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वक़्फ़ संशोधन विधेयक पर देशव्यापी हंगामा क्यों हो रहा है? इस बिल में क्या है? !!जानिये!!

वक़्फ़ संशोधन विधेयक पर देशव्यापी हंगामा क्यों हो रहा है? इस बिल में क्या है? इस संबंध में सरकार के उद्देश्य क्या हैं? जब यह कानून बन जाएगा तो क्या परिवर्तन होंगे? विवादित धार्मिक स्थलों और वक़्फ़ संपत्तियों पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा?

पिछले मानसून सत्र में केंद्र सरकार ने 8 अगस्त को संसद में वक़्फ़ संशोधन विधेयक पेश किया था। कड़े विरोध के बाद सरकार ने विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेज दिया। वर्तमान में पूरे देश में इस विधेयक का युद्ध जैसा विरोध चल रहा है। मुस्लिम संगठन और धार्मिक विद्वानों के ज़रिए सक्रिय रूप से इसके खिलाफ़ जागरूकता अभियान चलाया गया। जिसमें बैठकें, कार्यक्रम, विरोध प्रदर्शन, प्रेस कॉन्फ्रेंस और मस्जिद-मदरसों सहित सभी साधनों और तरीकों का उपयोग किया जा रहा है।

मुसलमान वक़्फ़ संशोधन बिल का विरोध क्यों कर रहे हैं?

वक़्फ़ क्या है?

वक़्फ़ से मुराद वो ज़ाती जायदादें हैं जो मुसलमान मुस्तकिल तौर पर मज़हबी या फ़लाही मक़ासिद के लिए दान करते हैं। एक बार जब किसी जायदाद को वक़्फ़ क़रार दे दिया जाता है, तो वो अल्लाह की मिल्कियत में चली जाती है और इसे फ़रोख्त नहीं किया जा सकता और न ही किसी दूसरे मक़सद के लिए इस्तेमाल किया जा सकता। मौजूदा वक्फ़ संशोधन बिल में 40 से ज़्यादा बदलाव रखे गए हैं, जिनकी वजह से सरकारी हस्तक्षेप के ज़रिए वक़्फ़ संपत्तियों पर क़ब्ज़ा हो जाने का खतरा है।

वक़्फ़ बोर्ड्स

इस वक़्त वक़्फ़ बोर्ड के सदस्य और उनके ज़िम्मेदारान का मुसलमान होना ज़रूरी है, मगर नए बिल के तहत गैर मुस्लिमों को भी वक़्क़ बोर्ड का सदस्य बनने की इजाजत दी जा रही है। हालांकि, दूसरे मज़ाहिब के मज़हबी और फ़लाही ट्रस्टों के मामले में उनके ज़िम्मेदारान का उसी मज़हब से होना जरूरी है।

वक़्फ़ बाय यूज़र को ख़त्म करना

‘वक़्फ़ बाय यूज़र से मुराद वो जायदादें हैं जो लम्बे अर्से तक वक़्फ़ के तौर पर इस्तेमाल होने की बुनियाद पर तस्लीम की जाती थीं, चाहे उनके दस्तावेज़ न भी हों। 1954 के वक़्फ़ एक्ट के तहत मौजूद इस नियम को अब नए संशोधन में खत्म किया जा रहा है, जिससे सदियों पुरानी तारीखी वक़्फ़ जायदादों की हैसियत मुतास्सिर होगी।

क़ानूनी तहफ्फुज़

पहले, वक़्क़ जायदादों से जुड़े मसलों को एक सरकारी ट्रिब्यूनल के जरिए हल किया जाता था, जिसमें एक अदालती अफ़सर, सिविल सर्विसेज अफ़सर और एक माहिर-ए-मुस्लिम क़ानून शामिल होता था, और उसके फ़ैसले को आख़िरी क़रार दिया जाता था। लेकिन नए बिल में माहिर-ए-मुस्लिम क़ानून के शामिल करने को ख़त्म कर दिया गया है और अब ट्रिब्यूनल के फैसले को हाई कोर्ट में भी चैलेंज किया जायेगा।

