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और एक के हुए बिना तुम एक को न पा सकोगे…तो इसमें मेरी क्या ग़लती है?

तृप्त …🖤
@yaduvanshi32
क्या वह प्रेम है ? —–जिसमें सम्भोग न हो?—– आज के समय में सेक्स सिर्फ शारीरिक जरूरत नहीं, बल्कि प्रेम और भरोसा जताने का एक तरीका बन गया है। लेकिन इसका सफर कैसे शुरू होता है?

आजकल लड़के-लड़कियां मिलते हैं, दोस्ती होती है, और हफ्ते भर में दोस्ती गहराने लगती है। फिर इस रिश्ते को प्रेम का नाम दिया जाता है। 2 हफ्तों के भीतर ही दोनों को लगता है कि यह प्यार एक जन्म नहीं, बल्कि 7 जन्मों का है।

इस रिश्ते में भरोसे की पहली सीढ़ी बनता है सोशल मीडिया पासवर्ड का आदान-प्रदान। इसे प्रेम का सबूत माना जाता है। धीरे-धीरे, रिश्ता लेट-नाइट कॉल्स और फिर वीडियो कॉल्स तक पहुंचता है। लड़का पूछता है, “क्या पहना है?” और फिर कहता है, “उतार दो, मैं तुमसे प्यार करता हूं, इतना तो डिजर्व करता हूं।”

 

लड़की झिझकती है, लेकिन फिर मान जाती है। कुछ दिनों बाद दोनों को लगता है कि अब संभोग करना चाहिए। होटल बुक होता है, और बिना शादी के यह सिलसिला 1 महीने तक चलता है। लेकिन फिर क्या? एक-दूसरे के शरीर में एक्सप्लोर करने के लिए कुछ नहीं बचता, और रिश्ता खत्म हो जाता है।

इसके बाद, लड़की और लड़का नए रिश्तों में चले जाते हैं, और वही चक्र दोहराया जाता है। समस्या तब और बढ़ती है, जब ये 20-22 साल के लड़के और लड़कियां 30 साल में शादी करते हैं। तब वे एक पार्टनर के साथ 2-3 महीने में ऊबने लगते हैं।

ऐसे लोगों को समझना चाहिए कि उनकी यह आदत लंबे समय तक टिकने वाले रिश्तों को बर्बाद कर सकती है। अगर आपने शादी से पहले 2-3 रिश्ते बनाए हैं, तो इसे अपने जीवनसाथी से साझा करें। सच्चाई पर आधारित रिश्ता ही टिक सकता है।

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तृप्त …🖤
@yaduvanshi32
संभोग का आनन्द प्राप्त करते ही एक जवान स्त्री अपवित्र हो जाती है,जबकि पुरुष इस समाज में हमेशा ही पवित्र रहता है
23 साल की उम्र में मेरी शादी हो गई थी। आरव एक बहुत ही मिलनसार व्यक्ति थे। आरव का कहना था कि मेरी पत्नी सिर्फ समाज के लिए नहीं, बल्कि मेरे लिए एक दोस्त से ज्यादा होनी चाहिए, क्योंकि हमें साथ में पूरी जिंदगी बितानी है।

आरव ने बताया, “प्यार, रोमांस, और शारीरिक आकर्षण तो एक दिन खत्म हो जाएगा, लेकिन हमारा साथ हमेशा रहेगा।” उनकी यह बात सुनकर मुझे डर लगता था कि कहीं हमारी शादी के बाद हमारा रिश्ता ना टूट जाए।

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लेकिन ऐसा नहीं था। आरव मुझे भरपूर प्यार देते थे और एक स्त्री की सभी जरूरतों जैसे शारीरिक और मानसिक हर चीज का ध्यान रखते थे।

आरव के अच्छे होने का सबसे बड़ा कारण था मेरे माता-पिता का अच्छा होना। शादी के बाद जब मैं ससुराल गई, तो चूल्हे की रस्म में कुछ मीठा बनाना था। घबराहट के कारण मैंने हलवा खराब बना दिया था। मां को यह बात पता चली, तो उन्होंने उस हलवे में से एक निवाला निकालकर भगवान को भोग लगाया। फिर उन्होंने तुरंत जुटकर नया हलवा बनाने में लग गईं और बहुत अच्छा हलवा बना कर मुझे बोला, “सभी मेहमानों को खिला दो।”

