विशेष

अबकी बार कार्नवालिस सरकार…

स्वतंत्र
===========
अबकी बार कार्नवालिस सरकार …
लार्ड साहिब असल लार्ड थे, उच्चकुल शिरोमणी गर्वनर जनरल। इसके पहले क्लाईव और वारेन हेस्टिंग्ज दलित टाइप के जीव थे। याने वो कंपनी एम्पलॉयी, छोटी मोटी नौकरी से शुरूआत, और प्रमोट होते होते गर्वनर बने।
लेकिन लार्ड कार्नवालिस, एक दिन अचानक हाईकमान के आदेश पर गुजरात के गवर्नर बन गए।
●●
गुजरात टाइपो इरर है, बंगाल पढा जाए। तो असल मे अमरीका जाकर जार्ज वाशिंगटन से माफी मांगने के कारण कार्नवालिस की प्रसिद्धि चहुं ओर फैली थी। उन्होने संसद को बताया कि अमेरिका मे न कोई घुसा है, न आया है …
बस वो इलाका हमारे हाथ से निकल गया है। इस पर खुश होकर जब भारत की गवर्नरी ऑफर की गई, तो पहले पहल उन्होने मना कर दिया।
दरअसल कार्नवालिस को नंदकुमार केस का पता चल चुका था। इसके कारण हेस्टिंग्ज के इंपीचमेण्ट की तैयारी चल रही थी। कार्नवालिस कोई लोचा नहीं चाहते थे। उन्होने शर्त रखी – कैबिनेट की पूरी पावर मुझे दो।
मै गवर्नर जनरल, मै कमांडर इन चीफ, मै ही नेता, मै ही काउंसिल, झंडी भी अपुन हिलाएगा, और डंडी भी अपुन हिलाएगा। मै अकेला सब पर भारी .. मंजूर है तो बोलो।
●●
मंजूर हो गया। कार्नवालिस सर्वशक्तिमान होकर भारत आए। उनका वादा था, अच्छे दिन लाऐंगे।
पब्लिक के नही, कंपनी के ..
और कंपनी को पैसे चाहिए थे। तब बेचने को एलआईसी, रेल्वे तो थे नही, कार्नवालिस ने सरकार ही बेच दी। पूरी सरकार ठेके पर चलने लगी, इसे पर्मानेन्ट सेटलमेण्ट कहते है।
सरकार बेचने का मतलब – टैक्स वसूली की पावर आउटसोर्स करना। आय का स्रोत भू भाटक था। फसल उत्पादन के अनुरूप, इनकम हर साल कम ज्यादा होती रहती। कार्नवालिस ने हर इलाके का एक रेट फिक्स किया, और उसे ठेकेदारो को बेच दिया।
आजकल जैसे शराब के ठेके बिकते हैं, सरकार को फिक्स पैसा दो, फिर जीभर दारू, चाहे जिस कीमत पर बेचो। कार्नवालिस के राज मे जमींदार ठेका लेते, किसानों से मन भर टैक्स वसूलते।
फिक्स राशि सरकार को देते, और बाकी बल्ले बल्ले .. इससे एक अच्छा दलाल वर्ग पैदा हुआ। यह सरकार के हर अच्छे बुरे काम के समर्थन मे खड़ा रहता। जमींदारो के नौकर, मालिशवाले, सफाईवाले, गुमाश्ते, गुण्डे, चौकीदार भी बड़ी संख्या मे अंग्रेजो भक्त हुए। इसे लाभार्थी वर्ग समझ लें।
आम किसान खून के आंसू रो रहा होता, ये “नव-दलाल वर्ग” सरकार का अंधभक्त था। इससे बंगाल मे मामला सेट हो गया।
उत्तर भारत मे ब्रिटिश राज की जड़ें गहरी हुई।
●●
