विशेष

तल्ख़ियां : पता नहीं क्यों, हँसता हुआ हिटलर मुझे निश्छल लगता है : आतंकवाद का सम्बन्ध राष्ट्रवाद से होता है और राष्ट्रवाद धर्म से जुड़ता है, इसलिए आतंक पर किसी का एकाधिकार नहीं होता …!

Markandey Katju
@mkatju
Whenever I turn on Indian TV channels I see nothing but jingoism, braggadocio, flag waving, gasconade, hot air, rodomontade, bluster, and Goebbelsian bombast, instead of cool, rational analysis. Indian TV has gone mad. Truth and facts mean nothing to most of our mediapersons. The competition among them is who can shout loudest in calling for war against those devils, the Pakistanis

Aadesh Rawal
@AadeshRawal
राजीव गांधी ने कांग्रेस के कार्यकर्ताओं और जनता के लिए अपने घर के दरवाज़े खोल दिए थे।उसके बाद ज़मीनी हक़ीक़त पहुँचने लगी।अरुण नेहरू की दूकान बंद हो गई।सालों से कांग्रेस के कार्यकर्ता अपने घर बैठे हुए।यूपीए के समय से उनकी आत्मा दुखी है।राहुल गांधी खुद कहते हैं कि भारत जोड़ो यात्रा में जनता से उन्हें बहुत कुछ सीखने को मिला।तो क्या अब राहुल गांधी को अपने स्वर्गीय पिता का माडल अपनाना चाहिए ?

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Kranti Kumar
@KraantiKumar
आप लोगों को याद है या नही, एक दौर में आज तक न्यूज़ चैनल पर पुण्य प्रसून वाजपेई ने 86 में से 56 यादव SDM की झूठी खबर फैलाकर,

अखिलेश यादव सरकार के खिलाफ पिछड़ी जातियों को भड़काने का काम किया था. समाजवादी पार्टी ने तब पूण्य प्रसून वाजपेई के इस झूठ दूध का दूध पानी पानी नही कर पाई.

अब चित्रा त्रिपाठी ने बिना किसी प्रमाण के कह रही हैं कि UP में पिछड़ों का सारा हक यादव और कुर्मी खा रहे है.

पुण्य प्रसून वाजपेयी और चित्रा त्रिपाठी दोनों एक जाति से हैं. इस जाति के पत्रकार नही चाहते हैं OBC जातियों में एकता बने. ये लोग बिना जाति जनगणना के झूठा प्रचार करेंगे OBC आरक्षण में ये जाति हक अकेले हक खा रही है, SC में ये जाति हक़ खा रही,

ताकि OBC SC ST जातियां का आपसी भाईचारा खराब हो और ब्राह्मण और BJP का वर्चस्व बरकरार रहे.

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Gurpreet Garry Walia
@garrywalia_
टीआरपी की होड़ में लगी मीडिया अब क्या करेगा

सभी चैनल्स पर आप लोग पाकिस्तान के पैनलिस्ट देख रहे होंगे लेकिन अब NBDA ने झटका दे दिया है

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नयूज ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन (NBDA) ने सभी चैनलों को सलाह दी है कि वे अपने कार्यक्रमों में पाकिस्तान से जुड़े ऐसे पैनलिस्ट, वक्ता या विश्लेषक न बुलाएं जो भारत विरोधी झूठा प्रचार करते हैं

समाचार समाप्त

वैसे पाकिस्तानी पैनलिस्टों को अपने घटिया से चैनल पर सबसे अधिक ये अर्नब बुलाता है इस को भी अब अकल आएगी

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Sakshi Joshi
@sakshijoshii
एक शहीद की पत्नी के लिए ऐसी भद्दी बातें और चरित्र हनन करके हम खुद को कैसा दिखा रहे हैं! लानत है ऐसे घिनौने लोगों पर और तमाम सत्ता में बैठी उन महिलाओं पर जिनके मुँह से एक आवाज़ नहीं उठ रही । राष्ट्रीय महिला आयोग फिर से कुम्भकर्णी नींद में सो गया है ।

एक विधवा के लिए ऐसी घटिया बातें सिर्फ इसलिए लिखी जा रही हैं कि उसने देश में शांति की माँग और नफ़रत न फैलाने की अपील की

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Donald J. Trump
@realDonaldTrump
REBUILD, AND OPEN ALCATRAZ! For too long, America has been plagued by vicious, violent, and repeat Criminal Offenders, the dregs of society, who will never contribute anything other than Misery and Suffering. When we were a more serious Nation, in times past, we did not hesitate to lock up the most dangerous criminals, and keep them far away from anyone they could harm. That’s the way it’s supposed to be. No longer will we tolerate these Serial Offenders who spread filth, bloodshed, and mayhem on our streets.

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That is why, today, I am directing the Bureau of Prisons, together with the Department of Justice, FBI, and Homeland Security, to reopen a substantially enlarged and rebuilt ALCATRAZ, to house America’s most ruthless and violent Offenders. We will no longer be held hostage to criminals, thugs, and Judges that are afraid to do their job and allow us to remove criminals, who came into our Country illegally. The reopening of ALCATRAZ will serve as a symbol of Law, Order, and JUSTICE. We will, MAKE AMERICA GREAT AGAIN!

 

Narendra Pratap
@hindipatrakar
“मंदिर के दान” से #मुजफ्फरनगर पुलिस की वसूली!

₹31 हजार- शाहपुर थानेदार दीपक चौधरी
₹21 हजार- चौकी इंचार्ज हरसौली गजेन्द्र चौधरी
₹31 हजार- सिपाही ऋतिक, घर में एसी लगवाने के लिए
₹20 हजार- सिपाही उमेश, शराब और बैटरी इन्वर्टर के लिए

3 महीने से हर दूसरे दिन पुलिस की दबिशें, ₹डेढ़ लाख का दबाब, वसूली के लिए मंदिर के सेवादार से हाथापाई

सेवादार सुखराम रोते हुए कहते है- “आखिरकार मंदिर में ताला डाल दिया”

शिकायत के बाद चौकी इंचार्ज लाइन हाजिर, एक सिपाही सस्पैंड हुआ है. थानेदार, प्रधान, सीओ सब बचा दिये गये.. एसपी, एसएसपी चुप है

यह बीजेपी के वोट उगाऊ जिले का रामराज्य है..

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@Misra_Amaresh
@misra_amaresh
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May 4
हमने कल के youtube video मे #Gaza, #Rafah घटना का जिक्र किया था। प्रसारण के समय #Hamas vs #IDF मुठभेड़ चल रही थी। अब खबर है “याहलोम” इंजीनियरिंग इकाई के 2 IDF सैनिक मारे गये और कई अन्य घायल! Hamas fighters ने उस सुरंग मे विस्फोट कर दिया जिसे ये सैनिक ढूंढ़ रहे थे!

