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अफ़्ग़ानिस्तान : तालिबान सत्ता में वापसी की तीसरी सालगिरह मना रहा है : रिपोर्ट

तालिबान सत्ता में वापसी की तीसरी सालगिरह मना रहा है. इन तीन सालों में अफगानिस्तान की आर्थिक मुश्किलें और बढ़ी हैं. वहां मानवीय संकट और गहराता जा रहा है. महिलाओं और लड़कियों के लिए हालात और भी मुश्किल हैं.

अफगानिस्तान की सत्ता में तालिबान की वापसी को तीन साल पूरे हो गए हैं. अगस्त 2021 में अमेरिका और नाटो सेना के अफगानिस्तान से निकलने के बाद तालिबान ने बहुत नाटकीय तेजी से देश पर अपना नियंत्रण कायम किया.

अंतरराष्ट्रीय समर्थन वाली सरकार के प्रमुख राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़कर चले गए और 15 अगस्त 2021 को तालिबान ने काबुल में प्रवेश कर राष्ट्रपति आवास को अपने नियंत्रण में ले लिया.

तालिबान ने जश्न के लिए चुना बगराम एयरबेस
तालिबान ने सत्ता में वापसी की तीसरी सालगिरह का जश्न 14 अगस्त को बगराम एयरबेस पर मनाया. तीन साल पहले तक इस एयरबेस पर तालिबान के लड़ाके बंदी बनाकर रखे गए थे. आयोजन स्थल का यह चुनाव अफगानिस्तान में चार दशक से भी ज्यादा समय से चले आ रहे संघर्ष और ताकत का एक प्रतीक है.

यह एयरबेस अफगानिस्तान में दो महाशक्तियों के सैन्य अभियान का गढ़ रहा है. 1950 के दशक में भूतपूर्व सोवियत संघ ने यहां एयरफील्ड बनाया था. फिर जब सोवियत संघ ने 1979 में अफगानिस्तान पर हमला किया, तब बगराम उनके अभियान का मुख्य सैन्य गढ़ बना. 1989 में सोवियत संघ की अफगानिस्तान से वापसी के बाद अहमद शाह मसूद व अब्दुल राशिद दोस्तम के नेतृत्व में गठित नॉदर्न अलायंस और तालिबान के बीच छिड़े संघर्ष में भी बगराम एयरफील्ड एक प्रमुख मोर्चा बना रहा.

2001 में वर्ल्ड ट्रेंड सेंटर पर हुए आतंकी हमले के बाद जब वॉशिंगटन ने अफगानिस्तान पर हमला किया और तालिबान को सत्ता से हटाया, तब अमेरिका ने इस बेस को अपने नियंत्रण में लेकर नए सिरे से इसका निर्माण और विस्तार किया.

दो दशक लंबे युद्ध के बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान से निकलने का फैसला किया. जुलाई 2021 में जब अमेरिकी सैनिकों की आखिरी खेप बगराम एयर बेस से रवाना हुई, तब तक स्पष्ट हो चुका था कि अब राष्ट्रपति अशरफ गनी के नेतृत्व वाली अफगान सरकार के भी दिन पूरे हो चुके हैं. तालिबान की सत्ता में वापसी तकरीबन पुख्ता हो चुकी थी.

जश्न में शामिल हुए हजारों दर्शक
इस मौके पर हुई परेड में तालिबानी सैनिकों ने मशीन गनों के साथ मार्च किया. परेड में अमेरिका और नाटो सेनाओं द्वारा पीछे छोड़े गए हेलिकॉप्टरों और टैंकों की भी नुमाइश की गई.

खबरों के मुताबिक, यह बीते तीन साल में तालिबान की ओर से आयोजित सबसे भव्य कार्यक्रम था. इस जलसे में तालिबान कैबिनेट के वरिष्ठ सदस्यों समेत करीब 10,000 लोग शामिल हुए. तालिबान के सुप्रीम लीडर हैबतुल्लाह अखुंदजादा इस कार्यक्रम में उपस्थित नहीं थे. प्रधानमंत्री हसन अखुंद ने एक बयान जारी कर कहा, “इस दिन अल्लाह ने अफगानिस्तान के मुजाहिद देश को एक घमंडी और आक्रमणकारी अंतरराष्ट्रीय सेना पर निर्णायक जीत दिलाई.”

तालिबान के मुताबिक, कुछ विदेशी राजनयिकों ने भी इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया. हालांकि, इनके नाम की जानकारी नहीं दी गई है. तालिबान की नीतियों के अनुरूप, महिलाओं को इस कार्यक्रम में शामिल होने की इजाजत नहीं थी.

कथित सफलताओं के दावे, चुनौतियों का जिक्र नहीं
इस मौके पर अपनी कथित उपलब्धियों का जिक्र करते हुए तालिबान कैबिनेट के सदस्यों ने बताया कि बीते तीन साल में उन्होंने इस्लामिक कानून को मजबूत किया है और ऐसी सैन्य व्यवस्था कायम की है, जो “शांति और स्थिरता” मुहैया करती है. समाचार एजेंसी एपी के मुताबिक, इस मौके पर उप प्रधानमंत्री मौलवी अब्दुल कबीर ने कहा, “इस्लामिक अमीरात ने आंतरिक मतभेदों को खत्म किया है और देश में एकता और सहयोग की गुंजाइश बढ़ाई है.” तालिबान अपनी सरकार को आधिकारिक तौर पर “इस्लामिक अमीरात” कहता है.

