चीन के रक्षा मंत्रालय ने घोषणा की है कि उनका देश जल्द ही ईरान और रूस के साथ साझा नौसैनिक युद्धाभ्यास करेगा.
चीनी रक्षा मंत्रालय ने एक आधिकारिक बयान जारी कर कहा है कि ये अभ्यास ईरान के पास समुद्र में किया जाएगा.
वहीं ईरान की न्यूज़ एजेंसी तस्नीम का कहना है कि ये सैन्य युद्धाभ्यास सोमवार से ईरान के दक्षिणपूर्व में ‘चाबहार बंदरगाह के नज़दीक’ ओमान की खाड़ी में शुरू होगा.
हाल के सालों में ईरान, रूस और चीन के बीच संयुक्त नौसैनिक अभ्यास लगातार आयोजित किये जाते रहे हैं. लेकिन मौजूदा युद्धाभ्यास ऐसे वक्त हो रहा है जब इसराइल और अमेरिका ने हाल के महीनों में बार-बार धमकी दी है कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम को रोकने के लिए उस पर हमला किया जा सकता है.
कौन-कौन ले रहे हैं हिस्सा?
अगले सप्ताह से शुरू होने वाले सैन्य युद्धाभ्यास में “चीन और रूस के युद्धपोत और उनकी मदद करने वाले जहाज़ों के साथ-साथ सैनिक हिस्सा लेंगे. ईरान की तरफ से नौसेना के अलावा उसकी एलीट फोर्स कहे जाने वाले रेवॉल्यूशनरी गार्ड्स भी हिस्सा लेंगे.”
तस्नीम न्यूज़ एजेंसी के अनुसार आधा दर्जन देश बतौर पर्यवेक्षक इस सैन्य युद्धाभ्यास में शामिल होंगे. ये हैं- अज़रबैजान, दक्षिण अफ़्रीका, पाकिस्तान, क़तर, इराक़, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और श्रीलंका.
समाचार एजेंसी एएफ़पी के अनुसार इसका उद्देश्य आपसी सहयोग बढ़ाना बताया गया है. हाल के सालों में इन तीनों मुल्कों की सेनाएं इस तरह के युद्ध अभ्यास करती रही हैं.
वहीं तस्नीम समाचार एजेंसी का कहना है कि ये सैन्य अभ्यास “हिंद महासागर के उत्तर में” होगा और इसका उद्देश्य “इलाक़े की सुरक्षा और हिस्सा लेने वाले मुल्कों के बीच बहुपक्षीय सहयोग बढ़ाना है.”
अमेरिका- ईरान तनाव में ट्रंप की एंट्री
बीते दिनों अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि उन्होंने ईरान के सुप्रीम लीडर को एक चिट्ठी लिखकर परमाणु कार्यक्रम पर चर्चा के लिए कहा था.
अमेरिका की इस पेशकश को ईरान के ठुकराने के एक दिन बाद ईरान, रूस और चीन के बीच नए सैन्य अभ्यास की ख़बर आई है.
ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर ट्रंप के प्रस्ताव को “अत्याचारी” कह कर खारिज कर दिया था.
हालांकि ईरानी विदेश मंत्री अब्बास अराक्ची ने पहले कहा था कि ईरान के सर्वोच्च नेता को डोनाल्ड ट्रंप का पत्र “अभी तक नहीं मिला है”.
दो दिन पहले, व्हाइट हाउस में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई थी जो मुख्य रूप से अमेरिका की आर्थिक स्थिति पर केंद्रित थी. इस दौरान ट्रंप ने कहा था कि “आप जल्द ही ईरान के बारे में न्यूज़ सुनेंगे, बहुत जल्द.”
इसी दौरान ट्रंप ने कहा कि उन्होंने ईरान के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई को एक पत्र लिखकर उन्हें बातचीत के लिए आमंत्रित किया है. हालांकि उस समय संयुक्त राष्ट्र में ईरान के मिशन ने कहा था कि उन्हें ट्रंप का कोई पत्र नहीं मिला है.
