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अभिनेता रतन कुमार सैय्यद नज़ीर अली रिजवी आप को याद हैं कि भूल गए!

Deep Narayan
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दो बीघा ज़मीन और बूट पोलिश जैसी फिल्मों के अभिनेता रतन कुमार

सैय्यद नज़ीर अली रिजवी का जन्म 19 मार्च 1941 को राजस्थान के अजमेर जिले में हुआ था। इनके पिता का नाम सैय्यद अब्बास अली अजमेरी था जो पेशे से एक अभिनेता थे और दिलीप कुमार के साथ फिल्म आन में कम कर चुके थे।

इनके बड़े भाई का नाम सैय्यद वजीर अली रिजवी था जो एक फिल्म निर्माता थे। रतन कुमार के छोटे भाई सैय्यद मुश्ताक अली भी कई फिल्मों में एक बाल कलाकार के रूप में काम कर चुके हैं। सिनेमा से जुड़े हुए परिवार में पैदा होने के बाद भी रतन कुमार को खेल की दुनिया सबसे ज्यादा आकर्षित करती थी। रतन कुमार बचपन में फुटबॉल और टेनिस के साथ साथ क्रिकेट खेला करते थे। रतन कुमार ने अपनी शुरुआती पढ़ाई अंजुमने इस्लामिया मुम्बई से पुरी की थी।

एक बार इनके पिता के दोस्त और महान फिल्म राइटर कृष्ण चन्द्र अपनी आने वाली फिल्म दिल की आवाज के बारे में बात करने इनके घर आए थे जहां रत्न कुमार क्रिकेट खेल रहे थे।

इसके बाद रतन कुमार के पिता ने कृष्ण चन्द्र को उनकी फिल्मों में अपने बेटे को काम दिलाने के लिए कहा जिसे देखते हुए कृष्ण चन्द्र ने अपनी फिल्म राख में एक बाल कलाकार के रूप में इन्हें काम करने का मौका दिया।

सैय्यद नज़ीर अली रिजवी का नाम रत्न कुमार फिल्म अभिनेता प्रेम अदीब ने इसलिए रखा था क्योंकि हिंदी सिनेमा में उस समय कुमार सरनेम वाले कई अभिनेताओं का बोलबाला था।

दिलीप कुमार जैसा अभिनेता फिल्म इंडस्ट्री में कदम रख चुका था और अशोक कुमार अपने करियर के स्वर्णिम सफर से गुजर रहे थे।

अपनी पहली फिल्म राख के बाद रतन कुमार ने कई फिल्मों में काम किया और खुद को एक अच्छे बाल कलाकार के रूप में स्थापित कर लिया था।
सन् 1952 में आई फिल्म बैजू बावरा में इन्होंने अभिनेता भारत भूषण के बचपन का किरदार निभाया था। इस फिल्म की हीरोइन मीना कुमारी थी जिनके बचपन का किरदार इस फिल्म में बेबी तब्बसुम ने निभाया था। इस फिल्म के गीत ओ दुनिया के रखवाले और तू गंगा की मौज अपने समय में लगभग हर सिनेमा प्रेमी की जुबान की जरूरत बन चुके थे।

इसके बाद 1954 में आई फिल्म बूट पॉलिश ने रत्न कुमार को एक सुपरस्टार बना दिया था। यह फिल्म उस साल बहुत बड़ी हिट फिल्मों में शुमार थी जिसके लिए रत्न कुमार को बेस्ट चाइल्ड आर्टिस्ट का अवार्ड भी मिला था।

सन् 1953 में आई फ़िल्म दो बीघा जमीन में रत्न कुमार ने भारतीय सिनेमा के महान फिल्म निर्देशक बिमल रॉय के साथ काम किया था। 1954 में शुरू हुए फिल्मफेयर अवार्ड्स में पहली बार बेस्ट फिल्म का अवार्ड प्राप्त करने वाली इस फिल्म में रत्न कुमार ने बलराज साहनी और नीरुपा रोय के बेटे का किरदार निभाया था जिसमें इनकी मासूमियत और अदायगी ने सभी को अपना दीवाना बना दिया था।

बिमल राय, राज कपूर और बलराज साहनी जैसे दिग्गज कलाकारों के साथ काम करने के बाद इन्होंने फिल्म अंगारे में नरगिस और फिल्म बहुत दिन हुए में मधुबाला के साथ भी काम किया।

1947 में जब भारत का विभाजन हुआ तो इनके कई रिश्तेदार पाकिस्तान चले गए लेकिन रत्न कुमार के पिता ने अपने बेटे के करियर को देखते हुए भारत में ही रहने का निर्णय किया था।

रतन कुमार अब भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में सबसे अधिक काम करने वाले बाल कलाकार बन चुके थे जिसे देखते हुए अब वो खुद को एक हीरो के तौर पर देखने का ख्वाब भी सजाने लगे थे।

लेकिन भारतीय सिनेमा में आने वाले नए अभिनेताओं और बढ़ते कम्पीटीशन को देखते हुए उन्हें अपने सपनों को पूरा करने की राह कठिन लगने लगी थी।
और इसी वजह से साल 1956 में रत्न कुमार अपने परिवार के साथ पाकिस्तान आ गए और खुद को वहां की फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित करने की कोशिश में लग गए।

