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अरब डायरी : हमास की स्थापना को 35 साल : सऊदी अरब से संबंध बहाली के लिए बेचैन नेतनयाहू : तुर्किया में बम धमाका, 9 घायल!

ज़ायोनी शासन के निर्वाचित प्रधानमंत्री बिनयामिन नेतनयाहू ने सऊदी अरब के सरकारी मीडिया से बात करते हुए कहा कि सऊदी अरब से संबंधों की स्थापना उनकी विदेश नीति की प्राथमिकता है।

वर्ष 2009 से 2021 तक नेतनयाहू लगातार इस्राईल के प्रधानमंत्री रहे जिसके दौरान उन्होंने अरब देशों से इस्राईल के संबंध स्थापित करने के लिए बड़ी कोशिशें कीं मगर हाल ही में क़तर फ़ुटबाल विश्व कप प्रतियोगिता सहित अलग अलग मंचों पर साफ़ दिखाई दे रहा है कि सरकारों के रूजहान के विपरीत अरब जनता इस्राईल को किसी भी तरह स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है।

ज़ायोनी शासन ने 2020 में चार अरब देशों इमारात, बहरैन, मोरक्को और सूडान से संबंध बहाली के लिए बड़ी कोशिश की। नेतनयाहू अब एक बार फिर इस्राईल के प्रधानमंत्री बन गए हैं तो अरब देशों के साथ संबंध स्थापित करने का अपना एजेंडा आगे ले जाने की कोशिश करेंगे। सऊदी अरब के अधिकारियों के बयानों को देखकर भी यही अंदाज़ा होता है कि वे इस्राईल से संबंधों का एलान करने की चाहत रखते हैं। वैसे जानकारों का मानना है कि इस्राईल के साथ सऊदी अरब का समन्वय लंबे समय से जारी है मगर जनता के आक्रोश की वजह से वह इसका एलान करने से बच रहा है।

हाल ही में सऊदी अरब के विदेश राज्य मंत्री आदिल अलजुबैर ने स्वीकार किया कि रियाज़ और तेल अबीब के बीच काफ़ी नज़दीकी पैदा हो चुकी है और वे शांति समझौते की तरफ़ बढ़ रहे हैं मगर इसके लिए कुछ समय की ज़रूरत है।

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नेतनयाहू अगर प्रधानमंत्री चुने जाने के बाद सऊदी अरब के टीवी चैनल अलअरबिया से बात करते हैं तो यह इंटरव्यू भी अपने आप में अहम इशारा है। अलअरबिया सऊदी अरब का सरकारी टीवी चैनल है। जबकि इंटरव्यू में नेतनयाहू की बातें भी यही ज़ाहिर करती हैं।

नेतनयाहू इस्राईल और सऊदी अरब के बीच सामान्य रिश्तों की ज़रूरत पर ज़ोर देते हैं और उनका कहना है कि बहुत जल्द दोनों के बीच सामन्य रिश्ते स्थापित हो जाएंगे। सऊदी अरब को संतुष्ट करने के लिए नेतनयाहू ने अमरीकी सरकार की भी निंदा कर डाली। उन्होंने कहा कि सऊदी अरब और अन्य अरब देशों के साथ अमरीका का पारम्परिक गठबंधन फिर से मज़बूत किया जाना चाहिए इसमें किसी तरह का तूफ़ानी बदलाव नहीं होना चाहिए।

सऊदी अरब और इस्राईल के बीच अभी कूटनैतिक रिश्ते तो नहीं हैं मगर 2020 से दोनों सरकारो के बीच सहयोग तेज़ी से बढ़ रहा है। इमारात और बहरैन के साथ इस्राईल के समझौते भी सऊदी अरब की सहमति से ही हुए हैं। सऊदी अरब ने इस्राईली विमानों के लिए अपनी वायु सीमा खोली है। कहा जाता है कि कई इस्राईली अधिकारियों ने सऊदी अरब की यात्राएं भी की हैं।

Bassem Eid
@realbassemeid
·
Dec 15
More and more Arab countries are normalizing ties with Israel because of the immense economic benefits. Meanwhile, the Palestinians get left behind. Perhaps it’s time for Palestinians to normalize ties with Israel and learn to live in peace and security alongside them.

