दुनिया

अमरीका पर एक ज़ायोनी गुट का राज है : रिपोर्ट

1948 में जब एक देश के रूप में इस्राईल की स्थापना की घोषणा की गई, तो विचारधारा की लड़ाई की शुरूआत हो गई।

7 अक्तूबर को अल-अक़सा स्टॉर्म से पहले इस्राईल, अमरीका में धार्मिक और राजनीतिक संप्रदायों की एक शक्तिशाली लॉबी के गठन में कामयाब हो चुका था। इस लॉबी ने प्रभावी ढंग से राजनीतिक और आर्थिक संस्थानों को नियंत्रित कर रखा है और वह असहमति की आवाज़ों को दबा देती है।

इस्राईल के असाधारण विचारों ने अमरीकी राजनेताओं और विशिष्ट हस्तियों के साथ ही अकसर नागरिकों के दिमाग़ पर गहरा प्रभाव डाला है।

अजीब बात यह है कि एमनेस्टी इंटरनेशनल, ह्यूमन राइट्स वॉच और बी’त्सेलम जैसी सैकड़ों रिपोर्टों के बावजूद, जो पिछले 76 वर्षों के दौरान फ़िलिस्तीनियों की सरज़मीन पर क़ब्ज़े, रंगभेद, दमन, यातना और नरसंहार पर ऐतिहासिक दस्तावेज़ हैं, ज़ायोनी शासन के प्रति वफ़ादार बने हुए हैं।

दमन की नीति

इन दिनों एक घटना की काफ़ी चर्चा है। वाशिंगटन प्रेस के एक सदस्य ने सार्वजनिक रूप से अमरीका द्वारा इस्राईल के समर्थन पर सवाल उठाने के बाद, अपनी काफ़ी पुरानी नौकरी खो दी।

उनका कहना थाः

आप इस देश में इस्राईल की आलोचना करके जीवित नहीं रह सकते हैं।

एमएसएनबीसी के लोकप्रिय ऐंकर मेहदी हसन भी एक ऐसे पत्रकार हैं, जो इस्राईल की आलोचना और फ़िलिस्तीनियों के समर्थन के कारण, सज़ा पा चुके हैं।

एमएसएनबीसी जैसे समाचार संगठनों और कंपनियों को ज़ायोनी धाराओं से बहुत दबाव का सामना करना पड़ता है, अगर वे बातचीत के स्तर को ज़ायोनी शासन द्वारा निर्धारित रेड लाइन को पार करते हैं, तो उन्हें काफ़ी ज़्यादा दबाव झेलना पड़ता है। इसीलिए वे फ़िलिस्तीनियों की पीड़ा को बयान करने से परहेज़ करते हैं और अनिवार्य रूप से तेल-अवीव के प्रोपौगंडा नेटवर्क का एक हिस्सा बन गए हैं।

अमरीका की प्राथमिकता और नेतनयाहू का वर्चस्व

सात दशकों से ज़्यादा से अमराका का मुख्य एजेंडा, पश्चिम एशिया में अपनी स्थिति को मज़बूत करना और अपने हितों को सुरक्षित रखना रहा है। 1973 में सीनेट में प्रवेश करने के बाद से बाइडन इस्राईल के कट्टर समर्थक रहे हैं और अक्सर कहते सुने गए हैं कि मैं एक ज़ायोनी हूं। बाइडन प्रशासन, आज भी इस्राईल का अंधा समर्थन जारी रखे हुए है, जबकि इस्राईल लेबनान और सीरिया में घातक हवाई हमले कर रहा है और क्षेत्र में एक भयानक युद्ध छेड़ना चाहता है।

इस बीच, अमरीका में ग़ज़ा पट्टी पर इस्राईल के बर्बर हमलों के ख़िलाफ़ लोग प्रदर्शन कर रहे हैं, जिनमें कुछ यहूदी संगठन भी शामिल हैं।

नेतनयाहू ने कई दशकों से दुनिया को यह समझाने का प्रयास कर रहे हैं कि ईरान एक ख़तरा है और अमरीका को उसके ख़िलाफ़ युद्ध लड़ना चाहिए।

अक्तूबर के हमले के बाद से नेतनयाहू ने ईरान के ख़िलाफ़ अघोषित युद्ध छेड़ रखा है। इससे वह दुनिया की नज़र ग़ज़ा में जारी नरसंहार से हटा सकते हैं। इस काम के लिए उन्होंने इस्राईल में किसी हद तक आम राय को अपने पक्ष में कर लिया है, जिससे कुछ समय के लिए उनका राजनीतिक करियर बच गया है।

ग़ज़ा और वेस्ट बैंक में इस्राईली पागलपन से पता चलता है कि वह फ़िलिस्तीनियों की नस्लकुशी के मार्ग पर आगे बढ़ रहा है।

आख़िर में यह बिंदू अहम है कि इस्राईल और अमरीका में उसकी लॉबी, फ़िलिस्तीनियों के प्रतिरोध को तोड़ने और हमेशा के लिए उनका वजूद समाप्त करने के लिए वाशिंगटन को अपने अपराधों में शामिल रखना चाहते हैं।