Markandey Katju
@mkatju

I am excited that I will be meeting Lahore waali soon.
That is because the Indian army will soon occupy Lahore, and I will follow behind it

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Aadesh Rawal
@AadeshRawal
हिन्दू- मुस्लिम की राजनीति ने योगी जी को 2 बार मुख्यमंत्री बनाया।”बटेंगे तो कटेंगे” की राजनीति उनकी सबसे बड़ी ताक़त थी।2024 के लोकसभा चुनाव में हिन्दू जब दलित और ओबीसी में तब्दील हुआ तो अखिलेश यादव और कांग्रेस को यूपी में 43 सीटें मिली।योगी जी अगर तीसरी बार मुख्यमंत्री बन जाएँगे तो प्रधानमंत्री के पद पर उनका दावा और मज़बूत हो जाएगा।80 % जाति में बटेंगे तो किसका फ़ायदा होगा ?

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prof dr Arun Prakash Mishra 🇺🇲
@profapm

घुसपैठिए और आतंकवादी
आइडेंटिटी कार्ड और पासपोर्ट लेकर घुसते हैं
😀😂🤣
अंडभक्तों को ही बहका बरगला और समझा सकते हैं

prof dr Arun Prakash Mishra 🇺🇲
@profapm
वक्फ बिल पर फैसला आने से पहले
पाकिस्तान से करगिल जैसी छोटी-मोटी झड़प करके देशभक्ति बघारी जाएगी

कोई युद्ध नहीं होने जा रहा
कोई युद्ध की औक़ात ही नहीं

prof dr Arun Prakash Mishra 🇺🇲
@profapm
यहाँ तक कि भूटान ने भी मोदी को लात लगा दी
दोकलाम अब चीन के नियंत्रण में दे दिया है

🥑
@TeamAvocadoIND
Replying to @profapm
सर पिछले 10 सालों से बड़े देशों को तो छोड़िए, हमारे आस-पास के पड़ोसी बांग्लादेश, नेपाल, मालदीव्स श्रीलंका सब जगह चीन ने अपना इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा कर लिया है।

इसके अलावा ये सभी देश हमें आँख दिखाने लगे हैं जो कभी हमें बड़ा भाई समझते थे।

prof dr Arun Prakash Mishra 🇺🇲
@profapm
बकवास आरोप – एक भी आरोप का सबूत नहीं
निर्दोष कश्मीरी युवा मार रही है कश्मीर पर कब्ज़ा किए हुए भारतीय सेना

prof dr Arun Prakash Mishra 🇺🇲
@profapm
आतंकवाद का सम्बन्ध राष्ट्रवाद से होता है और राष्ट्रवाद धर्म से जुड़ा होता है, इसलिए आतंक पर किसी का एकाधिकार नहीं होता …

दूसरी बात यह कि आतंकवाद और अपराध का चोली-दामन का साथ होता है … आज विश्व में ३१% पूँजी अपराध-जगत की लगी है, विश्व की अर्थ-व्यवस्था को बड़े पैमाने पर यह संचालित कर रही है …

सारा खेल पूँजी का है .. इसे बढ़ाने और कब्ज़ा जमाने का – आतंकवाद इसी का औज़ार है … सारे आतंकी employed होते हैं और सबसे अधिक सैलरी पाने वाला वर्ग होता है यह …

धर्म या सम्प्रदाय तो केवल उत्तेजक तत्व होते हैं … और जनता को गुमराह करने वाले उपकरण …

prof dr Arun Prakash Mishra 🇺🇲
@profapm
राष्ट्रवाद युवाओं के दिमाग में उन्माद, उत्तेजना पैदा करता है और उनमें जातिवाद/धर्म/नस्ल/भाषा-भेद का विष भरता है … यही उन्हें आतंकी बनाता है … आतंकवाद के लिए पैसे की ज़रूरत होती है, सो राष्ट्रवाद हफ़्ता-वसूली करता है .. और इस तरह संगठित अपराधी गिरोहों का जन्म होता है … जिनका काम आतंक पैदा करना, जबरन पैसा वसूली करना, गुंडागर्दी करना, अपराध करना, हत्या करना बन जाता है … बेरोजगारी और मंहगाई इस अपराधीकरण में सहायक होते हैं …बेरोजगार युवा इसमें ज्यादा जुड़ जाते हैं ….

prof dr Arun Prakash Mishra 🇺🇲
@profapm
हमारा पासपोर्ट, वीज़ा, सीमाओं, राष्ट्रीयता, राष्ट्रवाद, आतंकवाद, धर्म, जाति, सेना, शस्त्र उद्योग और युद्ध में कोई विश्वास नहीं है।
*****
धरती सबके लिए है और सब मनुष्य हैं।

prof dr Arun Prakash Mishra 🇺🇲
@profapm
मेरी आतंकवाद की समझ कुछ ऐसी है
१. धर्म सबसे बड़ा आतंकी संगठन है – जो डराता है, धमकाता है और भय पैदा करता है काल्पनिक चीजों के प्रति
२. राष्ट्रवाद धर्म की बैसाखी लेता है
३. फासीवाद राष्ट्रवाद का चोला ओढ़ता है
४. पूंजीवाद फासीवाद/साम्राज्यवाद को मजबूत करता है ताकि उसका शोषण-तंत्र मज़बूत बना रहे
५. साम्राज्यवाद आतंकवाद और युद्ध का भय दिखाकर अपन निरर्थक असला बेचकर माल बनाता रहता है और कमज़ोर देशों को कोहनी मारता रहता है

और इस सब में पिसती जनता है, मरती मनुष्यता है

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prof dr Arun Prakash Mishra 🇺🇲
@profapm
ख़ून फिर ख़ून है -साहिर
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जुल्‍म फिर ज़ुल्‍म है, बढ़ता है तो मिट जाता है
ख़ून फिर ख़ून है टपकेगा तो जम जाएगा
तुमने जिस ख़ून को मक़्तल में दबाना चाहा
आज वह कूचा-ओ-बाज़ार में आ निकला है

कहीं शोला, कहीं नारा, कहीं पत्‍थर बनकर
ख़ून चलता है तो रूकता नहीं संगीनों से
सर उठाता है तो दबता नहीं आईनों से
जिस्‍म की मौत कोई मौत नहीं होती है

जिस्‍म मिट जाने से इन्‍सान नहीं मर जाते
धड़कनें रूकने से अरमान नहीं मर जाते
सॉंस थम जाने से ऐलान नहीं मर जाते
होंठ जम जाने से फ़रमान नहीं मर जाते

जिस्म की मौत कोई मौत नहीं होती
ख़ून अपना हो या पराया हो
नस्ले आदम का ख़ून है आख़िर
जंग मशरिक में हो कि मग़रिब में

