साहित्य

अरे मैं इस नालायक लड़की का क्या करूं…

Karuna Rani Vlog
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* बेटा तुने अपना मायका खुद बिगाड़ा है*
” बहु सुरभि आ रही है। इस बार तुम मायके मत जाना। उसे सातवां महीना चल रहा है। वो डिलीवरी के बाद ही यहां से जाएगी “
सास ममता जी ने उत्साहित होते हुए कहा।
सुनकर बहू वैशाली के हाथ काम करते-करते रुक गए। सुरभि का नाम सुनते ही तो वैसे ही उसका मन कसैला हो जाता था। और अब तीन-चार महीने यहां रुकने आ रही है। वो भी डिलीवरी के लिए।
आखिर क्या सोचकर यहां आ रही है कि उसकी भाभी उसकी सेवा करेगी। क्योंकि सासू मां से तो काम होता नहीं था। वैशाली के चेहरे पर बदलते हुए भावों को देखकर ममता जी ने कहा
” बहू मैं मानती हूं कि तेरा सुरभि की तरफ से मन खट्टा है। पर वो इस घर की बेटी है। यहां नहीं आएगी तो कहां
जाएगी”
इससे पहले की वैशाली कुछ कहती उसकी बेटी परी रो पड़ी।
इसलिए वो उसे संभालने के लिए अपने कमरे में आ गई। और अपनी एक साल की बेटी परी को गोद में लेकर चुप कराने
लगी।
तभी उसका पति सुमित नहा कर बाथरूम से निकल कर बाहर आया।
“अरे तुम आ गई। मुझे लगा की परी अकेली है इसलिए फटाफट नहा कर निकला हूं “
सुमित ने कहा।
पर वैशाली ने कोई जवाब नहीं दिया। उसे इस तरह चुप देखकर सुमित ने पूछा,
” क्या हुआ? तुम इतनी चुप चुप क्यों हो?”
” तुमने बताया नहीं कि सुरभि आ रही है। वो भी अपनी डिलीवरी के लिए”
वैशाली के मुंह से यह सुनकर सुमित के हाथ वहीं रुक गए,
” हां, कल मम्मी कह तो रही थी कि सुरभि का सातवां महीना चल रहा है इसलिए वो डिलीवरी के लिए आएगी”
” तुम्हें लगता है मैं उसका ध्यान रख पाऊंगी? मुझसे उसकी सेवा होगी? मेरे मन में सुरभि के लिए जरा सी भी जगह नहीं है। कैसे कर पाऊंगी ये सब?”
वैशाली एक ही सांस में ये सब बोल गई।
” हां जानता हूं कि तुम ये सब नहीं कर पाओगी। बिल्कुल भी नहीं कर पाओगी। और ना ही मैं तुमसे इतना बड़ा दिल रखने
की उम्मीद करता हूं। इसीलिए मम्मी को कह दिया है कि एक मेड लगा ले। आखिर जैसी भी है बहन है मेरी। उसे आने से
इंकार तो नहीं कर सकता। आखिर मम्मी का दिल दुखाने से क्या फायदा?उन्होंने तो कुछ गलत नहीं किया था”
सुमित ने समझाया तो वैशाली ने कहा,
” मैं उसके यहां आने से मना नहीं कर रही हूं। पर याद रहे मैं उसका कोई काम भी नहीं करूंगी। मुझसे यह होगा भी नहीं। कल को भगवान ना करे अगर कुछ गलत होता है तो वो उसका इल्जाम तक मुझ पर लगा देगी “
” मैं समझ सकता हूं। पर वैशाली तुम परेशान ना हो। तुम बस परी को संभालो और घर के थोड़े बहुत काम संभाल लेना। उसे मम्मी और मेड संभाल लेंगी”
सुमित ने कह कर बात को वही खत्म कर दिया।
इधर परी को संभालते हुए वैशाली को अपने पुराने दिन याद आ गए। सुरभि शुरू से ही नकचड़ी ननद रही थी। ना ही खुद कोई मदद करती थी और ना ही मम्मी जी को मदद करने देती थी। उसके अनुसार तो हर काम बहू का होता है।
बदतमीज इतनी थी कि किसी के भी सामने कुछ भी कह देती थी। मम्मी जी और सुमित उसे खूब डांटते थे लेकिन वो
नहीं सुधरती थी। उल्टा वो उससे लड़ पड़ती थी कि वो जानबूझकर उसे डांट पड़वाती है।
जब वो प्रेग्नेंट हुई तब भी सुरभि ने उसे परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। सुमित उसके लिए कुछ भी खाने पीने
की चीज लेकर आता तो सुरभि पहले उस पर अपना हक जमा लेती। कई बार तो उसके कमरे में से खाने पीने की चीजें
उठा कर ले जाती।
ममता जी उसे खूब डांटती। पर वो थी कि सुधरने का नाम नहीं लेती।
