Kranti Kumar
@KraantiKumar
धन संपत्ति नही धान संपति की सुरक्षा से शुरू हुई दिवाली मनाने की परंपरा.
किसानों ने ही शुरू की थी दीवाली.
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2019 में नव भारत टाइम्स में पत्रकार बाल मुकुंद ने एक लेख लिखा था.
बाल मुकुंद ने दीवाली के इतिहास की जानकारी ओड़ीसा की ब्लॉगर हैं निष्ठा रंजन दास से प्राप्त की थी जो उन्होंने 2016 में दिवाली के इतिहास पर अपने ब्लॉग में लिखा था. उसमें वो बताती हैं दिवाली का संबंध कृषि नियंत्रण से था.
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प्राचीन काल में किसान अपनी फसल को इस मौसम में कीट प्रजनन और बढ़े कीड़ों से फसलों को बचाने के लिए अरंडी के तेल से बढ़े दीये जलाते थे, मशालें लेकर खेतों की पगडंडियों से गुजरते थे. दीये और मशाल की लौ लपट की ओर आकर्षित होकर अधिकांश कीट पतंगे खत्म हो जाते थे.
इस तरह फसलें सुरक्षित रहती थी.
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देश दुनिया में हर पर्व किसानी पर्व हैं और उनका सीधा संबंध कृषि से है. बाद में हर पर्व को धर्म और युद्ध विजय से जोड़ दिया गया.
निष्ठा रंजन दास ने अमेरिकी अध्ययनकर्ताओं का भी जिक्र जिक्र किया है, जो इस बात को प्रमाणित करते हैं मशाल की लपट से कीट प्रजनन को नियंत्रित किया जा सकता है और इस निष्कर्ष की पुष्टि वैज्ञानिक की करते हैं.
समय के साथ दिवाली में धान के स्थान पर धन ने ले लिया.
सभी मित्रों को दीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं.
NaanSenseGuy
@NanSenseGuy
किसान दीपक जलाते थे ताकि कीड़े-मकोड़े फसल से दूर रहें, और अब देश में इतने कीड़े-मकोड़े सत्ता में हैं कि किसानों को दीप जलाकर खुद को ही बचाना पड़ रहा है।
तब से अब तक कितना विकास हुआ है—पहले किसान फसल बचाने के लिए दीप जलाते थे, अब अपनी ज़मीन और हक बचाने के लिए दिल्ली की सड़कों पर बैठे हैं। तब का दीप जलना फसलों की सुरक्षा के लिए था, आज का विरोध सत्ता के अंधकार को हटाने के लिए।
आप सभी को उसी असली दिवाली की शुभकामनाएं, जहाँ किसान के हक का दिया जलता है और लुटेरों का अंधेरा खत्म होता है।
Mrityunjay
@Mrityun30828138
सर दीपावली नही ” दीप दान उत्सव ” यह बुद्ध के परिर्निवाण के बाद जब वापस लुबिंनी जाते हैं । तो लोग उनके ज्ञान से परिचित होकर लोगो दीप जलाते हैं । अंततः उनके बाद यह परंपरा राजा अशोक ने और भी प्रचालित किये । उन्होने इस उत्सव से प्रेरित होकर हर गाव से बाहर कुआ खुदवाया और उस पर दीप जलवाये , जिससे राहगीर को रास्ते का आभास हों सर्