अमने आलम का ख़ून है आख़िर
बम घरों पर गिरें कि सरहद पर
रूहे- तामीर ज़ख़्म खाती है
खेत अपने जलें या औरों के

ज़ीस्त फ़ाक़ों से तिलमिलाती है
टैंक आगे बढें कि पीछे हटें
कोख धरती की बाँझ होती है
फ़तह का जश्न हो कि हार का सोग

जिंदगी मय्यतों पे रोती है
इसलिए ऐ शरीफ इंसानों
जंग टलती रहे तो बेहतर है
आप और हम सभी के आँगन में
शमा जलती रहे तो बेहतर है।

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prof dr Arun Prakash Mishra 🇺🇲
@profapm
अगर कहीं ईश्वर, खुदा या गॉड है तो उसे मुझसे माफी की याचना करनी पड़ेगी ।
● स्वयंभू “श्रेष्ठतम आर्य” हिटलर के यातना शिविर में दीवार पर लिखा था एक बंदी ने, जो यहूदी था । अब वो फिलिस्तीनी हो सकता है, कुर्द हो सकता है, कश्मीरी हो सकता है, दलित हो सकता है, आदिवासी हो सकता है या इन सभी ऊपरी फिरकों की महिला हो सकती है । सवाल जहां का तहाँ है ।

prof dr Arun Prakash Mishra 🇺🇲
@profapm
सनद रहे
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हत्याएं हिटलर ने भी कीं और स्तालिन ने भी
पर हत्या-हत्या में अंतर है

हिटलर ने अमानवीय मूल्यों को बनाए रखने के लिए मानवीय मूल्य वालों की हत्या की
जबकि स्तालिन ने मानवीय मूल्यों को बचाने के लिए मनुष्यता विरोधी तत्वों को खत्म किया

चीन ने तियानमेन स्क्वायर पर जो किया वह बिल्कुल सही कदम था
भारत ने किसानों के साथ जो किया वह बिल्कुल गलत था

कन्हैया को जो थप्पड़ पड़ा वह गलत था
कंगना को थप्पड़ बिल्कुल सही रहा

महात्मा गांधी, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की हत्या गलत थी
आतंकवादियों के समर्थक देशद्रोही संघी-भाजपाइयों से उनकी तुलना मूर्खता और कुतर्क है
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एक बेहतर समाज और व्यवस्था के स्थान पर एक शोषक व्यवस्था के समर्थन को कोई समझदार स्वीकार नहीं कर सकता
हम मानववाद का समर्थन करते हैं और सामाजिक प्रगति में बाधक तत्वों का पुरजोर विरोध जो मनुष्य-विरोधी हैं।

prof dr Arun Prakash Mishra 🇺🇲
@profapm
सीधा संवाद ही था कि जनता हिटलर जैसे क्रूर के नशे में जकड़ जाती है…जबकि वह सिर्फ जर्मनी को पतन की ओर लेकर जा रहा था…और यह सीधा संवाद ही था कि रूस की जनता लेनिन के नेतृत्व क्रांति का आगाज करती है…और रूस में पूंजीवादी व्यवस्था को ध्वस्त करके क्रांति का नया सवेरा लाती है…
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Vibha Singh
2017

कभी-कभी अपने कट्टर विरोधियों से भी सीखना पड़ता है…हमने अपने सामाजिक कार्य और अनुभव के आधार पर यह जाना है और महसूस किया है कि लोग उन्हें पसंद करते है ,उन्हें सुनना चाहते है जो उनकी भाषा में उनके दुखों और समस्याओं पर बात करें… खास करके उनके आसपास के रहन-सहन और उनके जीवन -स्तर से अलग या ऊपर उठ कर आया कोई ऐसा व्यक्ति जो उनसे अधिक शिक्षित ,अमीर , पढ़ा-लिखा नेता,राजनेता,अधिकारी या सामाजिक कार्यकर्ता ….जो उन्हें सपनों के सब्जबाग दिखाए…चाहे वो पूरे हों या न हों…मोदी के पहले कोई भी एक प्रधानमंत्री देश मे नही हुआ जो आम जनता से उनके दुखो और तकलीफों पर उन्ही की भाषा मे सीधे संवाद कर सके….लोगों को ऐसा महसूस कराये देश के किसी भी कोने में ये बोलकर….कि वो सिर्फ उसी से बात कर रहे है…काफी हद तक यह बात इंदिरा गांधी में थी पर सीधा संवाद उनका भी आम जनता से नही बन पाया….वो लोगों के दिल के करीब होकर भी काफी दूर थीं…और यही सब बातें मोदी को एक चमत्कारिक व्यक्तित्व बनाती है…सीधा संवाद ही था कि जनता हिटलर जैसे क्रूर के नशे में जकड़ जाती है…जबकि वह सिर्फ जर्मनी को पतन की ओर लेकर जा रहा था…और यह सीधा संवाद ही था कि रूस की जनता लेनिन के नेतृत्व क्रांति का आगाज करती है…और रूस में पूंजीवादी व्यवस्था को ध्वस्त करके क्रांति का नया सवेरा लाती है…

