साहित्य

अपना नज़रिया बदल लीजिए, अपनी बच्चियों से कहिए कि वे आभूषणों के साथ कॉपी और पेन मांगे, भारत का संविधान मांगे, उसे जानें उसे पढ़ें!

Sara Thakur
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दुनिया के किसी भी होटल में हमने किसी औरत को खाना बनाते नहीं देखा है। संसार का कोई भी बड़ा शेफ सामान्यत : औरत नहीं है। बच्चों की देखभाल के छोटे छोटे सेंटर जगह जगह खुल ही रहे हैं।

बहुत से पुरुष विभिन्न अवसरों पर औरतों या लड़कियों को मेंहदी लगा रहे हैं। ऐसे ढेर सारे काम हैं जो घरों में औरतें करती आ रही हैं। पर जैसे ही उस काम से पैसे मिलने शुरू होते हैं तो औरत पीछे छूट जाती है।

अर्थात जब कभी सदियों से किसी औरत के द्वारा किए जाने वाले काम के साथ अर्थ ( पैसा ) जुड़ता है तो आदमी औरत को रिप्लेस कर देता है। भारत में भी 1962 तक औरतों द्वारा घर में किए गए काम को देश की GDP में गिना जाता था।

सच तो यह है कि औरतों द्वारा किया जाने वाला घर का काम किसी ऑफिस की जॉब से ज्यादा कठिन होता है। किसी बिजनेसमैन की तरह ही व्यस्तता होती है। साल के 365 दिनों में से किसी भी दिन छुट्टी नहीं।

सच यही है कि एक हाउसवाइफ का काम बहुत कठिन और जिम्मेदारी भरा होता है। स्त्री घर पर है। तभी हम लोग बाहर काम कर पाते हैं।

अपना नज़रिया बदल लीजिए। हाउसवाइफ का सम्मान कीजिए। उनकी कीमत उनके न होने पर पता लगती है। दुनिया के सभी धर्मों ने औरत के खिलाफ ही नियम कानून और धार्मिक कर्म निर्धारित किए हैं। किसी ने ज्यादा, किसी ने कम।

आदमी और बाजार ने औरत को केवल कम कपड़े पहनकर शरीर दिखाने भर की स्वतंत्रता दी है। तो किसी ने औरत को ढकने के नाम पर पूरी तरह से उनको कैद करके रख दिया है।

किसी ने भी उनको नेचुरल नहीं रहने दिया है। वह इंसान नहीं वस्तु के रूप में ट्रीट होने लगती है। औरत की कोख से जन्म लेने वाला आदमी खुद औरत की नियति का निर्धारण कैसे कर सकता है।

यह नाक , कान छिदवाना। कान की बाली , गले का हार , नाक में रिंग आदि आभूषण वास्तव में एक लड़की को प्रचलित अर्थों में औरत के रूप में ढालने के औजार हैं और कुछ नहीं।

ये औरत को कमजोर बनाते हैं। अपनी बच्चियों से कहिए कि वे आभूषणों के साथ कॉपी और पेन मांगे। भारत का संविधान मांगे। उसे जानें उसे पढ़ें। अच्छा साहित्य पढ़ें। अच्छी किताबें पढ़ें।अपनी सूझबूझ के साथ भारत की छवि को और निखारें।

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Sksaini
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यह कहानी है रमेश की, एक ऐसे शख्स की जो जिंदगी के 40वें पड़ाव पर खड़ा है। रमेश की जिंदगी में सब कुछ ठीक चल रहा है – नौकरी है, परिवार है, और दोस्तों का साथ है। लेकिन उम्र बढ़ने के साथ उसके कुछ “सीक्रेट्स” भी बढ़ते जा रहे हैं।

रमेश को अपना बढ़ता हुआ गंजापन छुपाने की बड़ी मशक्कत करनी पड़ती है। ऑफिस जाने से पहले वह हर सुबह बड़े जतन से बालों को सेट करता है, और थोड़ी सी हेयर फाइबर पाउडर भी लगाता है ताकि सिर का गंजापन कम दिखे। एक बार जब उसका दोस्त सुनील उससे मिलने घर आया और मजाक में बोला, “अरे भाई, ये बाल कहाँ से लाए?” तो रमेश ने हंसते हुए बात को टाल दिया और जल्दी से टोपी पहन ली।

इतना ही नहीं, उसके सफेद बाल भी अब ज्यादा हो गए हैं, तो वह नियमित तौर पर डाई करवाता है। लेकिन ये सफेद बाल इतनी आसानी से छुपते नहीं हैं। एक दिन उसकी बेटी ने कह दिया, “पापा, आपके बालों में ये सफेद-सफेद चमक क्या है?” रमेश बस मुस्कुरा कर रह गया और बात को घुमा दिया।

रही बात तनख्वाह की, तो रमेश ने अपने दोस्तों से भी अपनी सही सैलरी छुपा रखी है। हर महीने दोस्तों की मीटिंग में जब कोई पूछता है कि उसकी सैलरी कितनी है, तो वह आधी सच्चाई और आधा मजाक में जवाब देता है ताकि किसी को सच्चाई का पता न चले।

लेकिन सबसे मजेदार है उसका फोन और उसमें छुपे हुए “नंबर्स”। कॉलेज के पुराने दिनों की कुछ महिला दोस्तों के नंबर उसने अभी तक फोन में सेव कर रखे हैं, लेकिन नाम अलग-अलग कोड में सेव किए हुए हैं ताकि घर में कोई देख ले तो शक न हो। एक दिन उसकी पत्नी ने जब पूछा, “यह ‘डॉक्टर अनीता’ कौन है जो तुम्हें इतने मैसेज भेज रही है?” तो रमेश ने तुरंत कह दिया, “अरे, ये मेरी हेल्थ चेकअप के बारे में पूछ रही है।” और फिर जल्दी से फोन को साइलेंट पर रख दिया।

रमेश की यह छोटी-छोटी बातें और “राज़” उसकी जिंदगी का हिस्सा बन चुके हैं। वह खुद भी इन बातों पर हंसता है और कभी-कभी सोचता है कि शायद यही “छोटे-छोटे सीक्रेट्स” जिंदगी का असली मजा हैं।