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औरंगज़ेब की असली कहानी: दस्तावेज़ों में
देखिए चित्र
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Naseer_Ahmad
“औरंगजेब के बारे में कुछ भी कहा जाए, लेकिन था वो अजेय योद्धा!
15 साल की उम्र में पागल हाथी से लड़ाई हो या गुजरात का चार्ज, हर जगह शाहजहां की उम्मीद पर खरा उतरा.
सीढी दर सीढी चढ, वो सत्ता के शिखर तक पहुंचा.
मुग़ल बादशाह शाहजहां बूढ़ा हो चला था. शासन पर ध्यान देने के बदले बड़ी बड़ी इमारतें बनाने और अपने चमचों को दान दक्षिणा देने में सरकारी ख़जाने लुटाये जा रहा था.
ऐसे में उसके सबसे क़ाबिल शहज़ादे ने, उसको बा-ईज़्ज़त गद्दी से Retire करके मार्गदर्शक मंडल (लाल क़िला-आगरा) में बैठा दिया. काका आडवाणी और पंडित मुरली मनोहर जोशी को मार्गदर्शक में देखकर ख़ुश होने वाले, शाहजहां की याद में टसुवे बहाते हैं. कमाल है!!
औरंगजेब सबको एक ही लाठी से हाकँता था.
अपने बाप और बेटे, दोनों को समान रूप से ठिकाने लगाया.
हिंदू हो या मुसलमान सबको टैक्स के दायरे में लिया.
शाहजहां को Retire करने के बाद औरंगज़ेब ने देश के ख़ाली हो चुके ख़ज़ाने और डूबती हुई इकॉनमी को दुबारा खड़ा किया.
औरंगज़ेब ने 93 साल की उम्र में अपनी Natural Death होने तक राज किया.
उसपर इल्ज़ाम है कि उसने अपने भाई दाराशिकोह को मरवाया. बिल्कुल मरवाया.
पहले भाई-भाई हुकूमत के लिये एक दूसरे से लड़ा करते ही थे.
सम्राट अशोक और पांडवों ने राज के लिए अपने भाईयों को नहीं मरवाया ?
दाराशिकोह, औरंगज़ेब को मारने ही फ़ौज लेके आया था. वो नहीं मरता, तो औरंगज़ेब मरता.
औरंगजेब में ईमानदारी इतनी थी कि कभी सरकारी खजाने को निजी खर्च के लिए हाथ न लगाया. अपने भोजन की एवज म़े वो टोपी बुनता, चक्की चलाता या अन्य छोटे-मोटे काम करता.
फ्री का खाना हराम था उसके लिए!
वो इतना क़ाबिल हुकुमरान था कि इस बुढ़ापे में भी, उसने 50 सालों तक, देश पर सबसे लंबा राज किया.
उसका शासन आजतक का भारत का सबसे बड़ा- (अफ़्ग़ानिस्तान से लेकर बर्मा और कश्मीर से लेकर केरल तक)- शासन था.
यह औरंगज़ेब का सफ़ल नेतृत्व और Administrative capabilities ही थीं, जो उसने अपने बाप दादा के अय्याशी भरे जीवन के बाद, डूबती सल्तनत को, दुबारा खड़ा किया.
■ औरंगज़ेब के वक़्त भारत की GDP पूरी दुनियाँ की 25% के बराबर थी, जबकि भारत को लूटकर, जब अँग्रेज़ों ने 1947 में इसे छोड़ा, तब हमारी GDP, दुनियाँ की सिर्फ़ 4% ही बची थी!
Islamophobia से ग्रस्त लोग फिर भी, अभी अँग्रेज़ों के तलुवे चाटते हुये और औरंगज़ेब को बुरा भला कहते मिलेंगे.”
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औरंगजेब ने मथुरा-वृंदावन के मंदिरों को जागीर और सालाना वजीफा दिया
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धूर्त मक्कार दलाल घूसखोर जाहिल गंवार लम्पट और चोर देशद्रोही गद्दार हैं सावरकर-श्यामाप्रसाद के देश-विभाजक समाज-विभाजक टुकड़े टुकड़े गिरोह के संघी-भाजपाई
औरंगजेब ने मथुरा-वृंदावन के मंदिरों को जागीर और सालाना वजीफा दिया
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ज्ञानवापी का मुद्दा अल्पसंख्यक या धर्मान्धता का मुद्दा नहीं है
यह अनैतिकता और बलात्कार का मुद्दा है
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ज्ञानवापी मंदिर तोड़ने का फरमान औरंगज़ेब ने जारी किया था
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पर आप जानते हैं – क्यों?