prof dr Arun Prakash Mishra 🇺🇲
@profapm
हिटलर ने शादी की, पार्टी की फिर गोली मार ली
रेहान फ़ज़लबीबीसी संवाददाता
25 अप्रैल, 1945 के बाद से हिटलर के जीवन का सिर्फ़ एक ही मक़सद था – स्वयं अपनी मौत की तैयारी करना.
25 अप्रैल को ही उसने अपने निजी अंगरक्षक हींज़ लिंगे को बुला कर कहा था, “जैसे ही मैं अपनेआप को गोली मारूँ तो तुम मेरे मृत शरीर को चांसलरी के बगीचे में ले जा कर उसमें आग लगा देना. मेरी मौत के बाद कोई मुझे देखे नहीं और न ही पहचान नहीं पाए. इसके बाद तुम मेरे कमरे में वापस जाना और मेरी वर्दी, कागज़ और हर चीज़ जिसे मैंने इस्तेमाल किया है,जमा करना और बाहर आकर उसमें आग लगा देना. सिर्फ़ अंटन ग्राफ़ के बनाए गए फ़्रेडरिक महान के तैल चित्र को तुम्हें नहीं छूना है जिसे मेरा ड्राइवर मेरी मौत के बाद सुरक्षित बर्लिन से बाहर ले जाएगा.”
अपने जीवन के आख़िरी दिनों में हिटलर ज़मीन से 50 फ़िट नीचे बनाए बंकर में ही काम करते और सोते. सिर्फ़ अपनी चहेती कुतिया ब्लांडी को कसरत कराने के लिए वो कभी कभी चांसलरी के बगीचे में जाते, जहाँ चारों तरफ़ बमों से ध्वस्त टूटी हुई इमारतों के मलबे पड़े होते.
72 साल पहले जर्मन सेनाओं ने मित्र और सोवियत सेनाओं के सामने आत्मसमर्पण किया था.
कौन कौन थे हिटलर के पास?
हिटलर सुबह पाँच या छह बजे सोने जाते थे और दोपहर के आसपास सो कर उठते थे. हिटलर की निजी सचिव त्राउदी जुंगा, अंतिम क्षणों तक उस बंकर में हिटलर के साथ थीं.
बीबीसी से एक बार बात करते हुए उन्होंने कहा था, “आख़िरी दस दिन वास्तव में हमारे लिए एक बुरे सपने की तरह थे. हम बंकर में छिपे बैठे थे और रूसी हमारे नज़दीक चले आ रहे थे. हम उनकी गोलीबारी, बमों और गोलों की आवाज़ साफ़ सुन सकते थे.”
“हिटलर बंकर में बैठ कर इंतज़ार कर रहे थे कि कोई आ कर उन्हें बचाएगा. लेकिन एक बात उन्होंने शुरू से ही साफ़ कर दी थी कि अगर लड़ाई में उनकी जीत नहीं होती है तो वो बर्लिन कभी नही छोड़ेंगे और अपने ही हाथों से अपनी जान ले लेंगे. इसलिए हमे पहले से ही पता था कि क्या होने वाला है.”
“जब 22 अप्रैल, 1945 को हिटलर ने हम सबसे कहा कि अगर आप चाहें तो बर्लिन से बाहर जा सकते हैं, तो उनकी प्रेमिका इवा ब्राउन सबसे पहले बोलीं, ‘आपको पता है मैं आपको छोड़ कर कहीं नहीं जाउंगी… मैं यहीं रहूंगी.’ अनायास और अपने आप मेरे मुंह से भी यही बात निकली थी.”
बदल गए थे हिटलर
उसी दौरान हिटलर के युद्ध उत्पादन मंत्री अल्बर्ट स्पीयर, उनसे मिलने और उनको अलविदा कहने उनके बंकर में आए थे. बाद में स्पीयर ने याद किया कि तब तक हिटलर की शख़्सियत में बहुत बदलाव आ चुके थे.
मालूम है कहां हुआ था हिटलर का जन्म?
“अपने जीवन के अंतिम हफ़्तों में हिटलर की हालत ऐसी हो गई थी कि उन पर सिर्फ़ तरस खाया जा सकता था. उनका पूरा शरीर हिलने लगा था और उनके कंधे झुक गए थे. उनके कपड़े गंदे थे और सबसे बड़ी बात ये थी कि उनका मेरे प्रति रुख़ बहुत ठंडा था. मैं उनसे विदा लेने आया था. उन्हें पता था कि हम आख़िरी बार मिल रहे थे, लेकिन मुझे नहीं याद पड़ता कि उन्होंने मुझसे कोई ऐसी चीज़ कही हो जो दिल को छू लेने वाली हो.”
हिटलर की उस समय की हालत का वर्णन ‘द लाइफ़ एंड डेथ ऑफ़ अडोल्फ़ हिटलर’ लिखने वाले रॉबर्ट पेन ने भी किया है. पेन लिखते हैं, “हिटलर का चेहरा सूज गया था और उसमें असंख्य झुर्रियाँ पड़ गई थीं. उनकी आंखों में जीवन जाता रहा था. कभी कभी उनका दायां हाथ बुरी तरह से कांपने लगता था और उस कंपकपाहट को रोकने के लिए वो उसे अपने बाएं हाथ से पकड़ते थे.”
“जिस तरह से वो अपने कंधों के बीच अपने सिर को झुकाते थे, उससे किसी बूढ़े गिद्ध का आभास मिलता था. उनके पूरे व्यक्तित्व में सबसे अधिक ध्यान देने वाली बात थी, उनकी किसी शराबी की तरह लड़खड़ाती चाल. ये शायद एक बम विस्फोट में उनके कान की एक बारीक झिल्ली को हुए नुकसान की वजह से हुआ था. वो थोड़ी दूर चलते और रुक कर किसी मेज़ को कोना पकड़ लेते. छह महीनों के अंदर वो दस साल बूढ़े हो गए थे.”
बंकर में अपने अंतिम दिनों के दौरान ही हिटलर ने तय किया कि वो इवा ब्राउन से शादी कर उस रिश्ते को वैधता प्रदान करेंगे.
आईए, देखते हैं ‘हिटलर का बंकर’
अपनी किताब ‘द लाइफ़ एंड डेथ ऑफ़ अडोल्फ़ हिटलर’ में रॉबर्ट पेन लिखते हैं, “सवाल उठा कि शादी कराएगा कौन? गोएबेल्स को ख़्याल आया कि किन्हीं वाल्टर वैगनर ने उनकी शादी करवाई थी. दिक्कत ये थी कि उनको ढूंढ़ा कैसे जाए ? उनके आख़िरी पते पर एक सैनिक को भेजा गया. शाम को बड़ी मुश्किल से उन्हें हिटलर के बंकर में लाया गया. लेकिन वो अपने साथ शादी का सर्टिफ़िकेट लाना भूल गए.”

