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अरब डायरी : फ़िलिस्तीनियों के आक्रोश से दहल उठा आतंकी इस्राइल, संयुक्त ने जायोनी शासन से गोलान हाइट्स से बाहर निकलने को कहा!

फ़िलिस्तीनियों के आक्रोश से दहक रहा है इलाक़ा, हालात विस्फोटक

फ़िलिस्तीनी इलाक़ों में जंग जैसे हालात बनते जा रहे हैं, इस्राईली सेना ने गुरुवार की सुबह वेस्ट बैंक के शहर जेनिन में हमला करके दो फ़िलिस्तीनियों को शहीद कर दिया। इस हमले में एक फ़िलिस्तीनी घायल हुआ और 4 को गिरफ़तार कर लिया गया।

जेहादे इस्लामी संगठन ने कहा कि शहीद होने वाले फ़िलिस्तीनी उसके दो फ़ील्ड कमांडर थे। इस्राईली सैनिक सुबह के समय जेनिन में जब कुछ फ़िलिस्तीनियों को गिरफ़तार करने के लिए पहुंचे तो वहां झड़पें शुरू हो गईं।

फ़िलिस्तीन के स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि इस झड़प में दो फ़िलिस्तीनी शहीद हुए। जेहादे इस्लामी संगठन ने कहा है कि शहीद होने वाले दोनों युवा उसके कमांडर थे जो इस्राईली सैनिकों से लड़ते हुए वीर गति को प्राप्त हुए।

संगठन ने कहा है कि दोनों कमांडरों के क़त्ल का बदला ज़रूर लिया जाएगा और इस्राईल के इन हमलों से हमारा प्रतिरोध का जज़्बा कमज़ोर नहीं होगा।

दो फ़िलिस्तीनी युवाओं की शहादत के बाद दो दिन के भीतर इस्राईली हमलों में शहीद होने वाले फ़िलिस्तीनियों की संख्या 8 हो गई है जबकि इस बीच इस्राईली सैनिक बार बार फ़िलिस्तीनी इलाक़ों पर छापे मार रहे हैं।

इस्राईली सेना कई महीने से वेस्ट बैंक के जेनिन और नाबलुस शहरों पर हमले कर रही है जहां इस्राईल के ख़िलाफ़ प्रतिरोध बहुत तेज़ी से मज़बूत हो रहा है।

संयुक्त राष्ट्रसंघ ने जायोनी शासन का आह्वान किया है कि वह सीरिया की गोलान हाइट्स से बाहर निकल जाये।

संयुक्त राष्ट्रसंघ की महासभा ने सीरिया की गोलान हाइट्स के बारे में बहुमत से एक प्रस्ताव पारित किया और जायोनी शासन से इस अवैध अधिकृत क्षेत्र से निकल जाने की मांग की।

समाचार एजेन्सी तसनीम की रिपोर्ट के अनुसार राष्ट्रसंघ की महासभा ने एक प्रस्ताव पारित करके बल दिया है कि जायोनी शासन सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव नंबर 497 के प्रति कटिबद्ध नहीं रहा है। इस प्रस्ताव के अनुसार जायोनी शासन को अपने अंदर के कानूनों को इस क्षेत्र पर थोपने से परहेज़ करना चाहिये।

सीरिया की गोलान हाइट्स के बारे में राष्ट्रसंघ की महासभा के प्रस्ताव के पक्ष में 92 वोट पड़े जबकि नौ वोट इसके विरोध में पड़े और 65 देशों ने वोटिंग में भाग ही नहीं लिया। जायोनी शासन ने 14 दिसंबर वर्ष 1981 को सीरिया की गोलान हाइट्स को अवैध अधिकृत फिलिस्तीन में विलय का निर्णय किया था परंतु राष्ट्रसंघ की महासभा के इस प्रस्ताव ने इस्राईल के फैसले को निरस्त और प्रभावहीन बताया और बल देकर कहा है कि राष्ट्रसंघ के प्रस्ताव नंबर 497 के अनुसार इस्राईल के इस कदम का कोई महत्व नहीं है।