क़ब्ज़ा और सरकारी कंट्रोल

मौजूदा बिल के तहत वक्फ़ बोर्ड्स को अपनी जायदादों पर कब्ज़े के खिलाफ मुक़दमा दायर करने का इख्तियार छीन लिया गया है। इसके अलावा अब वक़्फ़ बोर्ड्स के लिए लाज़िम होगा कि वो अपनी जायदादों को जिला कलेक्टर के पास रजिस्टर कराएं, जो हुकूमत को ये सिफारिश करेगा कि वक़्फ़ का इस जायदाद पर दावा दुरुस्त है या नहीं!

वक़्फ़ संशोधन विधेयक से सरकार के उद्देश्य:

संगठनों और विद्वानों का मानना है कि यदि वक्फ संशोधन विधेयक कानून बन जाता है, तो केंद्र सरकार को ऐसी शक्तियां मिल जाएंगी, जो उसे देश भर में फैली वक़्फ़ संपत्तियों को ‘हड़पने’ और वक़्फ़ संस्थाओं को ‘नष्ट’ करने की अनुमति देंगी। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का कहना है कि “नया विधेयक कलेक्टर को बहुत अधिक शक्तियां देता है, जबकि सिद्धांततः कलेक्टर न्यायाधीश नहीं बन सकता।” बोर्ड का आगे कहना है कि ‘इस वक़्फ़ संशोधन विधेयक के ज़रिए सरकार वक़्फ़ का शासन अपने हाथ में लेना चाहती है और राज्य सरकारों को इससे बाहर रखना चाहती है। इससे केंद्र सरकार को अधिक शक्तियां प्राप्त होंगी। इस बीच, एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी एक बयान में सवाल उठाया कि एक कलेक्टर वक़्फ़ संपत्तियों का जज कैसे हो सकता है? साथ ही उन्होंने दावा किया कि ‘इस विधेयक के ज़रिए सरकार मुसलमानों से वक़्फ़ संपत्तियां छीनना चाहती है।’

इस विधेयक को लेकर सरकार की मंशा केंद्रीय शहरी मामलों के मंत्रालय के बयान से भी साफ तौर पर समझी जा सकती है। केंद्रीय मंत्रालय ने संशोधन विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि “यदि यह विधेयक पारित हो जाता है, तो कानूनी लड़ाइयों और अदालती मामलों में कमी आएगी।” मंत्रालय ने कहा कि “1970 और 1977 के बीच, वक़्फ़ बोर्ड ने नई दिल्ली में 138 संपत्तियों पर अदालतों में दावा किया, जिसके कारण लंबी कानूनी लड़ाई चली।”

वक़्फ़ संशोधन विधेयक पेश करते समय किरन रिजिजू ने क्या कहा?

केंद्रीय संसदीय एवं अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरन रिजिजू ने 8 अगस्त को संसद में वक़्फ़ संशोधन विधेयक पेश करते हुए दावा किया था कि वक़्फ़ बोर्ड पर माफिया का कब्जा हो गया है और यह विधेयक आम लोगों के हित में लाया गया है। उन्होंने कहा कि यह मत सोचिए कि यह विधेयक 2024 में अचानक लाया जाएगा। हमने इस पर कई चरणों में विचार-विमर्श किया। उन्होंने दावा किया कि वक़्फ़ संपत्तियों का उचित प्रबंधन नहीं किया गया है। साथ ही उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि वक़्फ़ बोर्ड का कम्प्यूटरीकरण किया जाना चाहिए तथा दाखिल खारिज राजस्व का रिकार्ड रखा जाना चाहिए।