हिटलर की शादी
“उसे लेने वो दोबारा अपने घर गए. रूसियों की भयानक गोलाबारी के बीच मलबे से अटी पड़ी सड़कों से होते हुए वैगनर वापस हिटलर के बंकर में पहुंचे. उस समय शादी की दावत शुरू होने वाली थी और हिटलर और इवा ब्राउन बहुत बेसब्री से उनका इंतज़ार कर रहे थे. हिटलर ने गोएबेल्स और ब्राउन ने बोरमन को अपना गवाह बनाया.”
रॉबर्ट पेन आगे लिखते हैं, “शादी के सर्टिफ़िकेट पर हिटलर का हस्ताक्षर एक मरे हुए कीड़े की तरह दीख रहा था. इवा ब्राउन ने पहले शादी से पहले वाला उनका नाम ब्राउन लिखना चाहा. उन्होंने ‘बी ‘ लिख भी दिया. लेकिन फिर उन्होंने उसे काटा और फिर साफ़ साफ़ इवा हिटलर ब्राउन लिखा. गोएबेल्स ने मकड़ी के जाले से मिलता जुलता हस्ताक्षर किया लेकिन उसके पहले वो डाक्टर लगाना नहीं भूले. सर्टिफ़िकेट पर तारीख लिखी थी 29 अप्रैल जो कि ग़लत थी, क्योंकि शादी होते होते रात के बारह बज कर 25 मिनट हो चुके थे. कायदे से उस पर 30 अप्रैल लिखा जाना चाहिए था.”
हिटलर के ख़िलाफ़ ऐसी बगावत!
शादी के बाद के भोज में बोरमन, गोएबेल्स, माग्दा गोएबेल्स, जनरल क्रेब्स, जनरल बर्गडॉर्फ़, हिटलर की दो निजी सचिव और उनका शाकाहारी रसोइया भी शामिल हुआ. इवा हिटलर के स्वास्थ्य के लिए सबने जाम उठाए. इवा ने काफ़ी शैंपेन पी ली. हिटलर ने भी शैंपेन का एक घूंट लिया और पुराने दिनों के बारे में बातें करने लगे जब वो गोएबेल्स की शादी में शामिल हुए थे. फिर अचानक उनका मूड बदल गया और वो बोले, “सब ख़त्म हो गया. मुझे हर एक ने धोखा दिया.”
अपने जीवन के आखिरी दिन हिटलर ने कुछ घंटों की नींद ली और तरोताज़ा उठे. अक्सर ये देखा गया है कि मौत की सज़ा पाए कैदी अपनी मौत से पहले की रात चैन की नींद सोते हैं. नहाने और शेव करने के बाद हिटलर अपने जनरलों से मिले. उन्होंने कहा कि अंत नज़दीक है. सोवियत सैनिक किसी भी क्षण उनके बंकर में घुस सकते हैं.
हिटलर ने मार ली गोली
रॉबर्ट पेन लिखते हैं, “हिटलर ने प्रोफ़ेसर हासे को बुला कर पूछा कि साइनाइड के कैप्सूलों पर भरोसा किया जा सकता है या नहीं ? हिटलर ने ही सलाह दी कि उनका परीक्षण उनकी प्रिय कुतिया ब्लांडी पर किया जाए. परीक्षण के बाद हासे ने हिटलर को रिपोर्ट दी, ‘परीक्षण सफल रहा’. ब्लांडी को मरने में कुछ सेकेंड से ज़्यादा नहीं लगे.”
हिटलर का ये विमान बाज़ी पलट सकता था
“हिटलर की ख़ुद इस दृश्य को देखने की हिम्मत नहीं हुई. मरने के बाद ब्लांडी और उसके छह पिल्लों को एक बक्से में रख कर चांसलरी के बगीचे में लाया गया. पिल्ले अभी तक अपनी माँ के स्तनों से चिपके हुए थे. तभी ओटे ग्वेंशे ने उन्हें एक एक कर गोली मारी और उस बक्से को बगीचे में ही दफ़ना दिया गया.”
ढाई बजे हिटलर अपना आखिरी भोजन करने के लिए बैठे. ओटो ग्वेंशे को आदेश मिला कि वो 200 लीटर पेट्रोल का इंतज़ाम करे औऱ उसे जेरी केनों में भर कर बंकर के बाहरी दरवाज़े तक पहुंचाए.
हिटलर के जीवनीकार इयान करशाँ लिखते हैं, “ग्वेंशे ने जब हिटलर के शोफ़र एरिक कैंपका को इस बारे में फ़ोन किया तो कैंपका हंसने लगे. उनको पता था कि चाँसलरी में पेट्रोल की कितनी किल्लत है. वो बोले, ‘ किसी को 200 लीटर पैट्रोल की क्यों ज़रूरत हो सकती है?’ लेकिन ग्वेंशे ने आदेश के लहजे में कहा कि ये हंसने का समय नहीं है.. कैंपका ने बहुत मुश्किल से 180 लीटर पैट्रोल का इंतेज़ाम किया.”
भोजन के बाद हिटलर आख़िरी बार अपने साथियों से मिलने आए. उन्होंने बिना उनके चेहरों को देखे उनसे हाथ मिलाए. इनकी पत्नी इवा ब्राउन भी उनके साथ थीं.
उन्होंने गहरे नीले रंग की पोशाक और ब्राउन रंग के इटालियन जूते पहन रखे थे. उनकी कलाई पर हीरों से जड़ी प्लेटिनम की घड़ी बँधी हुई थी. फिर वो दोनों कमरे के अंदर चले गए. तभी एकदम से शोर सुनाई दिया. माग्दा गोएबेल्स दरवाज़े तक चिल्लाते हुए आई कि हिटलर को आत्महत्या नहीं करनी चाहिए. अगर उन्हें उनसे बात करने दी जाए तो वो उन्हें ऐसा न करने के लिए मना सकती हैं.
किसी से नहीं मिले हिटलर
गरहार्ड बोल्ट अपनी किताब ‘इन द शेल्टर विद हिटलर’ में लिखते हैं, “हिटलर का अंगरक्षक ग्वेंशे छह फ़ीट दो इंच लंबा था और बिल्कुल गोरिल्ला जैसा लगता था. माग्दा अपनी बात पर इतना ज़ोर दे रही थीं कि ग्वेंशे ने हिटलर के कमरे का दरवाज़ा खोलने का फ़ैसला किया. दरवाज़ा अंदर से लॉक नहीं था. ग्वेंशे ने हिटलर से पूछा कि क्या आप माग्दा से मिलना पसंद करेंगे? इवा का कोई पता नहीं था. शायद वो बाथरूम में थी क्योंकि अंदर से पानी चलने की आवाज़ आ रही थी. हिटलर मुड़े और बोले, ‘मैं किसी से नहीं मिलना चाहता.’ इसके बाद उन्होंने दरवाज़ा बंद कर दिया.

