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अगले दशकों में पानी की आपूर्ति दुनिया की मूल आवश्यकता होगी, 2040 तक लगभग 33 देश, जल संकट में फंस जाएंगे : रिपोर्ट

पानी की कमी बहुत सी समस्याओं को जनम देती है लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि कभी कभी हम समस्या में केवल इस लिए फंस जाते हैं क्योंकि हम पानी को पानी ही समझते हैं जबकि पानी, केवल पानी नहीं है।

बल्कि पानी अर्थ व्यवस्था है, रोज़गार है, आहार है, स्वास्थ्य है, ऊर्जा है, शांति है, एकता है और सुरक्षा है। अगर हम पानी के बारे में अपनी सोच बदलते हैं तो यह हमारी समझ में आ जाएगा कि पानी की बहुत सी समस्याएं, पानी से संबंधित ही नहीं होती इसी लिए उनका समाधान भी पानी से अलग होता है। निश्चित रूप से पानी, जीवन के लिए सब से अधिक महत्वपूर्ण चीज़ है कि जो होता है तो उस पर ध्यान नहीं दिया जाता है लेकिन जब नहीं होता है तो भयानक संकट पैदा हो जाता है। यही नहीं अगर पानी हो भी लेकिन स्वच्छ न हो तो भी वह कई प्रकार के संकट पैदा कर देता है।

अब सभी विशेषज्ञ इस बात पर सहमत हैं कि अगले दशकों में पानी की आपूर्ति दुनिया की मूल आवश्यकता होगी। कुछ दिनों पहले प्रकाशित होने वाली एक रिपोर्ट के अनुसार सन 2040 तक लगभग 33 देश, जल संकट में फंस जाएंगे। यह समस्या, विभिन्न मुद्दों में फंसे देशों के लिए अधिक समस्याओं में फंसने का कारण बन जाएगी। विशेषज्ञों ने विभिन्न सामाजिक व आर्थिक मानकों और नमूनों की मदद से एक जटिल अध्ययन के बाद विश्व के 167 देशों में जल संकट का वर्गीकरण किया है। अगले 25 वर्षों में जिन देशों में पानी का गंभीर संकट खड़ा होगा उनमें कुछ देश पश्चिमी एशिया में हैं। यह देश, बहरैन, कुवैत, फिलिस्तीन, क़तर, यूएई, सऊदी अरब, अवैध अधिकृत फिलिस्तीन, ओमान और लेबनान हैं। इन हालात में भी और इस विषय के महत्व के बावजूद, इन देशों ने इस समस्या का सामना करने के लिए व्यापक और प्रभावशाली कार्यक्रम नहीं बनाया है । ऐसा लगता है कि जीवन के लिए बेहद महत्वपूर्ण पानी के लिए एकजुटता वास्तव में जल की राजनीति की भेंट चढ़ गयी है।

जल की समस्या को दूर करने के लिए उन कारकों पर ध्यान देना ज़रूरी है जो इस समस्या का कारण बने हैं। सच्चाई यह है कि जल अभाव का एक हिस्सा प्रकृति की वजह से है लेकिन इस संकट का एक हिस्सा, स्वयं इन्सानों की वजह से पैदा हुआ है। जल का अभाव चाहे प्रकृति की वजह से हो या इन्सानों की वजह से या फिर दोनों की वजह से, हर हाल में एक चेतावनी है जिस पर गंभीरता से ध्यान दिये जाने की ज़रूरत है। लंदन के प्रोफेसर स्टीफ़न, ब्रिशेरी कोलंबी दुनिया में पानी के संकट पर लिखी गयी अपनी किताब में कहते हैं कि नीले रंग की धरती एसी दुनिया है जिसका आधे से अधिक भाग, महासागरों पर आधारित है और धरती के ध्रुव, बर्फ के ग्लेशियर और आर्द्रता से भरे हैं लेकिन दुनिया जल संकट की ओर बढ़ रही है और इस संकट से केवल उसी समय बचा जा सकता है जब इस बारे में विशेषज्ञों की राय पर ध्यान दिया जाए और सिंचाई के सही सिद्धान्दों का पालन किया जाए, महात्रासदी को इसी तरह रोका जा सकता है। इसके लिए पूरी दुनिया में आशा, तर्क, सामूहिकता और दीर्घकालिक सोच जैसे गुणों की ज़रूरत होगी।