इसी प्रकार राष्ट्रसंघ की महासभा के इस प्रस्ताव ने जायोनी शासन से मांग की है कि वह सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव को व्यवहारिक बनाये और सीरिया की गोलान हाइट्स से पीछे हट जाये और 1967 में जहां पर था वह वहां तक पीछे हट जाये। सीरिया के दक्षिण पश्चिम में स्थित क़ुनैतरा इस देश का एक प्रांत है और जायोनी शासन ने वर्ष 1967 में 6 दिवसीय युद्ध के दौरान इस प्रांत के बड़े भाग पर अतिग्रहण कर लिया था और जायोनी शासन ने 14 दिसंबर 1981 को इस प्रांत के बड़े भाग का ग़ैर कानूनी रूप से अवैध अधिकृत फिलिस्तीन में विलय कर लिया था परंतु विश्व समुदाय ने कभी भी इस्राईल के इस ग़ैर कानूनी कदम को मान्यता प्रदान नहीं की।

जायोनी शासन ने वर्ष 1967 में मिस्र, सीरिया और जार्डन से 6 दिवसीय जंग की थी और उस जंग में उसने सीरिया की गोलान हाइट्स पर ग़ैर कानूनी ढंग से कब्ज़ा कर लिया था। वर्ष 1967 में होने वाली जंग 6 दिवसीय या रमज़ान जंग के नाम से मशहूर है। उस 6 दिवसीय जंग में जायोनी शासन के युद्धक विमानों ने अचानक मिस्र से अपना हमला आरंभ किया और गज्जा पट्टी, सीना मरूस्थल, पूर्वी बैतुल मुकद्दस, जार्डन नदी के पश्चिमी किनारे और सीरिया की गोलान हाइट्स पर कब्ज़ा कर लिया था।

संयुक्त राष्ट्रसंघ की महासभा में पारित होने वाले प्रस्ताव के कुछ बिन्दु ध्यान योग्य हैं।

पहला बिन्दु यह है कि यह प्रस्ताव बहुमत से पारित हुआ है जो इस बात का परिचायक है कि अधिकांश देश इस्राईली अतिग्रहण के खिलाफ हैं और वे चाहते हैं कि इस्राईल राष्ट्रसंघ के प्रस्ताव पर अमल करे। इसी प्रकार राष्ट्रसंघ की महासभा में पारित होने वाले प्रस्ताव में इस्राईल का आह्वान किया गया है कि वह सीरिया की गोलान हाइट्स से बाहर निकल जाये और 14 दिसंबर वर्ष 1981 का उसके फैसले का कोई महत्व नहीं है। सवाल यह पैदा होता है कि क्या वजह है जिसके कारण जायोनी शासन राष्ट्र के प्रस्तावों पर अमल नहीं करता है? उसके जवाब में बहुत से टीकाकारों का कहना है कि अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोप और पश्चिमी देश जायोनी शासन का व्यापक समर्थन कर रहे हैं और उनका यही समर्थन इस बात का का मुख्य कारण है कि इस्राईल राष्ट्रसंघ के प्रस्तावों पर अमल नहीं करता और जब तक मानवाधिकारों की रक्षा का दम भरने वाले देशों का इस्राईल को समर्थन और आशीर्वाद प्राप्त रहेगा तब तक जायोनी शासन के ग़ैर कानूनी कृत्यों पर विराम नहीं लगेगा।

अरब जवानों ने इस्राईल को जड़ा ज़ोरदार तमाचा

इस्राईली विदेश मंत्रालय की निर्लज्जता की यह हद है कि उसने क़तर सरकार और फ़ीफ़ा को दोहा में अस्थाती रूप से मौजूद अपनी कूटनैतिक प्रतिनिधिमंडल के ज़रिए आपत्ति का पत्र भेजा है क्योंकि क़तर में फ़ुटबाल वर्ल्ड कप के संदर्भ में मौजूद इस्राईल मीडिया टीमों और तमाशबीनों को अरब फ़ुटबाल प्रेमियों के हाथों बड़ी बेइज़्जती उठानी पड़ गई।

इस्राईल ने मांग की है कि इस्राईली मीडिया और तमाशबीनों को सुरक्षित माहौल में आने जाने और अपना काम करने की अनुमति दी जाए।

