उत्तर प्रदेश राज्य

गोरखपुर : मस्जिद कमेटी खुद ही ”मस्जिद” को ढहा रही है, मस्जिद कमेटी का कहना है कि निर्माण अवैध नहीं है, क्या है पूरा मामला?

गोरखपुर जिले में विकास प्राधिकरण के नोटिस के बाद मस्जिद कमेटी खुद ही अवैध निर्माण को ढहा रही है. हालांकि कमेटी का कहना है कि निर्माण अवैध नहीं है. क्या है पूरा मामला?

गोरखपुर जिले के कोतवाली क्षेत्र में मौजूद तीन मंजिला अबू हुरैरा मस्जिद को पिछले तीन दिनों से तोड़ा जा रहा है. मस्जिद कमेटी खुद ही ऊपर की दो मंजिलों को तुड़वा रही है क्योंकि गोरखपुर विकास प्राधिकरण (जीडीए) ने मस्जिद कमेटी को नोटिस दिया था कि वो अवैध तरीके से बनी इस मस्जिद को या तो खुद तोड़ दे, वरना 15 दिन के बाद मस्जिद गिरा दी जाएगी.

मस्जिद प्रबंधन का दावा है कि मस्जिद का निर्माण अवैध नहीं है. मस्जिद कमेटी ने जीडीए के नोटिस के खिलाफ कोर्ट में अपील भी की है और उस पर तीन मार्च को सुनवाई भी हुई लेकिन जीडीए नोटिस की अवधि खत्म होने के एक दिन पहले ही मस्जिद कमेटी ने ऊपरी मंजिलों को बुलडोजर लगाकर तुड़वाना शुरू कर दिया. कमिश्नर कोर्ट में इस मामले की अगली सुनवाई अब 11 मार्च को होगी.

क्या है पूरा विवाद
यह पूरा विवाद एक साल पहले शुरू हुआ जब जनवरी 2024 में इसी जगह पर बनी एक पुरानी मस्जिद को नगर निगम ने ढहा दिया था. वह मस्जिद करीब 1200 वर्ग फीट जमीन पर बनी थी. मस्जिद ढहाने पर विवाद बढ़ा तो नगर निगम के अफसरों ने मुस्लिम समुदाय के साथ बैठक कर उन्हें पास में ही 520 वर्ग फीट जमीन मस्जिद बनाने के लिए दे दी थी.

मस्जिद कमेटी के प्रमुख शोएब अहमद कहते हैं, “520 वर्ग फीट का यह प्लॉट हमें मस्जिद निर्माण के लिए ही दिया गया था लेकिन जीडीए अब उसे अवैध बता रहा है. मस्जिद उसी जगह पर बनी है जो जगह कानूनी तौर पर मस्जिद निर्माण के लिए ही है.”

वहीं, गोरखपुर विकास प्राधिकरण के वाइस चेयरमैन आनंद वर्धन कहते हैं कि यह मामला जमीन का है ही नहीं, बल्कि यह तो अवैध निर्माण का मामला है. डीडब्ल्यू से बातचीत में वो कहते हैं, “मामला जमीन के मालिकाना हक का नहीं बल्कि अनधिकृत निर्माण का है. किसी भी निर्माण के लिए यदि नक्शा पास नहीं है तो उसके लिए नोटिस दिया जाएगा और कानूनी कार्रवाई होगी.”

पिछले साल गोरखपुर नगर निगम ने कोतवाली क्षेत्र के घोष चौराहे के आस-पास जमीन पर अवैध कब्जे हटाने का अभियान चलाया था. इसके तहत दर्जनों दुकानों और मकानों को वहां से हटा दिया था. शोएब अहमद बताते हैं, “ध्वस्तीकरण अभियान में नगर निगम ने हमारी सौ साल से ज्यादा पुरानी मस्जिद को भी ढहा दिया. हम इसकी शिकायत लेकर जिलाधिकारी कार्यालय गए. फिर हमें नगर निगम ने किनारे की ओर यह जमीन दी जहां मस्जिद बनाई गई है.”

