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अमरीकी राष्ट्रपति अरबों की चौखट पर नाक रगड़ रहे हैं?

मध्यपूर्व और दुनिया में अमरीका के घट रहे प्रभाव के बीच, अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडन 13 से 16 जुलाई तक पश्चिम एशिया का दौरा कर रहे हैं।

लेकिन बाइडन का यह दौरा ऐसे समय में हो रहा है, जब उनके सामने चुनौतियों का एक ढेर है। बाइडन ने अपने चुनावी प्रचार में अमरीकी मतदाताओं से ईरान परमाणु समझौते में वापसी का वा से परमाणु समझौते दा किया था, लेकिन व्यवहारिक रूप से वह भी अपने पूर्ववर्ती ट्रम्प के नक़्शे क़दम पर चल रहे हैं, यहां तक कि उन्होंने तेल-अवीव पहुंचकर इस्राईल के सुर में सुर मिलाना शुरू कर दिया।

इसके अलावा, रूस-यूक्रेन युद्ध ने अमरीका के सामने बड़ी चुनैती पेश की है, शीत युद्ध के बाद दुनिया की सबसे बड़ी दो परमाणु-सशस्त्र शक्तियां एक बार फिर आमने-सामने हैं और दुनिया दो धड़ों में बंटती नज़र आ रही है।

अमरीका की एक और बड़ी चिंता चीन की बढ़ती ताक़त है। चीन को अमरीका अपने लिए फ़िलहाल सबसे बड़ा ख़तरा मानता है। हाल ही अमरीकी ख़ुफ़िया एजेंसी एफ़बीआई के निदेशक ने यह दावा किया था कि चीन किसी भी तरह दुनिया का अकेला सुपरपावर बनने की कोशिश कर रहा है।

बाइडन के इस दौरे को कोई विशेष महत्व नहीं मिल रहा है, जिससे स्पष्ट हो गया है कि वाशिंगटन को अब इस क्षेत्र से बहुत ज़्यादा उम्मीद नहीं रखनी चाहिए और क्षेत्र में ईरान जैसी दूसरी ताक़तें उभर रही हैं, जो सीधे अमरीका को चुनौतियां पेश कर रही हैं।

वहीं सऊदी अरब जो इस क्षेत्र में अमरीका का सबसे बड़ा भरोसेमंद साथी था, अब अमरीका को अपना भरोसेमंद समर्थक नहीं मानता है। जब बाइडन राष्ट्रपति चुनाव के लिए प्रचार कर रहे थे, तो उन्होंने सऊदी अरब को एक ऐसा अछूत देश बताया था, जो अपने आलोचकों की हत्या करवाता है और विरोध के स्वरों को दबाता है। राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने सऊदी क्राउन प्रिंस से मुलाक़ात से भी इनकार कर दिया था और कहा था कि वह अपने समकक्ष अधिकारी से ही मुलाक़ात कर सकते हैं।

फ़रवरी में रूस ने जब यूक्रेन पर हमला कर दिया और दुनिया भर में तेल की क़ीमतें बढ़ने लगीं, तो बाइडन प्रशासन ने रियाज़ से तेल के उत्पादन में वृद्धि के लिए कहा था, लेकिन रियाज़ ने वाशिंगटन के इस अनुरोध को ठुकरा दिया। अब बाइडन एक बार फिर सऊदी अरब से अपना यह अनुरोध दोहरायेंगे। अगर रियाज़ उनके इस अनुरोध को स्वीकार भी कर लेता है तो विश्वास की वह डोर जो कमज़ोर पड़ चुकी है, वह इतनी आसानी से मज़बूत नहीं होगी। जानकारों का मानना है कि सऊदी अरब, फ़िलहाल अमरीका को किसी भी तरह की मदद पहुंचाने के मूड में नहीं है और वह रूस को एक बार फिर ख़ुद से दूर नहीं करना चाहता है। कुछ महीने पहले ही ऐसी रिपोर्टें आईं थीं कि अमरीकी प्रशासन की कोशिशों के बावजूद, सऊदी शासकों ने बाइडन से फ़ोन पर बातचीत करने से इनकार कर दिया था।

अब अमरीकी राष्ट्रपति का उसी सऊदी अरब के दौरे पर जाना, उसकी घटती साख को दिखाता है, क्योंकि जो अमरीका पर कभी नाक पर मक्खी नहीं बैठने देता था और जब चाहता था अरब शासकों को अपने दरबार में हाज़िर कर लिया करता था, वह अब उन्हीं की चौखट पर नाक रगड़ रहा है।