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अमेरिका ने अमेरिकी ज़मीन पर सिख अलगाववादी की हत्या की साज़िश को नाकाम किया है, आरोप भारत पर?

भारत ने अमेरिका में रहने वाले एक खालिस्तान समर्थक अलगाववादी की हत्या की नाकाम साज़िश को लेकर लग रहे आरोपों पर प्रतिक्रिया दी है.

भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि ‘अमेरिका ने कुछ अपराधियों और आतंकवादियों समेत अन्य को लेकर कुछ जानकारियां साझा की थीं, जिनकी जांच चल रही है.’

दरअसल, ब्रितानी अख़बार फ़ाइनैंशियल टाइम्स ने सूत्रों के हवाले से दावा किया था कि अमेरिका ने अमेरिकी ज़मीन पर एक सिख अलगाववादी की हत्या की साज़िश को नाकाम किया है और इस साज़िश में भारत सरकार के शामिल होने से जुड़ी चिंताओं को लेकर चेताया है.

अमेरिका की ओर से अभी तक इस रिपोर्ट में लगाए गए आरोपों की आधिकारिक तौर पर पुष्टि नहीं की गई है.

अख़बार के अनुसार, इस साज़िश के निशाने पर अमेरिका और कनाडा के नागरिक गुरपतवंत सिंह पन्नू थे, जो स्वतंत्र सिख देश खालिस्तान बनाने के अभियान में शामिल संगठन ‘सिख्स फ़ॉर जस्टिस’ के वकील हैं.

गुरपतवंत सिंह पन्नू को भारत ने साल 2020 में ‘आतंकवादी’ घोषित किया था.

इससे पहले, इस साल जून में कनाडा के वैंकूवर में सिख अलगाववादी हरदीप सिंह निज्जर की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.

सितंबर में कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने कहा था कि निज्जर की हत्या में भारत का हाथ होने के ‘विश्वसनीय आरोप’ हैं.

भारत ने इन आरोपों को बेबुनियाद और बेतुका बताया था. हालांकि, इस बार अमेरिका में कथित रूप से नाकाम साज़िश को लेकर आई ख़बर पर भारत ने जांच जारी करने की बात कही है.

क्या हैं आरोप और अमेरिका ने क्या कहा

फ़ाइनैंशियल टाइम्स के मुताबिक़, जून में कनाडा में सिख अलगाववादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बाद अमेरिका ने पन्नू की हत्या की साज़िश की जानकारी अपने सहयोगियों के साथ साझा की थी.

जून में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आधिकारिक वॉशिंगटन दौरे के बाद, अमेरिका ने इस सम्बंध में आपत्ति जताई थी.

अख़बार ने सूत्र के हवाले से लिखा है कि भारत को राजनयिक स्तर पर चेतावनी देने के अलावा, अमेरिका के संघीय अभियोजकों ने एक कथित साज़िशकर्ता के ख़िलाफ़ मुक़दमा चलाने के लिए न्यूयॉर्क डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में एक सीलबंद लिफाफे में मामला दायर किया है.

अभी अमेरिका के न्याय विभाग में इस बात को लेकर चर्चा चल रही है कि इस मुक़दमे को सार्वजनिक किया जाए या फिर कनाडा को निज्जर की मौत की जांच पूरी करने दी जाए.

अमेरिका ने इस बारे में विस्तृत जानकारी अपने सहयोगी देशों से तब साझा की, जब ट्रूडो ने वैंकूवर में निज्जर की हत्या को लेकर आरोप लगाए. अख़बार के मुताबिक़, इन मामलों में एक जैसा पैटर्न होने की संभावनाओं को लेकर इन देशों ने चिंता जताई है.

ब्रितानी अख़बार के अनुसार, अमेरिका के न्याय विभाग और एफ़बीआई ने इस मामले में कोई प्रतिक्रिया देने से इनकार किया है.

राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद ने भी यह कहते हुए टिप्पणी से इनकार किया कि वह ‘क़ानूनी मामलों’ और ‘गोपनीय राजनयिक संवाद’ को लेकर सार्वजनिक टिप्पणी नहीं करती.

अख़बार का कहना है कि इस मामले से वाक़िफ़ सूत्रों ने यह नहीं बताया कि भारत को इस संबंध में आपत्ति जताए जाने के बाद साज़िशकर्ताओं ने अपनी योजना बदली या फिर एफ़बीआई ने दख़ल देकर अंजाम दी जा रही किसी साज़िश को बेकार किया.

कौन हैं पन्नू और वो क्या बोले
गुरपतवंत सिंह पन्नू खालिस्तान समर्थक अमेरिकी वकील हैं. उनकी उम्र 40 से 50 साल के बीच है. उनका सम्बंध अमृतसर के पास खानकोट गांव से है. उनके पिता महिंदर सिंह पंजाब स्टेट एग्रीकल्चर मार्केटिंग बोर्ड में कर्मचारी थे.

पन्नू ने 1990 के दशक में पंजाब यूनिवर्सिटी से क़ानून की पढ़ाई की और अब अमेरिका में वकील हैं. वह अक्सर कनाडा में खालिस्तान समर्थक कार्यक्रमों और प्रदर्शनों में अक्सर देखे जाते हैं.

उन्हें न्यूयॉर्क से चलने वाले खालिस्तान समर्थक संगठन सिख्स फ़ॉर जस्टिस के संस्थापक और नेता के तौर पर जाना जाता है.

फ़ाइनैंशियल टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, पन्नू ने यह बताने से इनकार किया है कि अमेरिकी प्रशासन ने उन्हें उनकी हत्या की साज़िश की योजना की जानकारी दी थी या नहीं. उनका कहना था कि ‘अमेरिकी सरकार को अमेरिका की ज़मीन पर मेरी जान को भारतीय एजेंटों से ख़तरे के मामले पर जवाब देने दीजिए.’

पन्नू ने कहा, “अमेरिकी ज़मीन पर अमेरिकी नागरिकों को ख़तरा होना, अमेरिका की संप्रभुता को ख़तरा है और मुझे यक़ीन है कि बाइडन प्रशासन इस तरह की चुनौतियों से निपटने में सक्षम है.”

पन्नू ने पिछले हफ़्ते सिखों को एयर इंडिया के विमानों से यात्रा न करने के लिए चेताते हुए कहा था कि ऐसा करना जानलेवा हो सकता है.

इस मामले में भारत में एनआईए ने पन्नू पर एफ़आईआर भी दर्ज की है.

रिपोर्ट पर भारत का जवाब
भारत के विदेश मंत्रालय ने फ़ाइनैंशियल टाइम्स की रिपोर्ट के बाद उठ रहे सवालों को लेकर एक बयान जारी किया है.

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची के हवाले से जारी इस बयान में कहा गया है, “हाल ही में भारत और अमेरिका के बीच रक्षा सहयोग पर हुई वार्ता के दौरान अमेरिकी पक्ष ने संगठित अपराधियों, अवैध बंदूकों के कारोबारियों, आतंकवादियों और अन्य को लेकर हमारे साथ कुछ जानकारियां साझा की थीं.”

“ये जानकारियां दोनों देशों के लिए चिंता का विषय हैं और उन्होंने फ़ैसला लिया है कि इस पर ज़रूरी क़दम उठाए जाएंगे.”

बागची ने कहा, “भारत ने अपने स्तर पर इन जानकारियों को गंभीरता से लिया है, क्योंकि यह हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा के हितों को भी चोट पहुंचाती हैं.”

बयान में कहा गया है, “अमेरिका की ओर से दी गई जानकारियों पर पहले ही सम्बंधित विभाग जांच कर रहे हैं.”

