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पांत!….पहले का समय बड़ा सुनहरा था!!

अरूणिमा सिंह
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पांत!
शाम से ही काका के घर गहमा गहमी मची हुई है।
नाउ काका खुरच खुरच कर दुआर बहार रहे हैं। पानी छिड़क दिए हैं ताकि दुआर की मिट्टी बैठ जाए और भूमि शुद्ध हो जाए।
पानी छिड़कने से धूप से गर्म हुई धरती से मनमोहक सुगंध फूट पड़ी जो मन मोह ले रही है।
नाउन काकी सगरे गांव में बुलौवा दे आई साथ के साथ पूड़ी बेलने के लिए भी कह आई थी।
दिन ढलते ही गूला जल गया था। आलू उबाल कर उतार दिया था जिसे गांव के कुछ बुजुर्ग बैठकर छील रहे थे। आजी की टोली प्याज लहसुन छीलने में लगी थीं।
बुआ और काकी मिलकर हरी मिर्च, लहसुन, खल बट्टे से कूट रही थीं।
हल्दी, धनिया, नमक, मिर्च, गर्म मसाला तो दो दिन पहले ही कूट कर, छान कर रख लिया था।
बगल में रहने वाले बड़के काका भोजन बहुत बढ़िया बनाते हैं इसलिए भोजन बनाने की उनकी ही जिम्मेदारी लगी हुई है।
परवल कटते ही काका ने गर्म गर्म तेल में डालकर सुनहरा तल कर निकाल दिया। अब तड़का लगाकर मसाला भूज रहे थे।
नाउन काकी पिसान गोजने लगी और गांव के लड़के परात, तसला में रखकर एड़ी के बल बैठकर पिसान मैदने लगे।
उधर जैसे ही कड़ाह में तेल डाल कर पंडित जी पूड़ी छानने की तैयारी में जुटे। इधर जाजिम बिछाकर गांव की सभी लड़कियों और महिलाओं को पूड़ी बेलने के लिए बैठा दिया गया।
सब लोग हंसी ठिठोली करती पूड़ी बेल रहीं थीं।
जिनके पास चौका बेलन नहीं था वो चकई बना रही थीं।
उधर पंडित काका चिल्ला रहे हैं कि khikhikhi कम करो हाथ जल्दी चलाओ कडाह जल रहा है पूड़ी कम पड़ रही है।
उनकी आवाज सुनकर सब चुप होकर जल्दी जल्दी पूड़ी बेलने लगती हैं। तनिक देर में पूड़ी रखने के लिए बिछाए गए चादर पर पूड़ी ही पूड़ी गंज गई तो पंडित काका बोले अब थोड़ा रुक जाओ नहीं तो पूड़ियां आपस में चिपकने लगेंगी।
तब तक आजी आकर सबको जोश दिलाती हैं कि __लेहड़ा भर बटुरी हो, बस खी खी खी कर रही हो कुछ गीत ही कढ़ाओ गाओ!
कुछ देर एक दूसरे को ठेलम ठेल करके फिर गीत गाना शुरू हो गया।
गीत संग हाथ चल रहे थे पूड़ी बेली जा रही थी।
इधर पंडित जी ने पल्ली बिछा दिया ताकि पांत बैठाकर भोजन करवाया जाए।
पांत में बैठे लोगों को गांव के लड़के प्रेम से भोजन परोसने लगे।
कोई पूड़ी का परात उठाकर पूड़ी परोस रहा है, कोई बाल्टी में सब्जी लेकर आया है तो कोई जग से पानी दे रहा है।
भोजन जीम रहे लोग अपने साथ बैठे लोगों की थाली में जबरदस्ती दो पूड़ी रखवा देते हैं क्योंकि जब तक सारी पांत भोजन नहीं जीम लेती है अकेले उठना बुरा माना जाता है।
एक पांत जब जीम कर उठती है तब नाउ काका सबकी पतरी उठाकर फेंकते हैं, पानी छिड़क कर पुनः झाड़ू लगा कर पल्ली बिछाते हैं और फिर दूसरी पांत भोजन जीमने बैठती है।
पहले का समय बड़ा सुनहरा था।
सारे गांव के लोग मिलजुल कर सबके काम संभाल लेते थे और प्रेम से भोजन परोसा और खिलाया जाता था।
लोग पेट भर नहीं मन भर खाकर उठते थे।

तस्वीर Rudrapur My Villag€ नामक पेज से लिया है।
अरूणिमा सिंह

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