अमेरिकी यात्रा पर जा रहे हैं प्रधानमंत्री, मणिपुर हिंसा पर विदेशी मीडिया और अमेरिकी अख़बार द न्यूयॉर्क टाइम्स की विस्तृत रिपोर्ट देखें!
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महीने भर से ज़्यादा समय से मणिपुर में हिंसा और तनाव जारी है. अब तक 100 से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. हज़ारों लोग विस्थापित हुए हैं. इस दौरान घरों से लेकर चर्च तक आग के हवाले कर दिए गए.
बीते बुधवार को राज्य के एक गांव में संदिग्ध चरमपंथी हमले में नौ लोगों की मौत हो गई थी.
ये हिंसा मैतेई लोगों के प्रभाव वाले इम्फ़ाल ईस्ट ज़िले और जनजातीय बहुल कांगपोकी ज़िले की सीमा पर हुई थी.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़, ताज़ा घटनाक्रम में हिंसक भीड़ ने बीजेपी नेताओं के घर पर हमला किया.
https://www.youtube.com/watch?v=J8Oi_7lfqO8
भीड़ ने बीजेपी विधायक बिस्वजीत के घर में आग लगाने की कोशिश की लेकिन सुरक्षाबलों ने भीड़ को तितर-बितर कर दिया.
इसके अलावा भीड़ ने इम्फ़ाल पश्चिम में बीजेपी कार्यालय और इम्फ़ाल में पोरमपेट के करीब बीजेपी नेता शारदा देवी के घर में तोड़फोड़ करने की कोशिश की.
इससे पहले गुरुवार की रात इम्फ़ाल के कोंगबा में उपद्रवियों ने केंद्रीय विदेश राज्यमंत्री आरके रंजन सिंह के घर को आग लगा दी थी.
घटना के वक्त केंद्रीय मंत्री सिंह अपने घर पर नहीं थे. मीडिया से बातचीत में मंत्री आरके रंजन सिंह ने कहा था कि मणिपुर में कानून व्यवस्था पूरी तरह से विफल हो चुकी है.
इसके अलावा बीते दिनों दिल्ली के जंतर-मंतर पर कुकी और मैतेई समुदाय के लोगों ने मणिपुर में शांति बहाली के लिए विरोध प्रदर्शन किया था.
https://www.youtube.com/watch?v=XUUu2eAzIXc
बीते कुछ दिनों से भारतीय मीडिया में मणिपुर हिंसा को लेकर ख़बरें लिखी जा रही हैं.
अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी मणिपुर हिंसा से जुड़ीं ख़बरें प्रमुखता से आ रही हैं. विदेशी मीडिया संस्थानों ने ज़मीनी हालात बयान करने के साथ ये भी जिक्र किया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अब तक इस मामले पर कुछ नहीं कहा है.
समाजार एजेंसी रॉयटर्स ने लिखा है कि हिंसा प्रभावित मणिपुर राज्य में भारतीय मंत्री के घर में आग लगा दी गई है.
अधिकारियों के हवाले से एजेंसी ने लिखा कि भारत के पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में एक केंद्रीय मंत्री के घर को भीड़ ने आग लगा दी.
मणिपुर एक महीने से अधिक समय से प्रतिद्वंद्वी जातीय समूहों के सदस्यों के बीच संघर्ष से प्रभावित है.
रॉयटर्स ने अपनी रिपोर्ट में विदेश राज्यमंत्री के करीबी का बयान भी छापा है, जिसमें कहा गया है, “सौभाग्य से घर पर हमले में कोई भी केयरटेकर या परिवार का सदस्य घायल नहीं हुआ है.”
एजेंसी ने लिखा कि सिंह मैतेई समुदाय से हैं और अब तक किसी भी संगठन ने उनके घर पर हुए हमले की जिम्मेदारी नहीं ली है.
https://www.youtube.com/watch?v=8_vEOvERDIc
अमेरिकी अख़बार द न्यूयॉर्क टाइम्स ने घटना पर एक विस्तृत रिपोर्ट की है.
रिपोर्ट का शीर्षक है – ‘उभरते हुए भारत के, एक सुदूर क्षेत्र में, एक रक्तरंजित युद्ध क्षेत्र भी है.’
