साहित्य

अपनी फ़ितरत से मजबूर तुम जब फिर भी छलोगे उसे तो यक़ीनन….

Madhu Singh
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कुछ स्त्रियां हौसला होती हैं
अपना और अपने परिवार का
ऐसा नहीं कि वो टूटती नहीं
बिखरती, रोती और बिलखती नहीं
पर इन सबसे ऊपर होता है
उनका आत्म विश्वास
खुद को खुद ही जोड़ने का हुनर
हर परिस्थिति में खुद को
ढाल लेने का हुनर
अपनी कमजोरियों से
लड़कर उन्हें अपनी
ताकत बना लेने का हुनर
नहीं होती हैं वो फूल सी नाज़ुक
कलाइयों की
जिसमें चूड़ियां पहनाई जा सके
बस पहन कर एक घड़ी ही
वह चलती हैं,साथ साथ समय के
कोशिश करती हैं कदम से कदम मिला कर
चलने की अपनी क्षमता और प्रतिभा से
बस सब कुछ पाने का सपना देखती हैं
नहीं चाहती वो किसी के ऊपर
एक पाई पाई का मोहताज होना
बस एक सम्मान और
व्यक्तिगत पहचान चाहती हैं अपनी
कि उनको लोग पिता और पति
के नाम से बढ़ कर भी जाने
उनके स्वयं की
कार्य,कुशलता और
सफ़ल होने की
मापन प्रणाली में
दर्ज करा सके वो नाम अपना
कुछ नहीं चाह होती सिवाय इस के
उसे भी समाज में एक
पुरुष की तरह
बराबरी और सम्मान मिले
एक लड़की या एक स्त्री से परे होकर
समाज की सफलता और असफलता
की परिभाषा से
उसे भी देखा और गिना जाए ll

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Rinku Chandel
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#मत_छलना_उसे
मत छलना उसे
जिसने किसी अबोध बालक की
दंतुरित मुस्कान-सा
अपना निरामय विश्वास
तुम्हारे हाथों में सौंप दिया ।
मत छलना उसे
जिसने तुम्हारी चुगली खाती
तमाम आवाज़ों की ओर से
फेर लिए अपने कान
और तुम्हारी एक पुकार पर
बिखेर दी अपनी अनारदाना हँसी ।
मत छलना उसे
जिसने सदियों से
अपनी आत्मा पर बंधी
पट्टियों को खोलकर
उसमें झाँकने का हक
तुम्हें दिया ।
मत छलना उसे
जिसने तुम्हारी ओर
इशारा करतीं तमाम उँगलियों को
अनदेखा कर
अपनी उँगली थमा दी तुम्हें ।
मत छलना उसे
जिसने झूठ से बजबजाती
इस दुनिया में
सिर्फ़ तुम्हें ही सच समझा ।
अपनी फितरत से मजबूर तुम जब
फिर भी छलोगे उसे
तो यकीनन
नहीं बदल जाएगी ग्रह-नक्षत्रों की चाल
धरती पर नहीं आएगा भूकंप
पहाड़ नहीं होंगे स्खलित
नदियों में बाढ़ नहीं आएगी
तट बंध नहीं होंगे आप्लावित
दिन और रात का फर्क भी नहीं मिटेगा,
मगर ताकीद रहे
कि किसी की भाषा से
विलुप्त हो जाएंगे
विश्वास और उसके तमाम पर्यायवाची शब्द
और शब्दों के पलायन से उपजा
यह रिक्त स्थान ही
एक दिन लील जाएगा तुम्हें ।
सोशल मीडिया सभार से
#मालिनी_गौतम