मस्जिद कमेटी का दावा
शोएब अहमद दावा करते हैं कि उन लोगों ने नक्शा पास कराने का भी आवेदन दिया था लेकिन तब कहा गया कि सौ वर्ग मीटर से कम जमीन पर नक्शा पास कराने की जरूरत नहीं है. वो कहते हैं, “तब कहा गया कि आप लोग मस्जिद बना लें, हमें कोई दिक्कत नहीं है लेकिन अब मस्जिद बन जाने के बाद जीडीए ने नोटिस भेज दिया और अब कहा जा रहा है कि निर्माण अवैध है. इसका नक्शा नहीं पास है. जीडीए ने हमें 15 दिन का समय दिया कि मस्जिद को खुद ध्वस्त कर लें, नहीं तो 15 दिन के बाद जीडीए इसे ध्वस्त कर देगी और ध्वस्त करने में जो खर्च आएगा, उसकी भरपाई भी हमसे ही की जाएगी.”

जीडीए ने मस्जिद कमेटी को नोटिस देकर अपना पक्ष रखने के लिए कहा था. लेकिन जिस दिन मस्जिद कमेटी ने अपना जवाब भेजा, उसी दिन वहां नोटिस चस्पा कर दी गई. मस्जिद कमेटी ने कमिश्नर कोर्ट का रुख किया लेकिन नोटिस की अवधि खत्म होते ही मस्जिद कमेटी ने ही मस्जिद की मंजिल को तोड़ना शुरू कर दिया.

यह मामला दो सरकारी विभागों के बीच फंसा हुआ दिखता है- नगर निगम और जीडीए. नगर निगम के अफसरों का कहना है कि यह जीडीए के दायर में आता है और जीडीए के अफसर इस मामले में ज्यादा टिप्पणी करने से यह कहकर मना कर रहे हैं कि मामला कोर्ट में है और कोर्ट ने सुनवाई के लिए 11 मार्च की तारीख तय की है.

क्या कह रहे हैं स्थानीय
इलाके के लोगों का कहना है कि पुरानी मस्जिद की चर्चा कोई नहीं कर रहा है जबकि वो मस्जिद कानूनी तरीके से बनी थी और उसके सारे वैध कागज भी थे. कोतवाली इलाके के ही रहने वाले असलम बताते हैं, “पुरानी मस्जिद किस आधार पर गिरा दी गई, इसका जवाब किसी के पास नहीं है. जब विवाद बढ़ा तो नगर निगम ने मस्जिद के लिए जगह अलॉट की. अब जीडीए नक्शे की बात कर रहा है.”

हालांकि प्रशासन इस मुद्दे पर एक बार फिर बैकफुट पर दिख रहा है और मस्जिद कमेटी के साथ विवाद को खत्म करने की कोशिश में है. मस्जिद कमेटी ने जो कुछ हिस्से गिराने की कार्रवाई शुरू की है, उसके पीछे भी इसी कोशिश को बताया जा रहा है. मस्जिद प्रबंधन से जुड़े एक व्यक्ति ने नाम न छापने की शर्त पर डीडब्ल्यू को बताया, “जीडीए के साथ यही बात हुई है कि आप दो मंजिल गिरा दीजिए, उसके बाद नक्शा पास हो जाएगा.”

वहीं, मुस्लिम समुदाय के लोगों का आरोप है कि ऐसा जानबूझकर किया जा रहा है और मुस्लिमों को टार्गेट किया जा रहा है. अवैध निर्माण बताकर इससे पहले भी कई मस्जिदों को गिराया जा चुका है. गोरखपुर के पड़ोसी जिले कुशीनगर में ही इसी साल 9 फरवरी को मदीना मस्जिद के एक हिस्से को अवैध बताकर गिरा दिया गया था. यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. 18 फरवरी को कोर्ट ने सभी पक्षों को यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया.

21 फरवरी को मेरठ में भी एक मस्जिद को गिरा दिया गया था. अधिकारियों का कहना है कि मस्जिद रैपिड मेट्रो के लिए अधिग्रहीत जमीन पर बनी हुई थी इसलिए गिराया गया जबकि मस्जिद कमेटी का दावा है कि मस्जिद 1857 की बनी थी और इसका ऐतिहासिक महत्व भी था.

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समीरात्मज मिश्र