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नहीं, नहीं…जज के घर से 15 करोड़ नहीं मिले हैं…मिले हैं…नहीं मिले हैं…मिले हैं…नहीं मिले हैं…कुछ नहीं हो सकता इस देश में…सत्यानाश की जय हो!

दिल्ली हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा के ख़िलाफ़ आरोपों की जांच के लिए बनी सुप्रीम कोर्ट की कमिटी

दिल्ली हाई कोर्ट के मौजूदा जज, जस्टिस यशवंत वर्मा के ख़िलाफ़ कथित आरोपों की जांच के लिए भारत के चीफ़ जस्टिस ने तीन जजों की एक कमिटी का गठन किया है.

सुप्रीम कोर्ट ने एक बयान जारी कर कहा है कि इस कमिटी में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस, जस्टिस शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस, जस्टिस जीएस संधावालिया और कर्नाटक हाई कोर्ट की चीफ़ जस्टिस, जस्टिस अनु शिवरामन शामिल हैं.

चीफ़ जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा है कि फिलहाल के लिए जस्टिस यशवंत वर्मा को कोई न्यायिक ज़िम्मेदारी न सौंपी जाए.

सुप्रीम कोर्ट के बयान में ये भी कहा गया है कि दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस की रिपोर्ट, जस्टिस यशवंत वर्मा का जवाब और अन्य दस्तावेज़ कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड किए जा रहे हैं.

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बीते दिनों दिल्ली हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा पर आरोप लगे कि उनके आधिकारिक निवास से भारी मात्रा में नकदी मिली थी. जिसके बाद वो विवादों में घिर गए थे.

दरअसल उनके घर पर आग लग गई थी, जिसके बाद आग बुझाने की कोशिश में अग्निशमन कर्मियों को कथित तौर पर उनके घर से बड़ी मात्रा में कैश मिला था.

उस वक्त जस्टिस यशवंत वर्मा घर पर नहीं थे. हालांकि बाद में दिल्ली अग्निशमन विभाग के प्रमुख अतुल गर्ग ने इस ख़बरों का खंडन किया और कहा कि जस्टिस यशवंत वर्मा के घर से कोई कैश नहीं मिला.

Deepak Sharma
@DeepakSEditor
बड़ी धूमधाम से मोदी जी ने गुजरात में seaplane सेवा शुरू की थी।
इस सेवा के लिये 👇
198 करोड़ का जहाज खरीदा गया।
62 करोड़ पायलट, स्टाफ और मेनटेनंस पर खर्च किये गये।
इसके अलावा करोड़ों प्रचार पर खर्च हुए।

ये सेवा 21 Oct 2020 में शुरू हुई और 6 महीने बाद April 2021 में बंद हुई।

4 साल से मोदी ने इस seaplane की ओर मुडकर नहीं देखा।
पर आज भी ये बंद योजना सरकारी फाईलों पर जारी है और स्टाफ, देखभाल का मोटा खर्च जनता के टैक्स के पैसे से उठाया जा रहा है।

हैरत ये है कि मोदी के कहने पर ये योजना झटपट शुरू हुई और बिना ठोस economic viability के इसे लांच कर दिया गया।

ravish kumar
@ravishndtv
घातक है वीडियो। कैश तो मिला है। अब सवाल है कि यह पैसा किसका है ? कौन लेकर आया था इतना नोट ? कोर्ट की जाँच का इंतज़ार है। वीडियो डाल कर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने साहसिक कदम उठाया है। वीडियो को आधिकारिक मंच से जारी किया है। देश की जनता का दिल टूट जाएगा। जजों के बिक जाने की बात से कौन खुश होगा भला ? इन्हें जज कैसे बनाया गया, उसकी भी जाँच होनी चाहिए। बात दूर तक जाएगी।

जस्टिस वर्मा को अगर लगता है कि उन्हें फँसाया गया है तो अब उन्हीं को सफ़ाई देनी पड़ेगी। इस वीडियो के बाद या तो वे जाँच का इंतज़ार कर लें या इस्तीफ़ा दे दें? क्या वाक़ई में जस्टिस वर्मा साबित कर पाएंगे? इस वीडियो के बाद तो मुश्किल लगता है।

एक एक कर सारी संस्थाएं लचर हालत में आ गई। ये बहुत दुखद दिन है। जो बचेगा वो सबके लिए नहीं होगा, जो बचेगा वो सिर्फ़ उसके लिए होगा। सत्यानाश की जय हो !