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बाहर आकर उन्होंने खुद कहा, “भाई-बहू की पहली रसोई है, काफी मेहनत के साथ इसने सब किया है। अब खा कर बताओ कैसा लगा।” मुझे खुशी हुई। पूरे दिन के काम के बाद जब मैं थक कर अपने कमरे में गई, तो सो गई।

सुबह उठते ही देखा तो ६:३० पर नींद खुली। कमरे से निकलकर जल्दी-जल्दी नहा कर किचन में आई तो देखा पापा चाय छान रहे थे। उन्हें यह करते देखकर मैं शर्मिंदा हो गई और डर से बोली, “पापा जी, सॉरी मुझे लेट हो गया।”

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उन्होंने तुरंत बोला, “लेट कहाँ हुआ है, आओ चाय पियो।” और उन्होंने कहा कि चाय बनाने का काम शुरू से मेरा है। आज की चाय खास है क्योंकि मैं अपनी बेटी के साथ पी रहा हूँ, क्योंकि आरव की कोई बहन नहीं थी।

आरव तो अच्छे थे, लेकिन उनके मम्मी-पापा उनसे भी अच्छे थे। मेरा जन्मदिन था और यह मेरे लिए खास मौका था। शादी को मात्र ७ महीने हुए थे। आरव चाहते थे कि जन्मदिन सेलिब्रेशन में किसी चीज की कमी ना हो।

मेरे पापा ने आरव के दोस्त को फोन किया और बोला, “२ घंटे से कहा गया समान लेने, अभी तक नहीं आया।” तब सबकी चिंता बढ़ने लगी। पापा और आरव के दोस्त घर से बाहर निकले पता लगाने। कुछ दूर जाने के बाद पता चला कि फूल की दुकान के सामने एक व्यक्ति को ऑटो वाले ने धक्का मार दिया, और वह चालक से टकरा गया। उसे अस्पताल ले जाया गया।

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पापा और उनके दोस्त अस्पताल गए तो देखा वह आरव थे। उनका फोन २ तुकड़े में टूट गया था, पास में छोटी को देने के लिए एक बुके था। सब कुछ तो था, पर अब आरव नहीं थे। उनकी पसली टूट कर दिल में छेद कर दी थी, जिससे मौके पर ही उनकी मृत्यु हो गई।

मेरे साथ मेरा पूरा परिवार स्तब्ध था। इस सदमे से बाहर निकलने में मुझे २ साल का वक्त लगा। पर आज मेरे सास-ससुर चाहते हैं कि मैं अपनी नई जिंदगी की शुरुआत करूं और शादी कर के अपना दुबारा घर बसाऊं, क्योंकि २७ साल की उम्र कोई ज्यादा नहीं है।

पर इस समाज को मेरा और मेरे माता-पिता का दुख नहीं दिखता। एक विधवा या तलाकशुदा लड़की से कोई शादी नहीं करना चाहता क्योंकि शादी के बाद संभोग कर के वो अपवित्र है। वहीं, वही लड़की जो बिना शादी के १०-१० लोगों के साथ संबंध बनाती है और फिर पतिव्रता बन जाती है, उसे समाज आसानी से स्वीकारता है।

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हां, मेरे और आरव के बीच शारीरिक संबंध थे और बहुत अच्छे थे, क्योंकि हमारी शादी हुई थी। पर आज आरव मेरे साथ नहीं हैं, तो इसमें मेरी क्या गलती है? क्यों ये समाज किसी विधवा और तलाकशुदा लड़की को अपना घर ठीक से दुबारा बसाने नहीं देता?

शादी के बहुत से ऑप्शन हैं, लेकिन २७ साल की लड़की को ४० साल के आदमी मिलते हैं। पर यही कोई स्त्री की मृत्यु होती तो उसके पति को तुरंत नई लड़की मिल जाती।

 

 

सीख:

समाज में महिलाओं के प्रति धारणाएँ अक्सर अनुचित होती हैं। विधवा या तलाकशुदा महिलाओं को सम्मान और पुनर्वास का अवसर मिलना चाहिए। हर महिला की जिंदगी में सम्मान और समर्थन की आवश्यकता होती है, न कि पूर्वाग्रह और तिरस्कार की। हमें समाज में समानता और समझदारी को बढ़ावा देना चाहिए ताकि हर व्यक्ति को खुशहाल जीवन जीने का अवसर मिल सके।

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तृप्त …🖤
@yaduvanshi32
ऐसे काम—आलिंगन में जब तुम्हारी इंद्रियां पत्तों की भांति कांपने लगें, उस कंपन में प्रवेश करो।*