कच्छ की महारानी के साथ मंदिर के महन्त ने बलात्कार की कोशिश की थी
मंदिर के तहखाने में अनेक औरतें और लाशें बंद पाई गई थीं
मंदिर तोड़ने से पहले औरंगज़ेब ने महारानी से पूछा था कि क्या करना है
महारानी ने जब तोड़ने की अनुमति दी तब फरमान जारी हुआ था
देखिए
इतिहासकार बी द्वारा एन पांडेय के अनुसार: कच्छ की 8 रानियां बनारस शहर में काशी विश्वनाथ के दर्शन के लिए गईं, जिनमें से सुंदर रानी का ब्राह्मण महंतों द्वारा अपहरण कर लिया गया।
कच्छ के राजा द्वारा औरंगजेब को इसकी सूचना दी गई, जिन्होंने कहा कि यह उनका धार्मिक व व्यक्तिगत मामला है।वह उनके आपसी मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहते, लेकिन जब कच्छ के राजा ने शिकायत की, तो औरंगजेब ने सच्चाई का पता लगाने के लिए कुछ हिंदू सैनिकों को भेजा, लेकिन महंत के लोगों ने औरंगजेब के सैनिकों को मार डाला, डांटा और भगा दिया।
जब औरंगजेब को इस बात का पता चला तो उसने स्थिति का जायजा लेने के लिए कुछ विशेषज्ञ सैनिकों को भेजा, लेकिन मंदिर के पुजारियों ने उनका विरोध किया। मुगल सेना भी लड़ाई में आ गई, मुगल सैनिक और महंत मंदिर के अंदर फंस गए और युद्ध में मंदिर क्षतिग्रस्त हो गया।तीसरे दिन सैनिकों को सुरंग में प्रवेश करने में सफलता मिली और वहां हड्डियों की कई संरचनाएं मिलीं। जो केवल महिलाओं के थे।
सैनिकों ने मंदिर में प्रवेश किया और लापता रानी की तलाश शुरू कर दी।
इस संबंध में, मुख्य मूर्ति (देवता) के पीछे एक गुप्त सुरंग की खोज की गई थी जो बहुत जहरीली गंध छोड़ रही थी। दो दिन तक दवा छिड़ककर बदबू दूर करने की कोशिश करते रहे और सैनिक देखते रहे।
कच्छ की लापता रानी का शव भी उसी स्थान पर पड़ा हुआ था, उसके शरीर पर एक कपड़ा भी नहीं था। मंदिर के मुख्य महंत को गिरफ्तार कर लिया गया और कड़ी सजा दी गई।
ज्ञानवापी मस्जिद कच्छ के राजा रायधनजी के कहने पर महारानी ज्ञानव्याप्तिदेवी नाम पर मंदिर गिराकर बगल में औरंगजेब ने बनवाई।
(बी. एन. पाण्डेय, खुदाबख्श मेमोरियल एनविल लेक्चर्स, पटना, 1986 द्वारा उद्धृत। ओम प्रकाश प्रसाद: औरंगज़ेब एक नई दृष्टि, पृष्ठ 20, 21
कच्छ राज्य के दस्तावेज, कच्छ संग्रहालय, गुजरात)
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*अब से मुगल इतिहास नहीं पढ़ाया जाएगा *
जिस प्रकार आर्य स्टेपिज मैदान से भारत आए और अपनी संस्कृति का प्रसार किया और यहीं के हो कर रह गए । उसी प्रकार मुगल यहां चाहे किसी भी नज़रिए से आएं हों मगर धीरे धीरे भारत के आब ओ हवा और मिली जुली सभ्यता को अपना लिया और यहीं के हो कर रह गए ।
और यहां के हिन्दू राजाओं से पारिवारिक संबंध भी कायम किया तथा भारत को शीर्ष ऊंचाइयों पर ले गए। और जिससे समाज एक बडा तबका अपने गौरव को स्पर्श करता था ।
मगर एक खास मानसिकता वाले लोग इन्हे विलेन घोषित करने पर तुले हुए हैं। अरे भाई जाहिर सी बात है तुम कमजोर थे हार गए जो मजबूत था वो जीत गया । इसमें तुम्हे किसी प्रकार की ईर्ष्या नही होनी चाहिए ।
तुम अपनी हिकमत ए अमली को बढ़ाते अपनी शक्ति बढ़ाते और फिर इनसे लड़ते और हरा देते तो कोई बात होती ।