Kranti Kumar
@KraantiKumar
भारत में हाइकोर्ट के जजों का मासिक वेतन 2,25,000 रुपए है. और गर्मियों में लंबी छुट्टी मिलती है. वे ठंडे पहाड़ों पर जाकर आराम करते हैं. ये परंपरा ब्रिटिश काल से चली आ रही है.

कहने वाले कहते हैं जज वही लोग बनते हैं जिनकी वकालत नही चलती. देश में 80 करोड़ आबादी की सैलरी 25,000 से कम है वहां दो लाख सैलरी मिलना अमीर आदमी होना है.

दो लाख सैलरी लेने वाले जज के घर में 15 करोड़ रुपए कैश मिलने का अर्थ है वो मनमाफिक फैसला देने के बदले रिश्वत ले रहा था.

आदरणीय MODI जी ने कहा था नोट बंदी के बाद भ्रष्टाचार पर रोक लगेगी. इस जज के पास इतना कैश आया कहां से ? दूसरी बात क्या केंद्र सरकार इस जज पर महाभियोग चलाएगी ?

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Ambalal Agaja
@AAgaja12862

मोदी और यशवंत वर्मा पर एक्शन लेगा ? भाई साहब आप गलत सोच रहे हो जो इंसान बलात्कारी को आजीवन कारावास की सजा मिली हो उसे भी अदालत की अवगणना कर के रिहा कर दिया जाता है तो जज को कैसी सजा ? हो सकता है भाजपा सरकार ने अपनी तरफ आदेश दिलाने के लिए यशवंत वर्मा को रिश्वत दी गई होगी |

भ्रष्टाचार और प्रजातंत्र
@KalpnathSingh9
कुछ नहीं हो सकता इस देश में भ्रष्टाचार के संदर्भ में, गुलाम थे और आज भी क्योंकि कानून घटिया है। इसीलिए सक्षम युवक नागरिकता ही छोड़ देते है क्योंकि कौन सुधारेगा शिक्षित भ्रष्टाचारियों को …परेशानी आमजन मानस को।

Vivekanand Yadav
@Vivekanand_Ydv1
जब देश के 80 करोड़ लोगों की सैलरी 25,000 से कम हो, तब 2.25 लाख की सैलरी पाकर भी कोई जज 15 करोड़ कैश घर में रखे मिले, तो समझ लीजिए कि फैसला देने की कीमत लगती है!

गर्मियों में ठंडे पहाड़ों पर लंबी छुट्टी और फिर नोटों की गद्दी पर आराम, ये परंपरा तो ब्रिटिश राज से चली आ रही है, लेकिन भ्रष्टाचार पर रोक लगाने का दावा करने वाले मोदी जी के नए भारत में भी जारी है!

नोटबंदी के बाद भ्रष्टाचार खत्म करने का वादा था, मगर 15 करोड़ कैश देखकर सवाल उठता है—नोट बदले या सिर्फ लोगों की जेब खाली हुई?

अब देखना ये है कि सरकार इस जज पर महाभियोग चलाएगी या फिर “अमीरी” को न्याय का पर्याय मानकर खामोश बैठी रहेगी?

रेप मामले में टिप्पणी से सुर्ख़ियों में आए इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज राम मनोहर मिश्रा कौन हैं

सैयद मोज़िज़ इमाम
पदनाम,बीबीसी संवाददाता

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इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा अपनी एक हालिया टिप्पणी से सुर्ख़ियों में हैं.

एक फ़ैसले में उन्होंने कहा है कि ‘स्तनों को छूना’ और ‘पायजामी की डोरी तोड़ना’ बलात्कार या बलात्कार की कोशिश के दायरे में नहीं आता.

ये टिप्पणी यूपी के कासगंज ज़िले के पॉक्सो के एक केस की सुनवाई के दौरान दी गई, जिस पर कई महिला नेताओं और वकीलों ने आपत्ति जताई है.

सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट से दख़ल देने की मांग की है. वहीं शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने सीजेआई को ख़त लिखकर हाई कोर्ट के जज की बर्ख़ास्तगी की मांग की है.

जस्टिस मिश्रा न्यायिक सेवा से प्रमोट होकर साल 2022 में इलाहाबाद हाई कोर्ट पहुंचे हैं.

उन्होंने कई हाई प्रोफ़ाइल मामलों की सुनवाई की है, जिनमें मथुरा की शाही ईदगाह से लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर टिप्पणी हटाने जैसे मामले सामने हैं.

