश्ते नाते जिंदगी भर निभाते हैं !
यह बच्चे, उन बच्चों की तरह “बड़ा करियर”
नहीं बना पाते, इसलिए उन्हें असफल और कम होशियार मान लिया जाता है !
समय गुजरता जाता है, फिर कभी कभार,
वे ‘सफल बच्चे’ अपनी बड़ी गाड़ियों या फ्लाइट से छोटे शहर आते हैं,
दिन भर एसी में रहते हैं, पुराने घर और गृहस्थी में सौ दोष देखते हैं।
फिर रात को, इन बाइक, स्कूटर से शहर की धूल-धूप में घूमने वाले
‘असफल बच्चों’ को ज्ञान देते हैं कि…. तुमने अपनी जिंदगी बर्बाद कर ली आदि आदि !!
असफल बच्चे लज्जित और हीनभाव से सब सुन लेते हैं !
फिर वे ‘सफल बच्चे’ वापस जाते समय इन असफल बच्चों को,
पुराने मकान में रह रहे उनके मां-बाप, नानी, दादा-दादी का ध्यान रखने की हिदायतें देकर,
वापस बड़े शहरों या विदेशों को लौट जाते हैं।
फिर उन बड़े शहरों में रहने वाले बच्चों की, इन छोटे शहर में रह रहे मां, पिता, नानी के घर कोई सीपेज रिपेयरिंग का काम होता है तो यही ‘असफल बच्चे’ बुलाए जाते हैं।
सफल बच्चों के उन वृद्ध मां-बाप के हर छोटे बड़े काम के लिए .. यह ‘असफल बच्चे’ दौड़े चले आते हैं।
कभी पेंशन, कभी किराना, कभी घर की मरम्मत, कभी पूजा…डॉ . के यहां लाना ले जाना कभी कुछ कभी कुछ !
जब वे ‘सफल बच्चे’ मेट्रोज के किसी एयरकंडीशंड जिम में ट्रेडमिल कर रहे होते हैं….!
तब छोटे शहर के यह ‘असफल बच्चे’ उनके बूढ़े पिता का चश्मे का फ्रेम बनवाने,किसी दूकान के काउंटर पर खड़े होते हैं…
और तो और इनके माता पिता के मरने पर अग्नि देकर तेरहवीं तक सारे क्रियाकर्म भी करते हैं !
सफल यह भी हो सकते थे….!
इनकी प्रतिभा और परिश्रम में कोई कमी न थी….!
“”मगर…
इन बच्चों और उनके माता-पिता में शायद ‘जीवन दृष्टि अधिक’ थी !”
कि उन्होंने धन-दौलत से अधिक, “मानवीय संबंधों और सामाजिक मेल-मिलाप को आवश्यक” माना .
सफल बच्चों से किसी को कोई अड़चन नहीं है..
मगर बड़े शहरों में रहने वाले, वे ‘सफल बच्चे’ अगर ‘सोना’ हैं, तो छोटे शहरों-गांवों में रहने वाले यह ‘असफल बच्चे’ किसी ‘हीरे’ से कम नहीं !
आपके हर छोटे-बड़े काम के लिए दौड़े आने वाले ,
उनका कैरियर सजग बच्चों से कहीं अधिक तवज्जो और सम्मान के हकदार है !
अपने बच्चों को “संवेदनशील” बनाईए…
वे “धन कमाने की मशीन” नहीं हैं !
सही सकारात्मक एवं मानवीय दृष्टिकोण ही सही जीवन है !!

Sukhpal Gurjar
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गहराई से सोचो !
आपकी ज़िंदगी का कोच कौन है ??
