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आतंकवादी कौन है, दाइश और हमास में क्या अंतर है?

पूर्व संसदसभापति ने फिलिस्तीनी राष्ट्र के प्रति ईरान की सहायताओं की ओर संकेत करते हुए कहा है कि ईरान ने काफी समय से फिलिस्तीनी जनता की सहायता की है और यह सहायता केवल राजनीतिक और आध्यात्मिक नहीं है और हमने इस विषय को कभी नहीं छिपाया है और यह एक इंसानी दायित्व है।

इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता के सलाहकार ने एक टीवी कार्यक्रम में अलअक्सा तूफान की ओर संकेत किया और कहा कि अवैध जायोनी सरकार का अस्तित्व फिलिस्तीनियों की मूल समस्या है। उन्होंने कहा कि इस्राईल का अस्तित्व गैर कानूनी है और यही जायोनी सरकार का अवैध अस्तित्व समस्याओं की जड़ रहा है यद्यपि दबाव और गोली के माध्यम से इसके समाधान का प्रयास किया।

पूर्व संसदसभापति अली लारीजानी ने जायोनी सरकार के संकट को एक आंतरिक संकट बताया और कहा कि जितना भी जायोनी दबाव बढ़ायेंगे यह संकट उतना ही गहरा और पहले से कठिन होता जायेगा। उन्होंने फिलिस्तीन की मज़लूम जनता के प्रति ईरान के समर्थन की ओर संकेत करते हुए कहा कि अगर हम इस्लामी व्यवस्था में मज़लूम का समर्थन न करें तो कोई भी हमारा समर्थन नहीं करेगा।

उन्होंने कहा कि पवित्र प्रतिरक्षा के दौरान जब इराक की बासी सरकार ने हम पर हमला किया था तब किसी भी बड़े देश ने हमारी मदद नहीं की परंतु सीरिया और लीबिया जैसे देशों ने हमारी मदद की और यही भावना आज फिलिस्तीनी राष्ट्र को हमसे है। उन्होंने फिलिस्तीनी जनता के समर्थन को धार्मिक और इंसानी दायित्व बताया और कहा कि यह समर्थन हमारे देश के हित में भी है क्योंकि हम इस्राईल को समस्याजनक और कैंसर की गिल्टी समझते हैं और हमें ज़ालिम और मज़लूम को अच्छी तरह पहचानना चाहिये और यह जानना चाहिये कि ये समर्थन परिणामहीन नहीं रहेगा।

उन्होंने कहा कि ईरान की इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने कई साल पहले एक कांफ्रेन्स में एक रेफरेन्डम कराने का प्रस्ताव दिया था जिसे जायोनी सरकार ने स्वीकार नहीं किया। उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा हमास की तुलना दाइश से किये जाने को हास्यास्पद बताया और कहा कि दाइश को खुद अमेरिकियों ने बनाया है परंतु हमास का एक इतिहास है और उसकी तुलना दाइश से नहीं की जा सकती और इस प्रकार की बात एक राजनेता की अनभिज्ञता व अज्ञानता की सूचक है।

जानकार हल्कों का मानना है कि जो लोग हमास और दूसरे फिलिस्तीनी संघर्षकर्ता गुटों की तुलना आतंकवादी गुट दाइश से करते हैं वास्तव में उन्हें या तो सच्चाई और वास्तविकता का ज्ञान नहीं है या फिर वे वास्तविकताओं पर पर्दा डालने और अमेरिका और जायोनी सरकार के समर्थन में लगे हुए हैं। जो लोग फिलिस्तीन के संघर्षकर्ता गुटों को आतंकवादी कहते हैं उनसे कुछ सवाल हैं। पहला सवाल यह है कि अगर हिटलर ने यहूदियों को गैस की भट्ठियों में ज़िन्दा जलाकर मारा था तो जर्मनी में मारा था न कि फिलिस्तीन में। इसमें फिलिस्तीनियों का क्या दोष है?

अगर यहूदियों पर ज़ुल्म हुआ है तो उसकी कीमत फिलिस्तीनी क्यों चुकायें? यहूदियों को दुनिया के कोने- कोने से लाकर फिलिस्तीनियों की मातृभूमि में बसा दिया गया। हिंसा, हत्या व अत्याचार की बुनियाद किसने रखी? कितनी अजीब बात है कि जो इंसान अपनी मातृभूमि की आज़ादी के लिए संघर्ष करे उसे आतंकवादी कहा जाता है और जो दूसरे की मातृभूमि पर कब्ज़ा करता है, हज़ारों नहीं बल्कि लाखों निर्दोष फिलिस्तीनियों की हत्या व घायल करता है उसके समर्थन में कहा जाता है कि उसे अपनी रक्षा का अधिकार प्राप्त है।

जो लोग यह कहते हैं उनसे पूछा जाना चाहिये कि अगर अतिग्रहणकारी को अपनी रक्षा का अधिकार प्राप्त है तो जो अपनी मातृभूमि की आज़ादी के लिए लड़ रहा है उसे अपनी रक्षा का अधिकार क्यों नहीं है? वास्तविक अर्थों में आतंकवादी कौन है? जो दूसरे की मातृभूमि पर कब्ज़ा कर ले या जो अपनी मातृभूमि की आज़ादी के लिए संघर्ष करे?

बहरहाल पूरी दुनिया ने फिलिस्तीन के संबंध में अमेरिका और इस्राईल के क्रियाकलापों को बहुत अच्छी तरह देख लिया और अब किसी को भी अमेरिकी मानवाधिकार की वास्तविकता के संबंध में कोई गलत फहमी नहीं होनी चाहिये।