अमेरिका पर कनाडा से अलग प्रतिक्रिया
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने जब भारत पर निज्जर की हत्या में शामिल होने का आरोप आरोप लगाते हुए जांच में सहयोग की मांग की थी, तो भारत ने कड़ी प्रतिक्रिया दी थी.

भारत ने न सिर्फ़ इन आरोपों को खारिज किया था, बल्कि कुछ ऐसे क़दम भी उठाए थे जिनसे स्पष्ट हो रहा था कि दोनों देशों के रिश्ते बेहद ख़राब स्तर पर पहुंच गए हैं.

भारत ने दिल्ली में कनाडा के उच्चायोग में मौजूद राजनयिकों की संख्या को लेकर आपत्ति जताई थी. भारत का कहना था कि इनकी संख्या कनाडा स्थित भारतीय उच्चायोग में मौजूद भारतीय राजनयिकों से कम है.

कनाडा ने भारत के रुख़ को अंतरराष्ट्रीय संधियों का उल्लंघन बताया था और अपने 41 राजनयिक वापस बुला लिए थे.

भारत ने कनाडा के लोगों के लिए ई-वीज़ा सर्विस भी रोक दी थी, जिसे हाल ही में दो महीने बाद बहाल किया गया है.

जिस तरह का रुख़ कनाडा के आरोपों को लेकर रहा था, इस बार अमेरिका की ओर से आरोप लगने की ख़बरों पर भारत का रुख़ वैसा नज़र नहीं आ रहा.

ख़ास बात यह भी है कि अमेरिका की ओर से सार्वजनिक तौर पर इस तरह का आरोप नहीं लगाया गया है. निज्जर को लेकर कनाडा के आरोपों पर भी अमेरिका ने भारत को जांच में सहयोग करने के लिए कहा था, मगर खुलकर आलोचना नहीं की थी.

दरअसल, हाल के सालों में भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक और रणनीतिक साझेदारी बढ़ी है. भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया उस क्वॉड समूह का हिस्सा हैं, जो चीन के दबदबे को चुनौती देने के लिए क़रीबी रक्षा सहयोग बढ़ाने के लिए बना है.

इसी महीने नई दिल्ली में भारत और अमेरिका के बीच पांचवीं वार्षिक टू प्लस टू मंत्री स्तर की बैठक हुई है, जिसमें दोनों देशों के विदेश और रक्षा मंत्रियों ने हिस्सा लिया था. इस बैठक के दौरान कई अहम फ़ैसले हुए हैं, जिन्हें दोनों देशों के आपसी रिश्तों के लिए बड़ी उपलब्धि बताया जा रहा है.

ऐसे में, अब इस रिपोर्ट के बाद अलग तरह की परिस्थितियां खड़ी होती नज़र आ रही हैं.

क्या कहते हैं विशेषज्ञ
वरिष्ठ पत्रकार और द हिंदू की राजयनिक मामलों की संपादक सुहासिनी हैदर एक्स (पहले ट्विटर) पर लिखती हैं, “पन्नू को लेकर फ़ाइनैंशियल टाइम्स की रिपोर्ट पर विदेश मंत्रालय की प्रतिक्रिया काफ़ी अहम है और निज्जर को लेकर कनाडा के आरोपों पर दिए जवाब से एकदम अलग है.”

यूनिवर्सिटी ऑफ़ लंदन (एसओएस) से जुड़े अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार अविनाश पालीवाल ने एक्स पर लिखा है, “इसका गहरा असर होने वाला है. भारत ने अमेरिकी ज़मीन पर गोपनीय ढंग से एक आक्रामक अभियान चलाया है. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ या फिर, कम से कम पहले कभी सामने नहीं आया.”

वह लिखते हैं कि ‘भारत ने फ़ाइनैंशियल टाइम्स की ख़बर की लगभग पुष्टि कर दी है. अमेरिका इस मामले को बहुत गंभीरता से लेगा और ऐसा शायद ही हो कि भारत उस तरह से जवाब दे, जैसा कनाडा को दिया था. यह मामला जल्द शांत होने वाला नहीं है.”