पानी के अभाव की समस्या के समाधान में सही व्यवस्था की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है लेकिन हर देश के क्षेत्रफल और भौगोलिक परिस्थितियों के आधार पर जल संचालन व्यवस्था अलग अलग हो सकती है। उदाहरण स्वरूप, किसी रेगिस्तानी इलाक़े में पानी की आपूर्ति की व्यवस्था अन्य क्षेत्रों की तुलना में अधिक संवेदनशील होती है। इस लिए योजना बनाते समय इन चीज़ों पर ध्यान देना बेहद ज़रूरी है। इसी तरह क्षेत्रीय परिस्थितियों के साथ ही साथ अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों पर भी ध्यान देना चाहिए। पानी के अभाव से जूझ रहे अधिकांश देशों में पानी की सब से अधिक बर्बादी कृषि क्षेत्र में होती है। कृषि पर आश्रित ग्रामीण क्षेत्रों की अर्थ व्यवस्था खेती बाड़ी पर ही टिकी होती है इस लिए इन क्षेत्रों में जल प्रबंधन बहुत अधिक महत्वपूर्ण होता है। उदाहरण स्वरूप में ईरान में जल स्रोतों का 90 प्रतिशत भाग, खेती बाड़ी में लगता है इस लिए ईरान में जल प्रबंधन और सही रूप से योजना बनाना देश के लिए बहुत ही ज़रूरी है।

खेती बाड़ी में पानी के सही इस्तेमाल के नियम बनाकर काफ़ी हद तक जल संकट पर क़ाबू पाया जा सकता है। पानी की सही मात्रा का सिंचाई में उपयोग काफी अहम है। हर फ़स्ल के लिए अलग अलग मात्रा में पानी की ज़रूरत होती है जो अस्ल में उस फ़सल की कानूनी मात्रा होती है। इस बारे में सब से पहले ब्रिटेन के प्रोफेसर जान एंथोनी ने सन 1990 में चर्चा पेश की और उस के बाद से अब तक इस सिलसिले में बहुत अधिक शोध और अध्ययन हुए हैं। इस सिलसिले में एक मिसाल देकर हम अपनी बात को अधिक स्पष्ट कर सकते हैं। वैज्ञानिकों के शोध के अनुसार, कॉफी के हर कप में 140 लीटर पानी निहित है मतलब कॉफी के पेड़ के लिए जितना पानी लगता है उसे मद्दे नज़र रखकर यह हिसाब किया गया है तो फिर अगर फस्लों के लिए सही पानी की मात्रा पर ध्यान दिया जाएगा तो फिर जल अभाव से जूझ रह देशों में ऐसी फस्लों पर ध्यान दिया जाएगा जिनके लिए कम पानी की ज़रूरत होती है। कृषि क्षेत्र में पानी के सही प्रबंधन के लिए ट्यूबवेल पर ध्यान देना भी ज़रूरी है क्योंकि ग़ैर कानूनी रूप से लगायी जाने वाली ट्यूबवेल भूमिगत जल स्रोतों के असीमित दोहन का कारण बनती हैं, इसी तरह सिंचाई के लिए आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल और गांवों में खेती बाड़ी के साथ ही साथ उद्योग को बढ़ावा देना वह काम हैं जिन्हें अगर सही तौर पर किया जाए तो पानी की कमी की समस्या को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

महानगरों के आस पास बसने वाले नगर प्रायः उद्योगिक होते हैं और इन्ही जगहों पर पानी का इस्तेमाल भी सब से अधिक होता है। अध्ययनों से पता चलता है कि उद्योग में पानी की भारी मात्रा प्रयोग की जाती है लेकिन अगर इस क्षेत्र में भी सही कार्यक्रम और नियमों के पालन के साथ पानी इस्तेमाल किया जाए तो निश्चित रूप से पानी के इस्तेमाल में काफी कमी आ जाएगी। इसके साथ ही प्रयोग होने वाले पानी को फिर से साफ़ करके कूलिंग सिस्टम, मशीनों की धुलाई जैसे अन्य कामों और उसे फिर से भूमिगत जल स्रोतों तक पहुंचाया जा सकता है। इस प्रकार से 95 प्रतिशत तक पानी की वापसी दर्ज की गयी है जो काफी संतोषजनक है। उद्योग के क्षेत्र में भी पानी की सही मात्रा का प्रयोग बहुत महत्व रखता है और इससे पानी के इस्तेमाल को काफी संतुलित किया जा सकता है।