” अरे मैं इस नालायक लड़की का क्या करूं। इसके पापा और दादी ने इसकी हर जिद पूरी करके इसे नकचड़ी और जिद्दी बनाकर रख दिया। कितना मना करती थी तो मुझसे
लड़ने को तैयार हो जाते थे। हमारी बेटी को कुछ नहीं कहोगी। पर अब वो दोनों चले गए। और इसे बिगाड़ कर मेरे माथे छोड़ गए”
लेकिन जब वैशाली को सातवां महीना चल रहा था, तब उन दिनों ममता जी के बड़े भाई की मृत्यु हो गई। अब ऐसे समय में ममता जी और सुमित को ममता जी के मायके जाना पड़ा। लेकिन ममता जी जाने से पहले सुरभि को अच्छे से समझा कर गई थी कि वैशाली को जरूरत हो तो संभाल लेना। ननद के नाते ना सही इंसान होने के नाते ही संभाल लेना।
ममता जी को दो दिन के लिए जाना था इसलिए सुरभि को सख्त हिदायत देकर गई थी कि वो दो दिन कहीं नहीं जाए। घर पर ही वैशाली के पास रहे। लेकिन सुरभि तो अपने कमरे में ही मस्त रहती। उसे वैशाली से कोई लेना देना नहीं था। सिर्फ खाना लेने के लिए बाहर आती या फिर अपने झूठे बर्तन रखने के लिए।
वैशाली अगर उसके पास उसके कमरे में जाती तो वो चिढ़ जाती। और लताड़कर उसको कमरे के बाहर निकाल देती। और अंदर से दरवाजा बंद कर लेती।
लेकिन दूसरे दिन वैशाली को सुबह से ही परेशानी थी। उसने दो-तीन बार सुरभि से कहा तो सुरभि ने कहा,
” अरे आज आज की ही तो बात है। कल भैया आ जाएंगे तो उनके साथ हाॅस्पिटल चले जाना। आज आज जैसे भी हो, सहन कर लो। मैं कहीं नहीं जाऊंगी”
कहकर वैशाली के मुंह पर ही अपने कमरे का दरवाजा बंद कर लिया। कुछ समय पश्चात वैशाली को ब्लीडिंग भी शुरू हो गई।
उसने सुरभि से फिर कहा, लेकिन सुरभि ने ना तो दरवाजा खोला और ना ही कोई और बात। आखिर थक हार कर वैशाली ने सुमित को फोन किया और अपनी स्थिति बताई।
सुनकर सुमित ने अपने दोस्त को फोन किया और उसे उसकी पत्नी के साथ अपने घर भेजा। जब तक दोस्त और उसकी पत्नी घर पर पहुंचे तब तक वैशाली की हालत ज्यादा खराब हो चुकी थी। जैसे-तैसे वो लोग उसे हाॅस्पिटल लेकर गए।
लेकिन जब अस्पताल पहुंचे तो पता चला कि बच्चा तो काफी देर पहले ही अंदर ही खत्म हो चुका है। और इस कारण से यूट्रस में इन्फेक्शन भी हो गया तो यूट्रस भी निकलना पड़ गया। वैशाली सदमे को झेल नहीं पाई। और उसके मन में सुरभि के लिए नफरत समा गई।
इसलिए जब सुरभि की शादी हुई तब भी उसने कोई उत्साह नहीं दिखाया। लेकिन उसकी हालत देखकर ममता जी और सुमित ने मिलकर यह निर्णय लिया कि वो एक बच्चा गोद ले लेंगे। इसलिए सात महीने पहले ही उन्होंने परी को गोद लिया था।
आखिर परी को गोद लेने के बाद वैशाली की हालत में कुछ सुधार हुआ। लेकिन सुरभि के लिए नफरत मन से नहीं गई।
आखिर दो दिन बाद सुरभि भी यहां आ गई। लेकिन वैशाली ना उससे बात करती और ना ही उसका कोई काम करती। और इसके लिए ममता जी और सुमित उसे कोई बंदिश
में नहीं रखते।
आखिर एक दिन सुरभि चिड़चिड़ा गई कि मेरा काम तो या मेरी मम्मी करती है या फिर नौकरानी। तब ममता जी ने उसे साफ-साफ कह दिया,
” बेटा जब तक मैं हूं, बस तब तक ही तेरा मायका है। इसके बाद उम्मीद मत करना। क्योंकि तूने अपना मायका खुद ही खत्म कर दिया। तूने कभी भाभी के लिए कुछ किया है जो
वो तुझे अपना मानेगी। उल्टा जो था तूने तो वो भी बिगाड़ दिया”
आखिर सुरभि उसके आगे कुछ कह नहीं पाई। समझ गई कि मम्मी के बाद उसे कोई झेलने वाला नहीं। पर ननद होने का घमंड इतना था कि उसने कभी भी इसके लिए वैशाली से माफी नहीं मांगी।
मौलिक व स्वरचित
✍️ लक्ष्मी कुमावत
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