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देश में अराजकता, अशांति और अस्थिरता फैलाकर बीजेपी क्या हासिल करना चाहती थी?

अपूर्व اپوروا Apurva Bhardwaj
@grafidon
सारथी बड़ा स्वार्थी है…

कल संसद में वक्फ बिल आने वाला है। NDA के ही कई दल इस पर बंटे हुए हैं। लेकिन बहुत से लोग इसके पीछे की राजनीति को नहीं समझ पा रहे। इस खेल को समझिए, पूरी तस्वीर साफ हो जाएगी।

बीजेपी 2019 में भारी बहुमत से चुनाव जीत चुकी थी। उसे महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड की सत्ता के लिए कोई बड़ा दांव चलाने की जरूरत नहीं थी। फिर भी 6 महीने के भीतर,370, CAA और NRC का राग छेड़ दिया गया। क्यों?

देश में अराजकता, अशांति और अस्थिरता फैलाकर बीजेपी क्या हासिल करना चाहती थी?

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90 के दशक में जब राम मंदिर आंदोलन चरम पर था, बीजेपी ने पूरे काऊ बेल्ट से लेकर बंगाल तक विस्तार कर लिया। बंगाल, जो पूरी तरह लाल रंग में डूबा था, वहाँ भी बीजेपी ने 10% वोट हासिल किए।

1991 के चुनावों में बीजेपी 20% वोट लेकर 120 सीटें जीतने में सफल रही और 130 सीटों पर दूसरे स्थान पर रही। कैसे? सिर्फ और सिर्फ हिंदुत्व के एजेंडे के सहारे।

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1998 में अटल सरकार जैसे-तैसे बनी, लेकिन हिंदुत्व का एजेंडा पीछे चला गया। नतीजा? बीजेपी विधानसभा चुनाव हारती गई। फिर कारगिल हुआ और पूरा खेल बदल गया। बीजेपी 1999 में फिर चुनाव जीत गई।

लेकिन 2004 में, ‘शाइनिंग इंडिया’ और ‘फीलगुड’ के सपने बेचने के चक्कर में बीजेपी चुनाव हार गई।

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इस हार के बाद एक आदमी था जिसने सबक लिया। उसने हिंदुत्व के ज्वार को करीब से देखा था। कभी आडवाणी के राम रथ का सारथी बना, कभी जोशी की कश्मीर यात्रा का। उसने इस ज्वार को जिया था।

आज वही सारथी इस देश का साहब है।

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“अटल जी ने बहुत अच्छे काम किए, लेकिन हम चुनाव हार गए। हमें अपने कोर वोटर से कभी दूर नहीं जाना चाहिए।”

यह शब्द उसी सारथी के थे। जिसने देखा कि विकास के बावजूद 2004 में गुजरात में बीजेपी लोकसभा चुनाव हार गई, तो वह 2007 में वापस हिंदुत्व के एजेंडे पर लौट आया।

2012 तक, उसने धर्म और पाकिस्तान के मुद्दों के सहारे हर चुनाव जीतना जारी रखा।

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2024 लोकसभा चुनाव में राम मंदिर का मुद्दा फेल हो गया। तमाम कोशिश के बाद भी बहुमत दूर रह गया।

अब क्या?

अब 1991 वाला हिंदुत्व का कोर एजेंडा ही काम आएगा। बीजेपी को बिहार, बंगाल, तेलंगाना, तमिलनाडु और केरल में पैर पसारने हैं।

तो?

नए मुद्दे खोजने होंगे।

तीन तलाक, राम मंदिर, CAA के बाद अब समान नागरिक संहिता, NRC और वक्फ जैसे मुद्दे सामने लाए जा रहे हैं।

पूरे पाँच साल, इसी तरह सियासत सुलगती रहेगी… चाहे पूरा देश बारूद पर ही क्यों न बैठा हो। #घोरकलजुग #वक्फ_बिल

डिस्क्लेमर : लेखक के निजी विचार हैं,  लेख X पर वॉयरल हैं, तीसरी जंग हिंदी का कोई सरोकार नहीं!