अंतरराष्ट्रीय समुदाय को संदेश देते हुए मौलवी अब्दुल कबीर ने कहा, “किसी को भी देश के आंतरिक मामलों में दखल नहीं देने दिया जाएगा और अफगान भूभाग का किसी भी देश के खिलाफ इस्तेमाल नहीं किया जाएगा.”

इस मौके पर अफगानिस्तान में मूलभूत मानवाधिकारों की स्थिति, महिला अधिकारों का गंभीर हनन, बेरोजगारी और आर्थिक परेशानी जैसे मुद्दों पर तालिबान के किसी भी नेता ने कोई बयान नहीं दिया. दशकों से जारी संघर्ष और अस्थिरता के कारण लाखों की संख्या में अफगान नागरिक भुखमरी की कगार पर हैं. अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन चेतावनी देते हैं कि देश में मानवीय सहायता मुहैया कराने के अभियानों में फंड की गंभीर कमी है.

महिलाओं और लड़कियों की गंभीर स्थिति
तालिबान की सत्ता में वापसी के बाद यहां लड़कियों और महिलाओं से मूलभूत अधिकार छीन लिए गए हैं. उनपर कई सख्त प्रतिबंध लगाए गए हैं. मसलन, छठी कक्षा से आगे उनकी पढ़ाई पर बैन है. वे पार्क जैसी सार्वजनिक जगहों पर भी नहीं जा सकतीं. वे किसी पुरुष के बिना कहीं यात्रा नहीं कर सकती हैं. उनके ऊपर सिर से पांव तक खुद को ढके रखने की अनिवार्यता है.

वर्ल्ड बैंक के आंकड़े बताते हैं कि 2021 में तालिबान के सत्ता पर नियंत्रण से पहले अफगानिस्तान के कुल कामगारों में महिलाओं की हिस्सेदारी 14.8 प्रतिशत थी. बीते तीन साल में यह घटकर 4.8 फीसदी पर पहुंच गई है.

पिछले साल अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि तालिबान की वापसी के बाद अफगानिस्तान महिलाओं और लड़कियों के लिए सबसे दमनकारी देश बन गया है. अपने बयान में यूएन ने कहा कि अफगानिस्तान के नए शासकों ने कमोबेश अपना सारा ध्यान “ऐसे नियम लागू करने में लगाया है, जिनके कारण ज्यादातर महिलाएं और लड़कियां अपने घरों में फंसकर रह गई हैं.”

कई मानवाधिकार संगठन आशंका जताते हैं कि अगर तालिबान के साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई कूटनीतिक संवाद ना हो तो अफगानों, खासतौर पर महिलाओं और लड़कियों की स्थिति बेहतर करना काफी मुश्किल हो जाएगा.

किन देशों के साथ हैं तालिबान के संबंध
किसी भी देश ने अभी तक तालिबान को अफगानिस्तान की वैध सरकार के रूप में अधिकारिक मान्यता नहीं दी है. कई देशों ने कहा है कि तालिबान को मान्यता देना मुद्दों पर निर्भर करता है. इन मुद्दों में समावेशी सरकार बनाना, महिलाओं के अधिकार सुनिश्चित करना और कट्टरपंथी समूहों से संबंध तोड़ना शामिल है.

हालांकि रूस, ईरान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात समेत करीब एक दर्जन देशों की काबुल में राजनयिक उपस्थिति है. कुछ देशों ने तालिबान द्वारा नियुक्त किए गए राजनयिकों को भी अपने यहां जगह दी है. पाकिस्तान ने अक्टूबर 2021 में ही पूर्व अफगान दूतावास तालिबान के सुपुर्द कर दिया था. ईरान ने फरवरी 2023 में तेहरान स्थित अफगान दूतावास तालिबान को दे दिया था.

अप्रैल 2022 में रूस ने मॉस्को स्थित अफगान दूतावास भी तालिबान को सौंप दिया. जनवरी 2024 में चीन ने अपने यहां तालिबान द्वारा नियुक्त किए गए राजदूत को स्वीकार्यता दी. हालांकि, चीन ने यह भी कहा कि वह अभी भी तालिबान सरकार को आधिकारिक तौर पर मान्यता नहीं देता है. तुर्की के इस्तांबुल शहर में अफगान वाणिज्यिक दूतावास भी तालिबान के पास है.

ब्लूमबर्ग की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, यूरोपीय संघ के भी कई देश काबुल में अपने दूतावास फिर शुरू करने पर विचार कर रहे हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, इसका मुख्य मकसद क्षेत्र में अपनी एक सामरिक उपस्थिति बनाए रखना और महिला अधिकारों की सुरक्षा की दिशा में कूटनीतिक प्रयास करना है. इटली ने हाल ही में इससे जुड़ी तैयारियों पर भी काम किया.