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अधिकांश यूरोपियन, यूरोपीय संघ में तुर्किये के शामिल करने के पक्ष में नहीं : तुर्किये

हालांकि तुर्किये की इच्छा रहीं है कि एक दिन वह यूरोपीय संघ का सदस्य बन जाए किंतु निकट भविष्य में एसा कुछ होता संभव दिखाई नहीं दे रहा है।

तुर्किये की ओर से यूरोपीय संघ की सदस्यता प्राप्त करने के अथक प्रयासों के बावजूद उसको इस संघ में प्रवेष मिलता दिखाई नहीं दे रहा है। ताज़ा सर्वेक्षणों से पता चलता है कि अधिकांश यूरोपियन, इसके पत्र में नहीं हैं कि तुर्किये, यूरोपीय संघ में तुर्किये के शामिल करने के पक्ष में नहीं हैं।

यूरोपीय संघ के विदेशी संबन्धों की परिषद ECFR द्वारा कराए गए ताज़ा सर्वेक्षण बताते हैं कि यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के बहुत कम ही नागरिक, तुर्किये को इस संघ का सदस्य बनाने के पक्ष में हैं। अधिकांश एसा नहीं चाहते।

यहां पर ध्यानयोग्य बिंदु, पूर्वी और केन्द्रीय यूरोपीय देशों द्वारा तुर्किये की सदस्यता का विरोध है। उदाहरण स्वरूप पोलैण्ड और रोमानिया के 60 से 65 प्रतिशत लोग तुर्किये को यूरोपीय संघ का सदस्य बनाना नहीं चाहते हालांकि बुल्गारिया, पोलैण्ड और रोमानिया के लोग अपनी राष्ट्रीय मुद्रा की क़ीमत में कमी के बाद रोज़ाना तुर्किये की यात्रा करके वहां से सस्ता सामान खदीने आते हैं। इसी के साथ आस्ट्रिया, जर्मनी, फ्रांस और डेनमार्क तो यूरोपीय संघ में तुर्की की सदस्यता के विरोधी हैं।

तुर्किये ने सन 1964 से स्वयं को यूरोपीय देश बनाने के लिए प्रयास आरंभ कर दिये थे। इस काम के लिए वहां के क़ानूनों में परिवर्तन किया गया और वहां की संस्कृति को यूरोपीय संस्कृति के अनुरूप करने की भी कोशिशें की गईं। छह दशक से अधिक समय से प्रयास करने के बावजूद अबतक युरोपीय संघ में तुर्किये की सदस्यता को स्वीकृति मिलने की कोई संभावना दिखाई नहीं दे रही है। हालांकि इस बीच तुर्किये यूरोपीय संघ की कुछ संस्थाओं का सदस्य बनने में सफल रहा जैसे वहां के सीमा शुल्क संघ आदि किंतु मुख्य लक्ष्य तक पहुंचने में अभी बहुत लंबा रास्ता तै करना है।

इस बीच यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि पिछले दो दशकों के दौरान यूरोपीय सरकारों के साथ तुर्किये के अधिकारों के बीच तनावपूर्ण व्यवहार के कारण तुर्किये ने यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के साथ निकटता हासिल करने के लिए कुछ नए मार्ग अपनाए हैं। इन्हीं में से एक, यूनान और तुर्किये के बीच तुर्किये सरकार की ओर से पुल बनाए जाने की कोशिश है। इसके अलावा जर्मनी, फ्रांस और इटली जैसे यूरोपीय संघ के प्रभावी एवं शक्तिशाली देशों के साथ अपने संबन्धों को विस्तृत करने के उद्देश्य से तुर्किये की ओर से प्रयास तेज़ कर दिये गए हैं।

तुर्किये की ओर से यह प्रयास एसी हालत में जारी है कि जब ब्रिटेन के भूतपूर्व प्रधानमंत्री डेविड कैमरून ने एक बार कहा था कि सन 3000 तक भी तुर्किये, यूरोपीय संघ की सदस्य नहीं बन पाएगा। जर्मनी, फ्रांस और इटली के अधिकारी, तुर्किये की विदेश नीति सहित कई अन्य मुद्दों पर रजब तैयब अर्दोग़ान की सरकार की नीतियों की कड़ी आलोचना कर चुके हैं। अब जबकि युरोपीय संघ के प्रभाशाली एवं सशक्त देश इस संघ में तुर्किये की सदस्यता के बारे में बिल्कुल भी गंभीर नहीं हैं तो फिर एसे में तुर्किये की ओर से सदस्यता ग्रहण करने के प्रयास क्यों किये जा रहे हैं?