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1931 के ‘शहीदों’ पर भाजपा नेता की टिप्पणी के खिलाफ पीडीपी ने निकाला विरोध मार्च, माफी की मांग की

पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) ने गुरुवार को जम्मू-कश्मीर विधानसभा में विपक्ष के नेता सुनील शर्मा के 1931 के “शहीदों” पर दिए गए बयान के खिलाफ यहां विरोध मार्च निकाला और भाजपा विधायक से माफी मांगने की मांग की।

पीडीपी नेता इल्तिजा मुफ्ती के नेतृत्व में पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं ने यहां पार्टी मुख्यालय से लाल चौक सिटी सेंटर की ओर मार्च किया, लेकिन पोलो व्यू के पास पुलिस ने उन्हें रोक दिया।

प्रदर्शनकारियों ने “13 जुलाई 1931 के शहीद हमारे नायक हैं” और “13 जुलाई 1931 के बलिदान कभी नहीं मरेंगे” लिखी तख्तियां लेकर शर्मा और भाजपा के खिलाफ नारे लगाए ।

इल्तिजा ने संवाददाताओं से कहा कि उन शहीदों ने जम्मू -कश्मीर में “निरंकुश” शासन को समाप्त करने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी।

उन्होंने कहा, “हम शहीदों का अपमान स्वीकार नहीं करेंगे। अगर उन्होंने अपनी जान न कुर्बान की होती तो यहां लोकतंत्र स्थापित नहीं होता।” उन्होंने कहा कि पीडीपी भाजपा को “हमारी सामूहिक स्मृति” मिटाने की अनुमति नहीं देगी।

उन्होंने कहा, “हम भाजपा की ऐसी सभी योजनाओं को विफल कर देंगे। वे 22 शहीद हमारे नायक हैं और हम उनके बलिदान को याद रखेंगे।” पीडीपी नेता ने शर्मा से माफी की भी मांग की।

इल्तिजा ने अन्य दलों से पीडीपी विधायक वहीद पारा द्वारा लाए गए प्रस्ताव का समर्थन करने का आह्वान किया, जिसमें 13 जुलाई और 5 दिसंबर – नेशनल कॉन्फ्रेंस के संस्थापक शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के जन्मदिन – पर छुट्टियां बहाल करने की मांग की गई है।

शर्मा ने बुधवार को यह टिप्पणी तब की जब पारा ने चल रहे बजट सत्र के दौरान विधानसभा में दो छुट्टियों को बहाल करने की मांग की। विपक्ष के नेता की “अपमानजनक टिप्पणी” को बाद में स्पीकर अब्दुल रहीम राथर ने कार्यवाही से हटा दिया।

13 जुलाई 1931 को जम्मू-कश्मीर के अंतिम शासक महाराजा हरि सिंह के खिलाफ विद्रोह के दौरान डोगरा सेना के सैनिकों द्वारा 20 से अधिक प्रदर्शनकारियों की हत्या कर दी गई थी।

भाजपा ने प्रदर्शनकारियों पर महाराजा हरि सिंह के खिलाफ विद्रोह करने का आरोप लगाया और कहा कि इस दिन को क्षेत्र में कभी भी दोबारा नहीं मनाया जाएगा।

शर्मा ने बुधवार को संवाददाताओं से कहा, “मैं स्पष्ट करना चाहता हूं कि 13 जुलाई, जिसे वे (कश्मीरी नेता) ‘शहीद दिवस’ कहते हैं, हम इसे ‘गद्दारों का दिन’ मानते हैं। जम्मू-कश्मीर की धरती पर यह फिर कभी बहाल नहीं होगा।”

13 जुलाई को जम्मू-कश्मीर में सार्वजनिक अवकाश होता था और राज्यपाल या मुख्यमंत्री नौहट्टा क्षेत्र में एक आधिकारिक समारोह में इस दिन मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देते थे।

2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद अवकाश समाप्त कर दिया गया था। आधिकारिक समारोह अब आयोजित नहीं होते हैं।