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महानगरों में घरों में भी भारी मात्रा में पानी का इस्तेमाल होता है। इसके लिए भी सही नियमों और मानकों पर ध्यान दिये जाने की ज़रूरत है। यह परिवारों की ज़िम्मेदारी होती है कि वह अपने घर में पानी की बर्बादी को रोकें लेकिन जल प्रबंधन के लिए सब से अधिक महत्वपूर्ण चीज़ इस संदर्भ में अध्ययन, शोध और अन्य लोगों के अनुभवों से लाभ उठाना है। इस अर्थ में कि अगर एक ट्यूबवेल की बोरिंग करनी है तो उससे पहले अच्छी तरह से अध्ययन किया जाना चाहिए। बहुत से देशों ने जल अभाव के संकट को खत्म करने के लिए बांध और एक क्षेत्र के पानी को दूसरे क्षेत्र तक पहुंचाने जैसी योजनाओं पर काम किया है। नया काम करने वाले को उनके अनुभवों से लाभ उठाना चाहिए। अगर बिना अनुभव और अध्ययन के जल प्रबंधन की कोशिश की जाएगी तो उसके भयानक परिणाम सामने आ सकते हैं।

जल संकट राष्ट्रों, सरकारों के संकल्प और सभी संबंधित लोगों और संगठनों के बीच व्यापक सहयोग द्वारा खत्म हो सकता है। हर देश में प्रति व्यक्ति और प्रति परिवार पानी के इस्तेमाल के आंकड़े, प्रभावशाली योजना बनाने के लिए बेहद महत्वपू्र्ण होते हैं। जल प्रबंधन के सिलसिले में भी सब से पहले समस्या की जड़ को खोजना चाहिए और जब वजह और कारण का पता चल जाए तो फिर उसके निवारण का प्रयास किया जाना चाहिए। इस संदर्भ में अंतरराष्ट्रीय संगठन सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं अलबत्ता अंतरराष्ट्रीय संगठनों के सामने हमेशा यह एक बड़ी समस्या रहती है कि विश्व के देश, उनकी सिफारिशों को पूरी तरह से लागू ही नहीं करते लेकिन बात यह है कि पानी का मुद्दा बहुत अधिक महत्वपूर्ण है इस लिए जल सुरक्षा के लिए काम करने वाले अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ पूरी तरह से सहयोग की ज़रूरत है। आखिरी बात यह भी सुन लें कि बहुत से पर्यावरण विदों का यह मानना है कि हमें प्रबंधन की वजह से सूखे का सामना है प्राकृतिक सूखे का नहीं। इस लिए हमें यह अधिकार नहीं है कि सूखे के लिए हम आसमान की ओर उंगली उठाएं और उसे कटघरे में खड़ा करें। जो भी है वह हमारी कमज़ोरी की वजह से है।

 

जल संकट, आशा व निराशाः पानी एक अनमोल ईश्वरीय उपहार है, क्या हम उसका सही इस्तेमाल करते हैं?

जल ही जीवन है यह बहुत मशहूर कथन है और जैसा कि हमने बताया कु़रआने मजीद ने भी कहा है कि हमने हर चीज़ को पानी से जीवन प्रदान किया।

जल को जीवन का आरंभ बिन्दु भी कहा जाता है और हक़ीक़त में हर प्राणी का जीवन, पानी से ही शुरु होता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि पानी, मेथोनाॅल और अमोनिया, पृथ्वी के वातावरण के मुख्य तत्व हैं जिनकी वजह से पहली बार अमोनिया एसिड बनी है। अमोनिया एसिड को हर प्राणी का उत्पत्ति बिन्दु समझा जाता है। हर जीवित प्राणी के अधिकांश सेल्स, पानी से बने होते हैं। मानव शरीर में सेल्स का जो जाल है उसका अधिकांश भाग पानी होता है और अगर पानी नहीं तो फिर जीवन भी नहीं। यही वजह है कि मानव सभ्यता में पानी को हमेशा महत्व प्राप्त रहा है। प्राचीन काल में भी पानी को चार मुख्य तत्वों में गिना जाता है। इसी तरह भारत दर्शन में भी पंच तत्व में पानी शामिल है।

मानव ही नहीं हर जीवन के लिए इतना महत्वपूर्ण जल, धरती पर मिलने वाले सब से अधिक पदार्थों में से एक है और एकमात्र पदार्थ है जो प्राकृतिक रूप से ठोस , द्रव और गैस के रूप में मौजूद है। इन्सानों ने पानी का पहला प्रयोग पीने के लिए किया। पानी को अच्छी तरह से इस्तेमाल करने के प्रबंध का इतिहास भी बहुत पुराना है। प्राचीन काल से ही मनुष्य को पानी के महत्व का पता था और जब से इन्सानों ने समूहों में रहना आरंभ किया तभी से उन्होंने पानी को सुरक्षित रखने की व्यवस्था के बारे में सोचा। मानव इतिहास गवाह है कि प्राचीन काल में जब मानवीय समाजों की शुरुआत हुई तो लोग नदियों के किनारे ही बसा करते थे। इसके साथ ही उन्होंने नदियों के पानी से सिंचाई आदि की व्यवस्था भी बनायी। पानी के महत्व के बारे में प्राचीन मानव समाज में भी चेतना थी।