अनीता_अल्वारेज,
अमेरिका की एक पेशेवर तैराक हैं जो वर्ल्ड चैंपियनशिप के दौरान परफॉर्म करने के लिए स्विमिंग पूल में जैसे ही छलांग लगाई , वो छलांग लगाते ही पानी के अंदर बेहोश हो गई ,
जहाँ पूरी भीड़ सिर्फ़ जीत और हार के बारे में सोच रही थी वहीं उसकी कोच एंड्रिया ने जब देखा कि अनीता एक नियत समय से ज़्यादा देर तक पानी के अंदर है ,
एंड्रिया पल भर के लिए सब कुछ भूल गई कि वर्ल्ड चैंपियनशिप प्रतियोगिता चल रही है , एक पल भी व्यर्थ ना करते हुए एंड्रिया चलती प्रतियोगिता के बीच में ही स्विमिंग पूल में छलांग लगा दी ,
वहाँ मौजूद हज़ारों लोग कुछ समझ पाते तब तक एंड्रिया पानी के अंदर अनीता के पास थी ,
एंड्रिया ने देखा कि अनीता स्विमिंग पूल में पानी के अंदर बेहोश पड़ी है ,
ऐसी हालत में ना हाथ पैर चला सकती ना मदद माँग सकती ,
एंड्रिया ने अनीता को जैसे बाहर निकाला मौजूद हज़ारों लोग सन्न रह गए , एंड्रिया ने अनीता को तो बचा लिया ,
लेकिन हम सबकी ज़िंदगी में बहुत बड़ा सवाल छोड़ गई !
इस दुनियाँ में ना जाने कितने लोग हम सबकी ज़िंदगी से जुड़े हैं कितनों से रोज़ मिलते भी होंगे ,
जो इंसान हर किसी से अपने मन की बात नहीं कह पाता कि असल ज़िंदगी में वह भी कहीं डूब रहा है , वह भी किसी तकलीफ़ से गुज़र रहा है , वह भी किसी बात को लेक़र ज़िंदगी से परेशान हो रहा है , लेकिन बता नहीं पा रहा है
जब इंसान किसी को अपने मन की व्यथा , अपनी परेशानी नहीं बता पाता तो मानसिक तनाव इतना बढ़ जाता है कि वह ख़ुद को पूरी दुनियाँ से अलग़ कर लेता है , सबकी नज़रों से दूर एकांत में ख़ुद को चारदीवारी में क़ैद कर लेता है ,
ये वक़्त ऐसा होता है कि तब इंसान डूब रहा होता है , उसका मोह ख़त्म हो चुका होता है , ना किसी से बात चीत ना किसी से मिलना जुलना ,
ये स्थिति इंसान के लिए सबसे ख़तरनाक होती है ,
जब इंसान अपने डूबने के दौर से गुज़र रहा होता है , तब बाक़ी सब दर्शकों की भाँति अपनी ज़िंदगी में व्यस्त होते हैं किसी को ख़्याल ना होता कि एक इंसान किसी बड़ी परेशानी में है ,
अगर इंसान कुछ दिन के लिए ग़ायब हो जाए तो पहले तो लोगों को ख़्याल नहीं आएगा , अगर कुछ को आ भी जाए तो लोग यही सोचेंगे , पहले कितनी बात होती थी अब वो बदल गया है या फिर उसे घमंड हो गया है या अब तो बड़ा आदमी बन गया है इसलिए बात नहीं करता , जब वो बात नहीं करता तो हम कियूँ करें !
या फिर ये सोच लेते हैं कि अब दिखाई ना देता तो वो अपनी ज़िंदगी में मस्त है इसलिए नहीं दिखाई देता ,
अनीता पेशेवर तैराक होते हुए डूब सकती है तो कोई भी अपनी ज़िंदगी में बुरे दौर से गुज़र सकता है , ये समझना ज़रूरी है
लेकिन उन लोगों से हट कर कोई एक इंसान ऐसा भी होगा जो आपकी मनोस्थिति तुरंत भाँप लेगा , उसे बिना कुछ बताये सब पता चल जाएगा , आपकी ज़िंदगी के हर पहलू पर हमेशा नज़र रखेगा , थोड़ा सा भी परेशान हुए वो आपकी परेशानी आकर पूछने लगेगा ,
आपके बेहवियर को पहचान लेगा , आपको हौसला देगा आपको सकारात्मक बनायेगा और एंड्रिया की तरह कोच बन कर आपकी ज़िंदगी को बचा लेगा ,
हम सबको ऐसे कोच की ज़रूरत पड़ती है…
ऐसा कोच कोई भी हो सकता है , आपका भाई , बहन , माँ , पापा ,
आपका कोई दोस्त , आपका कोई हितैषी , आपका कोई रिश्तेदार , कोई भी , जो बिना बताये आपके भावों को पढ़ ले और तुरंत एक्शन ले।
गहराई से सोचो आपकी ज़िंदगी का कोच कौन है ??
साभार
ll सर्वे भवंतु सुखिन: