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अरब डायरी : आतंकी इस्राईल के हमले में 26 फ़िलिस्तीनी शहीद और घायल, अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है इस्राईल!

नाबलस में आतंकी ज़ायोनी सैनिकों के साथ संघर्ष में 26 फ़िलिस्तीनी शहीद और घायल हो गए हैं।

प्राप्त रिपोर्ट के मुताबिक़, फ़िलिस्तीन के स्वास्थ्य मंत्रालय ने घोषणा की है कि नाबलस में अवैध ज़ायोनी शासन के आतंकी सैनिकों के साथ होने वाली झड़पों में 4 फ़िलिस्तीनी शहीद और 22 अन्य घायल हो गए हैं। शहीद होने वालों में इस्लामिक प्रतरोधक बल ओरिनुल असवद के युवा कमांडर वदीउल हौज भी शामिल हैं। वहीं घायलों में 4 की स्थिति गंभीर बनी हुई है। इस बीच इस्राईली मीडिया ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि नाबलस में होने वाली झड़पें काफ़ी भीषण थीं जिसमें काफ़ी ख़ून बहा है।

उल्लेखनीय है कि रविवार की सुबह भी प्रतिरोधक बल ओरिनुल असवद के एक और युवा कमांडर तामिर अलकलाई को भी आतंकी इस्राईली सैनिकों ने मोटरसाइकिल में चुम्बक बम के ज़रिए शहीद कर दिया था। वहीं इस्राईली अधिकारी और उसकी आतंकी सेना फ़िलिस्तीन के उभरते हुए प्रतिरोधक बल ओरिनुल असवद के जियालों के जोश और जज़्बे को देखकर भयभीत दिखाई दे रहे हैं। ज़ायोनी मीडिया भी इस नए प्रतिरोधक बल को अवैध शासन के लिए सबसे बड़ा ख़तरा मान रही है।

इस्राईल से हाथ मिलाने वाले अरब देशों के पीछे की कहानी आई सामने, नेतनयाहू ने सऊदी अरब के चेहरे से उठाई नक़ाब

अवैध ज़ायोनी शासन के भूतपूर्व प्रधानमंत्री ने दावा किया है कि इस्राईल और कुछ अरब देशों के बीच सऊदी अरब के ग्रीन सिग्नल के बाद ही संबंध स्थापित हुए हैं।

समाचार एजेंसी इर्ना की रिपोर्ट के मुताबिक़, अवैध ज़ायोनी शासन के भूतपूर्व प्रधानमंत्री बिनयामिन नेतनयाहू ने हाल ही में अपने एक बयान में एक राज़ से पर्दा उठाते हुए कहा कि मैं आज एक चीज़ स्वीकार करना चाहता हूं और वह यह है कि आज जो कुछ अरब देशों के साथ तेलअवीव के संबंध स्थापित हुए हैं वह केवल और केवल आले सऊद शासन के ग्रीन सिग्नल की वजह से ही संभव हो पाया है। नेतनयाहू ने कहा कि वर्ष 2018 में वर्ष 2020 में इब्राहीम नामक समझौता होने से पहले सऊदी अरब ने हमारे लिए अपनी वायु सीमा खोल दी थी जिसकी वजह से हम फ़ार्स की खाड़ी के देशों की आसानी से यात्रा कर सके। उन्होंने कहा कि सऊदी अरब की सहमति के बिना अरबों के साथ समझौता किसी भी तरह से संभव नहीं था। नेतनयाहू ने कहा कि रियाज़ पूरी तरह तेलअवीव के साथ संबंध समान्य करने के लिए तैयार है और मुझे आशा है कि इसपर जल्द ही दोनों पक्ष फ़ैसला ले लेंगे।

ग़ौरतलब है कि वर्ष 2020 में अमेरिका के दबाव और मध्यस्था से चार अरब देशों, जिनमें संयुक्त अरब इमारात, बहरैन, सूडान और मोरक्को शामिल हैं, ने इस्राईल द्वारा फ़िलिस्तीनियों पर किए जाने वाले अपराधों और अत्याचारों की अन्देखी करते हुए तेलअवीव के साथ अपने संबंधों को समान्य कर लिया था। इस बीच जानकारों का मानना है कि जिस तरह बाइडन प्रशासन लगातार इस प्रयास में है कि रियाज़ और तेलअवीव के संबंध आधिकारिक तौर पर समान्य हो जाएं, उससे वह दिन दूर नहीं है कि जब सऊदी अरब अवैध ज़ायोनी शासन के साथ अपने संबंधों को स्थापित करने की घोषणा कर दे।

अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है इस्राईल

हमारी एक मित्र जर्नलिस्ट हैं जो बर्लिन में काम करती हैं मुझे यह संदेश भेजा कि इन दिनों बर्लिन में जो चीज़ बहुत ज़्यादा नज़र आ रही है वह हालिया महीनों में सैकड़ों की संख्या में इस्राईलियों का जर्मनी पलायन है। इस्राईल की ख़तरनाक सुरक्षा स्थिति के कारण यह लोग वहां से भागकर जर्मनी में शरण ले रहे हैं। यह लोग ज़ायोनिस्ट मूवमेंट को बहुत बुरा भला कह रहे हैं जिसने उनके पूर्वजों के धोखा देकर फ़िलिस्तीन में बसने के लिए तैयार किया।

हमारी मित्रा का यह पैग़ाम अरीनल उसूद नाम के फ़िलिस्तीनी संगठन के हमलों के चर्चा में आने से पहले भेजा था। इस संगठन ने जिसका ठिकाना जेनीन और नाबलुस नगर हैं एक महीने के भीतर फ़ायरिंग की 34 घटनाएं अंजाम दीं और अकतूबर महीने में शायद हमलों की संख्या दुगनी हो जाएगी।

इस्राईली सेना ने रविवार को अरीनल उसूद संगठन के कमांडर तामिर अलकैलानी की हत्या मैगनेट बम के धमाके से की जिसे फ़िलिस्तीनी कमांडर की मोटरसाइकिल में लगाया गया था। संगठन ने कहा है कि वह अपने कमांडर का बदला ज़रूर लेगा और इसमें ज़्यादा समय नहीं लगेगा।

दूसरी ओर बैतुल मुक़द्दस या यरुश्लम में एक फ़िलिस्तीनी युवा ने एक इस्राईली पर चाक़ू से हमला कर दिया जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो गया। इस्राईली सेना ने स्वीकार किया है कि उसने तीन सैनिक शाफ़ात शिविर में फ़िलिस्तीनियों के साथ होने वाली झड़प में घायल हो गए। उदै तमीम नाम का फ़िलिस्तीनी जांबाज़ इसी जगह पैदा हुआ था जिसने अपने हमले से पूरे इस्राईल में दहशत पैदा कर दी थी।

फ़िलिस्तीनी जांबाज़ों ने अपने हमलों के ज़रिए पैग़ाम दे दिया है कि ओस्लो समझौते का अब कोई अर्थ नहीं रह गया है। अब पूरे फ़िलिस्तीन में प्रतिरोध की नई लहर उठती दिखाई देती है।

सैकड़ों की संख्या में इस्राईलियों के फ़रार होकर जर्मनी में शरण लेने वाला हमारी महिला पत्रकार का संदेश और फ़िलिस्तीन के ताज़ा हालात देखकर चार हक़ीक़तें बिल्कुल साफ़ हो जाती हैं,

एक तो यह कि इस्राईली युनिवर्सिटी के सामरिक मामलों के जाने माने प्रोफ़ेसर मार्टिन वान कार्फ़ील्ड ने अपने एक शोध में लिखा कि इस्राईली सेना का बिखराव ऊपर से नीचे तक बुरी तरह जारी है। सैनिक नशीले पदार्थों और हथियारों के व्यापार में लिप्त हैं। फ़िलिस्तीनियों से जारी लड़ाई के नतीजे में इस्राईल जल्द ही मिट जाएगा।

दूसरी बात यह कि इस्राईली मंत्रालय ने अपने एक अध्ययन में यह पाया कि 2021 की शुरुआत तक सात लाख बीस हज़ार यहूदी इस्राईल छोड़कर जा चुके हैं और इस संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। इस्राईली इतिहासकार बेनी मोरीस का कहना है कि कुछ ही बर्सों में अरबों और मुसलमानों को जीत मिल जाएगी और यहूदी अल्पसंख्यक बन जाएंगे। इस बीच वे यहूदी ख़ुश क़िस्मत होंगे जो भागकर अमरीका या यूरोप में शरण ले लेंगे।

तीसरी बात यह है कि इस्राईल के पूर्व मंत्री गृह मंत्री और संसद नेसेट के अध्यक्ष अब्राम बर्ग ने वाशिंग्टन पोस्ट में एक लेख लिखा जिसमें उन्होंने कहा कि इस्रामल ज़ायोनिज़्म के सपने की समाप्ति की कगार पर खड़ा है। उन्होंने इस्राईलियों से कहा कि जल्दी किसी अन्य देश का पासपोर्ट ले लें जैसे मैंने फ़्रांस का पासपोर्ट ले लिया है।

चौथी बात यह है कि इस्राईली पत्रकार आरी शावीत ने हाआरेट्ज़ अख़बार में अपने लेख में लिखा कि जब ज़ायोनी आकर फ़िलिस्तीन में बसे तो उन्हें पता चल गया कि वे ज़ायोनिस्ट मूवमेंट के झांसे में आ गए हैं जिसने उन्हें यह कहकर फ़िलिस्तीन में बसाया कि इसी ज़मीन का वादा यहूदियों से ईश्वर ने किया था। इस्राईलियों को अब अच्छी तरह आभास है कि फ़िलिस्तीन में उनका कोई भविष्य नहीं है और यह ज़मीन उनकी हरगिज़ नहीं है।

अब्दुल बारी अतवान

अरब जगत के जाने माने लेखक व टीकाकार जो फ़िलिस्तीनी मूल के हैं।

अरब संघ की बैठक में क्यों नहीं भाग लेंगे बिन सलमान?

अलजीरिया का कहना है कि डाक्टरों के परामश् की वजह से बिन सलमान अरब संघ के शिखर सम्मेलन में भाग नहीं लेंगे।

अलजीरिया के राष्ट्रपति भवन ने एक बयान में कहा कि सऊदी क्राउन प्रिंस ने डाक्टरों की सलाह की वजह से अरब संघ के शिखर सम्मेलन में भाग लेने से मना कर दिया है।

फ़ार्स न्यूज़ एजेन्सी की रिपोर्ट के अनुसार अलजीरिया के राष्ट्रपति के कार्यालय ने एक बयान में सऊदी क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान और अलजीरिया के राष्ट्रपति अब्दुल मजीद तबून के बीच टेलीफ़ोनी वार्ता की सूचना दी है।

अलख़लीज आन लाइन वेब साइट के अनुसार इस बयान में कहा गया है कि बिन सलमान ने इस टेलीफ़ोनी वार्ता में कहा कि वह अगले सप्ताह अलजीरिया में होने वाले अरब संघ के शिखर सम्मलेन में भाग नहीं ले सकते जिसकी वजह से डाक्टर्ज़ हैं जिन्होंने यात्रा से बचने की सलाह दी है।