द न्यूयॉर्क टाइम्स लिखता है, ”भारत, दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश और सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था, अब एक युद्ध क्षेत्र का स्थल भी बन गया है क्योंकि दूरदराज़ के पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में हफ्तों तक चली जातीय हिंसा ने लगभग 100 लोगों की जान ले ली है.”
” हज़ारों सैनिकों को हिंसा रोकने के लिए भेजा गया है, जो चीन से लगी सीमा समेत भारत के अन्य हिस्सों में तैनात थे.”
”35 हज़ार से अधिक लोग शरणार्थी बन गए हैं, जिनमें से कई अस्थायी शिविरों में रह रहे हैं. इंटरनेट सेवा में कटौती कर दी गई है. भारत सरकार की रणनीति और यात्रा प्रतिबंधों ने बाहरी दुनिया के लिए राज्य की वर्तमान परिस्थितियों को देखना मुश्किल बना दिया है.”
‘हिंसा के बीच एक नया आंदोलन’
जर्मन मीडिया संस्थान डॉयचे वेले ने मणिपुर हिंसा पर ‘समुदायों को विभाजित करती मणिपुर की जनजातीय हिंसा’ शीर्षक से रिपोर्ट प्रकाशित की है.
डॉयचे वेले ने लिखा, ”मणिपुर में हिंसा की घटनाएं तब शुरू हुईं जब इस साल अप्रैल के महीने में हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को मणिपुर के बहुसंख्यक मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजातियों के समक्ष अधिकार देने पर विचार करने के लिए कहा था.”
रिपोर्ट में दावा किया गया है, “मैतेई लोगों को हिंसा के बाद सरकार और सुरक्षा बलों पर विश्वास नहीं है.”
मैतेई महिलाएं असम राइफल्स (सुरक्षा बल) को अपने गांव में आने से रोक रही हैं क्योंकि उनका आरोप है कि सुरक्षा बल कुकी लोगों से मिले हुए हैं.
डॉयचे वेले ने रिपोर्ट में हिंसा के बीच एक नए आंदोलन का भी ज़िक्र किया है.
आंदोलन के बारे में जानकारी देते हुए बताया गया, ”चुराचांदपुर की पहाड़ियों में एक नया आंदोलन जोर पकड़ रहा है. पूरे ज़िले में चुराचांदपुर नाम को साइन बोर्डों से हटाया जा रहा है और इसे ‘लमका’ से बदला जा रहा है.”
”स्थानीय लोग, मुख्य रूप से कुकी और अन्य पहाड़ी जनजातियों का कहना है कि वे लोग अब मैतेई राजा चुराचंद सिंह के साथ जुड़े नहीं रहना चाहते हैं, जिनके नाम पर इस जगह का नाम रखा गया है. उनका कहना है कि वे अब मूल नाम पर लौट रहे हैं. यह कुकी और मैतेई के बीच गहराते विभाजन का संकेत हैं. कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं है.”
शवों की पहचान मुश्किल अमेरिकी मीडिया संस्थान सीएनएन ने मणिपुर की हालिया हिंसा में 11 लोगों की मौत की बात कही है.
सीएनएन ने लिखा, ”भारत के पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में जातीय हिंसा के ताज़ा मामले में 11 लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी गई और 14 लोग घायल हुए.”
सीएनएन का कहना है कि सरकार ने हिंसा रोकने के प्रयास में इंटरनेट सेवाएं बंद कर दीं और आवागमन को सीमित कर दिया.
रिपोर्ट में कहा गया है, “सरकार के इन फैसलों से राज्य के लगभग 30 लाख लोग देश के बाकी हिस्सों से कट गए हैं.”
रिपोर्ट में डॉक्टरों के बयानों को भी शामिल किया गया है जिनका कहना है कि इस भयावह हिंसा के बाद लोगों के शवों की पहचान करना भी मुश्किल हो रहा है.
इसके अलावा सीएनएन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हिंसा पर कुछ न कहने और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के मणिपुर दौरे का ज़िक्र भी रिपोर्ट में किया है.
अब तक किसने क्या कहा?
मणिपुर हिंसा पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी पर सवाल उठाया है.
राहुल गांधी ने ट्वीट कर लिखा, ”भाजपा की नफरत की राजनीति ने मणिपुर को 40 से अधिक दिनों तक जलाए रखा, जिसमें सौ से अधिक लोग मारे गए.”
