धर्म

अल्लाह ज़ालिम और उससे बदला लेगा जो मज़लूम की मदद न करे : आठ चुनिन्दा हदीसें

पार्सटुडे- पैग़म्बरे इस्लाम फ़रमाते हैं” मज़लूम की बद्दुआ से डरो यद्यपि वह काफ़िर ही क्यों न हो, क्योंकि मज़लूम की बद्दुआ के सामने कोई रुकावट नहीं है।

ज़ुल्म का अर्थ अत्याचार है यानी अपने आप पर या दूसरे के अधिकारों पर ज़ुल्म करना। जो बुरा व ग़लत काम करता है वह अपने आप पर ज़ुल्म व अत्याचार करता है क्योंकि परिपूर्णता तक पहुंचने के मार्ग में उसने अपने अधिकारों की उपेक्षा की है। पवित्र क़ुरआन में कहान ईश्वर कहता है तुममें से जो भी ज़ुल्म करेगा हम उसे कड़े दंड का मज़ा चखायेंगे। (सूरे फ़ुरक़ान आयत संख्या 19)

इसी प्रकार महान ईश्वर का समतुल्य क़रार देने को भी बहुत बड़ा गुनाह व अत्याचार कहा गया है।

पवित्र क़ुरआन में आया है कि जब लुक़मान ने अपने बेटे से कहा कि हे बेटे अल्लाह का शरीक व समतुल्य क़रार न देना बेशक शिर्क बहुत बड़ा अत्याचार व ज़ुल्म है।

पवित्र क़ुरआन कहता है कि न ज़ुल्म करो और न ज़ुल्म सहो।

रिवायतों में कहा गया है कि ज़ुल्म तीन प्रकार का होता है।

एक वह ज़ुल्म है जिसे अल्लाह माफ़ नहीं करेगा और एक वह ज़ुल्म है जिसे अल्लाह माफ़ कर देगा और एक वह ज़ुल्म है जिसे अल्लाह नहीं छोड़ेगा। तो वह ज़ुल्म जिसे अल्लाह माफ़ नहीं करेगा वह शिर्क है और वह ज़ुल्म जिसे अल्लाह माफ़ कर देगा वह बंदों का अपने आप पर ज़ुल्म है और वह ज़ुल्म जो उनके और उनके पालनहार के बीच है और वह ज़ुल्म जिसे अल्लाह माफ़ नहीं करेगा वह बंदों का एक दूसरे पर ज़ुल्म है।

मज़लूम की बद्दुआ की ताक़त व शक्ति

पैग़म्बरे इस्लाम फ़रमाते हैं कि मज़लूम की बद्दुआ से डरो अगर बद्दुआ करने वाला काफ़िर ही क्यों न हो बेशक मज़लूम की बद्दुआ के रास्ते में कोई रुकावट व पर्दा नहीं है।

ज़ुल्म से मुक़ाबला करने वाला स्वर्ग में पैग़म्बरे इस्लाम के साथ होगा

पैग़म्बरे इस्लाम फ़रमाते हैं कि जिसने ज़ालिम से मज़लूम का हक़ लिया वह जन्नत में मेरे साथ रहेगा। (बेहारुल अनवार)

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ज़ुल्म के मुक़ाबले में चुप रहना ग़लत है

पैग़म्बरे इस्लाम फ़रमाते हैं कि जब लोग ज़ालिम को देखें और उसे ज़ुल्म करने से मना न करें तो अपेक्षा इस बात की है कि सबको अल्लाह के अज़ाब का सामना हो। (नहजुल फ़साहत)

अल्लाह अत्याचारी और मज़लूम की मदद न करने वाले से प्रतिशोध लेगा

पैग़म्बरे इस्लाम फ़रमाते हैं अल्लाह कहता है कि मेरी इज़्ज़त व जलाल की क़सम कि लोक- परलोक में मैं ज़ालिम से प्रतिशोध लूंगा और उससे भी प्रतिशोध लूंगा जो मज़लूम को देखे और वह उसकी मदद कर सकता हो पर मदद न करे।

न ज़ुल्म करो न ज़ुल्म सहो

पैग़म्बरे इस्लाम फ़रमाते हैं कि अल्लाह की शरण लो…इस बात से कि तुम ज़ुल्म करो और ज़ुल्म सहो।

मज़लूम की मदद बेहतरीन न्याय है

हज़रत अली फ़रमाते हैं कि बेहतरीन न्याय और अदालत मज़लूम की मदद है

विश्व में इमाम महदी का आंदोलन ज़ुल्म व अन्याय के ख़िलाफ़ होगा

पैग़म्बरे इस्लाम फ़रमाते हैं कि महदी हमारी उम्मत में से है और वह दुनिया को उस तरह अदालत से भर देगा जिस तरह वह ज़ुल्म व अत्याचार से भरी होगी।

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