Tajinder Singh
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एक तस्वीर आजकल बहुत घूम रही है। इसे मिजोरम का बताया जा रहा है की कैसे लोग ट्रैफिक के नियमो का पालन करते हैं।
इससे पहले की मैं मुख्य मुद्दे पर आऊं। मैं दो चार बाते और करना चाहता हूँ।
काफी पहले मेरा चेन्नई जाना हुआ। वहां अपने आफिस के क्षेत्रीय कार्यालय में गेस्ट हाउस बुक करने हेतु जाना पड़ा। सात मंजिला बिल्डिंग के निचले तल्ले पर रिसेप्शन पर बैठे व्यक्ति के पास पहुंचा तो व्यक्ति मुझसे मुखातिब होकर बोला “सर व्हाट कैन आई डू फ़ॉर यु”। दो मिनट के अंदर उसने मुझे सम्बंधित अधिकारी के पास भिजवा दिया। ऐसी त्वरित सहायता की उम्मीद मैं हिंदी पट्टी के अपने क्षेत्र झारखंड बिहार में नही कर सकता। आफिस में जो बदतर वर्क कल्चर झारखंड, बिहार बंगाल में देखा। वैसा दक्षिण या पश्चिम के क्षेत्रों में नही। वहां लोग समय से आते हैं और काम समाप्त कर समय से वापस भी जाते हैं।
काफी पहले मेरा पंजाब जाना भी हुआ। वहां देखा कि बस स्टॉप को छोड़ बस कहीं नही रुक रही। भले स्टॉप के थोड़ा आगे पीछे लोग हाथ देते रहें। यहां तो बस को पैसेंजर की खातिर कहीं भी रोक देते हैं। भले पीछे जाम लग जाये।
बहुत बहुत पहले सिक्किम की राजधानी गंगटोक जाना हुआ। वहां की मुख्य सड़क महात्मा गांधी मार्ग पर खड़ी सभी दोपहिया पर हेलमेट भी रखा हुआ था। मैंने एक दो हैलमेट उठा कर देखे , कहीं कोई लॉक नही था। ऐसे बिना लॉक के हेलमेट की कल्पना मैं अपने यहां में नही कर सकता। हम तो ट्रेन के टॉयलेट में मग को भी चेन से बांधते हैं।
चेन्नई जाने के दौरान ही मैंने देखा कि ट्रेन का टीटी रात में ट्रेन के दरवाजे बंद कर बत्तियां भी बुझा रहा है। कभी किसी की नींद हराम कर टिकट नही पूछ रहा। और ट्रेन में बिना रिजर्वेशन के एक आदमी नही था। उस वक्त मैं बिहार में था। तो अपने यहां बिना टिकट का आदमी सबसे पहले ऐ सी बॉगी में ही चढ़ेगा। आप तो छोड़िए…टीटी भी उसे कुछ नही बोल सकता। सवाल तो ये भी है कि बिहार के रास्ते गुजरने वाली ट्रेनों में डकैतियां क्यों ज्यादा होती थी।
जितने आराम, इत्मीनान और बिना भय के मैं हिमाचल और उत्तरांचल में रात बिरात घूम लेता हूँ। वैसा मैं अपने यहां नही कर सकता। आखिर क्यों?
अब सवाल है कि एक ही भारत के पूर्वी, पश्चिमी और दक्षिणी हिस्से के लोगों की सोच, आचरण में इतना अंतर क्यों? शिक्षा का जो स्तर केरल और सिक्किम में है वो हिंदी पट्टी में क्यों नही? गोबर पट्टी या हिंदी पट्टी के लोगों की सोच, छवि और व्यवस्था पूरे देश के लोगों के मुकाबले इतनी खराब क्यों?
क्या इसके लिए राजनीतिज्ञ जिम्मेवार हैं या यहां लोगों का चरित्र ही ऐसा है। और अगर चरित्र ऐसा है तो ऐसा क्यों है? क्यों सिविक सेंस नाम की चीज यहां पाई ही नही जाती। इंदौर अगर सबसे साफ सुथरा शहर घोषित होता है तो क्यों और बिहार का कोई शहर इन मानकों पर कहीं नही आता?
कभी पटना के ट्रैफिक नियमो की तुलना मिजोरम की इस तस्वीर से कर के देखिए। इसके लिए कौन जिम्मेवार है?
शायद नियमो को ठेंगे पर रखना यहां के लोगों का शौक है। नियम मानने वाला यहां बेवकूफ माना जाता है और धौंस दिखा कर काम निकलवाना शान समझा जाता है।
आखिर ऐसा क्यों है???