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अमेरिका का सबसे बड़ा झूठ आया सामने : रिपोर्ट

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा की ओर से मंगल ग्रह पर भेजे गए रोबोटिक रोवर को लेकर एक हैरान करने वाली जानकारी सामने आई है। शोधकर्ताओं की एक टीम ने दावा किया है कि रोबोटिक रोवर के ज़रिए मंगल ग्रह पर जीवन की खोज करना बहुत मुश्किल है।

‘नेचर कम्युनिकेशंस’में प्रकाशित नए शोध से पता चला है कि अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के रोबोटिक रोवर में जिन उपकरणों को लगाया गया है वह वास्तव में लाल ग्रह पर जीवन के प्रमाण को खोजने उपयुक्त नहीं हैं। उसकी भी अपनी एक लिमिटेशन है। रोवर्स में लगाए गए उपकरणों की जांच की अगुवाई अरमांडो अज़ुआ-बस्टोस ने की है। अजुआ बस्टोस और उनके सहयोगियों ने अपनी रिसर्च में पाया कि रोवर्स में इस्तेमाल किए गए उपकरणों की जीवन से जुड़ी जानकारी हासिल करने की एक सीमित क्षमता है। शोधकर्ताओं की टीम ने कहा कि रोवर लाल ग्रह पर मिनरल कंपोनेंट का पता लगाने में तो सक्षम है लेकिन वह हमेशा जैविक अणुओं का पता लगाने में सक्षम नहीं है। बस्टोस ने कहा है कि मंगल ग्रह पर आमतौर पर ठंड ज़्यादा रहती है, ऐसी परिस्थितियों में वहां जीवन का प्रमाण ढूंढना काफ़ी चुनौतीपूर्ण है। उन्होंने कहा कि सबसे पहले हमें वातावरण में मौजूदा जीवन की जैविक और भौतिक सीमाओं को परिभाषित करने की ज़रूरत है। इसके बाद हमें जीवन की पहचान करने के लिए उपकरण को विकसित करने की ज़रूरत है। इसमें जैविक अणु जैसे लिपिड, न्यूक्लिक एसिड और प्रोटीन शामिल हैं।


इस बीच जानकारों का कहना है कि अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने आख़िर इस बात को दुनिया के लोगों से क्यों छिपाई, इस बारे में उसे सामने आकर जवाब देना चाहिए। वहीं शोधकर्ताओं का कहना है कि नासा द्वारा जो जानकारी छिपाई गई है वह उसकी सोची समझी योजना का एक हिस्सा है। उल्लेखनीय है कि पर्सिवरेंस मार्स रोवर 1000 किलोग्राम वज़नी है। जबकि, इंजीन्यूटी हेलिकॉप्टर 2 किलोग्राम वज़न का है। मार्स रोवर परमाणु ऊर्जा से चलता है। यानी पहली बार किसी रोवर में प्लूटोनियम को ईंधन के तौर पर उपयोग किया जा रहा है। दावा किया जा रहा है कि यह रोवर मंगल ग्रह पर 10 साल तक काम करेगा। इसमें 7 फीट का रोबोटिक आर्म, 23 कैमरे और एक ड्रिल मशीन है।