महान हकीम अबू अली सीना हमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के बारे में क्या बताते हैं?
इब्ने सीना 10वीं शताब्दी ईसवी के महान हकीम थे और उन्होंने प्रिंटिंग प्रेस या प्रिंट मीडिया के आविष्कार से सदियों पहले ही इस दुनिया में ज़िदगी गुज़ारी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की तो बात ही छोड़ दें।
हालांकि, उन्होंने उन्हीं कई प्रश्नों और शंकाओं पर चिंतन मनन और नज़रिया पेश किया जिन पर आधुनिक नैतिकतावादी लोग नज़रिए पेश करते हैं: क्या चीज़ की वजह से एक व्यक्ति जानवर के बजाय इंसान बनता है? हालिया वर्षों में, कई दार्शनिकों और फ़्लास्फ़र ने तर्क दिया है कि जो चीज़ हमें इंसान बनाती है वह सचेत अनुभवों की हमारी क्षमता है लेकिन हम चेतना और आगाही को कैसे परिभाषित कर सकते हैं? यह निर्धारित करने के लिए हम किस बाहरी साक्ष्यों का उपयोग कर सकते हैं कि किस प्राणी में चेतना है?
इन सवालों पर आम सहमति न होने का एक कारण यह है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, लंबे समय से व्यक्तित्व के बारे में होने वाली बहस और चर्चा अभी तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी है। जिस तरह हम देखते हैं कि समकालीन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के बारे में तहक़ीक़ करने वाले उन प्रक्रियाओं की तुलना करने में रुचि रखते हैं जो समान कामों के लिए इंसान और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के अमल को तैयार करती है। इब्ने सीना भी समान व्यवहार के परिणाम हासिल करने के लिए मनुष्यों और जानवरों के आंतरिक अमल की तुलना में रुचि रखते थे।
इब्ने सीना के अनुसार, इंसानों के अलग होने की अहम वजह, पूरे तौर पर बातों और सामान्यताओं को समझना है जबकि जानवर केवल आंशिक चीजों के बारे में ही सोचता है (वह चीजें जो उसके सामने पेश आती हैं) इंसान आम क़ानून व सामान्य नियमों के आधार पर फ़ैसला कर सकता है और तर्क पेश कर सकता है। इब्ने सीना अपनी किताब अल-नफ़्स में एक भेड़ की मिसाल पेश करते हैं जिसका सामना भेड़िये से हो जाता है।
वह दावा करते हैं कि जबकि इंसान आम क़ानून या सामान्य सिद्धांत का पालन करते है कि “आम तौर पर भेड़िये खतरनाक होते हैं और उनका सामना एक ख़ास जानवर से है जो भेड़िया है, इसलिए उन्हें भाग जाना चाहिए,” लेकिन जानवर इससे अलग तरह से सोचते हैं। वे किसी आम क़ानून और सामान्य नियम से फ़ैसला नहीं करते, वे बस भेड़िये को देखते हैं और जानते हैं कि उन्हें भागना है।
भेड़ियों की आम विशेषताओं के बारे में बहस करने के बजाय, वे ख़ुद को आंशिकताओं तक ही सीमित रखते हैं। इंसान और जानवर की साइकोलॉजी के बीच अबू अली सीना का अंतर, उस अंतर के समान है जिसकी आधुनिक बुद्धिजीवी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के संबंध में समीक्षा कर रहे हैं। वर्तमान शोध से पता चलता है कि आर्टिफिशियल न्यूरो नेटवर्क में सिस्टैमैटिक हाइब्रिड जेनरेलाइज़िबिलेटी (Systematic hybrid generalizability) की ताक़त नहीं होती।
जबकि इंसान शब्दों को संवारकर उसका सारांश और सार अर्थ निकाल लेता है जिन्हें बाद में अधिक जटिल नज़रियों में जोड़ा जा सकता है, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ख़ास डेटाज़ के लिए स्टैटिस्टिकल डेटा (Statistical data) सेट तलाश करता है जो किसी ख़ास काम से मेल खाते हैं। इंसानों की पहचान और आर्टिफिशियल की पहचान के बीच का अंतर को आप अबू अली सीना द्वारा इंसानों के तर्क के बारे में पेश किए गये ब्योरे में अच्छी तरह से देख सकते हैं।
किताब अल-शेफ़ा में, इब्ने सीना कहते हैं कि कैसे ज्ञानी प्राणी सीखता है? कौन कौन सी चीज़ें समान हैं, क्या चीज़ें सामान्य नहीं हैं, इसी आधार पर संयुक्त चीज़ों की प्रवृत्ति को दूसरी चीज़ों में देखा जा सकता है। इब्ने सीना के अनुसार, इंसानों की अहम ख़ासियतों में सामान्यताओं की समझ या पूरी तरह से मुद्दे को समझना है।
हम इंसान, मूल चीज़ों की विशेषताओं को कम ज़रूरत की चीज़ों की विशेषताओं से अलग कर सकते हैं ताकि हम आम बातों को समझ सकें। फिर हम इन बातों पर दलील पेश करते हैं और उन्हें विभिन्न मामलों पर लागू करते हैं। भेड़ और आर्टिफिशियल न्यूरो नेटवर्क के बीच एक बुनियादी अंतर यह है कि आर्टिफिशियल न्यूरो नेटवर्क के पास व्यापक डेटासेट के रूप में विवरण के बहुत बड़े भंडार तक पहुंच आसान होती है। व्यक्तित्व के लिए अबू अली सीना का मुख्य मानदंड (आम और सामान्यताओं से तर्क) व्यवस्थित सिस्टैमैटिक हाइब्रिड जेनरेलाइज़िबिलेटी के समान है। यह मानदंड व्यक्तित्व के लिए संभावित रूप से परीक्षण योग्य मानक प्रदान कर सकता है। अब तक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) कई बार इस टेस्ट में फेल हो चुका है।