वहीं, किरन रिजिजू ने कहा कि देश के बंटवारे के बाद भारत और पाकिस्तान में पलायन करने वाले सभी हिंदुओं और मुसलमानों की वहां संपत्तियां थीं, लेकिन पाकिस्तानी सरकार ने हिंदुओं की संपत्ति छीन ली, लेकिन भारत छोड़ने वाले मुसलमानों ने इन संपत्तियों को वक़्फ़ कर दिया। उन्होंने आगे कहा कि अगर महिलाओं और गरीबों को वक़्फ़ संपत्तियों का लाभ नहीं मिलेगा तो क्या सरकार चुप रहेगी? इसलिए लोगों को न्याय दिलाना सदन की जिम्मेदारी है।

वक़्फ़ संशोधन विधेयक की राजनीतिक मंशा:

मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार यह विधेयक ऐसे समय लेकर आई है जब कुछ दिनों पहले हुए संसदीय चुनावों में भाजपा बहुमत हासिल करने में असफल रही थी। यह भी स्पष्ट है कि भाजपा को पूरी जानकारी थी कि इस विधेयक को मुसलमानों की ओर से कड़ा विरोध झेलना पड़ेगा। ऐसे समय में जब हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में चुनाव हुए, इस विधेयक के सहारे मुसलमानों को भड़का कर हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश से इनकार नहीं किया जा सकता।

भाजपा को यह भी पता रहा होगा कि जदयू और तेलुगु देशम पार्टी सहित अन्य एनडीए सहयोगियों को मुसलमानों के रुख और भाजपा सरकार के बीच कठिन चुनाव करना होगा। तो फिर सवाल यह है कि इतना सब होने के बावजूद भाजपा यह विधेयक क्यों लेकर आई? भाजपा शायद अपने गठबंधन सहयोगियों के समर्थन और प्रतिबद्धता का परीक्षण करना चाहती है और इस विधेयक से केंद्र सरकार की शक्तियों में वृद्धि होना एक वैध मुद्दा है।

विवादास्पद धार्मिक स्थलों और वक़्फ़ संशोधन विधेयक के बीच संबंध:

इस विधेयक को लेकर विपक्षी और मुस्लिम नेताओं ने भी आशंका जताई है कि इसे कानून बनाकर केंद्र सरकार विवादास्पद धार्मिक स्थलों और वक्फ की जमीन को ‘हड़पना’ चाहती है, क्योंकि असदुद्दीन ओवैसी ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा था कि ‘भाजपा वक़्फ़ की जमीन छीनना चाहती है।’ राष्ट्रीय संगठनों और नेताओं के अनुसार, यदि विधेयक कानून बन जाता है, तो केंद्र सरकार इसका इस्तेमाल विवादित धार्मिक स्थलों और वक़्फ़ भूमि के संबंध में कट्टरपंथी हिंदू संगठनों के मंदिर के दावों को वैध बनाने की कोशिश में करेगी। सरकार भविष्य में इस विधेयक का इस्तेमाल विवादित भूमि पर संगठनों के दावों का समर्थन करने के लिए कर सकती है, जहां हिंदू संगठनों का दावा है कि यहां पहले हिंदू धार्मिक स्थल बनाए गए थे।

वक़्फ़ संशोधन विधेयक में सुझाव और बदलाव:

1- वक़्फ़ संशोधन विधेयक 2024 में पुराने कानून ‘वक़्फ़ अधिनियम 1995’ का नाम बदलकर ‘एकीकृत वक्फ प्रबंधन, सशक्तिकरण, दक्षता और विकास अधिनियम 1995’ करने का निर्णय लिया गया है।

2- इस विधेयक के तहत वक़्फ़ बोर्डों के लिए अपनी संपत्तियों का जिला कलेक्टर के पास पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा ताकि उनका वास्तविक मूल्य और स्थिति निर्धारित की जा सके।

3- यह विधेयक “वक़्फ़” को किसी भी व्यक्ति की वक़्फ़ के रूप में परिभाषित करने का प्रयास करता है, जो कम से कम पांच वर्षों से इस्लाम का अनुयायी रहा हो और जिसकी वक़्फ़ यह सुनिश्चित करती हो कि बच्चों को दी जाने वाली वक़्फ़ के मामले में महिलाओं के उत्तराधिकार के अधिकार का उल्लंघन न हो।

