साहित्य

“आइना….मेरे मम्मी पापा को मेरी पसन्द-नापसन्द की कोई फ़िक्र ही नहीं

लक्ष्मी कान्त पाण्डेय
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“आइना….
चोरी-छिपे मोबाइल फोन पर दोनों घंटों बात करते रहते थे सुबह व्हाट्सएप पर गुड मॉर्निंग से देर रात गुड़ नाइट तक क्या कर रहे हो ….क्या खाया…. कहा थे….
यही सब चलता रहता था दोनों एक-दूसरे को चाहते थे अक्सर बहाने से मिलते भी रहते थे
कोचिंग क्लास से शुरू हुई दोस्ती अब दोनों प्यार के पंछी बने हुए थे मगर दोनों के घरवालों को ये रिश्ता मंजूर नहीं था अक्सर दोनों इस बात से खीझकर रह जाते
जाने कितनी बार दोनों अपने ही घरवालों को अपनी फिल्म का विलेन बताने लगते थे आखिर इसका हल खोजने के लिए दोनों ने मिलने का फैसला किया और दोनों के घरों से समान-दूरी पर स्थित एक सुनसान पार्क में दोनों ने मिलना तय किया ….
समय से पहले ही दोनों वहां आ पहुंचे….


हाय-हैलो की औपचारिकता के बाद कुछ क्षण, दोनों के बीच खामोशी पसरी रही आखिरकार लड़की ने ही बात शुरू की …सच यार …
मेरे मम्मी पापा को मेरी पसन्द-नापसन्द की कोई फिक्र ही नहीं है जिसके साथ जीवन मुझे बिताना है उसे पसंद का मुझे हक नहीं में ऐसे कैसे किसी के साथ भी शादी के बंधन में नहीं बंधने वाली .. मुझे तो बस तुम पसंद हो .. मेरे हीरो…
हां यार…..यही हाल मेरे भी मम्मी पापा का है….
लड़का भी मानो जैसे लड़की की इसी प्रतिक्रिया का ही इंतजार कर रहा था
हूह….और ये लोग नहीं मानेंगे बोलते हुए लड़की सिर झुकाकर पैर के अँगूठे से जमीन पर लकीरे बनाती-बिगाड़ती जा रही थी
दुनिया कहां से कहां पहुंच गई है और एक हमारे घरवाले है की … पता नहीं यह दकियानूसी सोच कब छोड़ेंगे… लड़के गुस्से से बिलबिलाते हुए बोला
हां सच … यार हम बालिग हैं फिर अपनी लाइफ के फैसले हम खुद क्यों नहीं ले सकते….उदास लहजे मे कहते हुए लड़की ने लड़के के कन्धे पर सिर टिका दिया
मैंने इसका हल सोच लिया है हम दोनों भाग चलेंगे किसी और दूसरे शहर में … वहां शादी करेंगे और शादी के बाद हम दोनों वही रहेंगे वहीं अपनी दुनिया बसाएंगे रह लेंगे किराएदार बनकर अरे दुनिया ऐसे ही अपनी गृहस्थी बसाती है हम भी ऐसे ही अपने लिए अपनी दुनिया बसाएंगे
हां…. यही ठीक है पर वहां शहर में तो ऊंची ऊंची बिल्डिंग है पर तुम अपना किराए का मकान ज्यादा ऊपर वाली फ्लोर पर मत लेना देखा है मैंने ऐसे में लाइट आती जाती रहती है और कभी लिफ्ट बंद हो गई तो मैं सीढ़ियों से ज्यादा नहीं चढ़ पाऊँगी… शिकायती लहजे में बोलते हुए लड़की ने कहा
लड़के ने लड़की की और देखा तो दोनों इस बात पर जोर से हंसने लग पड़े. …
अच्छा सुनो ….हम अपने बच्चे का नाम प्रेम रखेंगे….
मुझे फिल्मों में प्रेम नाम बड़ा प्यारा लगता है लड़की ने अपने मन की बात बताते हुए कहा
नहीं मुझे तो पहले एक छोटी-सी गुड़िया चाहिए मुझे बेटी पसंद है लड़के ने लड़की को टोकते हुए कहा
अच्छा ….
हां मुझे लड़की ही चाहिए बस …
ठीक है… ठीक है… फिर हम उसे खूब पढ़ाएँगे वह जो चाहे पढ़े, जो बनना चाहे बने..
हां …. वो जो पढ़ना चाहेगी में उसे पढ़ाऊंगा चाहे कितना भी खर्चा आए …
हां ….और वो अपनी जिन्दगी के सारे फैसले खुद लेगी लड़की थोड़ा गर्व से बोली
हां और उसकी शादी….तभी लड़के ने लड़की की बात काटते हुए कहा खूब खोज-बीन कर उसके लिए अच्छा-सा लड़का ढूँढकर करेंगे…..बिल्कुल अपनी पसंद से…. वह बात पूरी कर पाता इससे पहले ही लड़की ने झटके से उसके कंधे से अपना सिर हटा लिया और लड़के की ओर हैरानी से देखा
ये देखकर लड़के ने लड़की से पूछा …..क्या हुआ…
लड़की प्रश्नवाचक नजरों से अब भी उसे घूरे जा रही थी
लड़की के प्रश्नों को समझ रहे लड़के का सिर शर्मिंदगी से झुक गया था आखिरकार वहीं सवाल घूमकर दोनों के सामने फिर से खड़ा हो जो गया था जिसे वो किसी फिल्मी हीरो हीरोइन की तरह सरल समझ रहे थे अब उन दोनों को समझ आ गया था की माता पिता कभी भी विलेन नहीं होते
चाहत तो हर माता-पिता की अपने बच्चों की भलाई की ही होती है भविष्य के पटल पर उन्हें वर्तमान का आइना जो नजर जो आ गया था…!!