धर्म

इस्लाम में हक़्क़ुन्नास का महत्व

लोगों के अधिकार उन अधिकारों को कहते हैं जो मनुष्य को दूसरों के साथ संबंधों के कारण प्राप्त होते हैं। ये सभी नैतिक और कानूनी दायित्वों व कर्तव्यों को शामिल करते हैं जिनका पालन व्यक्ति को समाज के अन्य सदस्यों के प्रति करना चाहिए।

इस्लाम में हक़्क़ुन्नास का महत्व

हक़्क़ुन्नास यानी वे अधिकार जो मनुष्यों का एक-दूसरे पर होते हैं। इस्लाम में इस विषय का अत्यधिक महत्व है। इस्लाम इन अधिकारों के पालन पर ज़ोर देता है और इसे नैतिक व क़ानूनी चर्चाओं में सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानता है। इस्लाम में हक़्क़ुन्नास की अवहेलना न केवल एक बड़ा पाप माना जाता है बल्कि इसके दुनिया और आखिरत में नकारात्मक प्रभाव होते हैं। पैगंबर-ए-अकरम (स.) और मासूम इमामों की कई हदीसें इस बात की ओर इशारा करती हैं। उदाहरण के तौर पर एक हदीस में आया है: अल्लाह ने अपनी शान व जलाल की क़सम खाई है कि क़यामत के दिन वह हर चीज़ को माफ़ कर सकता है लेकिन हक़-उन-नास को कभी माफ़ नहीं करेगा।

इस्लाम में हक़्क़ुन्नास और हक़-अल्लाह के बीच अंतर

हक़्क़ुन्नास उन कार्यों को कहा जाता है जैसे दूसरों के अधिकारों का सम्मान करना, समाज के लोगों पर अत्याचार न करना या कोई भी ऐसा काम जिससे दूसरों को नुकसान पहुँचे। वहीं हक़्क़ुल्लाह के बंदों पर उसके अधिकारों को परिभाषित करता है, जैसे नमाज़, रोज़ा, हज, ज़कात आदि जिन्हें करना हर मुकल्लफ़ अर्थात धार्मिक रूप से जिम्मेदार व्यक्ति पर वाजिब है या वे काम जिन्हें अल्लाह ने मना किया है।

हज़रत अली ने फरमाया:

अल्लाह सुब्हानहू ने अपने बंदों के अधिकारों को अपने अधिकारों पर प्राथमिकता दी है। इसलिए जो व्यक्ति बंदों के अधिकारों का पालन करता है, वह अल्लाह के अधिकारों का भी पालन करने वाला बन जाता है।

इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार हक़्क़ुन्नास की अवहेलना करने वाला व्यक्ति हक़्क़ुल्लाह की भी पूरी तरह से रक्षा नहीं कर सकता।

हक़्क़ुन्नास के उदाहरण

हक़्क़ुन्नास का सबसे पहला ख्याल जो दिमाग़ में आता है, वह दूसरों की संपत्ति पर अतिक्रमण करना है लेकिन इसके उदाहरण इससे कहीं ज़्यादा व्यापक हैं, जैसे: हत्के हुरमत यानी इज़्ज़त से खिलवाड़ करना

ज़बानी गुनाह जैसे ग़ीबत यानी पीठ पीछे बुराई, तोहमत यानी झूठा आरोप अफ़वाह, चुभने वाली बातें, ताने मारना, अपमान करना और चुगली करना।

कोई भी ऐसा काम जो किसी की इज़्ज़त या शख्सियत को नुकसान पहुँचाए।

वे सभी कार्य जो दूसरों को तकलीफ़ दें, जैसे: रास्ता रोकना, सामाजिक नियमों का पालन न करना, ज़ोर-ज़ोर से शोर करना, पानी और हवा को प्रदूषित करना, बिना वजह पेड़ काटना, सड़कों पर कचरा फैलाना आदि।

हक़्क़ुन्नास न मानने के सामाजिक प्रभाव

आज समाज में ज़्यादातर मुश्किलें दूसरों के अधिकारों की अनदेखी करने से पैदा होती हैं, जैसे: मालिकों और मज़दूरों के बीच तनाव, ख़रीददारों और विक्रेताओं के बीच विश्वास की कमी, पड़ोसियों, रिश्तेदारों, यहाँ तक कि भाई-बहनों और पति-पत्नियों के बीच मनमुटाव, दोस्ती का दुश्मनी में बदलना, समाज में ग़रीबी बढ़ना

हज़रत अली का फरमान है:

अल्लाह ने अमीरों के माल में ग़रीबों का हक़ रखा है। कोई भी ग़रीब तभी भूखा रहता है जब कोई अमीर अपने धन का हक़ अदा करने से इनकार करता है।

इमाम सादिक़ फरमाते हैं:

अगर लोग अपने धन के हक़ यानी ज़कात आदि अदा करते, तो सभी अच्छी और संतुष्ट और आरामदायक जीवन बिताते।

इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार हक़्क़ुन्नास यानी लोगों के अधिकारों को निभाना इबादत से भी ज़्यादा अहम है क्योंकि अल्लाह अपने अधिकार को माफ़ कर सकता है लेकिन बंदे का हक़ तभी माफ़ होता है जब खुद वह व्यक्ति माफ़ कर दे

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