पाकिस्तानी आने के बाद रतन कुमार के बड़े भाई ने अपने प्रोडेक्शन हाउस फिल्मस हयात की स्थापना की जिसके तहत उन्होंने पहली फिल्म बेदारी का निर्माण किया था जिसमें इनके पिता ने भी काम किया।

यह फिल्म भारत में बनी हिन्दी फ़िल्म जागृति की कोपी थी जिसके गीत ए कायदे आजम और आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी पाकिस्तान की बहुत लोकप्रिय हुए थे।

पाकिस्तान में इनकी अगली फिल्म मासूम थी जिसे इनकी शानदार अदाकारी की वजह से याद किया जाता है। इस फिल्म में रत्न कुमार ने फिल्म की हीरोइन यास्मिन के भाई का किरदार निभाया था।

1958 में आई फिल्म वाह रे जमाने बतौर बाल कलाकार इनकी आखिरी फिल्म थी जिसके बाद रतन कुमार फिल्मों में लीड रोल में दिखाई देने लगे थे।
18 साल की उम्र में लीड हीरो के तौर पर इनकी पहली फिल्म का नाम नागिन था जो इनके बड़े भाई के बैनर तले बनाई गई थी। इस फिल्म में इनकी पहली हीरोइन का नाम नीलो था जिनके साथ आगे इन्होंने अपने करियर की ज्यादातर फिल्मों में काम किया था। फिल्म नागिन ने बोक्स ओफीस पर सिल्वर जुबली का सफर तय किया जिसके चलते रत्न कुमार एक हीरो के तौर पर भी फेमस हो चुके थे।

इसके बाद रतन कुमार अपने भाई के बैनर तले बनने वाली हर फिल्म में हीरो के तौर पर नजर आने लगे थे। 1960 में इनकी दो फिल्में नीलोफर और अलादीन का बेटा रीलीज हुई लेकिन अपनी पहली फिल्म नागिन में चमकने वाला ये हीरो अब धीरे धीरे गर्दिश के अंधकार की तरफ बढ़ने लगा था।
इसके बाद शेर ए इस्लाम, बारात और समीरा जैसी फिल्में भी रिलीज हुई जिनमें से कुछ फिल्मों में रत्न कुमार प्रोड्यूसर के तौर पर भी नजर आए थे। इसके अलावा इन्होंने एक पंजाबी फिल्म मिट्टी दीया मूर्ता में भी गेस्ट एपीरियंस में नजर आए थे। लेकिन कोई भी फिल्म उस बुलंदी को नहीं छु पाई जिसे इन्होंने अपनी फिल्म नागिन या उससे पहले बाल कलाकार के रूप में तय किया था।

भारतीय सिनेमा की कई फिल्मों में बाल कलाकार का रोल निभाने के बाद इन्होंने पाकिस्तानी सिनेमा में कुल अठारह फिल्मों में काम किया था।
रतन कुमार के करियर की आखिरी फिल्म का नाम दास्तान था, जो 1969 में रिलीज हुई थी। इसमें रत्न कुमार ने अपने असली नाम नजीर अली के साथ नजर आए थे। यह फिल्म रतन कुमार की डायरेक्टर के तौर पर पहली फिल्म थी।

इसके बाद 1977 में इनकी सबसे छोटी बेटी राहत का निधन 4 साल की उम्र में एक एक्सिडेंट के चलते हो गया था। इस घटना ने रत्न कुमार को बुरी तरह से तोड़कर रख दिया था और इन्होंने पाकिस्तानी को छोड़ने का मन बना लिया। पाकिस्तान छोड़ने के बाद रतन कुमार कैलीफोर्निया चले गए और फिर कभी पाकिस्तान की धरती पर कदम नहीं रखा। कैलीफोर्निया में इन्होंने अपने कार्पेट्स बेचने के किम को आगे बढ़ाया और आख़िरी सांस तक वहीं रहे।

रतन कुमार साल 1996 में फेफड़ों की बीमारी से ग्रस्त हो गए थे कुछ समय बाद ठीक भी हुए लेकिन एक बार फिर अटैक आया और कोमा में चले गए। कोमा से बाहर आने का बाद उनके शरीर का कुछ हिस्सा पुरी तरह से पैरेलाइजड हो गया था। 2 दिसंबर 2016 को इनकी तबीयत बिगड़ी जिसके चलते इन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। लेकिन 12 दिसंबर 2016 को रतन कुमार का एक लम्बी बीमारी के चलते निधन हो गया।

एक अजीम अभिनेता अपने पीछे छोड़ गया अपने कई यादगार किरदार और कई बेमिसाल फिल्में। रतन कुमार को अपनी पत्नी से दो बेटे और दो बेटियां हुई जिससे इन्हें 7 पोते पोतियां भी है।

एक बाल कलाकार के तौर पर अपनी मासूमियत की चमक बिखेरने वाले इस अभिनेता को लीड हीरो के तौर पर कामयाबी नहीं मिली जिसके चलते भारत और पाकिस्तानी सिनेमा की सांझी विरासत से निकला ये कलाकार एक गुमनाम सितारे की तरह फना हो गया।