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अमन की तरफ़ बढ़ते यमन और सऊदी अरब की राह में अमरीका का अड़ंगा : अंसारुल्लाह ने अमरीका और ब्रिटेन को दी चेतावनी : रिपोर्ट

कौन है यमन और सऊदी अरब के बीच समझौते की सबसे बड़ी बाधा?

दीर्धकालीन युद्ध को समाप्त कराने के उद्देश्य से यमन और सऊदी अरब ने कई महत्वपूर्ण क़दम उठाए हैं।

अप्रैल के मध्य मेंं सऊदी अरब का एक शिष्टमण्डल यमन की राजधानी सनआ पहुंचा था।

सन 2015 से आरंभ होने वाले युद्ध के बाद यमन के लिए सऊदी अरब का यह पहला शिष्टमण्डल था। यह शिष्टमण्डल यमन में एसी स्थति में पहुंचा था कि जब इससे पहले तक सऊदी अरब, सनआ की सरकार और अंसारुल्लाह के साथ बात करने को तैयार ही नहीं था। इस हिसाब से सऊदी अरब के शिष्टमण्डल की हालिया यात्रा को सनआ में मौजूद सरकार को औपचारिकता देने के अर्थ में देखा जा रहा है।

सनआ में सऊदी शिष्टमण्डल के पहुंचने के साथ ही ओमान का एक प्रतिनिधिमण्डल भी यमन पहुंचा। इन दोनो प्रतिनिधिमण्डलों की यमन यात्रा से यह बात समझ में आई कि कई दूसरे पक्ष ही यमन युद्ध की समाप्तिक के इच्छुक दिखाई दे रहे हैं। पहले चरण में दोनो पक्षों के बीच कुछ समझौते हुए। इन्ही में से एक, बंदियों की स्वतंत्रता और उनका आदान-प्रदान करना था। हालांकि इसके बाद के घटनाक्रमों और परिवर्तनो से यह बात समझ में आने लगी कि यमन युद्ध को समाप्त कराने के लिए अभी अन्तिम समझौता नहीं हो पाया है।

राजनीतिक टीकाकारों का कहना है कि यमन में युद्धरत पक्षों के बीच समझौता न होने का मुख्य कारण अमरीकी दबाव है। इस्लामी गणतंत्र ईरान और सऊदी अरब के बीच होने वाले हालिया समझौते से अमरीका पहले ही नाराज़ है। इस समझौते को वह अपने हितों के लिए ख़तरे के रूप में देखता है। यही कारण है कि उसने यमन के साथ समझौते में रूकावट डालने के लिए सऊदी अरब पर दबाव डालना शुरू किया है।

सऊदी अरब और यमन युद्ध को समाप्त कराने का अमरीका द्वारा विरोध करने के कई कारण हो सकते हैं। उन कारणों में से एक यह है कि संयुक्त राज्य अमरीका यह नहीं चाहता है कि यमन और सऊदी अरब के बीच कोई भी समझौता उसकी उपस्थिति के बिना हो। वाशिग्टन यह नहीं चाहता है कि यमन युद्ध समाप्त कराने में ईरान या चीन की थोड़ी सी भी भूमिका दिखाई दे।

इसके अतिरिक्त एक अन्य कारण यह है कि अमरीका का यह मानना है कि वर्तमान परिस्थतियों में यमन युद्ध का रुक जाना, प्रतिरोध के मोर्चे के हित में होगा जिससे पश्चिम एशिया में मौजूद प्रतिरोध मोर्चा मज़बूत हो जाएगा और अवैध ज़ायोनी शासन से इसको नुक़सान पहुंचेगा। इसी प्रकार के कई अन्य कारण हैं जिनकी वजह से यमन और सऊदी अरब के बीच होने वाले समझौते में अमरीका, बाधा बना हुआ है। यही वजह है कि वार्ता को रुकवाने केे लिए वाइट हाउस ने रेयाज़ पर दबाव बढ़ाने तेज़ कर दिये हैं।

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अमरीका के विदेश मंत्रालय ने जहां एक तरफ़ यह एलान किया कि यमन के मामलों में अमरीकी सरकार के विशेष दूत फ़ार्स खाड़ी के इलाक़े की यात्रा कर रहे हैं वहीं यमन की राजनैतिक परिषद ने कहा कि यह यमन में समझौते की तरफ़ बढ़ते क़दमों के सामने रुकावटें खड़ी करने की अमरीकी कोशिश है।

अमरीकी विदेश मंत्रालय ने दावा किया है कि टिम लिंडरकिंग फ़ार्स खाड़ी के इलाक़े के लिए रवाना हो गए हैं जो यमन में नए सिरे से समझौते के लिए कोशिशें करेंगे और इस देश में शांति प्रक्रिया को मज़बूत बनाएंगे।

लिंडरकिंग ने इससे पहले यमन में सऊदी अरब द्वारा समर्थित सरकार का साथ देते हुए कहा था कि अमरीका यह समझता है कि केवल यमनी पक्ष ही इस देश के भविष्य को तय कर सकते हैं मगर अब अमरीकी विदेश मंत्रालय के अनुसार वे यमन के मामले में ओमान, सऊदी अरब और अंतर्राष्ट्रीय पक्षों से बात करेंगे।

वहीं यमन की राजनैतिक परिषद ने जो सनआ सरकार की बहुत महत्वपूर्ण संस्था है कहा है कि अमरीका और ब्रिटेन ने साबित कर दिया कि वे यमन में शांति बहाली की पक्रिया में रुकावटें डालने में दिलचस्पी रखते हैं। परिषद के प्रमुख महदी मुश्शात ने संयुक्त राष्ट्र के अधिकारी के नेतृत्व में अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधिमंडल से मुलाक़ात में यह बात कही।

मुश्शात का कहना है कि हम यमन में जब जब शांति के क़रीब पहुंचे हैं अमरीका ने बीच में दख़ल देकर हमारी कोशिशों को बार बार नाकाम बनाया है।

उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधिमंडल से मुलाक़ात में कहा कि हम जिस तरह जंग के लिए तैयार हैं उसी तरह शांति में भी हमारी गहरी दिलचस्पी है।