दरवाज़े के ठीक बाहर खड़े हेंज़ लिंगे को पता ही नहीं चला कि हिटलर ने कब अपने आप को गोली मारी. उनको इसका पहला आभास तब हुआ, जब उनकी नाक में बारूद की हल्की सी महक गई. रोकस मिस्च हिटलर के बंकर में टेलिफ़ोन ऑपरेटर थे.
कुछ सालों पहले उन्होंने बीबीसी से बात करते हुए कहा था, “अचानक मैंने सुना कि कोई हिटलर के अटेंडेंट से चिल्ला कर कह कहा था, ‘लिंगे! लिंगे! शायद हिटलर नहीं रहे.’ शायद उन्होंने गोली की आवाज़ सुनी, लेकिन मुझे तो कोई आवाज़ नहीं सुनाई दी. उसी समय हिटलर के निजी सचिव बोरमन ने सब को चुप होने के लिए कहा.”
वो जिसने हिटलर को मारने की कोशिश की..
“हर कोई फुसफुसा कर बात कर रहा था. तभी बोरमन ने हिटलर के कमरे का दरवाज़ा खोलने का हुक्म दिया. मैंने देखा हिटलर का सिर मेज़ पर लुढ़का हुआ था. इवा ब्राउन सोफ़े पर लेटी हुई थीं और उनके घुटने सीने तक मुड़े हुए थे. उन्होंने गाढ़े नीले रंग की की पोशाक पहनी हुई थी जिस पर सफ़ेद रंग की फ़्रिल लगी हुई थी.मरते मरते शायद उन्होंने अपना हाथ फैलाया था, जिसकी वजह से वहाँ रखा फूलों का गुलदस्ता गिर गया था. मैं इस दृश्य को कभी नहीं भूल सकता.”
हेल हिटलर की सच्चाई…
इसके बाद लिंगे ने हिटलर के शव को कंबल में लपेट दिया और वो उसे ले कर इमरजेंसी दरवाज़े से ऊपर चांसलरी के बगीचे में लाए. बोरमन ने इवा ब्राउन के शव को अपने हाथों में उठाया.
रोकस मिस्च याद करते हैं, “जब वो हिटलर के शव को मेरे पास से ले कर गुज़रे तो उनके पैर नीचे लटक रहे थे. किसी ने मुझसे चिल्ला कर कहा, ‘जल्दी ऊपर आओ. वो लोग बॉस को जला रहे हैं. लेकिन मैं ऊपर नहीं गया.”
हिटलर के जीवनीकार इयान करशाँ लिखते हैं, “इस दृश्य को हिटलर के अंतिम दिनों के सभी साथी बंकर के दरवाज़े से देख रहे थे. जैसे ही उनके शवों में आग लगाई गई, सभी ने हाथ ऊँचे कर ‘हेल हिटलर’ कहा और वापस बंकर में लौट गए. उस समय तेज़ हवा चल रही थी.”
“जब लपटें कम हुई तो उनपर और पेट्रोल डाला गया. ढाई घंटे तक लपटे उठती रहीं. रात 11 बजे ग्वेंशे ने एसएस जवानों को उन जले हुए शवों को दफ़नाने के लिए भेजा. कुछ दिनों बाद जब सोवियत जाँचकर्ताओं ने हिटलर और उनकी पत्नी के अवशेषों को बाहर निकाला तो सब कुछ समाप्त हो गया था. वहाँ एक डेंटल ब्रिज ज़रूर मिला. 1938 से हिटलर के दंत चिकित्सक के लिए काम करने वाले एक शख़्स ने पुष्टि की कि वो डेटल ब्रिज हिटलर के ही थे.”

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हिटलर (नरिया) की हकीकत
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हाई स्कूल भी पास नहीं था, चालों में रहता था और आज भी उसकी ज़िन्दगी का हिसाब-किताब एक पहेली बना हुआ है, बरसों से वह जनता से ताबड़तोड़ वायदे करता आया था, सनकी था, सैकड़ों सभाओं में उसने जनता को ‘सूद की गुलामी’ से मुक्ति दिलाने का वायदा किया था जिससे फटेहाल जनता ने मारे खुशी की राहत की सांस मिलने की ख़ुशी में सिंहासन पर बैठा दिया था, उसने पूंजीपतियों को खत्म करके, बड़ी-बड़ी दुकानों को खत्म करके फुटकर छोटे खुरदा दुकानदारों के व्यवसाय को बढ़ाने का वायदा किया था जो कभी पूरा नहीं किया बल्कि उल्टा ही किया, और सत्ता सम्हालते ही संसद में आग लग गई, अनेक मंत्रालयों की गुप्त फाइल्स के कमरों में आग लग गई अचानक और सारा इन्साफ और उसकी व्यवस्था, मीडिया और नौकरशाही, हिटलर के अनुसार काम करने लगी, गोरिंग (शाह) ने अपने गुरगे खुले छोड़ दिए

तुलना करें भारत के भाग्य-विधाता संघियों से।

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हिटलर की पार्टी फक्कड़ थी – उसने पूँजीपतियों से सम्पर्क किया – एक करोड़पति तैयार हो गया

पैसा मिला, हेलीकॉप्टर भी मिला जो उस समय प्रचार के लिए किसी पार्टी के पास नहीं था

पार्टी का सपोर्ट 3% से 13%, फिर 37% और 43% तक पहुँच गया – हिटलर राष्ट्राध्यक्ष बन गया

एक देश पर आक्रमण किया – एक चौकी जीती, दस जीतीं, कब्जा किया – दो देश, पांच देश, दस देश जीते – हौसला बढ़ता गया – पूरी दुनिया कब्जे में करनी है – अजेय समझने लगा – आर्य नस्ल की अफीम में और यहूदी उन्मूलन के उन्माद में जर्मनी मस्त हो गया
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पर कम्युनिस्टों ने सैलाब को रोक दिया – रोकते ही किला और ख्वाब दरकने लगा – एक-एक ईंट सरकने लगी – विद्रोह होने लगा। आदेशों की अवमानना होने लगी, हार-पर-हार होने लगी – अजेय हिटलर और उसकी आर्य नस्ल बंकर में सिमट कर रह गई
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याद रखिए – इतिहास कभी अपने को दोहराता नहीं है

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अपना भ्रम दूर करें:
१. आरएसएस और हिन्दू महासभा, दोनों, का निर्माण अंग्रेजों ने किया
२. अंग्रेज़ तब तक हिटलर के खिलाफ नहीं थे जब इंग्लॅण्ड पर खतरा पैदा नहीं हो गया
३. तब तक आरएसएस अंग्रेजों और हिटलर के साथ था
४. याद रखिये स्टॅलिन और हिटलर भी तब तक दोस्त थे जब तक रूस पर खतरापैदा नहीं हो गया
५. अमेरिका युद्ध में तभी कूदा जब उसे जापान से खतरा महसूस हुआ
६. नेताजी हिटलर से तभी जुड़े जब वह अंग्रेजों के खिलाफ हुआ
७. हिटलर का विरोध होते ही आरएसएस अंग्रेजों और अमेरिका के साथ हो लिया और उसे तब से आज तक अमेरिका प्रिय है
८. ब्रिटेन ने अपना युद्ध घाटा पूराकरने के लिए जब १९४७ में हिंदुस्तान-पाकिस्तान अमेरिका को बेचा तो आरएसएस और पाकिस्तान, दोनों, अमेरिका को मालिक मानने लगे
९. देश का विभाजन केवल अमेरिका के बाज़ार के रूप में किया गया – दोनों की जनता को गुमराह करो और माल बनाओ
१०. आज भी आरएसएस और पाकिस्तान अमेरिका-परस्त हैं, दोनोंदेश अमेरिका का बाजार हैं, दोनों देशों की जनता को गुमराह किया जा रहा है, और आरएसएस तथा आईएसआई\ सीआईए के घटक हैं
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ध्यान दें:
१. गाँधी और नेहरू, दोनों, विभाजन के विरोधी थे,
२. अँगरेज़ और अमेरिका विभाजन चाहते थे सो आरएसएस ने साथ दिया
३. नेहरू रूस-परस्त थे
४. पटेल के पत्रपढ़िए जिसमें सारी सच्चाई है
५. ध्यान दें – मोदी भगतसिंह, आज़ाद, नेताजी किसी की फाइल्स पब्लिक नहीं कर रहा है और न श्यामाप्रसाद और दीनदयाल की मौत की जांच हो रही है !
६. ध्यान दें – दो राष्ट्र का सिद्धांत सावरकर ने १९२८ में रखा था अंग्रेजों की शह पर
7. ध्यान दें- जिन्ना की मुस्लिम लीग के साथ बंगाल ही नहीं सिंध में भी और सावरकर ने जिन्ना के साथ उत्तर पश्चिम फ्रंटियर प्रांत (एनडब्ल्यूएफपी) में भी सरकार बनाई और चलाई
८. ध्यान दें – बंगाल का विभाजन श्यामाप्रसाद ने कराया जिसके कारण बांग्लादेश बना बाद में
९. ध्यान दें – नेताजीसुभाषचंद्र के भाई सरत बोस के अखंड बंगाल के आन्दोलन का श्यामाप्रसाद ने विरोध किया था और अंग्रेजों से मिलकर बंगाल का विभाजन करा दिया
१०. अंतिम २ बातें – बंगाल के अकाल में श्यामाप्रसाद ने अन्न की सप्लाई बंद करा कर लाखों बंगालियों को मार दिया था
और ‘अन्ग्रेज़ो! भारत छोडो’ आन्दोलन केआन्दोलनकारियों पर अंग्रेजों से गोली चलाने की प्रार्थना की थी !