प्राचीन काल में लोग पानी की मात्रा पर ध्यान देते थे और उसकी गुणवत्ता का महत्व नहीं था हालांकि प्राचीन काल में उपलब्ध पानी बहुत से प्रदूषणों से मुक्त होने की वजह से अपेक्षाकृत अच्छी गुणवत्ता रखता था क्योंकि उस वक़्त पानी को प्रदूषित करने वाली उतनी चीज़ें नहीं थीं और न ही उद्योग था। नदियों के किनारे और बारिश के पानी के सहारे पनपने वाली सभ्यताओं का अपना इतिहास है। यह सभ्यताएं नदियों के किनारे उपजाऊ भूमियों के निकट फली फूलीं और मशहूर हुईं। दुनिया की अत्यधिक मशहूर सभ्यताएं नदियों के किनारे परवान चढ़ी हैं। यही वजह है कि नदियों और उनके निकट मौजूद उपजाऊ भूमियों को हटा दें तो फिर किसी प्राचीन सभ्यता की कल्पना बेहद कठिन हो जाती है। इराक़ में मेसोपोटामिया में जन्म लेने वाली सभ्यता हो, मिस्र की नील नदी के हरे भरे तट हों, ईरान में खुज़िस्तान के हरे भरे मैदान हों या फिर भारतीय उप महाद्वीप के सिंध व पंजाब का इलाक़ा हो, पानी और नदी के बिना इन क्षेत्रों में फलने फूलने वाली सभ्यताओं की कल्पना नहीं की जा सकती, यहां पानी की वजह से बड़ी बड़ी सभ्यताओं ने जनम लिया है।

आप दुनिया के किसी भी हिस्से में चले जाएं , वहां की नदी तलाश करें और उसके किनारे किनारे चलते जाएं आप को सभ्यताओं के निशान मिलते जाएंगे। नदियों के किनारे से गुज़रने वाले यह रास्ते, सदियों से और सदियों तक कृषि व व्यापार के क्षेत्र में बड़ी बडी खोजों बल्कि बड़े बड़े साम्राज्यों का साधन रहे हैंं। नदियों के इन रास्तों की गोद में न जाने कितनी कहानियों, आस्थाओं और विचारधाराओं ने जनम लिया है और मानव समाज को संवारने या बिगाड़ने का काम किया है। नयी नयी चीज़ों की खोज और नये नये तथ्यों की जानकारी का यह अत्यधिक पुराना रास्ता आज भी उपयोगी है और रोचक बात यह है कि आज भी वैज्ञानिक जीवन के नये नये रूपों की खोज के लिए नदियों के तट से निकट क्षेत्रों में भी अध्ययन करते हैं और नदियों के रास्तों से ही मदद लेते हैं।

यदि आप धरती को ऊपर से, बहुत ऊपर से देखें तो आप को नीले रंग का एक गोला नज़र आएगा, हम सब को मालूम है कि धरती को नीला रंग, धरती पर मौजूद पानी ने दिया है। धरती का अधिकांश भाग नदियों और समुद्रों से ढंका हुआ है। धरती का कुल क्षेत्रफल 510 मिलयन वर्गकिलोमीटर है और उसमें से 361 मिलयन वर्ग किलोमीटर, पर पानी की चादर बिछी है। इस धरती और धरती पर रहने वालों और पानी का प्रयोग करने वालों के लिए पानी के भांति भांति के स्रोत हैं। मात्रा की बात करें तो पृथ्वी पर मौजूद कुल पानी का 97 दशमलव 2 प्रतिशत भाग, समुद्रों महासागरों में है और केवल दो दशमलव 8 प्रतिशत भाग, नदियों, बर्फ के तोदों, वायु मंडल, धरती के भीतर और भूमिगत जलाशयों में मौजूद है।

प्रकृति ने हमारे लिए बहुत से रूपों में और अलग अलग जगहों पर पानी जैसी क़ीमती चीज़ संजो कर रखी है और अलग अलग समय में अलग अलग शैलियों में यह जीवन दायक पदार्थ हमें मिलता है, कभी पैरों के नीचे की धरती खोद कर, कभी वर्षा और कभी बर्फ जैसे विभिन्न रूपों में प्रकृति हमें पानी प्रदान करती है, हमारे जीवन के लिए ज़रूरी पानी का प्रंबंध करके प्रकृति अपना कर्तव्य निभा देती है लेकिन क्या उसे सही रूप से प्रयोग करने की अपनी ज़िम्मेदारी हम पूरी करते हैं?