जब प्रेमिका या प्रेमी के साथ ऐसे आलिंगन में, ऐसे प्रगाढ़ मिलन में तुम्हारी इंद्रियां पत्तों की तरह कांपने लगें, उस कंपन में प्रवेश कर जाओ।

तुम भयभीत हो गए हो.. संभोग में भी तुम अपने शरीर को अधिक हलचल नहीं करने देते हो। क्योंकि अगर शरीर को भरपूर गति करने दिया जाए तो पूरा शरीर इसमें संलग्न हो जाता है। तुम उसे तभी नियंत्रण में रख सकते हो जब वह काम—केंद्र तक ही सीमित रहता है। तब उस पर मन का नियंत्रण रह सकता है। लेकिन जब वह पूरे शरीर में फैल जाता है तब तुम उसे नियंत्रण में नहीं रख सकते। तुम कांपने लगोगे, चीखने—चिल्लाने लगोगे। और जब शरीर मालिक हो जाता है तो फिर तुम्हारा नियंत्रण नहीं रहता।

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हम शारीरिक गति का दमन करते हैं। विशेषकर हम स्त्रियों को दुनियाभर में शारीरिक हलन—चलन करने से रोकते हैं। वे संभोग में लाश की तरह पड़ी रहती हैं। तुम उनके साथ जरूर कुछ कर रहे हो, लेकिन वे तुम्हारे साथ कुछ भी नहीं करतीं, वे निष्‍क्रिय सहभागी बनी रहती हैं। ऐसा क्यों होता है? क्यों सारी दुनिया में पुरुष स्त्रियों को इस तरह दबाते हैं?

कारण भय है। क्योंकि एक बार अगर स्त्री का शरीर पूरी तरह कामाविष्ट हो जाए तो पुरुष के लिए उसे संतुष्ट करना बहुत कठिन हो जाएगा। क्योंकि स्त्री एक श्रृंखला में, एक के बाद एक अनेक बार आर्गाज्म के शिखर को उपलब्ध हो सकती है, पुरुष वैसा नहीं हो सकता। पुरुष एक बार ही आर्गाज्म के शिखर—अनुभव को छू सकता है, स्त्री अनेक बार छू सकती है। स्त्रियों के ऐसे अनुभव के अनेक विवरण मिले हैं। कोई भी स्त्री एक श्रृंखला में तीन—तीन बार शिखर—अनुभव को प्राप्त हो सकती है, लेकिन पुरुष एक बार ही हो सकता है।

 

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कांपना अदभुत है क्योंकि जब संभोग करते हुए तुम कांपते हो तो तुम्हारी ऊर्जा पूरे शरीर में प्रवाहित होने लगती है, सारे शरीर में तरंगायित होने लगती है। तब तुम्हारे शरीर का अणु—अणु संभोग में संलग्न हो जाता है। प्रत्येक अणु जीवंत हो उठता है, क्योंकि तुम्हारा प्रत्येक अणु काम—अणु है।

तुम्हारे जन्म में दो काम—अणु आपस में मिले और तुम्हारा जीवन निर्मित हुआ, तुम्हारा शरीर बना। वे दो काम—अणु तुम्हारे शरीर में सर्वत्र छाए हैं। यद्यपि उनकी संख्या अनंत गुनी हो गई है, लेकिन तुम्हारी बुनियादी इकाई काम—अणु ही है। जब तुम्हारा समूचा शरीर कांपता है तो प्रेमी—प्रेमिका के मिलन के साथ—साथ तुम्हारे शरीर के भीतर प्रत्येक पुरुष—अणु स्त्री—अणु से मिलता है। यह कंपन यही बताता है। यह पशुवत मालूम पड़ेगा। लेकिन मनुष्य पशु है और पशु होने में कुछ गलती नहीं है।

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यह दूसरा सूत्र कहता है : ‘ऐसे काम—आलिंगन में जब तुम्हारी इंद्रियां पत्तों की भांति कांपने लगें।’

मानो तूफान चल रहा है और वृक्ष कांप रहे हैं। उनकी जड़ें तक हिलने लगती हैं, पत्ता—पत्ता कांपने लगता है। यही हालत संभोग में होती है। कामवासना भारी तूफान है। तुम्हारे आर—पार एक भारी ऊर्जा प्रवाहित हो रही है। कंपो! तरंगायित होओ! अपने शरीर के अणु—अणु को नाचने दो! और इस नृत्य में दोनों के शरीरों को भाग लेना चाहिए। प्रेमिका को भी नृत्य में सम्मिलित करो। अणु—अणु को नाचने दो। तभी तुम दोनों का सच्चा मिलन होगा। और वह मिलन मानसिक नहीं होगा, वह जैविक ऊर्जा का मिलन होगा।

