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बाबर और राणा सांगा : इब्राहिम लोदी के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए राणा सांगा ने अपने दोस्त बाबर से मदद मांगी!

prof dr Arun Prakash Mishra 🇺🇲
@profapm
बाबर और राणा सांगा
@gssjodhpur

@Ramjilal_suman
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1. इब्राहिम लोदी के खिलाफ लड़ने के लिए राणा सांगा ने अपने दोस्त बाबर से मदद मांगी
2. दोस्ती के नाते बाबर तैयार हो गया और लोदी को हराकर वापस लौट जानेवाला था
3. पर अंतिम समय पर सांगा ने मक्कारी दिखाई और लड़ने ही नहीं आया
4. बाबर ने चिढ़कर हिन्दुस्तान से न लौटने का फैसला लिया और राणा को उसकी धोखेबाजी का मज़ा चखाया

बाबर ‘बाबरनामा’ में साफ लिखता है कि राणा सांगा ने उसे आमंत्रित किया और धोखा दिया
और क्या सबूत चाहिए देशद्रोह का

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बाबर झूठ क्यों बोलेगा!

खानवा जंग में बाबर से हारने के बाद राणा सांगा जख़्मी हालत में निकलने में सफल हुए, जंग में मुग़लों से तो बच गए लेकिन राणा सांगा को उनके ही राजपूत सामंतों ने ज़हर देकर मार डाला।

राणा सांगा की मौत के बाद उनके पत्नी रानी कर्णावती ने बेटे उदय सिंह को गद्दी पर बैठाकर सत्ता संभालने की कोशिश की लेकिन ज़्यादा दिन शासन नही कर सकीं राजपूत सामन्तों ने रानी कर्णावती को सत्ता से हटाने के लिए गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह को निमन्त्रण भेजा। सुल्तान बहादुर शाह चित्तोड़ पर हमले के निकल पड़ा, ये ख़बर रानी कर्णवती को भी पहुच गयी।

रानी कर्णावती ने राखी भेजकर मुग़ल बादशाह हुमायूं से मदद मांगी, चिट्ठी मिलते ही हुमायूं ने अपना बंगाल अभियान अधूरा छोड़कर चित्तोड़ का रुख किया। वह जमाना हाथी-घोड़ों की सवारी का था सेना को साथ लेकर सैकड़ों किमी की दूरी तय करना आसान नहीं था और उसमें वक्त लगना लाज़मी भी था।

हुमायूं चित्तौड़ पहुंचे लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। 8 मार्च 1535 में गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह ने चित्तौड़गढ़ के किले पर हमला कर दिया था। रानी कर्णवती ने जौहर कर आग में समा चुकी थीं। जब यह खबर बादशाह हुमायूं तक पहुंची तो उन्हें रानी कर्णावती को न बचा पाने का बहुत दुख हुआ। हुमायूं ने बहादुर शाह पर हमला किया फ़तह हासिल की और पूरा शासन रानी कर्णवती के उत्तराधिकारी विक्रमजीत सिंह को सौंप दिया।

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पृथ्वी के सबसे निकट जिस ग्रह पर जीवन की सम्भावना है अगर वहाँ उन्नत सभ्यता है तो वह इस समय खानवा का युद्ध देख रही होगी

कैसे तोमरों ने राणा सांगा का बीच युद्ध में साथ छोड़ा और जीतता हुआ राणा हार गया।
हारता हुआ बाबर जीत गया।
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बड़प्पन यह है कि आप दुश्मन की भी प्रशंसा करें
‘बाबरनामा’ में बाबर लिखता है, “मैंने राणा सांगा जैसा वीर योद्धा जीवन में नहीें देखा, वह अद्भुत वीर योद्धा है”

लेकिन कुछ वक़्त के बाद फिर से राजपूत सामन्तों जिसमे राणा सांगा के भाई बनवीर सिंह भी शामिल थे उन्होंने अपने भतीजे विक्रमादित्य सिंह का क़त्ल कर दिया।

लेकिन कुछ वक़्त के बाद फिर से राजपूत सामन्तों जिसमे राणा सांगा के भाई बनवीर सिंह भी शामिल थे उन्होंने अपने भतीजे विक्रमादित्य सिंह का क़त्ल कर दिया।

इस ऐतिहासिक घटना में आखिर कौन देशभक्त, कौन वफादार, कौन दुश्मन, कौन जेहादी?…

कौन लुटेरा, कौन गद्दार और कौन आतंकी ?