 

सऊदी अरब इस्राईल के साथ अपने सहयोग और रिश्तों का एलान करने से इसलिए हिचकिचा रहा है कि देश के भीतर और इस्लामी जगत के स्तर पर आने वाली प्रतिक्रियाओं की उसे चिंता है। क़तर फ़ुटबाल विश्व कप प्रतियोगिता में मोरक्को, ट्यूनीशिया, क़तर और बहुत सारे अरब देशों के नागरिकों ने खुलकर ज़ाहिर कर दिया कि उन्हें इस्राईल से नफ़रत है और वे फ़िलिस्तीनियों का समर्थन करते हैं। इसलिए लगता है कि सऊदी अरब इस उम्मीद में कुछ वक़्त गुज़ारना चाहती है कि इस्राईल के प्रति अरब जगत की घृणा में कुछ कमी आ जाए।

फ़िलिस्तीनियों को अपने भविष्य का फ़ैसला ख़ुद करने का अधिकार, संयुक्त राष्ट्र में पारित प्रस्ताव इस्राईल के लिए फिर एक तमाचा

संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने न्यूयार्क में बहुमत से एक प्रस्ताव शुक्रवार को पारित किया जिसमें साफ़ शब्दो में कहा गया है कि फ़िलिस्तीनियों को अपने भविष्य का फ़ैसला करने का पूरा अधिकार है।

फ़िलिस्तीनी प्रशासन के विदेश मंत्री रियाज़ मालेकी ने कहा कि इस प्रस्ताव के पक्ष में 168 वोट पड़े जबकि चाड, इस्राईल, मार्शल आईलैंड्ज़, मैक्रोनेज़िया, नार्वे और अमरीका ने इसका विरोध किया और 9 देशों ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया।

मालेकी ने कहा कि यह प्रस्ताव और इसे मिलने वाला समर्थन फ़िलिस्तीनियों के अधिकारों पर डाका डालने की कोशिशों के ख़िलाफ़ विश्व समुदाय की प्रतिक्रिया में है और यह इस्राईल के अपराधों और उल्लंघनों का मुंह तोड़ जवाब है।

संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य देशों ने मांग की कि फ़िलिस्तीनी जनता के अधिकारों का समर्थन किया जाए और इस्राईल के ग़ैर क़ानूनी क़ब्ज़े के लिए ठोस कार्यवाही की जाए।

इसी महीने महासभा फ़िलिस्तीन के पक्ष में 5 प्रस्ताव पारित कर चुकी है। यह प्रस्ताव इस मंच से हर साल पारित किए जाते हैं जो ग़ैर बाध्यकारी होते हैं।

इससे पहले संयुक्त राष्ट्र संघ ने फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ इस्राईल की हिंसा की भी कड़ी आलोचना की थी।

तुर्किया में बम धमाका 8 पुलिसकर्मियों सहित 9 घायल

दक्षिण पूर्वी तुर्किया में पुलिस की बक्तरबंदी गाड़ी पर बम हमले में 8 पुलिसकर्मियों सहित 9 लोग घायल हो गए।

मीडिया के अनुसार इस बम हमले के बाद कुर्द बहुल इलाक़े में हिंसा और अशांति की नई लहर उठने की आशंका बढ़ गई है।

स्थानीय गवर्नर के कार्यालय की ओर से जारी किए गए बयान में कहा गया है कि दियार बक्र शहर के क़रीब हतने वाले हमले में 8 पुलिस कर्मी और एक आम नागरिक घायल हो गए जबकि इलाक़े में ख़ौफ़ का माहौल है।

अधिकारियों ने कहा है कि घायलों की हालत ख़तरे से बाहर है मगर एहतियात के तौर पर उन्हें अस्पताल में एडमिट करा दिया गया है।

टेलीवीज़न फ़ुटेज में धमाके की ज़द में आने वाली सफ़ेद बस को मल्बे से भरे रोड पर खडा दिखाया गया। फ़ुटेज में बम की चपेट में आने वाली एक छोटी गाड़ी को भी दिखाया गया है। किसी संगठन ने अभी इस हमले की ज़िम्मेदारी स्वीकार नहीं की है।

धमाका तब हुआ है जब तुर्किया की ओर से उत्तरी सीरिया में कुर्द फ़ोर्सेज़ के ख़िलाफ़ हवाई हमले किए जा रहे हैं।

नवम्बर में इस्तांबूल में होने वाले हमले में कम से कम 6 लोग मार गए थे जिसके बाद राष्ट्रपति अर्दोग़ान ने उत्तरी सीरिया में नया ज़मीनी सैनिक आप्रेशन शुरू करने की धमकी दी थी।

इस्लामी प्रतिरोधी आंदोलन हमास की स्थापना को 35 साल हो गए

फ़िलिस्तीन के इस्लामी प्रतिरोधी आंदोलन हमास की स्थापना को 35 साल हो गए हैं। इस इस्लामी आंदोलन की स्थापना 14 दिसम्बर 1987 को हुई थी। इसकी स्थापना शेख़ अहमद यासीन और मुस्लिम ब्रदरहुड के कई नेताओं ने ग़ज्ज़ा पट्टी में की थी।

हमासे फ़िलिस्तीन के उन गुटों में से एक है, जिन्होंने अपनी स्थापना के बाद, इस देश के और क्षेत्रीय घटनाक्रमों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हमास संगठन प्रतिरोध और राजनीतिक मामलों में सहयोग पर विश्वास रखता है। यह आंदोलन आज ज़ायोनी शासन के ख़िलाफ़ फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध का नेतृत्व कर रहा है। यही वजह है कि यह हमेशा ही ज़ायोनी शासन और उसके पश्चिमी सहयोगियों के निशाने पर रहता है।