पूरा मामला क्या है?
उत्तर प्रदेश के कासगंज ज़िले के पटियाली थाना क्षेत्र से जुड़े एक पॉक्सो केस की सुनवाई करते हुए जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा की पीठ ने कहा कि अभियुक्तों के ख़िलाफ़ लगाए गए आरोपों और उपलब्ध तथ्यों के आधार पर ये सिद्ध करना संभव नहीं है कि उन्होंने बलात्कार करने की कोशिश की थी.

कोर्ट ने कहा कि अगर ये साबित करना है कि बलात्कार का प्रयास हुआ, तो अभियोजन पक्ष को यह दिखाना होगा कि अभियुक्तों का इरादा अपराध को अंजाम देने का था.

अदालत ने ये भी कहा है कि बलात्कार करने की कोशिश और अपराध की तैयारी के बीच का अंतर समझना ज़रूरी है.

इस आधार पर हाई कोर्ट ने निचली अदालत को निर्देश दिया कि अभियुक्तों के ख़िलाफ़ आईपीसी की धारा 354बी (कपड़े उतारने के इरादे से हमला) और पॉक्सो एक्ट की धारा 9 और 10 (गंभीर यौन हमला) के तहत मुक़दमा चलाया जाए.

कौन हैं जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा?

जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा का जन्म वर्ष 1964 में हुआ.

उन्होंने 1987 में क़ानून में पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री ली और 1990 में मुंसिफ़ मजिस्ट्रेट के तौर पर उत्तर प्रदेश की न्यायिक सेवा में शामिल हुए.

साल 2005 में उन्हें उच्च न्यायिक सेवा में प्रमोट किया गया और 2019 में वह ज़िला एवं सत्र न्यायाधीश बनाए गए.

अपने करियर के दौरान उन्होंने बागपत और अलीगढ़ ज़िलों में सेवाएं दीं. साथ ही लखनऊ में ज़िला एवं सत्र न्यायाधीश और न्यायिक प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान (जेटीआरआई) के निदेशक के रूप में भी काम किया.

15 अगस्त 2022 को उन्हें इलाहाबाद हाई कोर्ट का एडिशनल जज नियुक्त किया गया और 25 सितंबर 2023 को वह स्थायी जज बने. वह नवंबर 2026 में रिटायर होने वाले हैं.

किन अहम मामलों से जुड़े रहे?

शाही ईदगाह विवाद:

जस्टिस मिश्रा मथुरा के उस बहुचर्चित केस की सुनवाई करने वाली पीठ का हिस्सा हैं, जिसमें श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद के बीच ज़मीन विवाद को लेकर याचिकाएं दायर की गई हैं. इस मुक़दमे की अगली सुनवाई 3 अप्रैल 2025 को तय है.

योगी आदित्यनाथ पर टिप्पणी हटाने का आदेश:

मार्च 2024 में जस्टिस मिश्रा ने निचली अदालत के उस आदेश को रद्द किया जिसमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तुलना यूनानी दार्शनिक प्लेटो से की गई थी और धार्मिक व्यक्ति के सत्ता में होने के लाभ बताए गए थे.

पुराने हत्या मामले में बरी का आदेश:

साल 2024 में एक फ़ैसले में जस्टिस मिश्रा उस खंडपीठ का हिस्सा थे, जिसने 1981 के एक हत्या मामले में 71 वर्षीय अंतिम जीवित अभियुक्त को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया.

अदालत ने अपने फ़ैसले में कहा कि घटनास्थल की स्थिति को लेकर संदेह है और गवाहों की गवाही और जांच अधिकारी के बयानों में विरोधाभास पाए गए.

गुज़ारा भत्ते में बढ़ोतरी:

एक पारिवारिक मामले की सुनवाई के दौरान उन्होंने टिप्पणी की कि “मध्यम वर्गीय महिला के लिए 2500 रुपये में एक समय का खाना जुटाना कठिन है.”

अदालत ने गुज़ारा भत्ता बढ़ाकर 5000 रुपये प्रति माह करने का आदेश दिया.

बलात्कार मामलों में पीड़िता की गवाही को अहम माना:

2023 में एक फ़ैसले में उन्होंने कहा कि बलात्कार पीड़िता की गवाही को अतिरिक्त पुष्टि की नज़र से देखना अनुचित है.

आदेश में उन्होंने लिखा कि पीड़िता कोई सह-अपराधी नहीं होती, इसलिए उसकी बात को पर्याप्त माना जाना चाहिए.

Prashant Bhushan
@pbhushan1

Excellent decision of the CJI on the Justice Yashwant Verma matter. Excellent inquiry committee & full transparency. Kudos