लेकिन इस ख़बर के आने के बाद ख़ामेनेई ने अपने ताज़ा बयान में अमेरिका की आलोचना की और कहा “सरकार पर दबाव डालकर” ईरान को बातचीत की मेज़ तक नहीं लाया जा सकता.
उन्होंने ईरान के साथ हुए परमाणु समझौते (जेसीपीओए) के तहत प्रतिबद्धताओं को लागू करने में ईरान की विफलता की आलोचना करने के लिए यूरोपीय देशों को “अंधा और बेशर्म” कहा.
लेकिन ईरान के जवाब के बाद व्हाइट हाउस ने तुरंत प्रतिक्रिया दी और नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल के प्रवक्ता ब्रायन ह्यू ने एक तरह से ईरान को धमकी दे डाली.
रॉयटर्स के अनुसार उन्होंने कहा , “हमें उम्मीद है कि ईरान अपने लोगों और हितों को आतंकवाद से ऊपर रखेगा.”
उन्होंने कुछ दिन पहले ट्रंप के दिए एक बयान को दोहराते हुए कहा, “अगर हमें सैन्य कार्रवाई करनी पड़ी तो ये बुरा होने वाला है.”
इससे पहले, गुरुवार को ट्रंप ने कहा था कि ईरान को परमाणु हथियार बनाने से रोकने के दो तरीके हैं, ‘सेना का तरीका या फिर समझौता करने का तरीका.’
ईरान ने हाल के दिनों में बार-बार अपनी स्थिति पर ज़ोर दिया है.
इस साल जनवरी में अमेरिका के राष्ट्रपति का पदभार संभालने के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि ईरान के प्रति उनका रुख़ “अधिकतम दबाव” वाला होगा.
इससे संबंधित एक नेशनल सिक्योरिटी मेमोरैंडम पर उन्होंने हस्ताक्षर किए जिसमें कहा गया है कि ईरान को परमाणु हथियार, इंटरकॉन्टिनेन्टल बैलिस्टिक मिसाइलें हासिल करने से रोकना है, साथ ही साथ उसके आतंकी नेटवर्क को ख़त्म करना है.
4 फरवरी 2025 के इस मेमोरैंडम में ईरान के आक्रामक परमाणु कार्यक्रम को अमेरिका के लिए ख़तरा बताया गया है. इस पर ट्रंप के हस्ताक्षर करने के बाद से ही अमेरिका के साथ सीधी बातचीत को लेकर ईरान का रुख़ और भी अड़ियल हो गया है.
मामला केवल अमेरिका तक सीमित है, ऐसा नहीं है. अमेरिका के क़रीबी माने जाने वाले इसराइल ने भी ईरान को निशाने पर बताया है.
बीते दिनों इयाल ज़मीर के रूप में इसराइली सेना को अपना नया चीफ़ ऑफ़ स्टाफ़ मिला. पदभार ग्रहण करते ही ज़मीर ने कहा कि साल 2025 “युद्ध का साल होने वाला है.” उन्होंने कहा कि उनका पूरा ध्यान ग़ज़ा पट्टी और ईरान पर रहेगा, साथ ही उनकी कोशिश ‘अब तक जो हासिल किया है उसकी रक्षा की भी है.’
ईरान-चीन-रूस साझा अभ्यास का इतिहास
यह पहली बार नहीं है जब ईरान, रूस और चीन एक-दूसरे के साथ साझा नौसैनिक अभ्यास कर रहे हैं. यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद से ईरान और चीन पर रूस को सैन्य मदद मुहैया कराने का आरोप लगता रहा है.
लगभग एक साल पहले मार्च 2024 में और लगभग दो साल पहले मार्च 2023 में इन तीनों देशों ने चार-चार दिवसीय नौ सैनिक युद्धाभ्यास किया था. दोनों बार ये आयोजन हिंद महासागर क्षेत्र के उत्तर में ओमान की खाड़ी के पास हुआ था.
“मरीन सिक्योरिटी बेल्ट 2023 और 2024” नाम के इस युद्धाभ्यास में ईरानी नौसेना और रिवॉल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स दोनों ने भाग लिया था.