अलअरबी अलजदीद वेब साइट ने भी अलजीरिया के सूत्रों के हवाले से बताया कि अब्दुल मजीद तबून और बिन सलमान के बीच टेलीफ़ोनी वार्ता में इस बात पर सहमति हुई है कि सऊदी क्राउन प्रिंस की अनुपस्थिति का एलान अअलजीरिया की ओर से किया जाएगा ताकि उनके कथनानुसार बिन सलमान जिस हालत में हैं और जिससे वह गुज़र रहे हैं, उसके ब्योरा और विवरण से बचा जा सके और इस ख़बर का एलान अलजज़ाएर ही करे।

इस्राईल के मुक़ाबले में लेबनान की ऐतिहासिक जीत

लेबनान के इस्लामी प्रतिरोधी संगठन हिज़्बुल्लाह की केन्द्रीय परिषद के एक सदस्य का कहना है कि लेबनान, एक ऐतिहासिक जीत की ओर बढ़ रहा है।

पिछले हफ़्ते लेबनान और इस्राईल के बीच समुद्री सीमांकन को लेकर एक समझौता हुआ था।

इस संदर्भ में हिज़्बुल्लाह के नेता शेख़ नबील क़ाऊक़ का कहना था कि इस्राईल के साथ समुद्री सीमांकन समझौते में लेबनान की सभी मांगों को पूरा किया गया है और यह बेरूत के लिए एक रणनीतिक और ऐतिहासिक सफलता है।

क़ाऊक़ का कहना था कि सिर्फ़ बातचीत से पिछले 11 वर्षों से कोई नतीजा नहीं निकल सका था, यहां तक कि लेबनान का एक मीटर समुद्री इलाक़ा भी आज़ाद नहीं हो सका था, लेकिन जैसे ही हिज़्बुल्लाह के ड्रोन विमानों ने कैरीश गैस फ़ील्ड के ऊपर उड़ान भरी, समीकरण बदल गया और लेबनान की मांगों को पूरा किया गया।

उन्होंने कहा कि इस्राईल के नेता और सैन्य अधिकारी हिज़्बुल्लाह की सफलता को स्वीकार कर रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद देश में ही कुछ लोग उसकी उपलब्धियों को नकार रहे हैं, क्योंकि वे हिज़्बुल्लाह की सफलताओं से नाराज़ हैं और निराश हैं।

सीरिया से आतंकवादी कर रहे हैं यूक्रेन का रुख़

तुर्की से नज़दीक माने जाने वाले आतंकवादी सीरिया से रूस के विरुद्ध युद्ध करने यूक्रेन जा रहे हैं।

सीरिया के संचार माध्यमों के अनुसार इस देश के इदलिब प्रांत में सक्रिय वे आतंकवादी जिनकी तुर्की से निकटता बताई जाती है वे रूस के विरुद्ध लड़ाई के लिए यूक्रेन पहुंच रहे हैं। इन आतंकी गुटों को तुर्की और अमरीका का समर्थन हासिल है।

अलवतन समाचार पत्र ने तुर्की के सूत्रों के हवाले से बताया है कि अलक़ाएदा से संबन्ध रखने वाले दसियों आतंकवादी, रूस के विरुद्ध युद्ध करने के लिए यूक्रेन जा चुके हैं। फिलहाल 70 आतंकी स्वेच्छा से लड़ने के लिए यूक्रेन गए हैं।

नुस्रा फ्रंट के प्रमुख अबूमुहम्मद अलजौलानी ने आतंकवादियों को यूक्रेन जाने के लिए प्रेरित करते हुए कई बड़े-बड़े वादे किये हैं। यूक्रेन जाने वाले आतंकवादियों में से अब्दुल हकीम अश्शीशानी भी शामिल है जो सरबाज़ाने क़फ़क़ाज़ नामक गुट का मुखिया है।

याद रहे कि इससे पहले इस बारे में कई रिपोर्टें मिल चुकी हैं कि सीरिया से बड़ी संख्या में आतंकवादी, अफ़ग़ानिस्तान भेज गए हैं। इसी के साथ सीरिया से कई आतंकी इराक़ भी पहुंचे जहां पर उन्होंने आतंकी कार्यवाहियां अंजाम दीं।