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‘उस कंपन में प्रवेश करो।’

और कांपते हुए उससे अलग—थलग मत रहो, दर्शक मत बने रहो। मन का स्वभाव दर्शक बने रहने का है। इसलिए अलग मत रहो, कंपन ही बन जाओ। सब कुछ भूल जाओ और कंपन ही कंपन हो रहो। ऐसा नहीं कि तुम्हारा शरीर ही कांपता है, तुम पूरे के पूरे कांपते हो, तुम्हारा पूरा अस्तित्व कांपता है। तुम खुद कंपन ही बन जाओ। तब दो शरीर और दो मन नहीं रह जाएंगे। आरंभ में दो कंपित ऊर्जाएं हैं और अंत में मात्र एक वर्तुल है। दो नहीं रहे।

इस वर्तुल में क्या घटित होगा? पहली बात कि तब तुम अस्तित्वगत सत्ता के अंश हो जाओगे। तुम एक सामाजिक चित्त नहीं रहोगे, अस्तित्वगत ऊर्जा बन जाओगे। तुम पूरी सृष्टि के अंग हो जाओगे। उस कंपन में तुम पूरे ब्रह्मांड के भाग बन जाओगे। वह क्षण महान सृजन का क्षण है। ठोस शरीरों की तरह तुम विलीन हो गए हो, तुम तरल होकर एक—दूसरे में प्रवाहित हो गए हो। मन खो गया, विभाजन मिट गया, तुम एकता को प्राप्त हो गए।

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यही अद्वैत है। और अगर तुम इस अद्वैत को अनुभव नहीं करते तो अद्वैत का सारा दर्शनशास्त्र व्यर्थ है। वह बस शब्द ही शब्द है। जब तुम इस अद्वैत अस्तित्वगत क्षण को जानोगे तो ही तुम्हें उपनिषद समझ में आएंगे। और तभी तुम संतो को समझ पाओगे कि जब वे जागतिक एकता की, अखंडता की बात करते हैं तो उनका क्या मतलब है। तब तुम जगत से भिन्न नहीं होगे, उससे अजनबी नहीं होगे। तब पूरा

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तृप्त …🖤
@yaduvanshi32
45+ स्त्री की ख्वाहिश 🙏🏻🙏🏻
क्या गलत है खुद के लिए जीना,
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मैं जानती हूँ कि मेरी बात समाज के नियमों और मान्यताओं से अलग हो सकती है, लेकिन मैं अपनी सच्चाई को छुपाना नहीं चाहती। मैं एक ऐसी महिला हूँ जो उम्र के उस पड़ाव पर है जहाँ मेरी शारीरिक इच्छाएँ और जरूरतें बढ़ गई हैं। यह सच है कि मेरे पति मेरी इन जरूरतों को पूरी तरह से नहीं समझ पा रहे हैं, और इसी खालीपन ने मुझे ऐसे रिश्तों की ओर खींचा है जो उम्र में मुझसे छोटे पुरुषों के साथ बने हैं।

जब पहली बार ऐसा हुआ, तो मैं खुद असमंजस में थी। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं अपने से कम उम्र के किसी व्यक्ति के साथ शारीरिक संबंध बना सकती हूँ। लेकिन जैसे-जैसे समय बीता, मैंने महसूस किया कि ये रिश्ते मुझे सिर्फ शारीरिक संतुष्टि ही नहीं, बल्कि एक तरह की नई ऊर्जा और आत्मविश्वास भी दे रहे हैं।

इन रिश्तों में एक अलग तरह की सहजता और उत्साह होता है। युवा पुरुषों के साथ का अनुभव एक नयापन लाता है, जो मुझे अपने भीतर फिर से जीवंत महसूस कराता है। वे मेरे प्रति आकर्षित होते हैं, मेरी उम्र को मेरे अनुभवों को सस् के साथ देखते हैं, और कोशिश करते हैं।

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मैं जानती हूँ कि यह समाज की नज़रों में गलत माना जा सकता है, और कई बार मैं खुद भी इस पर सवाल उठाती हूँ। लेकिन मैं खुद से झूठ नहीं बोल सकती। इन पलों में मैं खुद को पूरी तरह से मुक्त और अपनी इच्छाओं के साथ जुड़ा हुआ महसूस करती हूँ। यह केवल शारीरिक जरूरतों का मामला नहीं है, बल्कि एक भावनात्मक संतुलन भी है, जो मुझे इन रिश्तों से मिलता है।