रैंड कॉर्पोरेशन में राष्ट्रीय सुरक्षा और इंडो-पैसिफ़िक मामलों के जानकार डेरेक जे. ग्रॉसमन लिखते हैं, “भारत को लगता होगा कि कनाडा बातें बना रहा है. लेकिन अमेरिका भी अपने यहां भारतीय एजेंटों द्वारा सिख अलगाववादियों/आतंकवादियों को मारने की कोशिशों से चिंतित है. अमेरिका ने साज़िश का पर्दाफ़ाश किया है और अभियोजकों ने न्यूयॉर्क कोर्ट में मुक़दमा दायर कर दिया है.”

‘द विल्सन सेंटर’ के साउथ एशिया इंस्टिट्यूट के निदेशक माइकल कुगलमैन ने एक्स पर पोस्ट किया है, “खालिस्तान के मसले पर अमेरिका का रुख़ कनाडा से कहीं ज़्यादा कड़ा रहा है. अमेरिकी अधिकारियों ने हिंसा के मामलों (उदाहरण के लिए सैन फ्रैंसिस्को में भारतीय वाणिज्य दूतावास की दो घटनाओं) की आलोचना की थी और उन्होंने अमेरिकी ज़मीन पर भारत की कार्रवाई को लेकर अपनी चिंताओं को गोपनीय ढंग से उठाया है, न कि सार्वजनिक तौर पर.”

वह लिखते हैं, “भारत चाहेगा कि अमेरिका कुछ बढ़कर करे, वहीं अमेरिका का अपने यहां मौजूद सिखों के ख़िलाफ़ भारत की कार्रवाई या ख़तरे को लेकर चिंतित होना भी लाज़िमी है, लेकिन कनाडा की तुलना में अमेरिका का तरीका (सार्वजनिक आरोप न लगाना) और भारत-अमेरिका संबंधों के भारत-कनाडा संबंधों की तुलना में मज़बूत होने के कारण फ़ाइनैंशियल टाइम्स की रिपोर्ट से शायद ही कोई बड़ा संकट खड़ा हो.”

वहीं, जाने-माने सामरिक विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी ने एक्स पर लिखा है, “अमेरिका में रहने वाले जिस सिख चरमपंथी ने हाल ही में एयर इंडिया के ख़िलाफ़ आतंकवादी धमकी दी थी, उसे उन अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसियों की सुरक्षा हासिल है, जिन्होंने ट्रूडो द्वारा भारत पर बिना किसी सबूत के आरोप लगाने में भी अहम भूमिका निभाई थी.”

वह लिखते हैं, “हालात और ख़राब करने वाली बात यह है कि जिस सिख चरमपंथी की हत्या के कारण भारत-कनाडा के बीच विवाद है, उसकी कनाडा की गुप्तचर एजेंसी सीएसआईएस के साथ सांठगांठ थी. कनाडाई मीडिया के अनुसार, हत्या से महीनों पहले से सीएसआईएस के अफ़सर उससे मिल रहे थे.”

भारत के पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल फ़ाइनैंशियल टाइम्स के रिपोर्टर का एक्स पर किया गया पोस्ट कोट करते हुए लिखते हैं, “चीन के साथ क़रीबी रिश्तों वाले संदिग्ध पत्रकार ने यह स्टोरी प्लांट की (गढ़ी) है. निज्जर प्रकरण, जिसे लेकर भारत पर अमेरिका की नाराज़गी का असर अभी तक कम नहीं हुआ है, उसके बाद क्या भारत एक अमेरिकी नागरिक को मारने की साज़िश रचकर हालात को बिगाड़ना चाहेगा? क्या इस बात का कोई मतलब है? कहीं पर भारत विरोधी साज़िश रची जा रही है.”