प्रमाणित इतिहास तो यही है। वाट्सएप्प यूनिवर्सिटी के इतिहास के विद्यार्थी नोट कर सकते हैं।।

 

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Professor
@Professor_kum
बाबर को बुलाने वाले राणा सांगा की आलोचना क्यों नहीं होती?

भाजपा और उसके समर्थक इतिहास की चुनिंदा व्याख्या करने में माहिर हैं। जो बातें उनके नैरेटिव में फिट बैठती हैं, उसे ज़ोर-शोर से फैलाते हैं, लेकिन जो असल इतिहास है, उससे मुँह मोड़ लेते हैं। यही कारण है कि बाबर को भारत में लाने वाले राणा सांगा पर ये कभी सवाल नहीं उठाते।

रामजी लाल सुमन ने जो कहा, वह इतिहास की सच्चाई है। 1526 में राणा सांगा ने बाबर को भारत आने का न्योता दिया और दिल्ली के तख्त को हटाने में मदद मांगी। यानी, विदेशी आक्रांता को बुलाने वाले खुद राणा सांगा ही थे। लेकिन संघी इतिहासकार और तथाकथित ‘राजपूत स्वाभिमान’ वाले इस कड़वी सच्चाई को कभी नहीं मानेंगे।

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अब बात आती है ‘Rajput Of India’ वाले ट्विटर पेज की, जो खुलेआम गुंडागर्दी और हिंसा भड़का रहे हैं। रामजी लाल सुमन की जुबान काटने वाले को 1 लाख का इनाम देने की बात करना, यह दिखाता है कि ये लोग लोकतंत्र और संविधान में विश्वास नहीं रखते। ये वही लोग हैं जो सच सुनकर पूरी बोतल में तेल मल लेते हैं और तिलमिला जाते हैं।

असल में ये राजपूतों का नाम लेकर देशद्रोह कर रहे हैं, क्योंकि इतिहास से छेड़छाड़ करना और सच को दबाना भी देशद्रोह ही है। अगर इनमें हिम्मत है, तो इतिहास की किताबें खोलकर देखें—कौन था जिसने बाबर को बुलाया? लेकिन नहीं, इनका काम सिर्फ भड़काना और झूठ फैलाना है।

 

सवाल उठता है—क्या भाजपा कभी राणा सांगा को गद्दार कहेगी?
क्या ‘Rajput Of India’ वाले बाबर को बुलाने वाले राजा के खिलाफ भी 1 लाख का इनाम रखेंगे?
या फिर इतिहास से छेड़छाड़ कर, इसे हिंदू-मुस्लिम मुद्दा बनाने में ही लगे रहेंगे?

ये सवाल हर सोचने-समझने वाले व्यक्ति को खुद से पूछना चाहिए। सच सामने आने पर तिलमिलाना बंद करो और इतिहास की सच्चाई को स्वीकार करने की हिम्मत रखो!

 

 

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Awesh Tiwari
@awesh29
इस बात में कोई भी दो राय नहीं है कि राणा सांगा, इब्राहिम लोदी के भाई दौलत और चाचा आलम खान ने बाबर की भारत में आने की राह आसान की थी।

लेकिन यह मत भूलिए कि भारत उस वक्त एक देश नहीं था। देश में तमाम रियासतें थीं जो एक दूसरे के खून की प्यासी थीं। यह भी एक बड़ा सच है कि राणा सांगा ने बाबर का पानीपत में वैसा सहयोग नहीं किया जैसा सहयोग बाबर चाहता था या जैसा उससे वादा किया गया था।

अगर राणा सांगा, बाबर का अपेक्षित सहयोग करता तो दोनों के बीच युद्ध न हुआ होता। राणा सांगा के साहस की बाबर भी इज्जत करता था। भाजपाई राणा सांगा के रिश्तेदार हैं या नहीं है वह रामजी लाल सुमन जाने लेकिन असली सच्चाई यही है।

 

 

 

डिस्क्लेमर : लेखक के निजी विचार हैं, तीसरी जंग हिंदी का कोई सरोकार नहीं!