पर आज कुछ मैदान से भागे हुए और चोरी से छापामार लड़ाइयां करने वाले कायर लोगो को हीरो दिखाया जा रहा । ये तो बिलकुल जबरदस्ती है ।
गौरतलब है की एक धुर दक्षिणपंथी पार्टी भारतीय जनता पार्टी जिन्हे एक समूह विशेष फूटी आंखों न सहता था । जिसके फलस्वरूप अटल सरकार में भी इसी तरह इतिहास में फेरबदल किया गया जैसे महमूद गजनवी, mohd गौरी, अलाउद्दीन, और औरंगजेब जैसे लोगो को एक विलेन घोषित कर दिया गया । अभी भी आप पहले का इतिहास या विश्व इतिहास पढ़े तो आपको सब सही घटनाओं से सामना होगा ।
मगर अब का इतिहास इस प्रकार होगा :
मंगोलों और तातार समिश्रण मलेछो का आगमन 1526 में हुआ , तब महाराणा प्रताप के दादा राणा सांगा ने खनवा के युद्ध में इन्हे मार मार के छक्के छुड़ा दिए । मलेछ सिर पर पांव रख के भागे । फिर वही सब कहानियां 70 फुट लंबा, 10 फुट चौड़ा, तलवार 50 किलो, ढाल 100 किलो, कवच 200 किलो,घोड़े के नाल 20/20 किलो, और मूंछें 15/15 फुट की थी ।
मगर विश्व इतिहास को कैसे मिटाओगे या मुगल धरोहरों को कैसे मिटाओगे । और तो और 70 फुट वाले को किस्से लड़वाओगे…?🤔 अरे भाई मुगल अंपायर इतिहास से न हटाते बल्कि उसमे अपने 70 फुट वाले को और बढ़ा के 170 फुट लिख देते तो भी चलता । मगर उस अंपायर को बिलकुल खतम ही कर देना ये अमानवीय और कुसंस्कृति का उदाहरण है । जलन का एक मात्र परिचय है ।
वास्तव में मानो तो मुगल काल ही अखंड भारत का काल था और स्वर्ण काल था । इस सच्चाई से आप मुंह नही मोड़ सकते , वैसे एजेंडा बनाना तो आम है
(वैसे मैं इतिहास का ही विद्यार्थी हूं। और सही बतावे तो जिस मजे के साथ मैं इतिहास का अध्ययन करता हूं। कोई विषय मुझे उतना अच्छा नही लगता ,मगर इतिहास के साथ छेड़ छाड़ कर होने से बहुत दुख हुआ 😔)
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इतिहास की सच्चाई यह है:👇
१. 👉जयपुर घराने ने मुगलों-अंग्रेजों के खिलाफ कभी लड़ाई नहीं लड़ी
२. 👉राणा प्रताप युद्ध से भाग गये, भगौड़े थे, कभी घास की रोटी नहीं खाई, उदयपुर में हल्दीघाटी के बाद रहे, 12 शादियाँ कीं और 59 साल की उम्र तक जिंदा रहे
३. 👉सिंधिया और मराठे अंग्रेजों के मित्र रहे और सिंधिया तो लक्ष्मीबाई की मौत का जरिया बने !
४. 👉पद्मिनी नाम की कोई रानी नहीं रही इतिहास में – पद्मिनी नायिका का एक प्रकार है नायिका-भेद में और जायसी ने इतिहास नहीं, मसनवी लिखी है जिसमें पद्मावती माने ईश्वर को पद्मिनी नायिका के रूप में चित्रित किया है, बस – और कहानी बनाने के लिए खिलजी और दूसरे पात्रों को जोड़ा गया है !
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बाक़ी तो साफ़ हो रहा है कि यह सारी आरएसएस-बीजेपी की साज़िश है:
१. संवैधानिक संस्थाओं के खिलाफ
२. जातिवाद फ़ैलाने की
३. अराजकता फ़ैलाने की
४. समाज को बांटने की
५. जनता को गुमराह करने की
६. युवाओं को अशिक्षित रखने की !
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अकबर ने राम-सीता के सम्मान में सिक्के चलवाए
टीपू सुल्तान ने भी सम्मान में चलवाए