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महान रोमन साम्राज्य नष्ट हो गया
विशाल मगध साम्राज्य खत्म हो गया
शानदार मुगल साम्राज्य लुप्त हो गया
अंग्रेजों का सूरज डूब गया
सिकन्दर का नाम लेवा न रहा
अशोक और अकबर की हड्डियों का भी पता नहीं
हिटलर और मुसोलिनी की कब्रों पर कुत्ते पेशाब कर रहे हैं
रोम के महल खँडहर हो गये
पुराने किले में गधे घास चर रहे हैं

महोदय! आप की औकात ही क्या

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हिटलर अपने लफंगों के साथ संसद में घुस गया
रिवाल्वर निकाली और छत की तरफ फायर किया
सभी से कहा सरेंडर करो और गद्दी मुझे सौंपो

उसे अपने नाजी गिरोह के संगठन, उनके हथियारों, उनके बाहुबल पर हद से अधिक ही विश्वास हो गया था

लेकिन जर्मनी की पुलिस ज्यादा पेशेवर थी – हिटलर पकड़ा गया, ढाई साल जेल में रहा

पर वह धूर्त था – जेल में ही उसने मनुस्मृति लिख डाली – जो जेल से छूटते ही उसने छापी और आगे का इतिहास दुनिया जानती है।

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एक जैसी बातें भी एक दूसरे के ठीक विपरीत होती हैं – 3 उदाहरण देखिए और समझिए:👇

👉1. हिटलर ने भी लोगों की हत्या की और स्तालिन ने भी लोगों की हत्या की:

हिटलर – मानवता के समर्थकों की हत्या की
स्तालिन – मानवता के विरोधियों की हत्या की

👉2. संघ ने ‘1942 के कांग्रेस के भारत छोड़ो आंदोलन’ का विरोध किया और कम्युनिस्टों ने भी ‘1942 के कांग्रेस के भारत छोड़ो आंदोलन’ का विरोध किया:

संघ – अंग्रेज़ों के समर्थन में विरोध किया
कम्युनिस्ट – हिटलर के विरोध में विरोध किया

👉3. ‘मानववाद’ Humanism और ‘मानवतावाद’ Humanitarianism

मानववाद – मनुष्य के बेहतर जीवन में विश्वास करता है, मनुष्य को केंद्र में रखता है, इहलौकिकता में विश्वास करता है

मानवतावाद – पारलौकिकता में विश्वास करता है, पशु जगत को केंद्र में रखता है, यथास्थित में विश्वास करता है
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‘मानववाद’ क्या है?
वह सोच जो
1. बेहतर मनुष्य
2. बेहतर मानवीय मूल्य
3. बेहतर मानवीय जीवन, और
4. बेहतर समाज व्यवस्था
में विश्वास करती है और इनके लिए प्रयत्नशील रहती है

‘मानवतावाद’ अलग सोच और ‘मानववाद’ विरोधी है।सारा झगड़ा २ विचारधाराओं का है:
मानवतावाद बनाम मानववाद
शोषक बनाम शोषित
व्यक्तिवाद बनाम समाजवाद

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कश्मीर में पहला अलगाववादी – श्यामाप्रसाद मुखर्जी
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👉सावरकर ने १९२८ में हिन्दू महासभा (जिसके सदस्य योगी आदित्यनाथ हैं) मुस्लिम आबादी वाले प्रान्तों (कश्मीर सहित) को मिलाकर पाकिस्तान बनाने का प्रस्ताव रखा और शेष हिन्दू आबादी वाले क्षेत्र को हिन्दू-राष्ट्र बनाने की बात की !

👉श्यामाप्रसाद १९३७ से १९४२ तक बंगाल की मुस्लिम लीग सरकार में रहा और वित्त-मंत्री भी बना !

👉श्यामाप्रसाद १९३९ से १९४६ तक हिन्दू महासभा में रहा और इसका राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहा करीब इन्हीं ७ सालों तक !

👉१९४६ में इस बन्दे ने बंगाल विभाजन कराया हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर और १९४७ में नेताजी सुभाष बोस के भाई सरत बोस का जमकर विरोध किया जब सरत बोस ने बंगाल को फिर एकजुट करने की कोशिश की ! (1905-1906 का बंगाल विभाजन असफल रहा था, अंग्रेजों ने 1911 में फिर बंगाल को एक कर दिया था – टुकड़े-टुकड़े संघी गैंग यह नहीं जानता)

👉१९४२ में जब यह शख्स हिन्दू महासभा का अध्यक्ष था इसने ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ आन्दोलन का विरोध किया और कहा कि अंग्रेजों को भारत में रहकर भारत पर शासन करते देना चाहिए !

👉१९४२ में इसने ईस्ट बंगाल पाकिस्तान को देने की हिमायत की
👉१९४७ में इसने कश्मीर पाकिस्तान को देने की हिमायत की

👉१९४२ में इसने अंग्रेजों को लिखकर दिया कि हिन्दू महासभा मुस्लिम लेग के साथ मिलकर अंग्रेजों का साथ देगी

👉१९४८ से १९५० तक यह नेहरू ने उदारता दिखाते हुए इसे सरकार में मंत्री बनाया और संविधान निर्माण में भी इसे लगाया

👉१९५० में इसने सरकार छोड़ दी क्योंकि यह दलितों-पिछड़ों के लिए आयोग बनाने के विरुद्ध था जो आरएसएस की वर्ण-व्यवस्थावादी हिन्दू-राष्ट्र के रास्ते में बाधा थी !

