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आनंद मोहन सिंह की रिहाई, आईएएस एसोसिएशन ने रोष जताया : रिपोर्ट

एक आईएएस अधिकारी और गोपालगंज के ज़िलाधिकारी जी. कृष्णैया की हत्या के दोषी ठहराए गए पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह की नए जेल नियमों के तहत रिहाई को लेकर राजनीतिक दलों, आईएएस एसोसिएशन से लेकर उनके परिवार ने भी रोष जताया है।

इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए जी. कृष्णैया की पत्नी उमा जी. कृष्णैया ने कहा कि नीतीश कुमार हत्या के लिए दोषी ठहराए गए व्यक्ति को रिहा करके ग़लत मिसाल कायम कर रहे हैं, इससे अपराधियों को सरकारी कर्मचारियों पर हमला करने का बल मिलेगा क्योंकि उन्हें मालूम है कि वे आसानी से जेल से बाहर आ जाएंगे।

उन्होंने कहा कि कुछ राजपूत वोटों के लिए उन्होंने ऐसा फ़ैसला लिया है जिसका नतीजा आम लोगों को भुगतना होगा, राजपूत समुदाय को भी इस बारे में सोचना चाहिए कि क्या वे चाहते हैं कि आनंद मोहन जैसा अपराधी राजनीति में उनका प्रतिनिधित्व करे।

उल्लेखनीय है कि 1994 में गोपालगंज के तत्कालीन ज़िलाधिकारी जी. कृष्णैया की कथित रूप से आनंद मोहन सिंह द्वारा उकसाई गई भीड़ ने हत्या कर दी थी। गैंगस्टर से नेता बने सिंह को 2007 में बिहार की एक निचली अदालत ने मौत की सज़ सुनाई थी, हालांकि, पटना हाईकोर्ट ने इसे आजीवन कारावास में बदल दिया था जिसे 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा था।

इस महीने की शुरुआत में बिहार सरकार ने ड्यूटी पर एक लोक सेवक की हत्या के दोषियों के लिए जेल की सज़ा को कम करने पर रोक लगाने वाले खंड को हटा दिया था, अपनी अधिसूचना में राज्य के क़ानून विभाग ने कहा है कि नए नियम उन कैदियों के लिए है जिन्होंने 14 साल की वास्तविक सजा या 20 साल की सज़ा काट ली है।

दूसरी तरफ़ सरकार से निर्णय पर पुनर्विचार करने का आग्रह करते हुए आईएएस निकाय ने कहा कि एक सज़ा याफ्ता हत्यारे की रिहाई ‘न्याय से वंचित करने के समान’ है।

एसोसिएशन द्वारा जारी एक बयान में कहा गया कि ड्यूटी पर तैनात एक लोकसेवक की हत्या के आरोप में दोषी को कम जघन्य श्रेणी में पुनर्वर्गीकृत नहीं किया जा सकता, मौजूदा वर्गीकरण में किया गया संशोधन जो एक ऑन ड्यूटी लोक सेवक के सज़ा याफ्ता हत्यारे को रिहाई की ओर ले जाता है, न्याय से इनकार करने के समान है. इस तरह के कमजोर पड़ने से लोक सेवकों के मनोबल में गिरावट आती है, सार्वजनिक व्यवस्था कमजोर होती है और न्याय प्रशासन का मखौल बनता है।