हालांकि, मैं यह भी समझती हूँ कि ये रिश्ते स्थायी नहीं होते। वे केवल क्षणिक संतोष और खुशी का माध्यम हैं। लेकिन इन पलों में मुझे वह मिलता है जो मुझे अपने रिश्ते में नहीं मिल पा रहा है-ध्यान, उत्साह और वो कनेक्शन जो मेरे भीतर के खालीपन को भर देता है।

मैं अपनी कहानी को साझा करते हुए यह नहीं कह रही कि यह सही है या गलत। यह केवल मेरी भावनाओं और जरूरतों की सच्चाई है। शायद कई और महिलाएँ भी मेरी तरह महसूस करती हों, लेकिन इसे स्वीकारने से डरती हों। मैं चाहती हूँ कि हर महिला अपने दिल और शरीर की आवाज सुने, और बिना किसी अ को स्वीकारे।

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तृप्त …🖤
@yaduvanshi32
*मन वेश्या की तरह है।*
खास कर बड़ी स्त्रिओ के 🙏🏻🙏🏻..
छोटे बौद्ध बालक का मन संम्म्मान 🙏🏻✍🏻
किसी का नहीं है मन। आज यहां, कल वहां; आज इसका, कल उसका।

मन की कोई मालकियत नहीं है। और मन की कोई ईमानदारी नहीं है। मन बहुत बेईमान है। वह वेश्या की तरह है। वह किसी एक का होकर नहीं रह सकता। और जब तक तुम एक के न हो सको, तब तक तुम एक को कैसे खोज पाओगे?

न तो प्रेम में मन एक का हो सकता है; न श्रद्धा में मन एक का हो सकता है—और एक के हुए बिना तुम एक को न पा सकोगे। तो कहीं तो प्रशिक्षण लेना पड़ेगा—एक के होने का।

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इसी कारण पूरब के मुल्कों ने एक पत्नीव्रत को या एक पतिव्रत को बड़ा बहुमूल्य स्थान दिया। उसका कारण है। उसका कारण सांसारिक व्यवस्था नहीं है। उसका कारण एक गहन समझ है।

वह समझ यह है कि अगर कोई व्यक्ति एक ही स्त्री को प्रेम करे, और एक ही स्त्री का हो जाए, तो शिक्षण हो रहा है एक के होने का। एक स्त्री अगर एक ही पुरुष को प्रेम करे और समग्र—भाव से उसकी हो रहे कि दूसरे का विचार भी न उठे, तो प्रशिक्षण हो रहा है; तो घर मंदिर के लिए शिक्षा दे रहा है; तो गृहस्थी में संन्यास की दीक्षा चल रही है।

अगर कोई व्यक्त्ति एक स्त्री का न हो सके, एक पुरुष का न हो सके, फिर एक गुरु का भी न हो सकेगा; क्योंकि उसका कोई प्रशिक्षण न हुआ। जो व्यक्ति एक का होने की कला सीख गया है संसार में, वह गुरु के साथ भी एक का हो सकेगा। और एक गुरु के साथ तुम न जुड़ पाओ तो तुम जुड़ ही न पाओगे। वेश्या किसी से भी तो नहीं जुड़ पाती। और बड़ी, आश्चर्य की बात तो यह है कि वेश्या इतने पुरुषों को प्रेम करती है, फिर भी प्रेम को कभी नहीं जान पाती।

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अभी एक युवती ने संन्यास लिया। वह आस्ट्रेलिया में वेश्या का काम करती रही। उसने कभी प्रेम नहीं जाना। यहां आकर वह एक युवक के प्रेम में पड़ गई, और पहली दफा उसने प्रेम जाना। और उसने मुझे आकर कहा कि इस प्रेम ने ही मुझे तृप्त कर दिया; अब मुझे किसी की भी कोई जरूरत नहीं है।

और उसने कहा कि आश्चर्यों का आश्चर्य तो यह है कि मैं तो बहुत पुरुषों के संबंध में रही; लेकिन मुझे प्रेम का कभी अनुभव ही नहीं हुआ। प्रेम का अनुभव हो ही नहीं सकता बहुतों के साथ। बहुतों के साथ केवल ज्यादा से ज्यादा शरीर का भोग, उसका अनुभव हो सकता है।

एक के साथ आत्मा का अनुभव होना शुरू होता है; क्योंकि एक में उस परम एक की झलक है। छोटी झलक है, बहुत छोटी; लेकिन झलक उसी की है।