👉१९५१ में इसने गोलवरकर से मिलकर जनसंघ बनाई !

👉१९५३ में इसने कश्मीर पालिसी को तीन-राष्ट्र पालिसी कहा और भारत में कश्मीर-विलय का विरोध किया – गैर-कानूनी रूप से कश्मीर गया और पकड़ा गया और अंत में वहीं मारा गया

✨इसने कश्मीर का विरोध क्यों किया – जम्मू में जाकर आन्दोलन क्यों फैलाया इसका उत्तर इस पोस्ट के पहले पैराग्राफ में है !
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अब आप सोच लीजिये कि आदमी कितना देशभक्त था – इसका मुस्लिम लीग से यानिकि पाकिस्तान से कितना याराना था – मोदी का संगठन आरएसएस और योगी का संगठन हिन्दू महासभा देश के हितैषी हैं या केवल हिन्दू-राष्ट्र के ?

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चोरों की दो क़िस्में हैं:👇
आम चोर और सियासी चोर

👉आम चोर:
आपका माल
आपका बटुआ
आपकी घड़ी
और आपका मोबईल फ़ोन वगैरह
छीन लेते हैं।

👉सियासी चोर:
आपका मुस्तकबिल
आपके ख़्वाब
आपका अमल
आपकी तालीम
आपकी सेहत
आपकी मुस्कुराहटें
छीन लेते हैं।

लेकिन गौर फ़रमाइए👇
इनमें एक अजीब-ओ-गरीब बुनयादी फ़र्क़ होता है
1.👉आम चोर आपका intekhab(चुनाव) करता है।
2.👉सियासी चोरों का intekhab आप ख़ुद करते हैं।

(मोहम्मद अज़हर सिद्दीक़ी की वाल से)

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इसे गौर से समझिए
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हम 2 बातें बरसों से कहते रहे हैं:
1. पूंजीवाद को बच्चे, बूढ़े, अपाहिज, दुर्बल नहीं चाहिए जो व्यवस्था पर आर्थिक बोझ हों
2. पूंजीवाद सम्पूर्ण स्वचालन की ओर बढ़ रहा है ताकि वेतन आदि का आर्थिक बोझ समाप्त हो

1. इजराइल में बच्चे मारे जा रहे हैं
2. फिलीस्तीन में बच्चे मारे जा रहे हैं
3. चीन में बच्चे मरने लगे
4. भारत में बच्चों का मरना शुरू होने वाला है

बच्चे ही क्यों?
क्योंकि आगे चलकर ये रोज़गार मांगेंगे

कोविड में दुर्बलों और वृद्धों को समाप्त करने की कोशिश की जो आर्थिक बोझ थे

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गौर फरमाएं

धूर्त मक्कार दलाल घूसखोर जाहिल गंवार लम्पट और चोर देशद्रोही गद्दार हैं सावरकर-श्यामाप्रसाद के देश-विभाजक समाज-विभाजक टुकड़े टुकड़े गिरोह के संघी-भाजपाई
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१. मुंजे हेडगेवार का गुरु था
२. मुंजे १९२७ से १९३७ तक हिंदू महासभा का अध्यक्ष रहा
३. हेडगेवार ने १९२५ में ‘रायल सीक्रेट सर्विस’ का नाम ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ किया
४. १९२८ में ही सावरकर ने खुलेआम यह ऐलान किया था कि भारत में दो राष्ट्र, हिन्दू और मुसलमान बसते हैं और इसे फिर १९३७ में दोहराया।
५. 1930-31 में लंदन में हुए गोलमेज सम्मेलन से लौटते हुए मुंजे इटली के तानाशाह मुसोलिनी से मिला
६. इसमें उसने भारत को इटली का गुलाम बना देने का वायदा किया
७. आरएसएस का ढांचा और शाखाओं की रचना १९३१ में मुंजे ने की
८. संघियों ने १९३०-३१ भगतसिंह के खिलाफ गवाही दी
९. श्यामा प्रसाद को १९३४ में अंग्रेजों ने कलकत्ता विवि का कुलपति बनाया
१०. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने १९३७ में मुस्लिम लीग के साथ सरकार बनाई
११. सावरकर ने १९४०-४१ नेताजी का साथ छोड़ा
१२. १९४०-४१ में ही संघ ने घोषणा की कि कोई भी हिन्दू ‘आज़ाद हिन्द सेना’ में भर्ती न हो
१३. १९४०-४१ में ही सावरकर ने ‘आज़ाद हिन्द सेना’ के खिलाफ अंग्रेजों की सेना में हिन्दुओं की भर्ती की
१४. १९४२ अटल बिहारी बाजपाई ने क्रांतिकारियों के खिलाफ गवाही दी और २ क्रांतिकारियों को फांसी हुई
१५. On 11 February 1941, श्यामा प्रसाद मुखर्जी told a Hindu rally that if Muslims wanted to live in Pakistan they should “pack their bag and baggage and leave India”
१६. महात्मा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने 1942 में 9 अगस्त को जब ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ का नारा दिया, तो हिंदु महासभा ने उसका विरोध किया था।
१७. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने बंगाल में मुस्लिम लीग के नेतृत्व में बनी सरकार के मंत्री के रूप में अंग्रेज सरकार को 26 जुलाई 42 को पत्र लिखकर कहा था कि युद्धकाल में ऐसे आंदोलन का दमन कर देना किसी भी सरकार का फ़र्ज़ है।
१८. 1941-42 में हिंदु महासभा मुस्लिम लीग के साथ बंगाल मे फजलुल हक़ सरकार में शामिल थी। श्यामा प्रसाद मुखर्जी उस सरकार में वित्त मंत्री था।
१९. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने १९४६ में बंगाल को विभाजित कर देने की मांग रखी
२०. श्यामा प्रसाद ने १९४६ में कहा, “बिना गृहयुद्ध हिंदु-मुस्लिम समस्या का हल नहीं”
२१. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1947 में सरत बोस के बंगाल को एक करने के प्रयास का विरोध किया
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बताइए आज़ादी की लड़ाई में कौन शामिल था और कौन गद्दार थे?

ध्यान दें – अंग्रेजों ने हिन्दू महासभा और आरएसएस पर कभी प्रतिबन्ध नहीं लगाया – क्यों?

डिस्क्लेमर : लेखक के निजी विचार हैं, लेख X पर वॉयरल हैं, तीसरी जंग हिंदी का कोई सरोकार नहीं!