यह इस्राईल का घमंड ही है वरना उसे तो इसी पर आभारी होना चाहिए था कि वे एक अरब देश की धरती पर क़दम रखने पा रहे हैं क्योंकि वर्ल्ड कप की मेज़बान होने के नाते क़तर सरकार को मजबूरन उन्हें अपने यहां मैच देखने आने की अनुमति देनी पड़ी। दूसरी बात यह है कि अरबों और मुसलमानों ने दोहा में उन्हें बड़े सभ्य अंदाज़ में न कहा, मारा पीटा नहीं। अरब व मुस्लिम युवाओं ने बस यह किया कि इस्राईली पत्रकारों के सामने फ़िलिस्तीन का राष्ट्र ध्वज उठा लिया और इशारे किए। दूसरी बात यह है कि जब इस्रईली पत्रकारों को वहां कैमरा लगाने की अनुमति मिल गई है तो इससे ज़्यादा उन्हें और क्या चाहिए। इस्राईली तो वे लोग हैं जिन्होंने फिलिस्तीन में हर तरह की आज़ादी को कुचल डाला है। वे तो पत्रकारों और आम नागरिकों की टारगेट किलिंग करते हैं, शीरीन अबू आक़ेला की हत्या तो बिल्कुल हाल ही की घटना है।

क्या इस्राईली मीडिया को यह उम्मीद हो चली थी कि अरब व मुसलमान युवा ताली बजाकर उनका मनोबल बढ़ाते?! अरब व मुस्लिम युवाओं ने जो पैग़ाम भेजना चाहता वो भेज दिया। उन्होंने कह दिया कि तुम सब क़ातिल हो, तुम्हारी हुकूमतें युद्ध अपराध कर रही हैं और हमें तुम्हारा रवैया बर्दाश्त नहीं है, हम तुम्हें किसी भी अरब इलाक़े में नहीं देखना चाहते।

इस्राईल की सरकार हो या जनता उन्हें यह भारी ग़लत फ़हमी हो गई थी कि फ़ार्स खाड़ी के अरब देश उनके मित्र बन गए है। उन्होंने कुछ अरब देशों के साथ अब्राहम समझौता कर लिया और कुछ अरब देशों की राजधानियों में अपने दूतावास खोल लिए तो उन्हें लगा कि अब तो सब उन्हें हाथों हाथ लेंगे। इस्राईलियों को यह पता ही नहीं कि जिन सरकारों ने उनसे दोस्ती की है वो जनता की भावनाओं का सही प्रतिनिधित्व नहीं कर रही हैं।

हमें तो इस पर ताज्जुब है कि इस्राईलियों को यह देखकर हैरत हो रही है कि फ़िलिस्तीन और फ़िलिस्तीनियों के लिए अरब जगत में भारी समर्थन पाया जाता है। इस्राईली तो दावा करते हैं कि उनके पास बड़े अच्छे थिंक टैंक हैं और इंटेलीजेन्स नेटवर्क भी बहुत सटीक काम करता है। उन्हें पूरे अरब जगत की हर छोटी बड़ी घटना की पूरी जानकारी होती है। अमली तौर पर तो यह साबित हुआ कि इस्राईली अंधेरे में हैं।

इस्राईल की सरकार और जनता अरब देशों की इंटैलीजेन्स द्वारा बिछाए गए जाल में फंस गई। इन एजेंसियों ने इस्राईली अधिकारियों को अरबों का ख़ास लिबास तोहफ़े के तौर पर भेजा तो उन्हें लगा कि अब हालात पूरी तरह बदल गए हैं। उन्हें यह पता ही नहीं चला कि जो लोग उनसे मिल रहे हैं और तोहफ़े दे रहे हैं वे आम अरब नागरिक नहीं इंटेलीजेन्स के एजेंट और अफ़सर हैं।

इस्राईल की सरकार और जनता को पैग़ाम पहुंच चुका है कि इस्राईल के ख़िलाफ़ आक्रोश और नफ़रत की ज्वाला भड़क रही है और जैसे जैसे फ़िलिस्तीन में वेस्ट बैंक के इलाक़े और दूसरे इलाक़ों में फ़िलिस्तीनियों का प्रतिरोध बढ़ रहा है इस्राईल के ख़िलाफ़ नफ़रत तेज़ हो रही है।

आख़िर में हम यही कहेंगे कि इस्राईल अरब सरकारों के साथ जिस तरह का चाहे समझौता कर ले अरब जनता हरगिज़ इस्राईल को स्वीकार नहीं करेगी। क़तर में एक तमाशबीन ने अरबी में यह नारा लगायाः यल्ला यल्ला यल्ला, इस्राईली बर्रा। यानी फ़ौरन, फ़ौरन फ़ौरन इस्राईली यहां से फूट लो। यही आवाज़ सारी अरब जनता की है।

अब्दुल बारी अतवान

अरब जगत के विख्यात लेखक व टीकाकार