फ़िलिस्तीनी और क्षेत्रीय प्रतिरोध पर प्रभाव के कारण ही इस आंदोलन को अमरीका और उसके सहयोगियों ने आतंकवादी गुटों की सूचि में शामिल किया है। जबकि हमास, ज़ायोनी सरकारी आतंकवाद के प्रभावितों में से एक है और उसके कई नेताओं को ज़ायोनी शासन ने शहीद किया है। हमास को आतंकवादी गुट बताने का कारण भी यही है, ताकि इस बहाने से उसे कमज़ोर कर दिया जाए और अत्याचारों के लिए इस्राईल का रास्ता पूरी तरह से साफ़ कर दिया जाए।

इसके अलावा, ख़ुद अरब देश हमास को लेकर एकमत नहीं हैं। सऊदी अरब और यूएई का हमास से कोई संबंध नहीं है, बल्कि इन देशों ने हमास से टकराव की रणनीति अपनाई है। क़तर के हमास के साथ अच्छे संबंध हैं और दोहा हमास का खुलकर समर्थन करता है। इसका एक मुख्य कारण, हमास की विचारधारा का मुस्लिम ब्रदरहुड की विचारधारा से निकट होना है। दूसरी ओर सऊदी अरब और उसके सहयोगी यूएई इसलिए हमास का विरोध करते हैं, क्योंकि ईरान के नेतृत्व में इस्लामी प्रतिरोध इस्राईल के साथ हर प्रकार की सांठगांठ का विरोध करता है, जबकि यह देश इस्राईल के साथ सांठगांठ में विश्वास रखते हैं। यही वजह है कि हालिया वर्षों में सऊदी अरब में हमास के कई नेताओं को गिरफ़्तार किया गया है या उन्हें देश से निकाल दिया गया है।

हमास के नेता इस्माईल हनिया ने इस संगठन की स्थापनी की 35वीं वर्षगांठ पर कहा है कि हमास ने प्रतिरोध और राजनीति के बीत संबंध स्थापित किया है, इसीलिए जब हम चुनाव में जीत हासिल करते हैं तो सरकार का गठन करते हैं, जबकि प्रतिरोध को भी जारी रखते हैं। ग़ज्ज़ा पट्टी में हमास सरकार के नेतृत्व में प्रतिरोध दिन प्रतिदिन फल फूल रहा है।

पत्थर से अपने आंदोलन की शुरुआत करने वाले हमास के किन हथियारों को देखकर इस्राईल की फटी रह गईं आंखें!

फ़िलिस्तीन के प्रतिरोधक दल हमास आंदोलन की शुरुआत हुए 35 साल का समय चुका है। वर्षों से फिलिस्तीनियों का हमास के प्रति भरोसे ने इस प्रतिरोधक दल को प्रतिरोध के प्रतीक के रूप में बदल दिया है। यही कारण है कि आज भी उसी जोश और जज़्बे के साथ हमास फ़िलिस्तीनी राष्ट्र के अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहा है जैसे उसने 35 साल पहले शुरू किया था। अपने गठन के बाद से, इस प्रतिरोध आंदोलन ने सात हज़ार से अधिक शहीद दिए हैं, जिसमें इसके कई बड़े नेता भी शामिल हैं

यमन के रक्षा मंत्री की सऊदी गठबंधन को कड़ी चेतावनी

यमन के रक्षा मंत्री मुहम्मद नासिर अलआतेफ़ी ने कहा कि अगर देश के समुद्री इलाक़ों में राष्ट्रीय संप्रभुता को चुनौती देने की कोशिश की गई तो हम इसका कड़ा जवाब देंगे।

सनआ स्थिति नैश्नल सैल्वेशन सरकार के रक्षा मंत्री अलआतेफ़ी ने कहा कि बाबुल मंदब स्ट्रेट, अदन की खाड़ी और यमन के समुद्री इलाक़ों में अगर सऊदी अरब और अमरीका के गठबंधन ने कोई सैनिक गतिविधियां अंजाम दीं तो उन्हें कड़ा जवाब दिया जाएगा।

अंसारुल्लाह आंदोलन के पोलित ब्योरो के अधिकारी अली अलक़हूम ने भी कहाकि लाल सागर के इलाक़े में अमरीकी सैनिकों की उपस्थिति से समस्याएं पैदा हो सकती हैं।

इससे पहले अंसारुल्लाह आंदोलन ने कहा था कि अमरीका की सैनिक उपस्थिति के चलते यमन के समुद्री इलाक़ों में तनाव बढ़ रहा है। संगठन का कहना है कि यह अमरीका का खुला हस्तक्षेप और उल्लंघन है।