”पीएम भारत को फेल कर चुके हैं और पूरी तरह खामोश हैं. हिंसा के इस चक्र को समाप्त करने और शांति बहाल करने के लिए राज्य में एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजा जाना चाहिए.”
”आइए इस ‘नफ़रत का बाज़ार’ को बंद करें और मणिपुर में हर दिल में ‘मोहब्बत की दुकान’ खोलें”
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने स्थिति को चिंताजनक बताते हुए ट्वीट किया और लिखा,
”मणिपुर की स्थिति पूरे देश के लिए चिंता का विषय है. शायद, शांति बहाल करने के लिए बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है.”
खमेनलोक में नौ लोगों की मौत के बाद मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने अपराधियों पर कड़ी कार्रवाई की बात कही है.
उन्होंने कहा, “अपराधियों को पकड़ने के लिए अर्धसैनिक बलों और मणिपुर पुलिस की एक टीम द्वारा कुरंगपत और येंगांगपोकपी सहित विभिन्न स्थानों पर तलाशी अभियान चलाया गया है. इस तरह के जघन्य अपराध में शामिल लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी.”
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मणिपुर हिंसा की निंदा की है.
अखिलेश यादव ने कहा, ”हिंसा की संस्कृति वो आग होती है, जो जब फैलती है तो पलटकर वार करती है. हिंसा के विचार और व्यवहार का प्रचार-प्रसार करने वालों की चतुर्दिक निंदा होनी चाहिए.”
भारतीय सेना से रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल निशिकांत सिंह ने भी मणिपुर हिंसा को लेकर ट्वीट किया है.
उन्होंने लिखा, ”मैं मणिपुर का एक सामान्य नागरिक हूं जो रिटायरमेंट के बाद अपनी ज़िंदगी जी रहा है. राज्य अब ‘स्टेटलेस’ है.
”राज्य में लीबिया, लेबनान, नाइज़ीरिया, सीरिया आदि की तरह कभी भी किसी की ज़िंदगी और संपत्ति बर्बाद की जा सकती है. ऐसा लगता है कि मणिपुर को अपने हाल पर छोड़ दिया गया है. क्या कोई सुन रहा है?”
क्यों भड़की हिंसा की आग?
तीन मई को राज्य के कुकी और दूसरे जनजातीय समुदाय ने एक रैली निकाली.
ये रैली मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्ज़ा दिए जाने की मांग के ख़िलाफ़ निकाली गई थी.
रैली के बाद हिंसा भड़की और कुकी समुदाय की तरफ से मैतेई समुदाय पर हमले किए गए.
इसके जवाब में मैतेई समुदाय ने भी प्रतिक्रिया दी और मैतेई बहुल इलाक़ों में रह रहे कुकी समुदाय के लोगों के घर जला दिए गए और उन पर हमले किए गए.
इन हमलों के बाद मैतेई बहुल इलाकों में रहने वाले कुकी और कुकी बहुल इलाकों में रहने वाले मैतेई अपने-अपने घर छोड़कर जाने लगे.
मणिपुर में मुख्य तौर पर तीन समुदाय के लोग रहते हैं. मैतेई और जनजातीय समूह कुकी और नगा. पहाड़ी इलाक़ों में कुकी, नगा समेत दूसरी जनजाति के लोग रहते हैं.
जबकि इंफ़ाल घाटी में बहुसंख्यक मैतेई लोग रहते हैं. मैतेई समुदाय के ज़्यादातर लोग हिंदू हैं तो नगा और कुकी समुदाय के लोग मुख्य तौर पर ईसाई धर्म के हैं.
जनसंख्या में ज़्यादा होने के बावजूद मैतेई मणिपुर के 10 प्रतिशत भूभाग में रहते हैं जबकि बाक़ी के 90 प्रतिशत हिस्से पर नगा, कुकी और दूसरी जनजातियां रहती हैं. .
मणिपुर के मौजूदा जनजाति समूहों का कहना है कि मैतेई का जनसांख्यिकी और सियासी दबदबा है. इसके अलावा ये पढ़ने-लिखने के साथ अन्य मामलों में भी आगे हैं.
उनका मानना है कि अगर मैतेई को भी जनजाति का दर्जा मिल गया तो उनके लिए नौकरियों के अवसर कम हो जाएंगे और वे पहाड़ों पर भी ज़मीन ख़रीदना शुरू कर देंगे. ऐसे में वे और हाशिए पर चले जाएंगे.
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