इसी समय ब्रिटिश बंगाल मे अफीम की खेती होने लगी। यहां उगाया अफीम कौड़ियों के भाव लेकर चीन ले जाते। वहां अफीम के बदले रेशम, चाय, पोर्सेलिन वगैरह लेकर ब्रिटेन मे सोने के भाव बेचते। चीनियों को मामले की गंभीरता समझने मे अभी 50 साल और लगने थे।
लेकिन एक बंदा था, जिसे भारत का भविष्य दिखाई दे रहा था।
दक्षिण का टीपू सुल्तान …
उसके पिता हैदर ने दो बार अंग्रेजो को शिकस्त दी थी। दक्षिण मे वह बेहद मजबूत था, फ्रेंच की ताकत से वह वाकिफ था, और उनके संपर्क मे था।
अंग्रजो ने पांडिचेरी पर हमला किया तो हैदर ने ब्रिटिश को अच्छा सबक सिखाया। मंगलौर की संधि हो गई। अब हैदर का स्वर्गवास हो चुका था, फ्रांस मे क्रांति मे उलझ गया था। ये मौका शानदार था।
●●
पहले तो त्रावनकोर के राजा को उकसाया गया, जिसने टीपू के संरक्षित इलाको मे घुसपैठ की। टीपू मालाबार मे घुसा, विद्रोह दबाया, तो उसके अत्याचारों के बारे मे खूब प्रोपगंडा किया गया। यह प्रोपगण्डा आज तक संघी इस्तेमाल कर रहे हैं।
बहरहाल मलाबार को न्याय दिलाना था। टीपू की घेराबंदी की। कार्नवालिस को छठी का दूध और जार्ज वाशिंगठन दोनो याद आ गए।
क्येाकि टीपू की तोपों ने बम मारकर वो धुआं धुंआ किया, कि लार्ड कार्नवालिस को श्रीरंगपट्नम से बकरे पर बैठकर भागना पड़ा। ये बात मै नही, उस वक्त ब्रिटिश अखबारों मे छपा कार्टून कहता है।
कॉपी लगाई है।
●●
कार्नवालिस को समझ आ गया कि अकेले “टीपू मुक्त भारत” नही बना पाऐंगे। उसने “राष्ट्रीय धनतांत्रिक गठबन्धन” बनाया। इस गठबंधन मे मराठे थे, निजाम थे, त्रावणकोर का राजा था।
ये सब जो एक दूसरे का फूटी आंख नही देखते थे, मगर यहां, मामला दौलत का था, इलाकों का था। वे अंग्रेजो से मिल गए। टीपू बहादुरी से लड़ा, मगर हार गया।
कभी हैदर ने कांची मठ का पुर्ननिर्माण कराया था। टीपू ने वहां स्वर्णमूर्तियां स्थापित करवाई थी, और शंकराचार्य को बुलाकर पूजा पाठ करवाये थे। सिकुलर टीपू को सबक सिखाने के लिए, मराठा सरदार रघुनाथ भाउ, और राघुनाथ राव पटवर्धन ने श्रृगेरी का मंदिर लूटा , 60 लाख का सोना चांदी भरकर ले गए।
टीपू का आधा राज्य छीनकर बंदरबांट कर ली गई। उसके बेटे बंधक रखे गए। दक्षिण भारत मे ब्रिटिश राज की जड़े गहरी हुई।
●●
उत्तर और दक्षिण दोनो सेटल था।
भारतीयों ने जुलमिलकर लार्ड कार्नवालिस के माथे से अमेरिकी हार का कलंक धो दिया था। ये 1793 था, जब वह भारत से वापस जा रहा था, तो एयरपोर्ट पर मराठों को गले लगाकर फूट फूटकर रोया। वो जानता था .. कि अगर ये लोग अमेरिका मे भी होते …
तो वहां भी अंग्रेजी राज का सूरज न डूबता।
#वायसराय_औऱ_गवर्नर_जनरल (09)

 

डिस्क्लेमर : लेखक के अपने निजी विचार और जानकारियां हैं, तीसरी जंग हिंदी का कोई सरोकार नहीं है