साहित्य

‘अंतिम इच्छा’……. By-प्रवीण राणा वर्मा

Praveen Rana Verma
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‘अंतिम इच्छा ‘
सर्दियों की भोर, वो भी पहाड़ों पर ! आह! क्या अदभुत दृश्य है। हरी-भरी पहाड़ियों से झाँकती किरणें। मानो आकाश ने आग ओढ़ ली हो और धीरे – धीरे वही चादर वह ओढ़ाना चाहता हो पहाडों को। स्वच्छ-निर्मल जल की साड़ी पहने बह रही है नदी अपने अंतिम पड़ाव की ओर, जैसे वो हो एक नई दुल्हन कोई जो अपने प्रियतम के घर जा रही है, शांत और अविचल हो कर। उस पर इन पंछियों का कलरव ,आहा! क्या मनोहारी दृश्य होता है पहाड़ों पर सर्दी की भोर का। आशा अपने पति के साथ पहली बार घूमने आई है, पहाड़ों पर। तड़के उठ कर वो निकल गई पहाड़ों की भोर का आनन्द लेने।जब से उसका विवाह हुआ है वो हमेशा से आना चाहती थी पहाड़ों पर। यहाँ के सौंदर्य को अपनी यादों की झोली में भरने को, पर कभी आ न सकी। कोई न कोई समस्या हमेशा रही, कभी इतने पैसे नहीं हुए, कभी सास की बीमारी ने रोका, कभी बच्चों की पढ़ाई ने, कभी कैलाश को ही अवकाश नहीं मिला। और पता है अब आई है आशा पहाड़ों पर, अपनी अंतिम इच्छा पूरी करने। अब भी सास बीमार है, आजकल बच्चों की परिक्षाएं भी चल रही है, पैसों की भी कमी है पर अब कैलाश उसे बिना रुके ले आया है पहाड़ों पर, उसकी अंतिम इच्छा पूरी करने। आशा के पास अब अधिक समय नहीं है दूसरों का ख़्याल रखने का,अपनी जिम्मेदारियाँ निभाने का। कुछ समय है तो बस अपनी अंतिम इच्छा पूरी करने का।आशा देख रही है उगते सूरज को हरी-भरी घास पर बैठकर। वैसे उसके सिर में बहुत दर्द है, पर आँखों के सामने वो दृश्य है जिसे वो कब से देखना चाहती थी और उस दृश्य ने उसके इस दर्द को कुछ कम कर दिया है। वो अपलक उन पहाड़ों को देखती रही। इतने में कैलाश भी वहाँ आकर आशा के पास बैठ गया। “सच में बहुत सुन्दर हैं ये पहाड़।”कैलाश ने कहा। आशा, ” बहुत। …… मेरा सिर बहुत दर्द कर रहा है, क्या मैं तुम्हारी गोद में लेट जाऊँ। ” कैलाश ने हाँ कहते हुए आशा को अपनी गोद में लेटाया और उसका सिर हल्के हाथों से दबाने लगा। सूरज अब काफ़ी ऊपर उठ चुका था, पर आशा का सूरज………
प्रवीण राणा वर्मा।।।।
न जाने कितनी ही ख़्वाहिशें दम तोड़ देती हैं मजबूरियों के चलते। और कोई पूरी होती भी है तो वो भी जीवन के आख़िरी पड़ाव पर।