हालांकि इससे पहले भी ये तीनों इस तरह के सैन्य अभ्यास करते रहे हैं.
इन अभ्यासों के लिए अक्सर ओमान की खाड़ी के पास की जगह को चुना जाता है, जो फारस की खाड़ी और होर्मुज जलडमरूमध्य के मार्ग पर है. ये रणनीतिक तौर पर अहम जलमार्ग है क्योंकि इसके ज़रिए वैश्विक बाजारों तक तेल की आपूर्ति होती है. विश्व के कुल तेल का लगभग पांचवां हिस्सा इसी रास्ते गुज़रता है.
एक-एक कदम बढ़ते रूस और ईरान
शंघाई सहयोग संगठन में ईरान की स्थाई सदस्यता और ब्रिक्स से जुड़ने के बाद ईरानी सरकार ने चीन और रूस, के साथ क़रीबी संबंध बनाए हैं और सुरक्षा, राजनीतिक और आर्थिक समझौते किए हैं.
इसी साल फरवरी में ईरानी विदेश मंत्री अब्बास अराक्ची ने अपने रूसी समकक्ष सर्गेई लाफ़रोव से तेहरान में मुलाक़ात की थी. इसके बाद हुए एक संवाददाता सम्मेलन में अब्बास अराक्ची ने कहा, “ईरान अपने परमाणु मामले के संबंध में अमेरिका के साथ सीधी बातचीत नहीं करेगा” और परमाणु मुद्दे पर “रूस और चीन के साथ समन्वय में आगे बढ़ेगा.”
इस बीच, रूस भी हाल के वक्त में अमेरिका के साथ सीधी बातचीत कर रहा है. दोनों देशों के प्रतिनिधियों ने रियाद में मुलाक़ात की है और अपनी बातचीत के दौरान ईरान पर भी चर्चा की है.
डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिका के राष्ट्रपति पद की शपथ लेने से कुछ दिन पहले, यानी 12 जनवरी 2025 को रूस और ईरान ने व्यापक रणनीतिक साझेदारी समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं.
इस दस्तावेज़ के अनुसार दोनों मुल्क एकदूसरे के साथ “सैन्य, राजनीतिक, व्यापारिक और आर्थिक संबंधों को मज़बूत” करेंगे.
बीते साल सितंबर 2024 में जेन्स स्टोल्टेनबर्ग ने बीबीसी को बताया कि रूस, ईरान, चीन और उत्तर कोरिया पहले से कहीं अधिक एकजुट और समन्वित हैं.
कुछ इसी तरह की चेतावनी नेटो के मौजूदा महासचिव मार्क रट ने भी दी है. उन्होंने कहा है, “रूस और चीन के साथ उत्तर कोरिया और ईरान मिलकर उत्तर अमेरिका और यूरोप को कमज़ोर करने की कोशिश कर रहे हैं.”
Mario Nawfal
@MarioNawfal
🚨🇮🇷IRAN SIGNALS TALKS WITH U.S.—BUT ONLY ON ITS OWN TERMS
Iran’s U.N. mission says Tehran would consider negotiations with the U.S.—but only if the talks focus on “concerns” about potential militarization of its nuclear program.
This carefully worded offer comes as Iran continues advancing its nuclear capabilities, all while dodging real oversight.
Source: Reuters
Mario Nawfal
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🚨🇺🇸TRUMP: 2 WAYS TO HANDLE IRAN, EITHER MILITARILY OR WITH A DEAL
“I prefer a deal because I don’t want to hurt the Iranian people.”]]]
World Affairs
@naziakhan455
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BREAKING:
China, Russia and Iran are now starting naval drills .This is their fifth joint naval exercises. They claim joint defence against their enemies .
Current Report
@Currentreport1
BREAKING:
Amid Trump’s repeated threats of military action against Iran’s nuclear sites, China’s defense minister has directed its navy to join forces with Iran and Russia for major naval drills near Iran in mid-March.
A bold show of military unity against US pressure.