4- यह विधेयक धारा 40 को समाप्त करने का प्रयास करता है, जो बोर्ड की शक्तियों से संबंधित है, जिसके तहत बोर्ड यह निर्णय लेता है कि कोई संपत्ति वक़्फ़ संपत्ति है या नहीं।

5- विधेयक में ट्रस्टियों की गतिविधियों पर बेहतर नियंत्रण के लिए उन्हें एक केंद्रीय पोर्टल के माध्यम से वक़्फ़ लेख बोर्ड प्रदान करने, दो सदस्यीय संरचना के साथ न्यायाधिकरण में सुधार और 90 दिनों की निर्दिष्ट अवधि के भीतर उच्च न्यायालय में न्यायाधिकरण के आदेशों के खिलाफ अपील करने की सुविधा प्रदान की गई है।

6- इस विधेयक के अनुसार, विभिन्न राज्य बोर्डों द्वारा दावा की गई विवादित भूमि का भी पुनः सत्यापन किया जाएगा।

7- इस विधेयक में बोहरा और आगा खानी मुसलमानों के लिए अलग वक़्फ़ बोर्ड की स्थापना का भी प्रावधान है।

8- यह संशोधन विधेयक वक़्फ़ बोर्ड की संरचना में बदलाव करता है और इसमें महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने की बात करता है।

हिंदू एंडोमेंट बोर्ड (मद्रास एंडोमेंट एक्ट) में संशोधन क्यों नहीं?

मुस्लिम नेताओं ने सवाल उठाया है कि केंद्र सरकार स्वतंत्रता के बाद लागू किए गए मद्रास हिंदू धार्मिक और खैराती वक़्फ़ अधिनियम 1951 को छोड़कर केवल मुस्लिम वक़्फ़ बोर्ड में संशोधन क्यों करना चाहती है? यह ध्यान देने योग्य बात है कि मद्रास हिंदू धार्मिक और खैराती वक़्फ़ अधिनियम 1951 ने एक आयुक्त की अध्यक्षता में हिंदू धार्मिक और खैराती वक़्फ़ विभाग का गठन किया तथा अधिकारियों को वर्गीकृत किया। इस विभाग को हिंदू मंदिरों और मठों के धर्मनिरपेक्ष मामलों की देखरेख का अधिकार दिया गया था। इसके अंतर्गत वंशानुगत कर्मचारियों की पारंपरिक प्रणाली को समाप्त कर दिया गया तथा विभिन्न स्तरों पर अधिकार, कर्तव्य और उत्तरदायित्व को परिभाषित करने वाली एक नई संरचना लागू की गई। राष्ट्रीय नेताओं का कहना है कि मद्रास हिंदू धार्मिक एवं खैराती वक़्फ़ अधिनियम के प्रावधानों के बावजूद मंदिरों में वंशानुगत व्यवस्था अभी भी चल रही है, जिसके बावजूद सरकार इसमें संशोधन की बात नहीं कर रही है।

गौरतलब है कि वर्तमान में देश भर में वक़्फ़ बोर्डों के स्वामित्व में 9.4 लाख एकड़ में फैली 8.7 लाख संपत्तियां हैं। वक़्फ़ बोर्ड के पास भारत का तीसरा सबसे बड़ा भूमि बैंक है। लेकिन इसके साथ ही वक़्फ़ संपत्तियों से होने वाली आय, उनका उपयोग और उनकी उपयोगिता भी सवालों से घिरी हुई है।

जेपीसी में पारित हुए भाजपा एंड कंपनी के 14 संशोधन क्या हैं?

