दुनिया

अमेरिका ने यूक्रेन को क्लस्टर देने का किया फ़ैसला, पूरी दुनिया को युद्ध की आग में झोंकने की तैयारी :

रूस के ख़िलाफ़ यूक्रेन युद्ध में अब अमेरिका प्रतिबंधित क्‍लस्‍टर बम देने जा रहा है। बताया जा रहा है कि बाइडन प्रशासन जल्‍द ही क्‍लस्‍टर बम को यूक्रेन को देने की मंज़ूरी दे सकता है। इस बम पर दुनिया के 120 देशों ने प्रतिबंध लगा रखा है और अब इस फ़ैसले को लेकर सवाल उठ रहा है।

शुक्रवार को न्यूज़ चैनल सीएनएन से बात करते हुए अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा कि यूक्रेन के क्लस्टर बम देने का फ़ैसला एक बहुत ही कठिन निर्णय था, लेकिन क्योंकि कीएफ़ को इस बम की बहुत ज़्यादा ज़रूरत थी इसलिए उसको देना ज़रूरी हो गया था। पेंटागन के उप राजनीतिक सलाहकार “कॉलिन कॉल” ने यूक्रेन को क्लस्टर बमों भेजे जाने की पुष्टि करते हुए इन युद्ध सामग्री की सटीक संख्या बताने से इनकार कर दिया। अमेरिका की इस फ़ैसले पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने कड़ा विरोध जताया है। संयुक्त राष्ट्र के उप प्रवक्ता फरहान हक़ ने घोषणा की है कि संयुक्त राष्ट्र के महासचिव युद्ध के मैदान में क्लस्टर हथियारों के इस्तेमाल के ख़िलाफ़ हैं। अमेरिका द्वारा हर दिन यूक्रेन युद्ध की आग में घी डालने के काम को देखकर ऐसा लगता है कि संयुक्त राज्य अमेरिका, जो किसी भी क़ीमत पर यूक्रेन युद्ध रूस की पराजय देखना चाहता है, यही वजह है कि वह इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए यूक्रेन को सभी प्रकार के हथियारों से लैस करना चाहता है, यहां तक ​​​​कि उन हथियारों से भी जिन्हें विश्व के ज़्यादातर देशों ने प्रतिबंधित किया हुआ है। यूक्रेन में युद्ध जीतने की उम्मीद में, वाशिंगटन ने विभिन्न बहानों से मानवाधिकारों और विश्व समाज की नैतिकताओं को पैरों तले रौंदता चला जा रहा है। यही कारण है कि जिस बम को मानवता के विनाश के रूप में देखा जाता है और जिसपर 120 से ज़्यादा देशों ने बैन लगा रखा है अब अमेरिका उसको भी यूक्रेन को देने जा रहा है। रिपोर्टों के अनुसार, अमेरिका जिस बमों को देने जा रहा है, उसे 155 एमएम की तोप से भी दाग़ा जा सकता है। अमेरिका के तीन अधिकारियों ने क्‍लस्‍टर बम देने की पुष्टि भी की है। न्‍यूयॉर्क टाइम्‍स की रिपोर्ट के मुताबिक़, अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने ख़ुद क्‍लस्‍टर बम को यूक्रेन को देने की सिफ़ारिश की है। क्‍लस्‍टर बम को इंसानियत के ख़िलाफ़ माना जाता है यही कारण है कि दुनिया के सामने अब अमेरिका का वह रूप खुलकर सामने आ रहा है कि जिसके बारे में ईरान हमेशा कहता आया है। आज दुनिया का कोई भी देश जो युद्ध की आग में जल रहा है उस आग को जलाने के पीछे केवल और केवल अमेरिका ही है।

दरअसल, क्‍लस्‍टर बम एक कनस्‍तर के अंदर भरे होते हैं। क्‍लस्‍टर बम के फटने के बाद हज़ारों की तादाद में छोटे-छोटे बम इससे निकलते हैं और काफ़ी व्‍यापक इलाक़े में फैल जाते हैं। इनमें से कई ऐसे होते हैं जो फटते नहीं हैं। इससे वहां रहने वाले या वहां से गुज़रने वाले आम नागरिक अक्‍सर इसकी चपेट में आ जाते हैं। यही नहीं यह आम नागरिकों के शिकार होने का सिलसिला युद्ध और उसके बाद भी जारी रहता है। इसका बड़ा उदाहरण अफ़ग़ानिस्‍तान है जो क्‍लस्‍टर बम से पटा पड़ा है। संयुक्‍त राष्‍ट्र संघ और अफ़ग़ान सरकार ने करोड़ों रुपये इन क्‍लस्‍टर बम को हटाने पर केवल ख़र्च डाला है। साल 2008 में 120 से ज़्यादा देशों ने संयुक्‍त राष्‍ट्र संघ के एक सम्‍मेलन में क्‍लस्‍टर बम पर बैन लगाने वाले समझौते पर हस्‍ताक्षर किया था। इसमें कुछ ऐसे भी देश (फ्रांस, ब्रिटेन जैसे देश) हैं जो यूक्रेन और अमेरिका के प्रमुख सहयोगी हैं। यूक्रेन, अमेरिका और रूस तीनों ही देशों ने क्‍लस्‍टर बम को बैन करने वाले समझौते पर हस्‍ताक्षर नहीं किया है। हालांकि वर्ष 2009 में एक क़ानून बना था जो अमेरिका को 1 प्रतिशत से ज़्यादा असफल रहने वाले क्‍लस्‍टर बम के निर्यात से रोकता है। विश्‍लेषकों के मुताब‍िक़ इसमें अमेरिका का पूरा क्‍लस्‍टर बम का ज़ख़ीरा आ जाता है। कुल मिलाकर अमेरिका यूक्रेन में किसी भी स्थिति में रूस को हारता देखना चाहता है चाहे इसके लिए उसे पूरी दुनिया को युद्ध की आग में झोंकना ही क्यों न पड़ जाए।