मनोरंजन

अभय देओल के बारे में जो भी अफ़वाहें हैं, वो सच्ची हैं

सिद्धार्थ अरोड़ा ‘सहर’ 

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“वो जानता था कि फिल्म का बजट बहुत टाइट है, पर फिर भी बोला मैं फाइव स्टार होटेल में रुकूँगा क्योंकि मैं देओल फैमिली से हूँ” – अनुराग कश्यप

देव-डी जैसी कल्ट क्लासिक, सुपर हिट फिल्म, जिसका कान्सेप्ट अभय ने ही अनुराग को दिया था; देने के बाद भी इन दोनों ने 2009 की देव- डी के बाद कोई फिल्म साथ में नहीं की।


मायापुरी मैगज़ीन में काम करते समय ये गॉसिप सुनी थी कि अभय देओल के साथ सेट पर काम करना बहुत मुश्किल है। वह हर किसी के काम में दखलंदाज़ी करते हैं। वह डायरेक्टर की भी नहीं सुनते हैं।

फिर ‘ज़िंदगी न मिलेगी दोबारा’ और ‘राँझना’ जैसी कमर्शियली सुपरहिट फ़िल्म में इम्पॉर्टन्ट रोल करने के बावजूद, भविष्य में उनके खाते में बड़े बैनर्स की फ़िल्म नहीं दिखीं मुझे ये सहज ही लगा कि अभय के बारे में जो भी अफवाहें हैं, वो सच्ची हैं। ये बड़े बाप की बिगड़ी हुई औलाद है जो ग़लती से टैलेंटेड भी है।

पर दिल हमेशा अभय की एक्टिंग और वॉयस टेक्स्चर को साथी actors से एक बिलाँग ऊपर पाता था।

फिर एक रोज़ अभय का एक इंटरव्यू मिला, तब पता चला कि अभय बचपन से ही फ़ेम और ग्लैमर से चिढ़ते थे। उनके ताया जी (धर्मेन्द्र) के बारे में अखबार जो कुछ भी छाप दें, उनके स्कूल के साथी और यहाँ तक टीचर्स भी अभय देओल से कन्फर्म करते थे कि “अच्छा सच में धर्मेन्द्र इतनी शराब पीते हैं? वाकई उन्होंने फलाने एक्टर के घर गुंडे भेज दिए थे?”

अभय को इस तरह पब्लिसिटी से नफ़रत थी। इसीलिए जब देव-डी हिट डिकलेयर हुई, तो वह यहाँ वहाँ इंटरव्यू देने और सक्सेस पार्टीज़ में शामिल होने की बजाये अमेरिका भाग गए।

अब होता ये है कि बहुत से फ़िल्मी लोग ‘ये बड़ा’ ईगो लिए घूमते रहते हैं। उन्हें लगता है कि हम स्टार को बना सकते हैं, बिगाड़ सकते हैं। (कुछ ने ऐसा वाकई कर दिखाया है), तो अब ऐसे किसी नामी फ़िल्म जर्नलिस्ट या मेकर को अगर आप सिरे से नकार दो, तो वह अपने मन से और इधर उधर से मिली गॉसिप को आपका आचरण बना देता है।


हमारी फैमिली के एक बड़े रहीस रिश्तेदार, कोई 10 साल बाद मम्मी से एक आयोजन में मिले तो नज़र मिलाने से बचने लगे। मम्मी ने खुद से जाकर बात की तो भी इग्नोर कर दिया। मम्मी बड़ी हैरान हुईं, उन्होंने यहाँ-वहाँ से पूछा तो पता लगा कि एक और म्यूचूअल रिश्तेदार हर महीने उनके घर जाकर ये बताते रहते थे कि मम्मी कितनी मतलबी और घमंडी हैं और कैसे रहीसों का मज़ाक उड़ाती हैं।

पर मैंने अभय का एक छोटा स जेसचर नोट किया और… उनकी इंसानियत पर फ़िदा हो गया…

एक रोज़ अभय किसी अन्य की गाड़ी में थे, गाड़ी सिग्नल प रुकी, एक 50+ अम्मा आकर गाड़ी का शीशा बजाने आईं कि अभय ने साथी को टोका “गाड़ी में बिस्किट या कुछ खाने को नहीं है?”
गाड़ी में कुछ न था।

अभय की खुद की गाड़ी में उनके साथ के लोग आगे-आगे ही थे। अभय ने अम्मा को वहाँ भेज दिया और जब उन्होंने देखा कि अम्मा को बिस्किट मिल गए, तो बच्चों की तरह खुश हुए।

अभय बोले – “मैं पैसे देने में हिचकता हूँ कि पता नहीं कौन सा माफ़िया इन्हें बेगिंग पर मजबूर कर हफ्ता वसूल रहा है। पर मैं कुछ न कुछ खाने पीने का सामान ज़रूर रखता हूँ कि दे सकूँ।

हफ़्ते वाला आधा पैकेट बिस्किट थोड़ी ले जायेगा?

और अगर उतना भी गाड़ी में नहीं होता है तो मैं बात कर लेता हूँ। हँस बोल लेता हूँ। मैं अभी इतना बड़ा स्टार नहीं हुआ कि कोई मजबूर मेरी गाड़ी का शीशा knock करता रहे और मैं उसे इग्नोर कर दूँ”
#सहर