संयुक्त संसदीय समिति ने सिर्फ 14 संशोधनों के साथ वक़्फ़ संशोधन विधेयक को मंजूरी दे दी है। जेपीसी के अध्यक्ष जगदम्बिका पॉल ने बताया कि विधेयक में 572 संशोधन प्रस्तावित थे, जिनमें से 44 संशोधनों पर चर्चा हुई और बहुमत के आधार पर समिति ने एनडीए सदस्यों के 14 संशोधनों को मंजूरी दे दी। मतदान के दौरान विपक्षी सदस्यों द्वारा प्रस्तावित सभी संशोधनों को 16 के मुकाबले 10 मतों से खारिज कर दिया गया।

वक़्फ़ विधेयक में महत्वपूर्ण संशोधनों पर एक नज़र-

संयुक्त संसदीय समिति में भाजपा और उसके सहयोगी दलों (एनडीए) द्वारा प्रस्तावित 14 संशोधनों को विपक्ष, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और राष्ट्रीय संगठनों ने सिरे से खारिज कर दिया है। आइए देखें कि जेपीसी ने कौन से संशोधन किए हैं जिन्हें मुस्लिम संगठन पूरी तरह से दिखावा कह रहे हैं और जगदम्बिका पाल के फैसले को अत्याचार और उत्पीड़न बता रहे हैं।

अब कलेक्टर नहीं, बल्कि सरकारी अधिकारी फैसला करेगा:

पहले जिला कलेक्टर को यह निर्धारित करने का अधिकार दिया गया था कि कोई संपत्ति वक़्फ़ है या नहीं। लेकिन जेपीसी ने इसमें बदलाव की सिफारिश की है। अब कलेक्टर के स्थान पर राज्य सरकार द्वारा नामित अधिकारी निर्णय लेगा। जेपीसी अध्यक्ष ने कहा कि राज्य सरकार कानून के अनुसार जांच के लिए अधिसूचना के माध्यम से कलेक्टर से ऊपर के किसी अधिकारी को नामित कर सकती है। (एक तरह से दोनों एक ही बात है। कलेक्टर भी सरकार का अधीनस्थ अधिकारी है और अब नामित वरिष्ठ अधिकारी भी सरकार का प्रतिनिधि होगा। यह तो बस हाथ मलने और कान पकड़ने की बात है।)

न्यायाधिकरण के अलावा अन्य न्यायालयों में जाने का विकल्प:

संयुक्त संसदीय समिति में पारित संशोधनों में से एक यह है कि भूमि पर दावा करने वाला व्यक्ति ट्रिब्यूनल के अतिरिक्त राजस्व न्यायालय, सिविल न्यायालय या उच्च न्यायालय में भी अपील कर सकेगा। जबकि पुराने वक्फ बोर्ड कानून के अनुसार, यदि वक्फ बोर्ड किसी संपत्ति पर दावा करता था, तो विरोधी पक्ष और दावेदार केवल न्यायाधिकरण में अपील कर सकते थे। अब वक़्फ़ न्यायाधिकरण के फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील दायर की जा सकेगी। जबकि पहले के कानून में वक़्फ़ न्यायाधिकरण का निर्णय अंतिम माना जाता था, उसे चुनौती नहीं दी जा सकती थी।

वक़्फ़ न्यायाधिकरण में दो के स्थान पर तीन सदस्य:

जेपीसी के अध्यक्ष जगदम्बिका पॉल ने एक बयान में कहा कि वक़्फ़ न्यायाधिकरण में अब दो के बजाय तीन सदस्य होंगे। तीसरा व्यक्ति इस्लामी विद्वान होगा। पिछले संशोधन विधेयक में न्यायाधिकरण में दो सदस्यों की क्षमता थी। हालाँकि, नए संशोधन से न्यायाधिकरण की शक्तियाँ कम हो गई हैं तथा इसके निर्णयों को अन्य अदालतों में चुनौती देने का विकल्प भी खुल गया है।

मनोनीत सदस्यों में से दो गैर-मुस्लिम:

