साहित्य

आँसुओं को पोछ लेने के बाद का विषाद….आपकी मधु….

Madhu
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ये हँसी है एग्जाम के आखरी दिन की🥰 । पेपर कैसे भी बने हो , खत्म तो हो गए न भई ?जब रिजल्ट आएगा तब देखी जाएगी कि खुश होंगे या दुःखी । बार बार एडिट करते हुए उपन्यास द्विवेदी विला का दसवाँ ड्राफ्ट चेक किया , फाइनल करके फाइल बंद की और प्रकाशक जी को भेज दी। फाइनल ड्राफ्ट होने के बाद घोड़े बेचकर सोने की रात । दो साल की मेहनत का नतीजा तो पता चलेगा पाठकों के हाथ किताब आने के बाद । किताब पाठकों तक पहुँचने में शायद हप्ते भर का वक्त है ।

“द्विवेदी विला” यह किताब क़िस्सा है सामान्य किरदारों के असामान्य घटनाओं से गुज़रते हुए असाधारण हो जाने का । ‘द्विवेदी विला’ एक ईमारत कैसे पंचवटी की उस कुटिया में तब्दील हो जाती है जिसके चारों तरफ़ एक अदृश्य लक्ष्मण रेखा खींच दी गई है । एक जोड़ी आँखों की छोटी सी दुनिया इस ईमारत के भीतर आने वालों को कुछ ऐसे सुनती और गुनती है जैसे बाइस्कोप के भीतर झाँकते चेहरों को अंदर बैठकर देखना । उन आँखों के लिए “द्विवेदी विला” के बाहर की दुनिया ऐसी जैसे घाट की सीढ़ियों पर बैठे तट के दूसरी तरफ़ दिखते अंजान गाँव , अजानी मानव आकृतियों को जानने और देखने की उत्कंठा।

सबके सामने ख़ुशहाल और सफल जीवन जीते लोगों के भीतर छिपे अकेलेपन के धीमे-धीमे विराट हो जाने की गाथा है। रेत के फिसलकर मुट्ठी पूरी ख़ाली हो जाने के बाद सूनी हथेली में चिपके कणों की गणना है। ‘द्विवेदी विला’ आवेग का रुदन नही बल्कि आँसुओं को पोछ लेने के बाद का विषाद है।

जिन आँसुओं ने बहने से इंकार किया वे कागजों पर उतरे ….जिन जज्बातों ने नुमाइश से गुरेज़ किया वे किरदार बने …जो उदासी आँखों के नीचे स्याही मलने से चूक गयी वो कलम में उतर गई……..

.. तमाम सुख दुःख को चेतना की छलनी में छानने के बाद का हासिल है ये उपन्यास। …ज्वर का ताप जाने के बाद की हरारत है …लाख अपनेपन के बावजूद भी दरमियाँ रह जाने वाला संकोच है… इत्र की खाली शीशी में छूट गयी महक है…।

साँझ ढले पहाड़ी से लौटने के बाद दामन में चिपक कर साथ चले आए तिनके है….भारी बोझ सर से उतार देने के बाद का हल्कापन है… जमीन से रिश्ता तोड़ दे वो चाँदनी रात है …. एकांत की बुदबुदाहट है…चुप्पियों की गूंज है….।
दुनिया से राब्ता न बन पाने की मायूसी है …खुद को टटोलने की कोशिश है ….समंदर को अंजुर से खाली करने की जद्दोजहद है .. एक जिंदगी को हजार बार निचोड़ने की छटपटाहट है ।
यह किस्सा वो चिठ्ठी है जो किसी को ना बता सकी कि दरिया में बहाने से पहले उसे चूमा गया था ..।

आप में से जो पाठक “मन अदहन” की झिल्ली , झिल्ली के बाफ़ा, जुलू के आँसुओं की नमी में भीग चुके है…जो पाठक राजा भैय्या के साथ अरपा तट की रेत पर नंगे पाँव पतंग लूटने दौड़ चुके है …जिन्होंने अम्मा के साथ सर्द दिनों में खाट पर धूप तापी है…जो बेबी दीदी की शादी की बोझिल सीडी झेल चुके है और जिन्होंने बारहवी क्लास की उस बड़ी आँखों वाली द्वारा फिजिक्स सर की रैगिंग के लिए सहानुभूति व्यक्त की है उनके लिए है ये नया उपन्यास ।

आप में से जिन्होंने धनिका और संजय के रिश्तों की घुटन को अपनी छाती में झेला है , जो हर बुधवार अर्चना के वासु के फोन की प्रतीक्षा देख द्रवित हुए….जो शरारती प्रेमा के रूमानी सपनों के टूट जाने पर खुद भी बिखरे , जिन लोगों ने बाबा की अचानक मौत के बाद उजाड़ हुए तिवारी सदन के सन्नाटे को महीनों महसूस किया था उन सबकी प्रतीक्षा को आज विराम है….।

द्विवेदी विला कहानी है एक ईमारत के चारों तरफ परिक्रमा करती कहानियों और इससे बंधे किरदारों की …। आज जब यह किताब की शक्ल में मेरे हाथ में आया तो पढ़ते हुए मुझे महसूस हो रहा है कि इसे मैंने नही ,किसी और ने लिखा है …। मेरे भीतर क्या है इस बात से मैं इतना कैसे अनजान रही …। वैसे कभी-कभी किसी निर्जन जंगल , पहाड़ी या पोखर के सन्नाटे में पहुँचकर मुझे एक ख्याल आता है कि धरती स्वयं भी अपने इस कोने से अपरिचित है ….। माना ऐसा सोचना दिमागी फितूर है मगर ऐसा ख्याल आता है ….।

इस उपन्यास के विषय में सिर्फ इतना कि
आँखों के आगे की दुनिया का ये हिस्सा नही है
कोई भूल जाए जल्दी, ये ऐसा किस्सा नही है ।
आज से द्विवेदी विला की आन लाइन बुकिंग शुरू हो गयी है ।अमेज़ॉन लिंक नीचे है ।

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सुदूर जहाँ अमेज़ॉन की सुविधा नही है उनके लिए पुस्तकालय का व्हट्सएप नम्बर जिस पर द्विवेदी विला का आर्डर दिया जा सकता है ।
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आपकी मधु