वक़्फ़ संशोधन विधेयक में प्रावधान किया गया कि राज्य वक़्फ़ बोर्ड और केंद्रीय वक़्फ़ परिषद में दो गैर-मुस्लिम सदस्य होंगे। जेपीसी ने इसमें बदलाव करते हुए पूर्व सदस्यों को “दो की सीमा” से बाहर कर दिया है। इसका अर्थ यह है कि न केवल मनोनीत सदस्यों में से दो गैर-मुस्लिम रहेंगे, बल्कि अब दो से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्य भी हो सकते हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि अध्यक्ष और संयुक्त सचिव में से कोई एक या दोनों गैर-मुस्लिम हैं। पिछला कानून अन्य धर्मों के लोगों को वक़्फ़ बोर्ड और वक़्फ़ परिषद में नामित करने की अनुमति नहीं देता था। जेपीसी अध्यक्ष ने पुष्टि की कि वक्फ बोर्ड में दो गैर-मुस्लिम सदस्य होंगे। भले ही बोर्ड के अधिकारी हिंदू हों, लेकिन बोर्ड में दो गैर-हिंदू सदस्य होंगे।

वक़्फ़ बोर्ड में महिला सदस्यों की नियुक्ति:

जेपीसी में किए गए नए संशोधन के अनुसार, वक़्फ़ बोर्ड में महिला सदस्यों के लिए दरवाजे खोल दिए गए हैं, यानी अब वक़्फ़ बोर्ड में महिला सदस्यों की भी नियुक्ति की जाएगी।

विवादित संपत्तियों को वक़्फ़ संपत्ति नहीं माना जाएगा:

यदि कोई वक़्फ़ संपत्ति इस विधेयक के लागू होने से पहले पंजीकृत है तो वह वक़्फ़ संपत्ति ही रहेगी। लेकिन यदि इसका पूरा या आंशिक भाग विवादित है या सरकारी संपत्ति है तो इसे वक़्फ़ नहीं माना जाएगा।

अपंजीकृत वक्फ संपत्तियों पर जोखिम:

नया कानून पहले से पंजीकृत वक़्फ़ संपत्तियों पर लागू नहीं होगा। इसका मतलब यह है कि जो वक़्फ़ संपत्तियां पंजीकृत हैं, उन पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा, लेकिन जो पंजीकृत नहीं हैं, उनका भविष्य विधेयक में निर्धारित मानदंडों के अनुसार तय किया जाएगा।

बिना समर्पित किये कोई भी भूमि वक़्फ़ बोर्ड की नहीं होगी:

जब तक कि किसी ने दानस्वरूप संस्था को भूमि दान न की हो। अगर इस पर मस्जिद भी बना दी जाए तो वह वक़्फ़ की संपत्ति नहीं होगी। पिछले कानून के अनुसार, यदि किसी भूमि पर मस्जिद है या उसका उपयोग इस्लामी उद्देश्यों के लिए किया जाता है, तो वह स्वतः ही वक़्फ़ की संपत्ति बन जाती है।

दान देने के लिए पांच साल तक मुसलमान होना जरूरी:

इस विधेयक में यह भी प्रावधान किया गया है कि किसी भी भूमि के दान के लिए कम से कम पांच वर्ष तक इस्लाम का पालन करना आवश्यक है तथा दान के समय यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि दान करने वाले व्यक्ति ने उत्तराधिकार में महिलाओं के अधिकारों को पूरा किया है। जगदम्बिका पॉल ने संशोधन का समर्थन करते हुए एक बयान दिया, जिसमें कहा गया, “कोई भी व्यक्ति जो वक़्फ़ के लिए भूमि दान करना चाहता है, उसे कम से कम पांच वर्षों तक इस्लाम का पालन करने का प्रमाण देना होगा।”

इनके अलावा कुछ अन्य संशोधन भी किए गए हैं जो इनकी तुलना में कम महत्व के हैं, जैसे कि संशोधित विधेयक के अनुमोदन के बाद वक़्फ़ पोर्टल का डेटाबेस छह महीने में अपडेट किया जाएगा। सभी वक़्फ़ संपत्तियों को पोर्टल आदि पर अपलोड किया जाएगा। संयुक्त संसदीय समिति के अध्यक्ष जगदम्बिका पॉल ने पुष्टि की कि सभी निर्णय बहुमत के आधार पर लिए गए थे और अब परिणामों को बदला नहीं जा सकता।

~ अब्दुल मुक़ीत